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उपन्यास महाकवि भवभूति- रामगोपाल भावुक

उपन्यास महाकवि भवभूति - समीक्षात्मक अध्ययन

वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’

पद्मावती, पवाया पंचमहल डबरा भवभूति नगर का एक एतिहासिक और साँस्कृतिक वैभवशाली नगर रहा है, जिसने गालवऋषि की तपोभूमि को गौरवान्वित करने में अपना विशेष योगदान दिया है। यहाँ पर साँस्कृतिक भण्डारागार आज भी छुपे पड़े हैं जिनका यह क्षेत्र ऋणी है। यहाँ के वांग्मय साहित्य के पुरोधा, संस्कृत के महाकवि भवभूति आठवी सदी के काव्य साधक रहे हैं। आज का यह वैज्ञानिक युग है, विज्ञान की उपलव्धियाँ साहित्य के अतीत की वर्जना नहीं करती वल्कि ज्ञान का विस्तार ही करती हैं। साहित्य के विद्वान, वैज्ञानिक भले ही न हो पर वे वैज्ञानिक सोच के हमसफर तो अवश्य ही हैं।

उपरोक्त संदर्भें के क्रम में एक संघर्षरत रचनाकार को अभिव्यक्ति के आधार पर अपनी पहिचान बनाये जाने के लिये अतीत और वर्तमान में लिखी गईं या लिखी जा रहीं, उन सभी रचनाओं की गम्भीरता से पड़ताल करते हुए श्री रामगोपाल भावुक का उपन्यास महाकवि भवभूति एक विशेेश नयापन लिये उभरकर सामने आया है।

उपन्यास महाकवि भवभूति का आवरण पृष्ठ ही जब इतना मनोहारी और आकृष्ठ हो जो अन्दर की सम्पदा की सम्पूर्ण पड़ताल अपनी रंग कर्मिता से ही करदे, जिसमें सम्पूर्ण भवभूति साहित्य उभरकर सामने आ जाता है। भावुक जी तो इस धरती परिक्षेत्र में पले बढ़े अनुभवी साहित्यकार है। आपके द्वारा उपन्यास को सोलह नामकरणीय सोपानें में तथा एक सौ चौतीस पृष्ठों में, अनेको भाव भंगिमाओं के साथ सरल भाषा एवं आँचलिक झलक को लिये दिग्दर्शित किया है।

प्राक्कथन में श्री अक्षय कुमार सिंह आई ए एस तथा पुरोवाक प्रतिभा दवे प्रभारी निदेशक के साधुवाद से प्रारम्भ होकर चला है एवं सम्पादकीय में श्री दीपक कुमार गुप्त जी द्वारा जो अनूठी पहल की गई है जिसमें उनकी बौद्धिकता का विशेष परिचय है। आपने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि-‘भावुक जी ने अपनी कल्पना की उड़ान सो रचना को साक्षात् प्रस्तुत करने का श्लाध्नीय प्रयास किया है, यद्यपि इसमें उनकी वास्तविकताओं का कोई साक्षत् प्रमाण नहीं है, तथापि प्रभावी तथ्यों के माध्यम से वास्तविकता के निकट पहुँचने का प्रयास मात्र है। इसमें लेखक तथा मेरी भावना किसी तथ्य को सिद्ध करना न होकर, उसके दूसरे पक्ष को सामने प्रस्तुत करना ही रही है।’ यही तो साम्पादन की कुशलता है।

भावुक जी की भावांजलि परिक्षेत्र के गहन अध्ययन का परिचायक है, साथ ही पृष्ठभूमि के इतिहास के प्रति कृतज्ञता भी। आपका खोजी चिन्तन ध्यातव्य है। गुमनाम सम्पदा की खोज हमारा भी दायत्व है। भावुक जी ने एक नई पहल उपन्यास विधा में की है जो अनुक्रमणिका में नामकरण की प्रथा, यह चिन्तन अभी तक कहीं नहीं मिला है। आपने अनेको सहयोगी साहित्यकरों को भावभीनी कृतज्ञता व्यक्त की है।

सोलह सोपानों के क्रम में ‘युगदृष्टा पद्मावती’ में महाकवि के चिन्तन की नवीन झलक मिलती है। पद्मावती के समीप सिंधु, पारा, महावर तथा लवण सरिता की मनोरम झाँकी के साथ भवभूतिकी चिन्तन साधना को दर्शाया गया है। यथा-‘भीड़-भाड़ से बचकर,सिंधु नदी के किनारे, विशाल शिलाखण्ड पर बैठा दिख रहा था एक अधेड़......पृष्ठ वाइस। शासन व्यवस्था में ताँत्रिक व्यवस्था का विकाश उसे अधिक खल रहा था जिसे भगवान शर्मा और महाशिल्पी वेदराम के वार्तालाप से दर्शाया गया है। ‘भवभूति उवाच’ सर्ग में विदर्भ से पद्मावती तक आने के जो तथ्य दिये है वे उस समय के परिवेश के अनुकूल ही लगते हैं। चिन्तन के झरोके से यहाँ ‘पद्मावती’ तक आने का कारण भी सारतत्व सा लगा। कथा को विस्तार देने के लिये ‘कांतिमय गुरुकुल विद्या विहार’ की सृष्टिकर अध्ययन शालाओं को सार्थकता प्रदान की गई है जो सत्य के निकट सी लगती है। इसमें महावीर चरितम् की चित्र वीथिकाओं का मनोहारी वर्णन पाठक को आकर्षित करता है। मालती माधवम् और महावीर चरितम् के वाद उत्तर राम चरितम् के लेखन का सूत्रपात भी सत्य सा लगता है।

