टापुओं पर पिकनिक - 77 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 77

आर्यन ने शूटिंग कैंसिल कर दी।
ऐसा आर्यन की किसी भी प्रॉडक्शन यूनिट में पहली बार हुआ था कि आर्यन ने होटल से ही फ़ोन से ये सूचना लोकेशन पर दी हो कि वो आज शूट पर नहीं आ सकता।
आर्यन के बैचलर और हंसमुख होने के कारण उसके साथ डायरेक्टर- प्रोड्यूसर ही नहीं, बल्कि को- एक्टर्स से लेकर स्पॉटब्वॉय तक सब खुले हुए और ख़ुश रहते थे, इसलिए ज़्यादातर तो वो यूनिट के बाक़ी लोगों के साथ ही ठहरता और खाता- पीता था लेकिन आज होटल में उसके अकेले ठहर कर ऐसी सूचना देने से सब चिंतित हो गए।
- तबीयत बिगड़ी है क्या? सबसे पहले यही सवाल उभरा।
लेकिन आर्यन ने डायरेक्टर को बताया कि तबीयत तो ठीक है पर फ़िर भी आज वो काम करने की स्थिति में नहीं है, इसलिए आराम करना चाहता है।
डायरेक्टर को बड़ा आश्चर्य हुआ। फ़ौरन एक आदमी को होटल में उसके पास उसकी देखभाल के लिए भेज दिया गया।
आर्यन कल से इसी बात को लेकर काफी चिंतित था कि आख़िर आगोश कहां चला गया। उसने ये खबर मिलने के बाद कई बार उसे फ़ोन मिलाने की कोशिश भी की थी लेकिन उसका फ़ोन लगातार स्विचऑफ आता रहा।
आज उसका मूड पूरी तरह उखड़ गया और वो सुबह नाश्ते के बाद होटल में ही रुक गया। उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था। उसके पास कुछ स्क्रिप्ट्स भी पढ़ने के लिए रखी हुई थीं पर वह पढ़ नहीं पा रहा था।
उसे घर की याद आ रही थी।
कितने अच्छे दिन थे। हम सब साथ में अपने- अपने घर पर रहते हुए पढ़ते थे। हमारा दोष क्या था, कि हम सब इस तरह बिखर गए? और जब से सिद्धांत ने फ़ोन पर आर्यन को ये बात बताई थी कि आगोश की मम्मी ने आगोश के बैडरूम में सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए थे तब से तो उसका दिमाग़ ही खराब हो गया था। इंसान अगर अपने घर में भी अपनी तरह से नहीं रह सके तो ज़िन्दगी का मतलब ही क्या!
एकाएक उसे याद आया कि उसके पास किसी सीरियल के लिए एक ऐसी स्क्रिप्ट आई पड़ी थी जिसमें एक राजमहल में काम करने वाली परिचारिका ने संकट आने पर राजा के बेटे को बचाने के लिए अपने ख़ुद के अबोध बालक की बलि दे दी। उसे आक्रांता आतताई के हाथों मरने के लिए छोड़ दिया।
आर्यन ने समय काटने के लिए उसे पढ़ना शुरू किया।
जल्दी ही वो बोर हो गया। उसे लगा कि अगर कोई बच्चा अपनी मां के साथ भी सुरक्षित नहीं है तो फ़िर और कहां सुरक्षित है?
उसने कागज़ों का वो पुलंदा उठा कर वापस रख दिया।
वह बिस्तर पर चुपचाप लेटकर कमरे की छत को निहारने लगा।
उसकी पलक तक नहीं झपकी। वह एकटक खुली आंखों से ऊपर देखता रहा।
उसे लगा कि ज़िन्दगी में उसने भी तो कभी- कभी ऐसी भूल कर डाली, जब वह अंतरंग क्षणों में मधुरिमा के साथ रात भर रहा। यदि उस समय भी किसी ख़ुफ़िया कैमरे ने उसकी तमाम रात कैद कर डाली होती तो उसका क्या हाल होता? ऐसी क्षणिक भूलों से ज़िन्दगी भर का कलंक उसकी छवि पर लग जाता।
पर उसके ऊपर कलंक तो फ़िर भी लग ही गया। सरेआम एक सार्वजनिक समारोह में उसके सम्मान के दौरान एक लड़के ने कह दिया कि उसका नाजायज़ बच्चा विदेश में पल रहा है!!!
आर्यन पूरे दिन उखड़ा- उखड़ा सा रहा। ऐसे में नींद भी तो नहीं आती कि थोड़ी देर सो लें और सबकुछ भूल जाएं।
कुछ देर बाद आर्यन के कमरे की बैल बजी।
शूटिंग लोकेशन से उसकी देखभाल करने के लिए जिस आदमी को भेजा गया था वही आया था।
उसने आते ही आर्यन से चार- छः सवाल कर डाले!
