रात के साढ़े तीन बजे थे।
आर्यन मुंबई में अपने बेडरूम में बेखबर सोया हुआ था। बाक़ी स्टाफ के लोग नीचे ऑफिस के साथ वाले कमरे में थे।
फ़ोन की घंटी बजी।
- इस वक्त? क्या मुसीबत है! आर्यन आंखें मीचे हुए ही भुनभुनाया।
घंटी फ़िर बजी। रात के सन्नाटे में स्वर और भी कर्कश सा लग रहा था।
कुछ देर तक आवाज़ की अनदेखी करके आख़िर आर्यन ने मोबाइल उठा कर कान से लगाया।
उधर से कुछ सहमी घबराई हुई सी आवाज़ आई- सर, माफ़ करना, इतनी रात को आपको डिस्टर्ब कर रहा हूं... पर सुबह के इंतजार तक दिल नहीं माना...
- कोई बात नहीं वहीद भाई, बताइए कैसे याद किया? आर्यन ने फ़ोन के दूसरी ओर एक बुज़ुर्ग सज्जन को पाकर अपना स्वर भरसक नर्म बनाते हुए कहा।
- ग़ज़ब हो गया साहब! पैंतीस साल में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ... न देखा, न सुना..
- क्या हुआ चचा?
- मेरे वालिद कहा करते थे कि यहां है क्या, कच्छे बनियान में सोते हुए हम- तुम, चारों तरफ़ फैले - बिखरे बेतरतीब पत्थर और कुछ अनगढ़ बुत! कोई क्या ले जाएगा यहां से? इत्मीनान से सोते थे।
- फ़िर? किसने जगा दिया? आर्यन कुछ खीज कर बोला।
- बाबू, गुस्सा न हो जाना। कमबख्तों ने कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। वहीद मियां भुनभुनाए।
नींद में डूबे आर्यन का दिल किया कि तुरंत मोबाइल बंद करके सो जाए, फ़िर भी आर्टिस्ट वहीद मियां की उम्र और भलमंसाहत का ख़्याल करके अपने को जप्त किया और बोला - हुआ क्या मियां जी?
- हुज़ूर ये पूछिए, क्या नहीं हुआ? एक सोते हुए कलाकार का पायजामा खोल कर ले जाओ तो उसकी इज़्ज़त नहीं जाती पर...
... पर क्या? क्या कर गया कोई आपके साथ! साले को ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे आप बताइए तो सही। आर्यन ने आवाज़ में थोड़ी सख़्ती घोल कर कहा।
रात के साढ़े तीन बजे आए फ़ोन पर दूर से आती एक निहायत ही शरीफ़ बुजुर्ग की आवाज़ बुझ सी गई। कुछ बुदबुदाते हुए से वहीद भाई बोले- साहब, बिल्कुल तैयार पैक करके रखा हुआ आपके दोस्त का आदमकद बुत कोई चुरा ले गया! मरहूम आगोश जी की मूर्ति चोरी चली गई। कहते- कहते वहीद मियां रो पड़े।
- अरे अरे... धीरज रखिए, पर ये कैसे हो गया? इतनी भारी पत्थर की आदमकद मूर्ति कौन उठा ले जाएगा, कैसे उठा ले जाएगा और सबसे बड़ी बात तो ये कि क्यों उठा ले जाएगा? इधर- उधर देखिए, आपका ही कोई शागिर्द उसे तराशने या पॉलिश करने के ख़्याल से यहां- वहां रख गया होगा। अब आर्यन अपने बिस्तर पर ही उठ कर बैठ गया।
- कतई नहीं जनाब। मेरी वर्कशॉप का कौना- कौना मेरी निगाह में रहता है, यहां से मूर्ति तो क्या कोई छैनी हथौड़ी भी कभी दर - बदर नहीं हुई। वहीद मियां बोले।
आर्यन ने एक बार दीवार पर लगी घड़ी में समय देखा और फ़िर ज़ोर से अपने बैड के किनारे लगी घंटी बजा दी।
नीचे सो रहा लड़का झटपट उठ कर सीढ़ियों से ऊपर आया और आर्यन के कमरे की लाइट जला दी।
लाइट जलते ही आर्यन कुछ झेंप सा गया पर लड़का झट से उसे एक टॉवेल बदन पर लपेटने के लिए पकड़ाते हुए उसके सामने मुस्तैद होकर खड़ा हो गया।
आर्यन ने उसे कहा- गाड़ी निकाल... और तुरंत वाशरूम में घुस गया।
आर्यन कपड़े पहन कर जल्दी- जल्दी नीचे उतरा तब तक लड़का भी पैंट पहन कर तैयार था।
गाड़ी कुछ ही देर में सड़क पर दौड़ रही थी।
एक ऊंची इमारत के पिछवाड़े के कच्चे से मैदान में ईंटों का एक घेरदार बाड़ा ही इस मूर्तिकार परिवार का अड्डा था।
इस जगह को देख कर कोई कह नहीं सकता था कि इस छत के साए में दुनिया भर में देखी जाने वाली हिंदी फ़िल्मों के लिए एक से एक आलीशान सेट तैयार करने वाला परिवार अपने बाल - बच्चों समेत यहां बसता होगा।
आर्यन ने गाड़ी को सड़क पर पार्क किया और टॉर्च दिखा रहे लड़के के पीछे- पीछे एक संकरी सी पगडंडी पर चल पड़ा।
