स्‍वतंत्र सक्‍सेना के विचार-गोस्टा समीक्षा बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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स्‍वतंत्र सक्‍सेना के विचार-गोस्टा समीक्षा

गोस्‍टा तथा अन्‍य कहानियां

लेखक –श्री राजनारायण बोहरे

एक पाठक की प्रतिक्रिया

स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

कहानी संग्रह में बारह कहानियां हैं एक बार पढ़ना शुरू करने पर किताब हाथ से नहीं छूटती ।मैने इसे पीछे से पढ़ना शुरू किया। क्‍योंकि शीर्षक कहानी वहीं थी । मेरी अज्ञानता पर मुझे शर्म आई कि ‘गोस्‍टा‘ का मतलब मुझे कहानी पढ़ने के बाद मालूम पड़ा। मेरा घमंड भी दूर हो गया कि’ बुंदेल खंड का होने के कारण मैं बुंदेली में तो परफैक्‍ट हूं।‘साथ ही एक पुरानी सहकारी परम्‍परा से परिचय हुआ जो लुप्‍त हो गई है हम पढ़े लिखे आधुनिक लोग अपने पुरखों से ज्‍यादा सभ्‍य हैं यह दुराग्रह भी टूटा । जैसा कहते हैं अपने देस के अंगाई के पुरखा सोऊ कछू जानत हते ।लेखक को मेरी आंखें खेालने का धन्‍यवाद ।

‘कुपच’ कहानी में एक लापरवाह अंधविश्‍वासी पिता से बेटे के जीवन पर प्रभाव की करूण कथा है यह भी बुंदेलखंड में प्रचलित कहावत है कि तीन पैरी तार देत या बिगार देत । लम्‍हों ने खता की है सदियों ने सजा पाई ।दूसरी कहानी ‘मलंगी’ की है एक कुतिया जो सारे मोहल्‍ले की साझी पालतू है सबकी सुरक्षा को तत्‍पर सब बच्‍चों को प्रिय जब चोटिल हो जाती है तो सभी चिन्तित हो जाते हैं प्‍यार हमेशा प्रतिदान देता है सब उसकी श्रषूसा करते हैं।

अगली कहानी ‘मृगछलना’ है बहुत मजेदार नायक परेश अपने भाई की शादी में भाभी की बहन से मिलता है उसकी मोहक बातों में उलझ कर समझ बैठता है कि वह उस पर मर मिटी एक दो बार की मुलाकात में ही जो संयोगवश रिश्‍ते दारी में शादी के अवसर पर हुंईं वह भ्रम पाल लेता है और लड़की के घर जा टपकता है सुनहले सपने लिए वहां उसका कैसे भ्रम निवारण होता है बड़ा मजेदार अंत है।कहानी मुस्‍कान बिखेर देती है गुदगुदा देती है ।

यह कहानी तो बड़े ही भयंकर संवेदनशील विषयपर है ‘हड़ताल’ वह भी अस्‍पताल में डाक्‍टरों की हड़ताल दूर दूर से आए रोगियों के माथे पर चिन्‍ता की लकीरें बड़ा ही कारूणिक दृश्‍य खींचा है पर एक पहलू छूट गया है हमारी सरकार व उद्योगपति बिना हड़ताल के धरना प्रदर्शन के कोई भी जायज मांग कभी सुनते भी तो नहीं ।वर्तमान में तो कोई सत्‍य बात कहना या अपने कष्‍टों की बात करना देश द्रोह हो गया है । आप केवल जयकारे बोल सकते हैं ।

अगली कहानी ‘जमील चच्‍चा ‘एक निम्‍न मध्‍यम वर्गीय व्‍यक्ति की कथा है जमील चच्‍चा रिटायर्ड शासकीय सेवक हैं पेंशन से घर चलाना मुश्किल है अत: हड्डी जोड़ का देशी इलाज करते हैं उनके बेटे पढ़े लिखे हैं इसलिये नौकरी तो ढूंढते रहते हैं पर कोई व्‍यवसाय करना उन्‍हें अपमान जनक लगता है ।यह शायद हमारी सारी ही शिक्षा प्रणाली की कमी है हर डिग्री धारी को नौकरी चाहिए व्‍यवसाय को हीन समझते हैं दूसरी बात यह भी है कि मध्‍यम वर्गीयों के पास एक तो पर्याप्‍त पूंजी नहीं होती दूसरे छोटे व्‍यवसाय करने का प्रशिक्षण भी नहीं होता दूसरे इस गला काट प्रतियोगिता में नये मध्‍यम वर्गीय युवक के नैतिक मूल्‍य में वह हिचक जाता है तब तक व्‍यावसायिक परिवारों के संसकारित युवक जो पर्याप्‍त प्रशिक्षित होते हैं उससे बाजी मार जाते हैं वह अपनी पूंजी भी गवां लेता है बाप की दुत्‍कार सुनता है-‘ तुम कुछ नहीं कर सकते ।‘ जमील चच्‍चा का द्धंद्ध अच्‍छी तरह उकेरा है ।

