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भावुक’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समीक्षात्मक अध्ययन

शोधग्रंथ

रामगोपाल तिवारी‘ भावुक’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समीक्षात्मक अध्ययन


समीक्षक

वेदराम प्रजापति ’बरिष्ठ कवि

जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर

निदेशक

अनुसंधात्री


डॉ. उर्मिला सिंह तोमर प्राध्यापक हिन्दी डॉ. डोली ठाकुर


शोधकेन्द्र-शा. कमलाराजा स्वशासी कन्या महाविद्यालय ग्वालियर म.प्र.



शोध कर्ता. डोली ठाकुर का कथन- मुझे गर्व है कि रामगोपाल भावुक की सभी कृतियाँ शोध पूर्ण हैं किन्तु आपका ‘भवभूति’ एवं ‘महाकवि भवभूति’ उपन्यास तो ‘महाकवि भवभूति से संबंन्धित किसी विषय पर शोध कार्य करने वाले संस्कृत भाषा के मनीषी आपकी इन दोनों कृतियों का सन्दर्भ ग्रंथ के रूप में उपयोग कर रहे है।

निदेशक उर्मिला सिंह तोमर जी के निर्देशन में डॉ. डोली ठाकुर का यह शोध शौधग्रंथ जो रामगोपाल तिवारी भावुक’ के व्यक्तित्व एव कृतित्व पर जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से किया है।


शोध को आठ अध्यायों में विभक्त किया गया है।

प्रथम अध्याय के खण्ड अ में हिन्दी साहित्य के आंचलिक कथाकार एवं रामगोपाल भावुक।

वास्तविक अर्थों में कहा जाये तो रामगोपाल भावुक की रचनायें किसी विशिष्ट या सीमा क्षेत्र से संबन्धित है । जो कथावस्तु की आंचलिकता को बनाये रखने में विशेष सहयोग देते हैं। जिनकी हिन्दी साहित्य में एक अलग आंचलिक कथाकार के रूप में पहचान है।

भावुक जी आंचलिक कथाकार हैं । उनके उपन्यास मंथन, बागी- आत्मा एवं कहानी संग्रह दुलदुल घोड़ी कहानी संग्रह आंचलिक परिवेश में सरावोर रचनायें हैं। शोधकर्ता ने फणीस्वर नाथ‘रेणु’के जीवन वृतांत के साथ साथ कथाकार शिवानी, कृष्णा सोवती, मृणाल पाण्डे, मालती परूलकर, हिमांशु जोशी,डॉ. रामदरश मिश्र, विवेकी राय तथा जगदीश चन्द्र का जीवन परिचय , उनकी रचनायें, उनका कृतित्व एवं व्यक्तित्व के साथ रामगोपाल भावुक का सधनता के साथ निरूपण किया गया है।


प्रथम अध्याय के खण्ड ब में ग्रामीण आंचलिक कथा और रामगोपाल भावुक में साहित्य लेखने की प्रवृति के विकाश को डॉ.सुमित्रा त्यागी, बाबू गुलाब राय, डॉ. इन्दिरा जोशी, डॉ. जवाहर सिंह,डॉ. रामदरश मिश्र तथ डॉ. ब्रजरानी वर्मा के कथनों के सन्दर्भ में भावुक जी के साहित्य पर द्रष्टि डाली है।

डॉ. ज्ञानचंद गुप्त की परिभाषा देते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि रामगोपाल भावुक के सम्पूर्ण साहित्य में ग्रामीण आंचलिक कथा साहित्य के दर्शन होते हैं।

इसके बाद 46संदर्भ सूची के नाम देकर अध्याय का समापन किया है।

द्वितीय अध्याय के खण्ड अ में भावुक का जीवन परिचय दिया है।

नाम-रामगोपाल तिवारी‘ भावुक’

