टापुओं पर पिकनिक - 94 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 94

मधुरिमा का दिल मानो बल्लियों उछलने लगा।
उसने कभी नहीं सोचा था कि ज़िन्दगी में कभी ऐसे दिन भी आयेंगे। रंग भरे उमंग भरे!
किसने सोचा था कि जापान के तमाम बड़े शहरों से दूर निहायत ही अलग- थलग पड़ा ये छोटा सा कस्बा, और उसके किनारे पर बिल्कुल ग्रामीण इलाकों की तरह फ़ैला- बिखरा उसका ये फार्महाउस कभी इस तरह गुलज़ार भी होगा।
लेकिन तेन की मिलनसारिता और मेहनत के बदौलत ऐसे दिनों ने भी उसकी ज़िन्दगी के द्वार पर दस्तक दी जिनकी संभावित ख़ुशबू से ही उसके आने वाले दिन महक गए।
अपनी मां और पापा को ख़ुश देख कर नन्ही परी तनिष्मा भी इतराई सी फिरने लगी।
उसे उसकी मम्मी ने बताया कि तेरी नानी, मामा, मामी, चाचा सब यहां आयेंगे।
अब वो बेचारी क्या जाने कि नानी किसे कहते हैं? उससे मिलने तो उसकी दादियां ही कभी- कभी आया करती थीं। हां, नानी से वो भारत में मिली ज़रूर थी मगर तब की पुरानी बात उसे भला कब तक याद रहती?
बच्चे तो वैसे भी तोता- चश्म होते हैं, जो कुछ सामने रहे बस उसी को अपनी दुनिया समझते हैं।
और मामा- मामी - चाचा की परिभाषा तो वो इतनी ही समझी कि बहुत सारे लोग... ऐसे अंकल और आंटी का जमावड़ा जिन्हें मम्मा बहुत लाइक करती हैं और पापा बहुत रिस्पेक्ट करते हैं।
साथ ही वो ये भी समझ गई कि ये ग्रुप ऑफ़ पर्सन्स आते समय भी बहुत से गिफ्ट्स लाता है और जाते समय भी जिसके लोग बहुत सारी मनी देकर जाते हैं।
मधुरिमा ने दुगने उत्साह से घर को सजाना - संवारना शुरू किया। तरह - तरह के फूल, पौधे नर्सरी की मदद से लाती और उन्हें खुद रोपती, सींचती।
अपने बतख़, मुर्गाबियों, बटेरों के झुंड को ध्यान से देखती और सोचती कि इन उम्दा नस्ल के बेहतरीन पंछियों को देख कर उसके मेहमान कितने हर्षाएंगे!
उसने समय निकाल कर बाज़ार से शॉपिंग भी कर छोड़ी थी कि किसे क्या तोहफ़ा देना है, ताकि सबके आने से पहले ही वो सब तैयारी कर के रख सके।
ये मौक़ा बार - बार थोड़े ही आता है। जापान के सुदूर दक्षिण के इस इलाक़े में तो भारत के इन सैलानियों का आना "वन्स इन अ लाइफ टाइम" जैसा ही था। ये संयोग ही तो था कि मनन और मान्या की शादी अभी- अभी हुई थी और हनीमून ट्रिप के नाम पर वे लोग भी यहां आ रहे थे। वैसे उनके आने की असली वजह तो आगोश की मम्मी को कंपनी देने की ही रही।
और आगोश की मम्मी भी वैसे कहां आ पातीं। ये तो तेन ने ही ज़ोर देकर उन्हें बताया कि आगोश की जिस तरह की मूर्ति वो बनवाना चाहती हैं वो चाइना में ही नहीं, बल्कि जापान और कोरिया में भी ख़ूब बनने लगी है। बस, चटपट उन लोगों का कार्यक्रम बन गया।
एक बात सोच- सोच कर मधुरिमा बहुत शर्माती थी। उसका यह प्यारा सा घर उसके दोस्तों का हनीमून डेस्टिनेशन बनता जा रहा था किंतु वो ख़ुद? वो तो हनीमून के लिए यहां अब तक तरसती ही रही थी।
नहीं - नहीं, उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए। तेन उसके साथ है और उसे भरपूर प्यार करता है। उसकी हर इच्छा पूरी करता है, उसके आगे- पीछे फिरता है। दौलत का अंबार लगा है यहां। उसके पति तेन ने उसे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी।
अब अपने शरीर का कोई क्या करे? इस तकनीक संपन्न देश को वैसे भी वर्कॉलिक युवाओं का देश कहा जाता है। अपने काम के तनाव में डूबे यहां के लोग शरीर सुख के लिए तरह- तरह की दवाओं, तेलों और एक्सरसाइज पर ही निर्भर रहते हैं। ये लोग स्लिमफिट रहने और परिवार की जनसंख्या को लेकर भी बेहद सख़्त अनुशासन में रहना पसंद करते हैं।
तेन ही उसका सब कुछ है। अब और कुछ उसे सोचना भी नहीं चाहिए।
मधुरिमा के भीतर कोई लहर सी उठती और उसे सराबोर कर के निकल जाती। मधुरिमा के तन- मन का जैसे स्नान हो जाता।
हां! इस बार एक बात और थी। वह बिना कहे नहीं रहेगी मधुरिमा!
