- "ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर"! बिल्कुल सच्ची कहावत है ये...अब देखो न, आगोश की मम्मी ने उस बेचारे के कमरे में सीसीटीवी कैमरे ही लगवा दिए। कोई अपने ही घर में ऐसे संदेह से देखा जाएगा तो बेचारा क्या करेगा? घर से भागेगा ही न ! मनप्रीत ने कुछ क्रोध और उपेक्षा से कहा।
कल रात को सिद्धांत और मनन से साजिद को सारी बात पता चली तो उसने आकर मनप्रीत को भी बताया।
आगोश की मम्मी को न जाने कैसे ये संदेह हो गया था कि आगोश सारी- सारी रात अपने कमरे में शराब ही नहीं पीता है बल्कि दोस्तों के साथ और भी न जाने क्या गुल खिलाता है।
उस परेशान हाल महिला ने आगोश पर नज़र रखने के लिए उसे बताए बिना छिपा कर उसके कमरे में ख़ुफ़िया तरीक़े से कैमरे ही फिट करवा दिए।
आगोश के पापा की करतूतों की कुछ- कुछ जानकारी मिलने के बाद उस लाचार औरत को अपने बेटे को ग़लत रास्ते पर चलने से रोकने और उस पर निगाह रखने का इसके सिवा कोई और तरीका समझ में नहीं आया।
वो कहते हैं न कि दूध का जला छाछ भी फूंक- फूंक कर पीता है। लेकिन शायद पता चलने पर यही बात आगोश को नागवार गुजरी और वह नाराज़ होकर घर छोड़कर चला गया। घर छोड़ने की कोशिश तो उसने पहले भी एक बार की ही थी। जब मधुरिमा के घर में कमरा किराए से ले लिया था।
साजिद तड़प कर बोला- अरे यार, ये कोई तरीका थोड़े ही है। घर वाले तो अपने बच्चों को ग़लत रास्ते से रोकने की कोशिश करते ही हैं, तो क्या लड़का घर से भाग जाए? मुझे तो अब्बू ने बिना बात के केवल झूठी शिकायत पर ही संटियों से पीटा था, मैं तो घर छोड़ कर नहीं भागा!
मनप्रीत ने चौंक कर साजिद की ओर देखा। उसकी आंखें आश्चर्य से फ़ैल गईं। बोली- तुम्हें अब्बू ने पीटा था? ये कब की बात है! मुझे तो नहीं मालूम।
साजिद पछताया कि बिना बात के इसे क्यों बता दिया। कुछ रुककर बोला- तुम्हें कैसे मालूम होगा, तुम्हारे आने से पहले की बात है ये तो, बचपन की।
मनप्रीत अब कुछ मुस्कुरा कर बात के मज़े लेने लगी। बोली - पर क्यों पीटा था, क्या कर दिया था तुमने?
साजिद कुछ झेंप गया। उसकी ओर देख कर बोला- कह तो रहा हूं, बिना बात के पीटा था झूठी शिकायत पर। मैंने कुछ नहीं किया था।
तभी कमरे में साजिद का सबसे छोटा भाई चला आया, वो बात को बीच से ही लपक कर बोल पड़ा- लड़की का चक्कर था कोई।
उसकी बात सुनकर साजिद पहले तो हंस पड़ा फ़िर तुरंत बोला- अबे पिद्दी, तुझे क्या मालूम, तू तो तब पैदा भी नहीं हुआ था।
भाई बोला- मुझे तो जावेद भाई ने बताया था।
मनप्रीत भी हंस पड़ी फ़िर छोटे देवर को कुछ पुचकारती हुई बोली- हां - हां, छोटू तुझे चॉकलेट दूंगी, बता ना क्या बताया था जावेद भाई ने।
छोटू ने कुछ सकपका कर पहले साजिद को देखा फ़िर ललचा कर अपनी भाभी मनप्रीत के करीब आया। मानो साजिद भाई से अनुमति लेना चाहता हो कि बता दूं?
साजिद को भी मुस्कुराते देख कर उसका हौसला बढ़ा और वह मनप्रीत भाभी को बताने लगा- उस दिन मैं छत से समीना को देख रहा था न, तब जावेद भाई मुझसे बोले थे कि लड़की को देखेगा तो तुझे भी अब्बू संटियों से पीटेंगे जैसे ज़िद्दी भाई को पीटा था... मनप्रीत हंस पड़ी।
साजिद तुरंत छोटू से बोल पड़ा - अबे, तो तू समीना को क्यों देख रहा था छत से?
छोटू बोला- मैं उसे थोड़े ही देख रहा था, मैं तो उसकी कुल्फी को देख रहा था। वो कुल्फी खा रही थी न।
- अच्छा - अच्छा, मैं कल अपने छोटू को कुल्फी खिलाऊंगी। मनप्रीत हंसी से लोटपोट हो गई।
- और चॉकलेट? वो कब!