जन्म-महाकवि भवभूति की कर्मस्थली के निकट ग्राम सालवई

जिला-ग्वालियर म0प्र0 में 2जून 1946 ई0

शिक्षा-एम0ए0 हिन्दी साहित्य

भावुक जी के बाबाजी का नाम बृन्दावन प्रसाद तिवारी।

आपकी दादी केशर वाई ।

पिता जी घनसुन्दर तिवारी।

माँ श्रीमती कलावती तिवारी।,

रागोपाल जी से छोटे जगदीशचन्द्र , राम भरोसा, मीरा बहिन, उनसे छोटे मोहन जिन्होंने खलियान में खेल खेल में अपने कपड़ों में आग लगा ली। उन्हें बचाने के लिये पिताजी ने ग्वालियर तक दौड़ भाग की पर उन्हें बचाया नहीं जा सका। मीरा बहिन जो ढोलूबुआ ग्वालियर के हेमन्त पारासर को व्याही थी। व्याह के पन्द्रह दिन वाद उन्हें सांप ने सता दिया। जिससे उनका अबसान हो गया। ऐसी घटनायें उन्हें लेखन की प्रेरणा देती रही हैं। उनकी जगह पर भान्डेर के तिवारी जी आत्माराम की लड़की मेरे परामर्श से व्याही थी। भावुक जी के सभी भाई उन्हें ही जीवन भर बहिन के रूप में सम्मान देते रहे।

भावुक जी से छोटेभाई नन्दन तिवारी महेश तिवारी और रामे तिवारी हैं । भावुक जी की पत्नी रामश्री तिवारी एक सद् ग्रहणी हैं। पुत्र राजेन्द्र एवं बिटिया ज्योति जो शचीन्द्र स्थापक को विहाई हैं। उसकी पुत्री डॉ अदिति है। दो नाती है बडा प्रलेख दूसरा पलाश। प्रलेख की पत्नी राधा जिसका एक बेटा है घनन्जय।

भरे-पूरे परिवार की व्यस्तताओं के साथ आपका लेखन सतत् साधना के रूप में चलता रहा है। आप के इष्ट परमहंस बाबा गौरीशंकर जी है। जिनकी कृपा से लेखन अनवरत चलता चला जा रहा है। उनकी दी हुई कलम का प्रभाव है कि लेखन में देश और समाज की विकराल समस्यायें, समाधान के साथ अपने लेखन में ऐतिहासिक एवं पौराणिक सन्दर्भें सहित प्रस्तुत करते चले जा रहे है।

द्वितीय अध्याय के खण्ड ब में रामगोपाल भावुक का रचना संसार-

प्रकाशित कृतियाँ-उपन्यास-साम्राज्यवाद का बिद्रोही, मंथन, बागीआत्मा, भवभूति, रत्नावली, गूँगागाँव ,दमयन्ती, एकलव्य, आस्था के चरण, महाकवि भवभूति एवं मूर्ति का रहस्य(बालउपन्यास) कथा-संग्रह-दुलदुल घोड़ी काव्य-संग्रह-व्यंग्य गणिका सम्पादन-परम्परा परिवेश, आभा, विजयस्मृति अंक, आस्था के चरण, कन्हर पदमाल, उत्सुक काव्य कुन्ज एवं मुक्त मनीषा कल और आज आदि

प्रमुख उपलब्धियाँ-मानस सम्मान1998म0प्र0 तुलसी अकादमी भोपाल,

शान्ति साधना सम्मान2000गुजरात हिन्दी विद्यापीठ अहमदावाद,

‘गूँगा-गाँव’ उपन्यास पर अखिल भारतीय समर स्मृति साहित्य अलंकरण-2005

रत्नावली उपन्यास का पं0 गुलाम दस्तगीर मुम्बई द्वारा संस्कृत में अनुवाद विश्वभाषा पत्रिका में प्रकाशित

बालवाटिका पुरस्कार 2012 भीलवाड़ा राजस्थान

वर्ष 2018 में पूर्वापर गौडा से साहित्य श्री सम्मान

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद याहित्य सम्मान 2018 ग्वालियर साहित्य संस्थान से

इस तरह भावुक जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को आँचलिकता प्रभावित करती रही है। अतः भावुक जी आँचलिक कथाकार है।


तृतीय अध्याय के खण्ड में रामगोपाल भावुक के साहित्य का परिचय-

इसके खण्ड अ में रामगोपाल भावुक के उपन्यास साहित्य की चर्चा की गई है।

इसमें भावुक जी की प्रथम कृति ‘साम्राज्यवाद का विद्रोही’ में एक स्वतंत्रता सेनानी की कहानी है। जो सेनापति बापट के समय में सक्रीय रहकर देश को आजाद करने में अपनी आहूति देने को तैयार रहे।

2 मंथन उपन्यास में ग्रामीण जन जीनव कें शोषक और शोषित वर्ग के बीच जाति और संप्रदाय के आधार पर संहर्ष की तस्वीर प्रतुत की गई है।

