ये अजीब था।
ये किसी परा-वैज्ञानिक की खोज थी। इसकी पुष्टि भी कई अनुभवी विद्वानों ने की थी।
दुनिया के हर प्राणी में मस्तिष्क तो होता ही है चाहे ये विशालकाय हो या फिर छोटा सा।
और ये सबमें अलग - अलग होता है। अलग प्रजाति के प्राणी में तो अलग होता ही है, एक ही नस्ल के जंतुओं में भी एकसा नहीं होता।
सब अलग- अलग बनावट का दिमाग़ रखते हैं इसीलिए अलग - अलग बर्ताव भी करते हैं।
और वो आदमी जादू जानता था। जादू ही तो था ये।
अर्थात वो एक जानवर का दिमाग एक प्राणी से दूसरे प्राणी में ट्रांसफर कर सकता था। विचित्र बात थी।
ये ट्रांसफर भी किसी शल्यक्रिया द्वारा या ऑपरेशन से नहीं बल्कि अदृश्य मंत्रोच्चार से... बैठे- बैठे किसी अलौकिक क्रिया से।
बस, इसके बाद वो प्राणी ठीक उसी के अनुसार बर्ताव- व्यवहार करने लग जाता था जिसका दिमाग़ उसके दिमाग़ से बदला गया है।
सब कुछ अविश्वसनीय! किंतु कौतूहलपूर्ण।
एक निर्जन टापू पर रहते आदिवासी को अपने पालतू तरह- तरह के जानवरों के साथ विभिन्न तरह के अनुभव होते। वह उन प्राणियों का रक्षक तो था ही, उनका दोस्त भी था।
वह पहले अपनी नाव लेकर कई- कई दिन तक बियाबान टापुओं, बीहड़ों में भटकता, फ़िर दुर्लभ प्रजाति के पशु- पक्षियों को खोज कर उन्हें पकड़ कर लाता।
जंगली फल- फूल या गोश्त खाकर वह दिन- रात उन्हीं पशुओं के बाड़े में बना रहता और उन्हें प्रशिक्षण देता। उसकी ख्याति दूर - दूर तक फैल गई थी।
लोग उसे ढूंढते हुए आते और उसके पाले हुए पशु- पक्षियों के करतब जान कर उन्हें ले भी जाते। कुछ लोग ख़रीद भी करते तो कुछ मामूली धन पर उन्हें थोड़े समय के लिए ले जाते।
इस तरह किराए से प्राणियों को ले जाने वाले लोगों में या तो वो लोग होते जो फ़िल्म, टीवी सीरियल अथवा डॉक्यूमेंटरी शूट कर रहे होते या फिर वो जो कुछ दिन के लिए अपने बच्चों के दिल- बहलाव के लिए उन्हें ले जाते। शौक़ पूरा होने पर वे उन्हें छोड़ जाते।
आर्यन ये सब पढ़ कर बेहद रोमांचित था। ये कहानी उसी मेगा बजट प्रोजेक्ट का हिस्सा थी जिसे जापान की पृष्ठभूमि में अंजाम दिया जाना था।
आर्यन मानो पढ़ते- पढ़ते उसी आदिवासी ट्रेनर के व्यक्तित्व में विलीन हो जाता जिसकी भूमिका वो स्वयं करने वाला था।
आर्यन की ये सोच कर ही कंपकंपी छूट जाती कि ट्रेनर के पालतू पशुओं में चीता, बाघ, लकड़बग्घा और घड़ियाल जैसे जानवर भी मौजूद थे।
दोपहर को लंच के बाद आर्यन थोड़ी देर आराम करने के इरादे से लेटा ही था कि बंटी का फ़ोन आ गया।
बंटी ने उसे बताया कि कोट्टायम के एक गिरिजाघर की नन आर्यन को जानती है।
- कैसे? कोई ख़ास बात? आर्यन को थोड़ी उत्सुकता हुई, क्योंकि एक अभिनेता को तो लाखों लोग जानते ही हैं... उसने ऐसा क्यों कहा होगा।
- नहीं, बस मैंने जब उसे बताया कि मैं मुंबई में फिल्मस्टार आर्यन के यहां काम करता हूं तो उसने कहा- शायद मैं उन्हें जानती हूं।
- शायद? आर्यन ने कुछ दबे सुर में कहा।
बंटी बोला- सर, मैंने उससे यही कहा कि उन्हें तो बहुत से लोग जानते ही हैं...क्या आप फ़िल्में देखने का शौक़ रखती हैं?
वो बोली- हमें इन सब बातों के लिए समय नहीं मिल पाता, और अनुमति भी नहीं है। फ़िर उसने ख़ुद ही बताया कि शायद आप भी उसे जानते हैं!
अब आर्यन चौंका।
- कौन थी? कुछ पूछा तुमने? क्या कहना चाहती थी। आर्यन की उत्सुकता बढ़ी।
- नहीं सर... मैंने कुछ नहीं कहा। जब वह ख़ुद ही कह रही थी कि "शायद..." तो मैंने ध्यान नहीं दिया। उससे मैंने ये ज़रूर पूछा कि उनसे कुछ काम हो तो बताओ।
- फ़िर?
- वह बोली- अब हमारा काम बस गॉड से पड़ता है...
- ग्रेट!
बंटी ने आर्यन को बताया कि दिल्ली के नज़दीक एक हॉस्पिटल में एक मामले में लगा पुलिस अफ़सर ज़िक्र कर रहा था कि वहीद मियां के यहां से अपनी जो मूर्ति चोरी हुई थी उसका कुछ कनेक्शन उसी हस्पताल से है? आपको मालूम है कुछ?
