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मेरी प्रिय कथाएं-राजबोहरे का कहानी संग्रह

राजनारायण बोहरे का कहानी संग्रह मेरी प्रिय कथाएं ज्योति प्रकाशन पर्व से प्रकाशित हुआ है, इसमें बौहरे जी की 10 कहानियां शामिल हैं ! दसवीं कहानी मुहिम एक लंबी कहानी है , जो बौहरे जी ने बाद में उपन्यास मुखबिर के रूप में लिखी है ! यह लेखक का एक नया प्रयोग है और “ कहानी छपने के बाद पूरी नहीं हो जाती” ,इस तरह की बातें जो राम गोपाल , महेश कटारे, ए असफल, प्रमोद भार्गव और राजनारायण बोहरे जब डबरा में एकत्रित हुए थे और ऐसी बातें कर रहे थे , यहां सत्य साबित होती है! कोई भी कहानी लिख जाने छप जाने, संग्रह में आ जाने के बाद पूर्ण नहीं हो जाती, हमेशा उसमें गुंजाइश बनी रहती है !

इस संग्रह की भूमिका डॉ पदमा शर्मा एसोसिएट प्रोफेसर गवर्नमेंट कॉलेज शिवपुरी ने लिखी है ! प्रत्येक कहानी पर उन्होंने छोटी-छोटी टिप्पणियां की हैं और हिंदी कहानी के वर्तमान परिदृश्य में राजनारायण बोहरे के स्थान पर भी बातचीत की है ! यह भूमिका हमको कहानी संग्रह को समझने में मददगार साबित होती है!

संग्रह की पहली कहानी “चंपा महाराज चेल्लम्मा और प्रेम कथा” वर्तमान समय के जाति के बंधनों के विखराल की कहानी हैं ! चंपा महाराज नाम के गांव के धारी पंडित को पता लगता है कि उनका बड़ा भाई कालका प्रसाद जो सदा से रसिक रहा है ,इस बार अस्पताल की नर्स पर लट्टू हो गया है और उसे लेकर यहां वहां मदद करता हुआ घूमता रहता है , उसका बॉडीगार्ड भी बना रहता है! चंपा महाराज को लगता है कि अगर कालका प्रसाद ने इस से शादी कर ली तो संपत्ति आधी आधी बढ़ जाएगी ! तब चंपा महाराज जैसे लोग जो शास्त्र से हर बाधा का रास्ता खोज लेते हैं एक ऐसा रास्ता खोजकर लाते हैं कि पाठक दंग रह जाता है! पुरानी कहावत है कि राजा घर आई रानी कहानी, वही कहावत और कबीर दास का भजन की “विष्णु के घर लक्ष्मी बैठी भोले संग भवानी ! माया महा ठगनी हम जानी!” को आधार बनाकर बौहरे जी ने इस कहानी का अंत किया है! इस कहानी में कतकियारी महिलाओं द्वारा गाए गए गीत, कतकियारी महिलाओं द्वारा अपनाई जाने वाली रीतियां नीतियां और एक और पुरुष की लालायित और लालची नजरों का बहुत सशक्त ढंग से वर्णन किया है! इस कहानी को पढ़ते पढ़ते पाठक बौहरे जी की कलम का कायल हो जाता है!