3 बागी आत्मा में पंचमहल क्षेत्र में डाकू समस्या पर रोचक प्रसंगों के माध्यम से उसका हल खोजने की कोशिश की है।

4 रत्नावली उपन्यास में रामचरित मानस के रचनाकार महाकवि तुलसीदास जी की धर्मपत्नी रत्नावली का शौध पूर्ण जीवन चरित्र का चित्रण किया गया है। कृति देश विदेश में चर्चा का विषय बन चुकी है।

5 गूंगा गाँव में जहाँ गाँव के बड़े बडे़ लोगों के दबाव में गूंगे की तरह जीवन जीने को विवश हो। उस दबाव से मुक्त होने लोग उठ खड़े हो, ऐसी र्चिर्चत कृति अखिल भारतीय समर साहित्य पुरस्कार से सम्मानित की जा चुकी है।

6 दमयन्ती एक सामाजिक उपन्यास है। नारी विमर्श पर चर्चा का विषय रही कृति है।

7 भवभूति एवं महाकवि भवभूति महाकवि के जीवन पर शोधपूर्ण कति है। भवभूति महाकवि तो देश की प्रसिद्ध संस्था कालीदास संस्कृत अकादमी उज्जौन ने जिसका प्रकाशन किया है।

8 एकलव्य उपन्यास, हरिवंश पुराण एवं महाभारत में एकलव्य से संबन्धित जो श्लोक मिले है, उनके आधार पर बुनाबट करके एक खोजपूर्ण कृति सामने आ सकी है।

9 मूर्ति का रहस्य एक बाल उपन्यास है। जन जीवन में व्यप्त लोकोक्तियों एवं मुहावरों के आधार पर बुनी गई कृति है। बाल जीवन को संहर्ष के लिये प्रेरित करने वाली कृति है।

9 आस्था के चरण- परमहंस गौरी शांकर बाबा का उनके अदृश्य होने के वाद खोजपूर्ण जीवन दर्शन है।

तृतीय अध्याय के खण्ड ब में रामगोपाल भावुक का कहानी साहित्य-

डॉ डोली ठाकुर ने अपने शोधग्रंथ में भावुक जी के कहानी संग्रह दुलदुल घोड़ी की चौवीस कहानियों का भाषा, परिवेश,एवं आँचलिकता के आइने में भलीभँति खूब परखा और निखारा गया है। इसके अलावा भावुक जी देश विदेश की पत्र पत्रिकाओं एव आकाशवाणी से प्रसारित कहानियों के आधार पर पात्र परिचय, बेशभूषा एवं रहनसहन के साथ मानवीय संवेदनाओं को परखा गया है।

तृतीय अध्याय के खण्ड स में रामगोपाल भावुक का काव्य साहित्य-भावुक जी का हैं। काव्य संकलन व्यंग्य गीणका में उनकी फुंटकर रचनायें। आपकी दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से काव्य रचनायें प्रसारित होतीं रही है। इसके साथ आपने परम्परा और परिवेश, कन्हर पदमाल, काव्य कुंज,एवंमुक्त मनीषा आज और कल जैसी कृतियों का संपादन भी किया है।

जिसमें आज से एक सौ पचास वर्ष पूर्व पंचमहल की माटी में संत कन्हरदास जी हुए हैं। उन्होंने ‘सवा सहस रचदयी पदमाला’ के आधार पर सवा सहस्त्र पदों की रचना की है। भावुक जी ने उनका संकलन कर उन्हें प्रकाशित किया है। जिससे यह घरोहर हम सब के सामने रह साकेगी। नगर क्षेत्र की काव्य गोष्ठियों में उनकी उपस्थिति देखी जा सकती है।

तृतीय अध्याय के खण्ड द में रामगोपाल भावुक का का विविध साहित्य-भावुक जी की कलम उपन्यास, कहानी कविता के अतिरिक्त समसामयिक विषयों पर चलती रहती है। महाकवि भवभूति की कृतियों के आधार पर ‘शम्बूक वध और भवभूति’संकलन कृति से अनेक शोध पूर्ण आलेखों का बाचन अखिल भारतीय भवभूति कार्यक्रम में किया गया है तथा देश की चर्चित पत्र पत्रिकाओं में ये आलेख प्रकाशित होते रहे हैं।

इस अंक के वाद में प्रमाण के लिए सन्दर्भ सूची में छियानवे प्रविष्ठियाँ अंकित की गईं है।