- अरे यार तुम्हें बताया तो था, वो मूर्ति उसी हॉस्पिटल के प्रांगण में तो लगाई जाने वाली थी। उसके ओनर्स जयपुर के ही हैं... उन्हीं के लिए बन रही थी वह मूर्ति। आर्यन ने सारी बात बंटी को बताई।
अच्छा, बंटी ने कहा- मैंने तो अब तक ये ही समझा था कि मूर्ति आपके किसी जिगरी दोस्त की है...
- हां, यह बात भी सही है, वो दोस्त तो था ही मेरा।
फ़ोन रख कर आर्यन ने घड़ी देखी और कुछ कसमसाता हुआ जिम जाने के लिए तैयार होने लगा।
आर्यन अभी सीढ़ियां उतर ही रहा था कि पोर्च में किसी कार के रुकने की आवाज़ आई।
आर्यन ठिठक गया क्योंकि अब उसे कार दिखने भी लगी थी।
ये कार उस लड़की की ही थी जो कुछ समय पहले आर्यन के साथ यहां एक रात रुकने के लिए आई थी।
उसे कार से उतरते देख आर्यन ने जिम जाना फ़िलहाल मुल्तवी किया और वापस पलट कर ऊपर आने लगा।
लड़की अकेली ही थी और अपनी कार ख़ुद ड्राइव करके लाई थी।
लड़की तेज़ी से सीढ़ियां चढ़ते हुए ऊपर आने लगी। उसने पहले ऑफिस की ओर मुड़ कर वहां बैठे लड़के से पूछने की जहमत नहीं उठाई क्योंकि शायद उसे गाड़ी से उतरते समय सीढ़ियों पर ट्रैकसूट पहने आता हुआ आर्यन पहले ही दिख गया था।
पांवों में लाइट से जूते और उसकी चाल का अंदाज़ देख कर लड़की समझ गई थी कि आर्यन कहीं दूर जाने के लिए नहीं बल्कि यहीं आसपास, शायद जिम जाने के लिए निकला है।
लड़की को ऊपर आकर दरवाज़े की घंटी नहीं बजानी पड़ी क्यों कि अभी- अभी पलट कर आए आर्यन ने दरवाज़ा खुला ही छोड़ दिया था।
लड़की ने इसे अपना सम्मान समझा और तीर की तरह भीतर दाख़िल हो गई।
लड़की काफ़ी एक्साइटेड थी। उसे पता चल चुका था कि वो जापान वाले शूटिंग शेड्यूल में शामिल होने वाली है।
ख़ुशी उसके चेहरे से टपकी पड़ रही थी।
आर्यन से हाथ मिलाने के लिए वो आगे बढ़ी ही थी कि आर्यन ने उसकी शर्ट के बाजू से दिख रहे स्ट्रैप को पकड़ कर उसे नीचे खींच लिया।
लड़की कुछ समझ पाती इसके पहले ही आर्यन ने उसे गाल पर चूम लिया।
लड़की के चेहरे की गरिमा- दीप्ति इससे कुछ और भी प्रखर हो गई।
वह मुस्कुराई और सोफे पर आर्यन से बिल्कुल सट कर बैठ गई।
लड़की एक गहरी नज़र से आर्यन को देखने लगी।
- क्या देख रही हो?
- देख रही हूं कि समुद्री डाकू क्या इतने सॉफ्ट फेस वाले हो सकते हैं। लड़की इतराई।
आर्यन ने कहा- डकैती डालने में फेस की कोई भूमिका नहीं... इसके लिए दिल का कसैला - करारापन चाहिए।
- करारेपन को सलाम! लड़की चहकी।
नीचे ऑफिस से उठकर ऊपर आया लड़का किचन में जाकर उनके लिए कॉफ़ी तैयार करने लगा।
जिस शूटिंग शेड्यूल के लिए वो लड़की आर्यन के साथ जापान जाने वाली थी वहां आर्यन की भूमिका एक समुद्री डाकू की ही थी।
छोटी बोट में इधर - उधर मटरगश्ती करते हुए घूमना और वहां से गुजरने वाले व्यापारिक जहाज़ों को अपने साथियों के साथ मिल कर लूट लेना... लड़की की भूमिका आर्यन के सहायक की ही थी।
जहाज में एंट्री मिल जाने के बाद उसके कैप्टेन को भरमाना- बरगलाना, ये सब लड़की के हिस्से में ही आने वाला था।
लड़की अच्छी डांसर भी थी।
- यार कमर की लुगदी बन जाती है... ऐसे- ऐसे स्टेप्स सिखाती है वो...
- ऐ, माइंड यॉर लैंगवेज... शी इज मोस्ट रेस्पेक्टेबल लेडी... केवल चार्मिंग ही नहीं बल्कि वो भारी मेहनत कर रही हैं स्क्रिप्ट को फ़ाइनल करने में। इनफेक्ट, स्टोरी- लाइन उन्हीं की है।
- अच्छा, वो लिखती भी हैं?
- शी इज वन ऑफ़ द फाइनेंसर्स ऑल्सो। आर्यन ने खुलासा किया।
- ओह, रियली, तब तो रेस्पेक्टेबल हैं... लड़की ज़ोर से खिलखिला कर हंसी।
कॉफ़ी आ गई थी और लड़का उसे रख कर लौट ही रहा था कि पलट कर वापस रुक गया।
मानो पूछना चाहता हो कि और कुछ?