उसे देखते ही वहीद मियां एक बार फ़िर रुआंसे से हो गए। अंगुली के इशारे से आर्यन को दिखाते हुए बोले- ये देखिए, यहां... इस कौने में, यहां तैयार करके रख दिया गया था बुत। लड़के ने दिन भर मेहनत करके उसकी पैकिंग की थी। अच्छे से लपेट दिया था उसे। फूस, फ़िर टाट, फ़िर से मोटा पॉलीथिन... फ़िर लकड़ी के फ़्रेम का सपोर्ट देकर दोबारा सिलाई... दिन भर तो बेचारा इसी में लगा रहा।
- कब हुई चोरी? क्या यहां कोई नहीं था? इतनी भारी मूर्ति कोई एक आदमी तो चुपचाप घुस कर उठा नहीं ले जा सकता। ज़रूर कोई व्हीकल भी आया होगा, आवाज़ हुई होगी। दो - चार आदमी भी रहे ही होंगे... चलो, ऐसा काम करने वालों को "आदमी" न भी कहें तो भी जिनावरों का पूरा रेवड़ यहां मंडराया होगा। तब क्या यहां कोई नहीं था आप लोगों में से? आर्यन ने किसी ख़ुफ़िया एजेंसी के निरीक्षक की तरह पूछा।
वहीद मियां कुछ सकपकाए। फ़िर बोले- बाबू, बाल- बच्चे अपनी अम्मा के बुलाने पर रोटी खाने चले गए थे। पास ही में तो डेरा है हमारा। मैं ज़रा पाखाने के लिए बैठ गया था उधर झाड़ों के पीछे।
बाद में मैं और बेटा घर से रोटी खाकर लौटे तब हमने दोबारा कौने में जाकर बुत का ख़्याल- संभाल किया नहीं... आज तक कभी ऐसा वाकया पेश आया ही नहीं कि इस तरह शक- शुबहे से अपनी चीज़ों को बार- बार संभालें। सो गए हम दोनों भी।
- फ़िर?
- रात को ये लड़का पेशाब करने के लिए उठा। पल भर में ही लौट कर इसने मुझे इत्तिला दी कि बाबा, वहां से बुत तो गायब है! मैं हक्का- बक्का। अब करूं तो क्या करूं। वक्त देखा। किसी भले आदमी की नींद में खलल डालने की बात तो मेरे जेहन में आती भी कैसे? मगर आपका चेहरा मेरी आंखों के सामने ज़रूर घूम गया। कितनी दफे तो आप पूछ चुके थे इस बुत के बाबत! बस, अल्लाह का नाम लेकर आपको जगाया... माफ़ कर दें हुज़ूर। वहीद मियां एक सांस में सारी कैफियत बयान कर गए।
आर्यन ने साथ आए लड़के से कहा- सुबह ड्राइवर आए तो तुम दोनों मियां जी को साथ ले जाकर अंधेरी पुलिस स्टेशन में कंप्लेंट लिखा देना। मेरी बात भी करा देना साहब से।
फ़िर पलट कर आर्यन वहीद मियां से बोला- दिन निकलने पर ज़रा आसपास पूछताछ करवा लेना। यदि किसी ने कोई गाड़ी या संदिग्ध अपरिचित आदमियों को आते- जाते देखा हो तो उसे भी साथ ले जाना।
वहीद मियां ने हाथ जोड़ दिए।
आर्यन लड़के को साथ लेकर वापस चला आया।
हल्का- हल्का उजाला होने लगा था। आसपास की झुग्गी - बस्तियों की औरतें बोतल और लोटे ले लेकर इधर - उधर सड़क के किनारे बैठने लगी थीं।
गनीमत थी कि इतनी सुबह निबटने के लिए केवल औरतें ही आती थीं। अगर कहीं जवान लड़कियां या लड़के होते तो सुबह- सुबह सड़क पर घूमते फिल्मस्टार आर्यन को ज़रूर पहचान लेते।
आर्यन घर लौट आया।
पहले तो वह कपड़े बदल कर फ़िर से सोने के लिए बिस्तर पर लेटने लगा पर न जाने क्यों उसे नींद नहीं आई। कुछ बेचैनी सी भी होने लगी। वह उठ बैठा और उसने आगोश की मम्मी को फ़ोन लगा दिया।
इतनी सुबह- सुबह आर्यन का फ़ोन आने से आगोश की मम्मी सहसा खुश होकर चहकने सी लगीं। उन्होंने अंदाज़ लगाया कि आर्यन ने ज़रूर आगोश की मूर्ति बन जाने की सूचना देने के लिए ही फ़ोन किया होगा। वह कुछ भी पूछने से पहले मन ही मन आर्यन की बात सुनने की प्रतीक्षा करने लगीं।
आर्यन ने मन पर भारी पत्थर सा रख कर केवल इतना कहा- आंटी आगोश की मूर्ति तो...
आंटी तो जैसे पहले ही समझ चुकी थीं कि आर्यन क्या सूचना देने जा रहा है, बीच में ही बोल पड़ीं- बेटा, तूने बड़े अच्छे वक्त पर फ़ोन किया... आज तो मनन जी और मान्या भी यहीं हैं... रात को आ गए थे तो मैंने खाने के बाद यहीं रोक लिया!
आर्यन ने कुछ साहस बटोर कर फ़िर कहा- आंटी, आगोश की मूर्ति...
- अभी बुलाती हूं आगोश के पापा को... आज तो वो भी यहीं हैं... तू उन्हें ही बता दे बेटा, बड़े ख़ुश होंगे...
आर्यन ने खीज कर कहा- आंटी, आगोश की मूर्ति...
तभी आगोश की मम्मी की आवाज़ आई। वह ज़ोर से डॉक्टर साहब को पुकार रही थीं- अजी सुनते हो? देखो तो...मूर्ति बन...
आर्यन बुझ सा गया।