चतुर्थ अध्याय के खण्ड अ में रामगोपाल भावुक के उपन्यास साहित्य में पुरुष,स्त्री एवं विविध पात्र- डोली ठाकुर ने भावुक जी के साहित्य का गहराई से चिन्तन मनन किया है।

साग्राज्यवाद का विद्रोही में दत्तात्रय विनायक बाभले के विद्रही जीवन पर प्रकाश डाला है। इसमें सेनापति बापट एवं वीर सावरकर जैसे चरित्र समाहित हैं।

मंथन उपन्यास में-साधना, डॉ. रवि, बशीर मियाँ, महन्त सुन्दरदास, पटेल रंगाराम आदि

बागी आत्मा में माधव नामका बागी ,राव वीरेन्द्र सिंह, आशा, मायाराम चाची भगवती आदि

रत्नावली में रत्नावली, तुलसी दास, रामा भैया, हरको एव ग्रामीण पात्र

भवभूति में भवभूति, पत्नी दुर्गा, पुत्र गणेश, गणेश की पत्नी ऋचा, सुनन्दा सुन्दरसिंह, यशोवर्मन, ललिता दित्य आदि अनेक पात्र।

गूँगा गाँव में मौजीचमार, पत्नी सम्पतिया, पुत्र मुल्ला, पुत्री रधिया सरपंच विष्णू शर्मा, दीनानाथ,, सोनी चरणदास, तिवारी लालूराम, खरगा आदि

दमयन्ती में सुनीता, महेन्द्रनाथ, भगवती आदि

एकलव्य में एकलव्य, पत्नी बेणु, पिता हिरण्यधनु, दु्रपद, द्रोणाचार्य अर्जुन, कृपाचार्य, भीष्म , कर्ण, श्रीकृष्ण आदि अनेक पात्र

आस्था के चरण में परतहंस मस्ताराम गौरी शंकर बाबा, एवं उनके बहुत से भक्तजन।

महाकवि भवभूति- महाकवि भवभूति, पत्नी दुर्गा, पुत्र गणेश, गणेश की पत्नी ऋचा, सुनन्दा सुन्दरसिंह, यशोवर्मन, ललिता दित्य आदि अनेक पात्र

मूर्ति का रहस्य(बालउपन्यास) में नायक रमरान फौजी नूर मोहम्मद,जमाल चच्चा आदि

चतुर्थ अध्याय के खण्ड ब में रामगोपाल भावुक के कहानी साहित्य में पुरुष,स्त्री एवं विविध पात्र - भावुक जी का कहानी संग्रह दुलदुल घोड़ी में चौबीस कथाये सम्मिलित है। संग्रह भाषा पंचमहली बोली है।

मुरमृरा के लडडू-‘ कुढ़ेरा किसान है। उसकी पत्नी धन्नों, पुत्र तीतुरिया , नारू पुत्री, हप्पो, मुन्नी एवं लालाराम साहूकार।

स्लेटबत्ती-‘ कुन्दन, आनन्दी, शान्ती बुआ।

मौजी- मुजिया चमार, पचरायवारी आदि

पलुआ- पलुआ,पत्नी शान्ती चौधरी रामनाथ रंधीरा,

अन्य कहानियों में भी ऐसे ही ग्रामीण पात्रों को चुना गया है।

संग्रह की सभी कहानियों में शोषण के खिलाप संहर्ष की कथाये । वे गुस्सा होने की स्थिति में भी गुस्सा नहीं हो पाते।

पंचम अध्याय के खण्ड अ में रामगोपाल भावुक के कथा साहित्य में समस्यायें-

(अ) समाजिक समस्यायें-‘आँचलिकता की परिभाषा तथा उसका स्वरूप देखने के पश्चात् उसका अर्थ जटिल नहीं रहा। आँचलिकता लोक संस्कृति पर निर्भर रहती है जिसमें लोक कथा, लोकगीत, लोककला, उत्सव बृत एवं त्यौहार आदि प्रभाव डालते हैं। भारतीय समाज ग्रामों में बसा देश है। समाज की अनेक सयमस्यायें लेखक पर प्रभाव डालतीं है।अतः भावुक जी ने समाज में होने वाली घटनाओं को साहित्य में स्थान दिया। जिसमें गूँगा गाँव, दमयन्ती, मंथन और बागी आत्मा आदि में सामाजिक बुनावट पाई जाती है।