साजिद उसकी ओर देख कर बोला- तू भाग यहां से, वरना मैं पहले चांटा खिलाऊंगा तुझे।
छोटू भाग गया।
मनप्रीत बोली- तो जनाब बचपन से ही मार खाने लगे थे।
- हां, पर कभी घर से नहीं भागा आगोश की तरह। साजिद ने कहते हुए पायजामा उतारा और वार्डरोब से निकाल कर पैंट पहनने लगा।
उसने मनप्रीत को बताया कि अभी उसे मनन के साथ आगोश के घर जाना है, उसकी मम्मी ने बुलाया है।
मनप्रीत अपने हाथ का काम छोड़ कर उसके लिए नाश्ता लगाने निकल गई।
आगोश का अब तक कुछ पता नहीं चला था। पुलिस ने इस आशंका के मद्देनजर ऐसे सभी स्थानों पर भी खोजबीन शुरू कर दी थी जहां आमतौर पर शहर में आत्महत्याएं होने का रिकॉर्ड था। आगोश के कमरे से मिली चिट्ठी ने इस आशंका को भी बल दिया था।
आगोश के पापा अब घर में ही थे और आगोश की मम्मी को अकेला न छोड़ने की बात का पूरा ख्याल रख रहे थे।
किसी ज़रूरी काम के समय इधर- उधर जाना पड़ने पर वो अपनी पत्नी के पास क्लीनिक की किसी नर्स के अवश्य रहने के निर्देश भी दे चुके थे।
पर इन सुनसान और डरावनी रातों में आगोश की मम्मी आगोश के दोस्तों से भी ये गुज़ारिश कर चुकी थीं कि वे आते - जाते रहें।
आर्यन भी थोड़ी - थोड़ी देर बाद अपने घर या दोस्तों में से किसी न किसी के पास फ़ोन करके ये जानकारी लेता रहता था कि आगोश के बारे में कोई जानकारी मिली या नहीं।
जापान से मधुरिमा का फ़ोन भी लगभग रोज़ आ रहा था। मधुरिमा से ही ये भी पता चला कि आगोश की गुमशुदगी से तेन भी कितना बेचैन है और रह- रह कर पूछताछ करता ही रहता है।
पुलिस को अब तक ऐसा कोई सुराग नहीं मिला था जिससे आगोश के सड़क, ट्रेन या हवाई मार्ग से शहर के बाहर जाने की पुष्टि होती हो लेकिन सवाल ये था कि शहर में भी आगोश कहां हो सकता था। उसके परिचय के लगभग सभी ठिकाने अच्छी तरह खंगाले जा चुके थे।
आगोश कहीं वेश बदलकर किसी अपराधी की भांति घूम रहा हो ऐसा सोचने की कोई वज़ह नहीं थी। प्रथम दृष्टया ये केवल घर से नाराज़ हो कर कहीं जा बैठने या घरवालों को सताने का ही मामला नज़र आता था।
यहां किसी प्रेमप्रसंग अथवा कोई पति- पत्नी के बीच पीहर- ससुराल पक्ष की रंजिश जैसी कोई सामान्य शंका भी दृष्टिगोचर नहीं होती थी।
फ़िर क्या हुआ?
कहां चला गया आगोश?
मनन ने सिद्धांत और साजिद को वो तमाम बातें भी बता डाली थीं जो आगोश के बारे में शंका जाहिर करते हुए आगोश की मम्मी ने उसे कही थीं।
आगोश के कमरे में छिपा कर लगाए हुए कैमरे अब हटा दिए गए थे।
साजिद को एक अंदेशा था। उसे लगता था कि कहीं आगोश का आमना - सामना सुल्तान या अताउल्ला से तो नहीं हुआ? उन दोनों को लेकर आगोश अक्सर काफ़ी गुस्से में रहता था। वह उन्हें अब एक शातिर अपराधी की भांति ही देखता था।
कुछ वर्ष पहले जब आगोश ने मधुरिमा के मकान में किराए का एक कमरा लिया था तब उस कमरे से एक रात चोरी हुई थी जिसमें वहां रखा सारा सामान चला गया था। आगोश ने उस चोरी की कोई पुलिस रपट भी नहीं दर्ज़ कराई थी क्योंकि उसका अनुमान था कि इस चोरी को भी सुल्तान और अताउल्ला ने उसके पिता के कहने पर ही अंजाम दिया है।
तो क्या आगोश की कोई मुठभेड़ उन दोनों से कहीं हो गई?
क्या उन लोगों का ही हाथ आगोश के गायब हो जाने में भी है?
फ़िर क्या आगोश का अपहरण हुआ है?
कुछ भी हो सकता था, क्योंकि कुछ न कुछ हुआ तो था ही!
लेकिन सुल्तान या अताउल्ला ऐसा क्यों करेंगे? यदि ऐसा करेंगे तो वो आगोश के पापा की शह पर ही होगा। उनके इशारे पर ही होगा। क्योंकि आगोश के पापा ये तो जानते ही हैं कि आगोश उनकी गतिविधियों को संदेह से देखता है और इन्हें लेकर वह डॉक्टर साहब से बुरी तरह नाराज़ रहता है, खिंचा हुआ भी रहता है।
लेकिन यदि ऐसा कुछ होता तो इन दिनों डॉक्टर साहब ख़ुद यहां क्यों होते? वो स्वयं आगोश को तलाश करने में हद दर्जे की कोशिश में क्यों लगे होते?
तब क्या ये सब महज़ उनका कोई दिखावा है? वो आगोश की मम्मी का साथ देने का दिखावा केवल इसलिए कर रहे हैं कि आगोश की मम्मी को उनपर कोई संदेह न हो।
कुछ भी हो सकता है।
सिद्धांत, साजिद और मनन इन सब बातों और संभावनाओं पर विचार करते हुए उसी रूफटॉप रेस्त्रां में बैठे हुए थे जहां अक्सर आगोश ही कभी उन्हें लाया करता था।
आज उनका ध्यान कुछ खाने - पीने में बिल्कुल नहीं था। वो वहां की दीवार में जड़े पत्थरों तक में आगोश की छवि ढूंढ रहे थे।