आर्यन ने उसे बताया था कि इस बार वह लंबे समय तक यहां रहने वाला है। उसकी एक फ़िल्म का क्लाइमैक्स शूट यहां जापान में ही होना था जिसके लिए ख़ुद तेन ने ही आगे बढ़ कर सारी व्यवस्था करवाई थी। इतना ही नहीं, बल्कि तेन ने शूटिंग के लिए नज़दीक के उस टापू पर अपनी खरीदी हुई जगह भी उपलब्ध कराई थी।
तेन ने दौड़ - भाग करके सब ज़रूरी परमीशन लेने का कष्ट भी उठाया था और आर्यन के प्रोड्यूसर को हर तरह का सहयोग देने का वादा भी किया था।
इसी भरोसे पर आर्यन यहां आ रहा था।
शुरू के कुछ दिन आर्यन जयपुर से आने वाले दल, अर्थात आंटी, मान्या और मनन के साथ भी वहां रहने वाला था।
मधुरिमा ने बेटी को उसका परिचय चाचा कह कर ही करवाया था।
मधुरिमा ये तय नहीं कर पा रही थी कि आर्यन के इतने लंबे स्टे से वो वास्तव में खुश थी या नहीं।
आर्यन इस फ़िल्म को अपने दिवंगत दोस्त आगोश को समर्पित करने की तैयारी कर चुका था।
आगोश की मम्मी का यहां शूटिंग देखने और आर्यन के साथ कुछ समय बिताने का कार्यक्रम इसी आधार पर बना था।
काश, मधुरिमा अपनी मम्मी से भी कह पाती कि इस समय आंटी के साथ कुछ समय के लिए यहां आने का कार्यक्रम वो भी बना लें।
लेकिन वो जानती थी कि मम्मी वहां घर अकेला छोड़ कर नहीं आएंगी।
कितना अंतर था भारत में और दूसरे उन्नत देशों में। भारत में लोग अपने घरों को सुख- सुविधा का गोदाम बना लेते हैं, फ़िर उसे अकेले छोड़ कर बाहर निकलने में डरते हैं। जबकि दूसरे देशों में लोग घर में केवल ज़रूरत का न्यूनतम सामान रखते हैं। कीमती चीज़ें बैंक आदि में रखते हैं।
मधुरिमा को शुरू- शुरू में यहां ये देख कर बड़ा अजीब सा लगता था कि लोग कुछ भी नया लाते ही पुराने को तुरंत दूसरे ज़रूरतमंद आदमी को दे देते हैं। वहां संग्रह वृत्ति नहीं होती।
भारत में यदि किसी घर में आठ- दस पैन रखे हों तो हो सकता है कि उनमें से दो- तीन ही चलते हों। लोग बल्ब या बैटरी बदलते हैं तो पुरानी बैटरी या फ्यूज्ड बल्ब को भी घर में ही रख लेते हैं।
प्रायः घरों में ऐसा सामान पाया जाता है जो दो- दो साल तक कोई काम नहीं आता, पर फेंका नहीं जाता।
ढीली ढेबरियां या बचा हुआ पेंट तक घर में सालों- साल रखा हुआ देखा जा सकता है।
घरों की गहरी सफ़ाई साल में एक बार उन भगवान के नाम पर होती है जो चौदह साल के लिए जंगल में जाते समय भी अपनी खड़ाऊं तक घर में ही छोड़ गए थे।
घर की साज- सज्जा ने मधुरिमा के दिन किसी उड़ते पंछी की भांति तेज़ी से निकाल दिए।
वह एक - एक दिन गिन रही थी।
उस दिन मधुरिमा हैरान रह गई जब उसने देखा कि तेन फ़ोन पर किसी से एक घंटे से भी ज्यादा समय से बातों में उलझा हुआ है।
नपा तुला बोलने वाला तेन किससे बात कर रहा था?
ओह! मुंबई से आर्यन का फ़ोन आया हुआ था।
आर्यन ने उसे बताया कि मुंबई पुलिस ने आगोश की मूर्ति चोरी का प्रकरण सुलझा लिया है।
मूर्ति बनाने वाले वहीद मियां का ही बड़ा बेटा ख़ुद चोर निकला जिसने तैयार मूर्ति कुछ तस्करों के हाथ बेच डाली और बाद में मूर्ति चोरी जाने का नाटक रच कर अपने बाप तक को मूर्ख बना दिया।
सारी बात सुन कर तेन ने भी दांतों तले अंगुली दबा ली।
संगमरमर के पत्थर से बनी इस मूर्ति का सौदा तस्करों ने पहले से ही कर लिया था। विचित्र बात ये थी कि इस मूर्ति में कुछ ख़ुफ़िया परिवर्तन इसे बनाने वाले कारीगर ने ख़ुद ही कर लिए।
मूर्ति के मुंह से लेकर पेट के दूसरे छोर तक आर- पार एक बेहद पतली खोखली नली बनाई गई थी। होठों और कमर के पिछले नीचे के भाग के बीच में खोखले भाग की बनावट ऐसी बनाई गई थी जिसमें भीतर अवैध सामान आसानी से छिपाया जा सके। ये कीमती ड्रग्स अथवा हीरों आदि के लिए निरापद कैरियर बन गई थी।
इस मूर्ति के मिलते ही तस्करों के खुफिया इरादे जाहिर हो गए थे। वो इसका इस्तेमाल स्मगलिंग में करने की तैयारी में थे।
वहीद मियां का बेटा सलाखों के पीछे था। किंतु इसे खरीदने की कोशिश करने वाले तस्कर अभी तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं आए थे।