भाग- दौड़ शुरू हो गई।
साजिद, सिद्धांत और मनन ये अच्छी तरह जानते थे कि उनके मित्र आगोश की मूर्ति अपने हॉस्पिटल परिसर में लगाने में उसके माता- पिता ख़र्च की परवाह तो बिल्कुल ही नहीं करेंगे।
तीनों ने जल्दी से जल्दी इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कमर कस ली।
जयपुर शहर वैसे भी मूर्तिकला के लिए दुनिया भर में विख्यात रहा ही था, अतः उन्होंने जयपुर के नामचीन मूर्तिकारों से संपर्क साधना शुरू कर दिया।
यहां के शिल्पकारों ने दुनिया के कई मंदिरों, स्मारकों व अन्य स्मृति परिसरों के लिए एक से एक नायाब शिल्प गढ़ कर नाम कमाया था।
मनन और सिद्धांत ने मोटर साइकिल पर सवार होकर शहर की गलियां छान मारीं।
खूबसूरत स्थापत्य के लिए पहचाना जाने वाला ये गुलाबी नगर एक ख़ासियत और भी रखता था। यहां के चौड़े- चौड़े बाज़ार आपस में सीधी गलियों से जुड़े हुए थे और कुछ गलियां तो इन शिल्पकारों को ही समर्पित थीं। यहां पत्थर की ऐसी मूर्तियां तैयार होती थीं कि यदि आप उन्हें गहरी नज़र से देखें तो वो आपको बोलती हुई प्रतीत होती थीं।
साजिद चाहता था कि आगोश की मूर्ति धातु की बनवाई जाए। धातु की गहरे रंग की वजनदार मूर्ति की शान ही निराली थी।
तीनों ने ही कई शिल्पकारों से नायाब नमूने लेकर आगोश की मम्मी को दिखाए। वो भी अंतिम निर्णय कर पाने में भ्रमित सी हो गईं।
फ़ोन से आर्यन की राय भी ली गई और मधुरिमा की भी।
तेन ने तो सबको चौंका ही दिया। जब उसे फ़ोन पर बताया गया कि आगोश की मम्मी की इच्छा आगोश की मूर्ति के रूप में उसका एक स्मारक बनवाने की है तो तेन ने बताया कि उसने तो ऐसा पहले ही सोच लिया है और वो तो एक शानदार मूर्ति बनवाने का ऑर्डर भी दे चुका है।
इस खबर से सभी को अचरज के साथ- साथ प्रसन्नता भी हुई।
तेन ने आगोश की प्रतिमा बनवाने का ऑर्डर चाइना की एक फर्म को दिया था।
तेन इस मूर्ति को उस कंपनी के ऑफिस के सामने रखवाना चाहता था जो आगोश ने खोली थी। किंतु जब उसे आगोश की मम्मी की मंशा के बाबत पता चला तो उसने प्रस्ताव दिया कि उसी फर्म से एकसी दो मूर्तियां बनवाई जा सकती हैं।
आगोश की मम्मी ने इसके लिए सहमति दे दी।
- यार, मूर्ति तो जयपुर से ही बननी चाहिए। यहां जैसा काम और कहीं होना मुश्किल है। सिद्धांत ने कहा।
मनन बोला- मैसर्स त्यागराज ने कुछ समय पहले अक्षरधाम मंदिर के लिए काम पूरा किया है। उनका काम ज़बरदस्त है। वो जल्दी से दे भी देंगे। उन्हें ही ऑर्डर देते हैं।
लेकिन साजिद को ये आइडिया बहुत पसंद आया कि तेन जब चाइना से मूर्ति बनवा ही रहा है तो वहीं से एकसी दो प्रतिमाएं बनवाना बेहतर होगा। साजिद को मूर्ति के लिए वैसे भी पत्थर की तुलना में धातु ज़्यादा पसंद आ रहा था।
लेकिन आगोश की मम्मी ने उनकी सारी बातें सुन कर कहा - बेटा, वो तेन न जाने कैसा, क्या काम करवा लेगा, तुम में से कोई वहां जाकर आओ।
साजिद की आंखों में चमक आ गई।
साजिद ने शाम को घर जाकर जब ये बात मनप्रीत को बताई तो उसके दिल में भी लड्डू फूटने लगे।
- मुझे ले चलोगे न चाइना?
- अरे बेगम, अच्छा थोड़े ही लगेगा आगोश की मम्मी से तुम्हारे भी जाने की बात कहना। साजिद ने पल्ला झाड़ा।
- क्यों?