(ब) राजनैतिक समस्यायें- भावुक जी के साहित्य में रानैतिक उथल पुथल को भी उजागर किया है। गूँगा गाँव और मंथन में इस प्रकार के दृश्य देखनले को मिलते हैं। चुनाव का दृश्य इसी बात का सूचक है।

(स) साँस्कृतिक समस्यायें- गूंगा गाँव में दानास का विभाजन, बागी आत्मा में अस्पताल का उद्धाटन, मथन में पंचायत का फैसला आदि

(द) आर्थिक समस्यायें- मंथन उपन्यास में सुन्दर दास द्वारा कर्ज में जमीन हड़प् लेना, बागी आत्मा में राव वीरेन्द्र सिंह द्वारा किया गया कृत्य आर्थि मजबूरी का कारण ही है। दमयन्ती में सुनीता का होटल में शोषण आदि आर्थिक पहलू ही हैं।

षष्ट अध्याय के खण्ड (अ) में रामगोपाल भावुक के कथा साहित्य में भाषा,शैली सौन्दर्य

(अ) भावुक जी के कथा साहित्य में भाषा सौन्दर्य- डोली ठाकुर ने अपने शौध में इस बात को सिद्ध करने के लिये भावुक जी की कृतियों में प्रयुक्त लोकगीतों के माध्यम से अपनी बात रखी है। मन के भावों को प्रगट करने के लिये भाषा को प्रथमतः माना जाता है। ध्वनि भाषा के लिये योगदान है। कलापक्ष और भावपक्ष भाषा के ही अंग हैं। ष्शैली और भाषा दोनों ही भाषा को समृद्ध बनाते हैं। लोकोक्तियाँ, मुहावरे, प्रतीक, विम्ब भाषा सौन्दर्य को निखार देते हैं। भावुक जी के गूंगा गाँव में गूंगे पात्रों को बोलनेका साहस दिलाया है, जो पंचमहली बोली का अनूठा स्वरूप है। भाषा की मौलिकता अपने आप में ही एक उदाहरण है। पंचमहली बोली अनेक स्थानों पर अपना प्रभाव डालती है। रत्नावली और भवभूति में भी भाषा का ही प्रभाव है। मंथन और बागी आत्मा में क्षेत्रिय भाषा के वाक्य प्रभाव दिखाते दिखे।

(ब) भावुक जी के कथा साहित्य में शैली सौन्दर्य- भावुक जी गद्य लेखक पहले हैं बल्कि कवि वाद में है। उनके काव्य में कहीं भी बनावटीपन का आभाष नहीं होता। साम्राज्यवाद का विद्रोही में देखने को मिलता है उसमें मराठी भाषा के भी अनेक शब्द प्रयुक्त हुए है। भावुक जीने गीत भी लिखे हैं उन्हें गुनगुनाया भी है। उनकी लय गायनमें अपनापन है। भावुक जी गद्य लेखक होने के कारण उनकी कवितायें चिन्तनपरक होतीं हैं।

सप्तम् अध्याय में रामगोपाल भावुक के साहित्य की समीक्षा-

सप्तम् अध्याय के खण्ड(अ) में रामगोपाल भावुक के कथा साहित्य की समीक्षा- भावुक जी के कथा साहित्य में आँचलिकता के कई पुट देखने को मिले जिसमें आँचलिकता की सौंधी गंध लिये उपन्यासों का सृजन हुआ है। ये सभी उपन्यास नगर जीवन से ग्राम जीवन की कहानी कहतें हैं। प्राम में भीइ नगर जीवन दिखता है।ग्रामीण चित्रण अनुभव की प्रमाणिकता लिये हैं। सभी उपन्यास एवं कहानियाँ ग्राम की झाँकी दिखाते हैं। जिनमें अंचल के रीति रिवाज, खानपान, बोली बानी, जीवन यापन की जीती जागती छवियाँ हैं। इनमें अंचल विशेष की सौंधी गंध, माटी की सुवास, कथाधारा का अविरल प्रवाह है। लगभग सभी कृतियों में शोषण, गुलामी की पहल की गई है। गरीब और गूंगी जनता को बाणी और साहस दिया गया है।

उपन्यास,, भवभूति, रत्नावली,, एकलव्य और महाकवि भवभूति को वर्तमान के सन्दर्भ से जोड़ा गया है।