- क्या साहब, तबीयत ठीक नहीं? कोई दवा ला दूं? -कहीं जाना है तो पहुंचा दूं। जीप लाया हूं।
-आपको बाज़ार का कोई काम है तो कहिए सर।
- सिर, हाथ- पैर दबाने का है तो बताओ साहब!
नहीं, कुछ नहीं, तुम जाओ... यही कहा आर्यन ने। लेकिन वो लड़का गया नहीं। बोला- मैं नीचे रिसेप्शन पर बैठा हूं साहब, कुछ चाहिए या मुझे बुलाना हो तो आप रिसेप्शन पर कॉल कर देना।
- ओके, क्या नाम है तुम्हारा? आर्यन ने बेरुखी से पूछा।
- कचरा! ... कचरा या कचरू! लड़के ने कुछ शरमाते हुए कहा।
आर्यन ने तत्काल पूछा- कचरा? ये क्या नाम हुआ रे! कहां से हो तुम?
- यहीं, यहीं मुंबई में ही रहता हूं। कचरू ने कहा।
आर्यन को कुछ हंसी आई। बोला- ये नाम किसने रखा है तेरा?
- साहब, मेरे कोई नहीं है... मेरी मौसी ने पाला है मुझे। वो कहती थी कि मैं उसका सगा वाला नहीं हूं, मैं उसे गांव के रास्ते में कचरे में ही मिला था... इसी से मेरा नाम ये ही पड़ा।
आर्यन के चुप होते ही कचरू दरवाज़ा बंद करके नीचे रिसेप्शन पर चला गया। नीचे काउंटर के पास एक टीवी लगा हुआ था। कचरू शायद वहीं जा बैठा।
आर्यन का मूड कुछ - कुछ बदलने लगा। शायद उसे कचरू की कहानी से ये अहसास हुआ कि देखो, एक तरफ़ ऐसे लोग भी हैं... जिनका कोई नहीं, फ़िर भी दुनिया को गले लगा कर घूम रहे हैं।
आर्यन उठ बैठा।
जैसे ही वह उठा संयोग से उसके कमरे का दरवाज़ा धकेल कर कचरू भीतर आया।
उसे आया देख कर आर्यन ने उससे कहा कि टीवी खोल दे। शायद आर्यन को महसूस हुआ कि जब ये बेचारा टीवी देख कर ही समय काट रहा है तो यहीं कमरे में ही बैठ कर देख ले। आख़िर इसे आर्यन की तिमारदारी के लिए ही तो भेजा गया है।
आर्यन को हल्की भूख भी लग आई थी।
टीवी ऑन करके पलटे कचरू को वह खाने के लिए कुछ मंगवाने के लिए भेजने ही वाला था कि कचरू बोल पड़ा- देखो साहब, क्या किस्मत होती है एक- एक की? अभी नीचे टीवी पर इस लौंडे का फ़ोटो आता था। पूरा दस लाख रुपए का ईनाम रखा है इसके बाप ने इसे ढूंढने को! मैंने स्क्रीनशॉट लिया...
आर्यन ने कचरू का मोबाइल हाथ में लिया और चौंक गया। स्क्रीनशॉट में आगोश का ही फ़ोटो था। मिलने पर सूचना देने के लिए एक फ़ोन नंबर था और पूरे दस लाख रुपए का ईनाम देने की पेशकश।
आर्यन झटपट आगोश का फोटो कचरू के मोबाइल से अपने मोबाइल में शेयर करके ट्रांसफर करने लगा।
ये देख कर कचरू की बांछें खिल गईं। वो बहुत खुश हुआ। जो फ़ोटो वो लाया, आर्यन साहब को भी वो मंगता है... वाह! उन्हें भी चाहिए।
कचरू उत्साहित होकर बोल पड़ा- क्या किस्मत है बाबू का! साला अपना बाप अपुन को पैदा करके कचरे में फ़ेंक गया, इसका बाप इसको ढूंढने के वास्ते दस लाख का नोट पटकने को तैयार... ग्रेट!
आर्यन ने कचरू को कैफेटेरिया से एक पिज़्ज़ा और बीयर लाने के लिए कहा और उठकर वाशरूम में चला गया।
आर्यन ने कपड़े बदल कर टीशर्ट और लोअर पहन लिया था।
आर्यन को हैरानी हुई कि बात यहां तक पहुंच गई। इसका मतलब ये था कि आगोश का अब तक कोई सुराग कहीं से नहीं मिला था। शहर की पुलिस भी अभी तक उसकी खोज नहीं कर पाई थी।
आगोश के पापा भागदौड़ कर ही रहे थे इस बात का सबूत ये विज्ञापन था जो टीवी पर आ रहा था। विज्ञापन में भी पुलिस महकमे का ही संदर्भ था।
क्या हुआ? कहीं आगोश किसी दुर्घटना का शिकार तो नहीं हो गया? आर्यन को चिंता हुई।
तभी दरवाज़े की घंटी बजी।
- अरे, कचरू बड़ी जल्दी ले आया खाना...