- और क्या? वो मानेंगी थोड़े ही, जाने- आने का ख़र्च तो वो ही देंगी। फ़िर जब उन्हें पता चलेगा कि हम दोनों जा रहे हैं तो वो दोनों का टिकिट दिए बिना नहीं मानेंगी। ऐसे अच्छा थोड़े ही लगेगा कि एक टिकिट उनसे लें और एक टिकिट के पैसे हम दें। साजिद बोला।
- तो हम दोनों के ही पैसे उनसे नहीं लेंगे, ख़र्च हम करेंगे। मनप्रीत बोली।
उसकी बात सुन कर साजिद बोला- मालूम भी है कितना ख़र्च होगा? ऐसे तो तुम जल्दी ही मेरी भी स्टैचू सड़क पर लगवा दोगी।
मनप्रीत ने आगे बढ़कर साजिद के होठों पर अंगुली रखी और चुप हो गई।
वह भीतर जाकर अपने काम में लग गई। आज सुबह ही अब्बू ने उससे कहा था कि बिटिया, आज कटहल की सब्ज़ी खिला।
वो साजिद की बात सुनकर कटहल काटती- काटती ही यहां चली आई थी। उसके हाथ में तेल लगा हुआ था। उसने रसोई में पहुंच कर फ़िर से चाकू उठा लिया।
उधर मनन ने अपने स्कूल के ज़माने के साथियों समीर, अमर, मंगलम, हर्षित आदि को इस काम की जानकारी लाने पर लगा दिया।
उसके ये दोस्त सभी कलाकार थे। इन्होंने जयपुर के मशहूर राजस्थान कॉलेज ऑफ आर्ट्स से पढ़ाई की थी। समीर तो बाद में मुंबई के जेजे इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट्स भी गया था।
अमर ख़ुद भी उभरता हुआ बड़ा कलाकार था। उसने बड़ौदा से मूर्तिकला की पढ़ाई पूरी करके आए अपने एक मित्र को भी इस प्रस्ताव के बारे में बताया।
सिद्धांत ने जाकर आगोश की मम्मी को बताया- आंटी, आप बिल्कुल फ़िक्र मत कीजिए, हमने शहर के कलाजगत में तहलका मचा दिया है। जल्दी ही कोई न कोई बड़ा आर्टिस्ट ये काम अपने हाथ में ले लेगा।
आगोश की मम्मी ने सिद्धांत से कहा- बेटा, मुझे तो लगता है टू मेनी कुक्स स्पॉयल द फूड... बहुत ज़्यादा खानसामे मिलकर खाने का स्वाद बिगाड़ न दें...
- अरे नहीं आंटी...
- बेटा मैं तो सोच रही हूं कि एक बार मैं ख़ुद चाइना जाकर आऊं।
- वाह आंटी, ये तो बहुत अच्छा आइडिया है। तेन भी तो चाइना से ही मूर्ति बनवा रहा है न, क्या उसी जगह जाएंगी या कहीं और? सिद्धांत ने कहा।
- तेन का तो मुझे पता नहीं पर आगोश के पापा कह रहे थे कि उनका कोई क्लाइंट वहां है जो ये काम करता है, उसी की हेल्प ले लेंगे। एक बार जाकर देख लूं...
- आपके साथ अंकल भी जाएंगे? मनन ने पूछा।
- अरे बेटा, उन्हें कहां टाइम है इन सब बातों को तो वो वैसे भी फालतू का काम समझते हैं। वो तो बस मेरे कहने से हॉस्पिटल के सामने मूर्ति लगाने को जैसे - तैसे तैयार हो गए वरना उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ता, कोई मरे चाहे जिए। आगोश की मम्मी ने कहा।
- फ़िर आप अकेली जाएंगी चाइना? मनन ने आश्चर्य से पूछा।
- अकेली क्यों? तुम लोग नहीं चलोगे मेरे साथ?... अरे हम सब चलते हैं, थोड़ा घूम फिर कर भी आयेंगे और काम का काम भी हो जाएगा। मम्मी ने कहा।
सिद्धांत और मनन दोनों के चेहरे खिल उठे। दोनों एक दूसरे की ओर देखने लगे।
रात को उन्होंने साजिद को भी आगोश की मम्मी का प्रस्ताव बताया तो वो बोल पड़ा- अरे यार, मनप्रीत भी मेरे पीछे पड़ी थी, पर मैंने उसे कहा कि क्यों इतना ख़र्च किया जाए...
- यार वैसे आइडिया तो बढ़िया है, हम सब ही चलें तो मज़ा आ जाए... सिद्धांत बोलते- बोलते रुक गया क्योंकि बीच में तभी उसके फ़ोन की रिंग बजी।
उसने जेब से फ़ोन निकाल कर हाथ में लिया तो उसके चेहरे पर चमक आ गई। फ़ोन आर्यन का था।
मोबाइल के स्क्रीन पर आर्यन का एक बड़ा सा शानदार फ़ोटो आया तो मनन भी अलर्ट हो गया। फ़ोन स्पीकर पर ले लिया गया।
आर्यन ने उन्हें बताया कि मुंबई के फिल्मसिटी स्टूडियो में एक बहुत बड़े आर्टिस्ट को उसने आगोश की मूर्ति बनाने का ऑर्डर दे दिया है।
मनन और सिद्धांत दोनों का मुंह उतर गया पर दोनों ध्यान से आर्यन की बात सुनने लगे।
आर्यन कह रहा था कि यहां शूटिंग के लिए तरह- तरह के सेट बनाने वाले लोगों में ही एक बेहतरीन मूर्तिकार भी है, उसे आर्यन ने दो लाख रुपए का एडवांस भी दे दिया है और उसने एक महीने में ही काम पूरा कर देने का वादा किया है।
सिद्धांत फ़ोन पर आर्यन को आगोश की मम्मी का प्लान बताने ही लगा था कि आर्यन पहले ही बोल पड़ा- हां हां, मैंने आंटी से भी पहले ही बात करली है और उन्हें सब बता दिया है। ओके बाय!
- सा ला... फ़ोन जेब में रखते हुए सिद्धांत बोला।
मनन उसके सिर पर हाथ फिराता हुआ उसे दिलासा देता रहा।