कहानी संग्रह की कहानियाँ यथार्थवादी स्वर का आभाष देतीं हैं। सभी में जीवन के चिन्तन को स्थान दिया गया है।

सप्तम् अध्याय के खण्ड(ब) में रामगोपाल भावुक के काव्य एवं विविध गद्य साहित्य की समीक्षा- भावुक जी की काव्य कला में युगबोध का पुट है। समय के ज्वलंत प्रश्नों को उकेरा है। कई जगह ब्यंजक भाषा को भी स्थान मिला है। सभी संपादित कृतियाँ सामाजिक संस्कृति की घरोहर हैं। सामान्य जन जीवन से उनमें जुडाव है। आपकी सभी रचनायें मानवीय संवेदना की धरोहर हैं।

अष्टम् अध्याय में रामगोपाल भावुक के साहित्य की उपादेयता एवं हिन्दी साहित्य में स्थान-

शौधकर्ता. डोली ठाकुर का कथन- मैं जब शोध की आकांक्षा लेकर डॉ. अवधेश कुमार चंसौलिया जी के यहाँ पहुँची तो उन्होंने मुझे रामगोपाल तिवारी‘ भावुक’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोध करने का परामर्श दिया। मुझे ज्ञात था कि डॉ. सीता किशोर खरे जैसा व्यक्तित्व अपनी डी. लिट. की शोध में भावुक जी के दो उपन्यास मंथन, और बागी आत्मा का सन्दर्भ ग्रंथ के रूप में उपयोग कर चुके हैं। भावुक जी का नाम सामने आते ही मैंने निश्चय कर लिया कि मैं अब पी. एच. डी करुँगी तो इसी विषय पर ही और उसी समय से मैंने इसी पर काम करना शुरू कर दिया था।

इस सन्दर्भ में श्री आदर्श सक्सैना जी का यह कथन पूर्णताः सार्थक सिद्ध होता है-‘ भावुक जी का साहित्य सृजन एक नवीन पहल नहीं बल्कि इस स्थान पर यह मान लेना अचित होगा कि आँचलिक उपन्यास उस विस्तृत आँचलिक साहित्य का केवल एक अंग है। जिसका विकास अधुनिक युग की देन है। इसमें सन्देह नहीं कि आँचलिकता की प्रवृति अत्यंत प्राचीन है। यह प्रवृति मानव में आदिकाल से निहित रही है और परिस्थितियों के अनुसार बदलती रही है।’ इसी क्रम में भावुक जी ने अपनी कृतियशें की समीक्षाओं में आँचलिकता के सभी तत्व, उसकी सीमा निर्धारित करने का अथक प्रयास किया है जो उनके लेखकीय जीवन को देखते हुए सराहनीय है। उनके सम्पूर्ण साहित्य में ग्राम्य संस्कृति, ग्राम्य भाषा का अनूठा प्रयोग है। पंचमहली को लोक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने में सफल रहे हैं।

आँचलिक उपन्यास की प्रवृति में विकसित करने का विशेष कार्य किया है। इसी सन्दर्भ मैं मैं मानती हूँ कि आँचलिक उपन्यास उसे कहा जा सकता है जिसमें किसी विशिष्ट प्रदेश को उपन्यास का कथा क्षेत्र बनाकर, उसके द्वारा उस क्षेत्र विशेष का लोकजीवन, लोक संस्कृति, सामाजिक, आर्थिक,राजनैतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों का यथार्थ एवं मानवीय चेतना का संवेदनपूर्ण चित्रण किया गया हो।

अतः भावुक जी ने अंचल परिवेश की पीड़ाओं, समस्याओं को समाज के सामने रखते हुए मानवतावादी दृष्टि से सहानुभूति की अपेक्षा की है। जो इन्हें निर्विवाद रूप से सर्वश्रेष्ठ आँचलिक उपन्यासकार की श्रेणी में लाती है। अताः भावुक जी श्रेष्ठ उपन्यासकार कथाकार हैं।

शोधकर्ता डोली ठाकुर की उपरोक्त चिन्तनशील खोज के आधार पर, शोधकृति समय की मांग के अनुकूल संवाद देती है। कृतिकार डोली ठाकुर को इस पावन कार्य तथा परिश्रम के दुस्साहस के लिये घन्यवाद। चिन्तन की कसौटी के लिये बन्दन। अभिनन्दन ।

धन्यवाद ।

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