‘वैभवी पद्म पवाया’ में पद्मावती के विकाश क्रम में अध्ययन शाालाओं का विशेष योगदान रहा है। इन्हीं संदर्भें पर विशेष चर्चा के साथ ‘उत्तर रामचरितम् पर प्रायश्चित बोध’ के सम्बन्ध में सीता की अग्नि परिक्षा, जो सामाजिक अभिशाप का एक विशेष पहलू है, का प्रायश्चित करने का प्रयास किया गया है जिसमें चित्र बीथिका का दृश्य कथा को विशेश्य की ओर ले जाता है। यहाँ पर सीता निर्वासन से चलकर लवकुश का जन्म तथा चन्द्रकेतु से युद्व के वाद सभी परिवार का मिलन सार्थक पहल सा लगा जो करुण रस का परिपाक्व भी है। ‘ अतीत झरोखा- मालती माधव्’ का चिन्तन इस नाठक की नवीन सोच का परिचायक है जिसमें मालती और माधव के प्रेम प्रसंग को सार्थकता देने के लिये अनेक अन्य कथाओं को भी जोड़ा गया है। नाटक मालती माधवम् अति सुन्दर बन पनड़ा है। इसमें नरवलि के साथ-साथ नारी वलि का दृश्य हृदय विदारक रहा तथा अघोरघंट का वध, ताँत्रिक व्यवस्था का अस्तित्व समाप्त करने का उत्तम प्रयास रहा।

‘कतिपयसूत्र संकेतों का भाष्य’ अध्याय इस धरती के बीजकों का विश्लेशण करता दिखा, जो अन्धविश्वासों पर आधारित है साथ ही राज्य की अव्यवस्था पर गहरी चोट भी।‘ चारवाक् साक्ष्य लेखन’ भी जीवन की सच्चाइयों का एक अनूठा दस्तावेज है जो पुनर्जन्म की अवधारणा को बडी गहराई से छूती है। जिसे अनेक तर्कों से समाधान की ओर ले जाया गया है। उपन्यास की कथा का विस्तार‘ प्रतिविम्वित रंग कर्म’ के माध्यम से सामाजिक परिवेश को एक नवीन सोच प्रदान की गई है। सम्बन्धों के विस्तार में रंग कर्म भी कुछ नया करता दिखा है। ‘महाकवि और महाराजा यशोवर्मा’ यह सर्ग अनेक प्रसंगों के साथ उत्तर रामचरितम् के अधूरेपन को पूरा करने की पहल है। ‘ भवभूति के कालप्रियनाथ’ उस समय के आराध्य एवं नाटक आदि उत्सवों का मनोरम स्थल रहा है जिसे आज धूमेश्वर मादेव मन्दिर के नाम से जाना जाता है। यहाँ महावीर चरितम् का मंचन नाट्य मंच पर किया गया था, जिसमें ‘ दर्शकदीर्घा से महावीर चरितम्’ को दर्शाया गया है जिसमें सातों अंको का संक्षिप्त दिग्दर्शन कराया गया है। क्रम को आगे ले जाते हुए ‘महाकवि का कन्नौज प्रस्थान’ भी कथा विस्तार का एक सूचक है। इस क्रति का महत्वपूर्ण अंश है-‘शम्बूवध भावनाओं पर प्रहार’ इसमें सच्चा मानव क्रन्दन मिलता है जिसे वैदिक अम्लीजामा पहनाया गया है। उत्तर राम चरितम् का मंचन कन्नौज में किया गया जिसमें सीता धरती में नहीं समाती है वल्कि राम से मिलन कराया गया है।‘ संवेदनाओं का सन्देश वाहक’ उध्याय महाकवि भवभूति का‘ कश्मीर में वानप्रस्थ का पड़ाव’ की सूचना का मिला- जुला संदेश है।

इसप्रकार से भावुक जी के सोलह अध्याय- जीवन के सोलह संस्कारों को दर्शाते से दिखे है। इसतरह जीवन की यात्रा का भी पर्याय है यह उपन्यास। कथ्य कसाव और चिन्तन कफी गहराइयों तक गया है। यह उपन्यास भवभूति साहित्य के विकाश में एक नवीन सोपान का भी कार्य कारेगा। लुप्त होती संस्कृत, संस्कृति का पुनर्जागरण का भी यह संवेग है। पुरातत्ववेत्ताओं और शोधार्थियों का इससे अवश्य कुछ नया मिलेगा। इससे यह पद्मावती भूमि पर्यटन स्थल का रूप भी ले सकती है, ऐसी अनेक संभावनाये महाकवि भवभूति उपन्यास का आधार होंगीं। इन्हीं अनेक मंगल कामनाओं के साथ कलमकार श्री भावुक जी का वन्दन एवं अभिनन्दन।

पुस्तक- महाकवि भवभूति उपन्यास,

लेखक- रामगोपाल भावुक,

प्रकाशक - कालिदास संस्कृत अकादमी उज्जैन म. प्र.

समीक्षक- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त

मूल्य- 250 रुपये

सम्पर्क सूत्र- गायत्री शक्ति पीठ रोड़ गुप्ता पुरा डबरा, भवभूति नगर

जि. ग्वालियार म. प्र.

मो0- 9981284867

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