‘उम्‍मीद’ में टीका बब्‍बा के बहाने तकनीकी परिवर्तन से नए व्‍यवसाय आए और पुराने उजड़ने की व्‍यथा कथा है टीका बब्‍बा तांगा चलाते हैं गुना में खाद कारखाने के खुलने से परिवर्तन का बड़ा सूक्ष्‍म वर्णन है शायद बहु प्रशंसित विकास की आंधी बहाने वाले बड़बोले नेताओं पर इस से सुंदर व्‍यंग्‍य नहीं हो सकता जो उपलब्धियों के सपने दिखाए गए वे कितनी प्राप्‍त हुईं पर जो पीछे छूट गया उसका भी आकलन हो जो सामाजिक सांसकृतिक छूट गया उसकी तो भरपाई हो ही नहीं सकती उस पीड़ा को कहने की कोशिश की गई ।

‘उजास ‘कहानी वर्तमान में जगत के संवेदना शून्‍य होने की कहानी है भूपत तो कहानी का पात्र है एक ग्रामीण व्‍यक्ति है तो वृद्धावस्‍था में अपने अफसर बेटे के पास रहने आया है वहां का हिंसा क्रूरता स्‍वार्थ पूर्ण निर्मम व्‍यवहार देख कर उसका हृदय संज्ञा संवेदना शून्‍य हो जाता है पर एक भिखारिन के दुर्घटना ग्रस्‍त हो जने पर नगरवासियों की भीड़ भिखारिन की सहायता का दौड़ पड़ती है तो भूपत के हृदय में भी संवेदना लौट आती है। बहुत प्रभावशाली प्रतीकात्‍मक रूप से संवेदन शील मानव अभी भी है एक आशा जगाती है ।

‘हड़तालें जारी हैं’ में एक समर्थ व्‍यक्ति के दो चेहरे दिखाकर समाज की वास्‍तविकता का दर्शन कराया गया है एक परोपकारी दयावान आदर्श चेहरा दूसरा छुपा असली चेहरा जो एक निर्बल निस्‍सहाय युवती का सहायता का लालच आश्‍वासन देकर उसका शील हरण करना चाहता है व बड़े आदमी का नाम सुन कर ही लोग उसकी मदद से हाथ खींच लेते हैं किसी संकट में नहीं पड़ना चाहते यह मध्‍यम वर्ग की प्रवृत्ति है ।

‘अपनी खातिर‘ कहानी में अनमेल विवाह के साथ ही घोखे से की गई शादी की बात है जो बुंदेल खंड का एक आम चलन है । फिर लड़के- लड़की जिसके साथ धोखा हुआ उसे सतीत्‍व पतिव्रता व लड़के को घर की इज्‍जत के उपदेश न माने तो धमकी आदि सब रोज का रोना है लोग सुन कर मुस्‍करा देते हैं या नकली अफसोस चेहरे पर ओढ़ लेते हैं पर बदलते परिदृश्‍य में तलाक और लड़की की अपने पैरों खड़े होने से परम्‍परा से हट कर नये विश्‍व की ओर कदम एक प्रगतिशील सोच है कहानी अच्‍छी बन पड़ी है ।

‘समय साक्षी’ कहानी ने तो मनु स्‍मृति की व्‍यवस्‍था पर ही प्रश्‍न चिनह लगा दिया पर शूद्र की नहीं इसमें पंडित जी की रोजी रोजगार का विश्‍लेषण है अब जजमानी प्रथा से उतनी आमदनी नहीं होती कि घर चल सके एक बेटा दूसरा रोजगार करता है तो उस पर लांछन है संबंध तोड़ लिये जाते हैं पर बिगड़ती आर्थिक परिस्थिति में उससे ही मदद मांगने जाने का वर्णन बड़ा प्रभाव पूर्ण बना है ।

मैं एक सामान्‍य पाठक हूं बहुत सुसंस्‍कृत गम्‍भीर अध्‍येता होने का कोई दावा नहीं पर कहानियों ने बहुत अपील किया सारी कहानियां एक से बढ़कर एक हैं। एक सार्थक सुन्‍दर कहानी संग्रह के लिये लेखक को बधाई ।

सावित्री सेवा आश्रम डबरा (ग्‍वालियर)