संग्रह की दूसरी कहानी एक प्रेम कथा है और ऐसी प्रेम कथा जो लगभग एक फिल्मी पटकथा का अंदाज देती है! आनंद देती है मजा देती है ! परेश को अपने बड़े भैया की शादी में रिश्ते में साली लगने वाली मधु मिलती है !जो बड़े मजे से कहती है आप घर आइए ना जीजा जी और ऐसा एक बार नहीं कई बार कहती है !तो उसकी मोहक मुद्रा बुलाने का बिल और अंदाज देखकर परेश समझता है कि वह जितना मधु के प्रति आकर्षित है मधुर भी उतनी ही आकर्षित होगी! तब परेश जबलपुर का टूर बना कर वहां पहुंच जाता है !सरकारी काम निपटा कर जब वह मधु के घर पहुंचता है तो वह कुछ और ही नजारा पाता है -मधु का व्यवहार और मधु का एक दूसरे युवक से बेलौस बिंदास मस्ती से बतिया ना देख एक तरफा प्यार करता हुआ परेश वापस लौटने की तैयारी करता है कि फिर उसी मोहक अंदाज में मधु कहती है फिर आइएगा जी हां जी !आपसी रिश्तो में इस तरह के संबंध और आकर्षण प्रायः मिल जाते हैं !हमारे आसपास की रिश्तेदारी नातेदारी यों से उठाई गई है कहानी हर पाठक को मोहित करती है!

तीसरी कहानी गवाही बहुत निर्माम समाज की कहानी है हां हमारा वर्तमान समाज बहुत निर्माम हो चुका है ! इसमें जो व्यक्ति ईमानदार है वह जनता द्वारा जनप्रतिनिधियों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है और यहां तक कि मार डाला जाता है! ऐसे में ऐसे कांड के गवाही देने को तैयार बैठे लोग बड़े धर्म संकट में होते हैं ! वे राजनेता राजनीतिक पार्टियां ऐसे लोगों को धमकाते हैं कि तुम हमारे खिलाफ गवाही नहीं देना ! जब की गवाही देने वाले को मृतक की आत्मा के प्रति जवाबदेही मन ही मन महसूस होती है और कमाल की बात तो यह है कि इस कहानी में अंत में मृतक व्यक्ति की पत्नी ही उसे गवाही देने से इस कारण मना करती है -ना हक में अपनी जान क्यों फंस आता है! इस कहानी के अंत में हालांकि बौहरे जी ने लिखा है कि अंधेरे और कोहरा दूर होता दिख रहा था, यह उनकी कलम का कमाल है ; जबकि असलियत यह है कि कहानी खत्म करते-करते अंधेरा और कोहरा यानि सुरक्षा का सत्य का न्याय का धर्म का कोहरा अंधेरा और गिर गया लगने लगता है! पाठक एक अनाम सी दहशत से भर जाता है कि ईमानदारी से काम करने वाला न्याय पर चलने वाला कहीं सुरक्षित नहीं है!

कहानी बाजार बेब हमारे आसपास के उस समाज की कहानी हैं जहां की घर-घर में नेट मार्केटिंग के लिए महिलाएं निकल पड़ी हैं !अपने घर की आर्थिक मदद करने के वास्ते अपने पति या पर अपने मित्रों या कंपनी के प्रतिनिधियों के साथ घर-घर जाकर अपनी कंपनी के किट देना और एजेंटों का नेट मार्केटिंग तैयार करना पिछले 25 साल से भारत वर्ष में बहुत तेजी से लागू है , जो महानगरों कदमों से होता हुआ गांव तक पहुंच गया है ! अन्नपूर्णा अभी जो घर की अन्नपूर्णा है वह एक सेल्स गर्ल्स में तब्दील हो जाती हैं और तब तो यह है कि वे अपनी महिला गत कष्ट को भी किसी को बता नहीं पाती और ऐसे में जल्दबाजी में सुबह जाते समय भी अपने नियत निधि वस्त्र भी कंपनी के प्रोडक्ट के बीच भेद हनी में डाल जाती हैं जिन प्रोडक्ट में अपने कीमत के टैग अपने गले में डाल रखे हैं ! बहुत लंबे अर्थ देती हुई यह कहानी बताती है कि बाजार हमारे घरों में भीतर तक घुस आया है भीतर यानी बेडरूम तक बाजार में बाजार के विस्तार की कहानी हैं संस्कृति के सिकुड़ जाने की कहानी है !बौहरे जी की कलम को फिर बधाई देने को जी चाहता है !

मलंगी बड़ी दुर्लभ कहानी है! हिंदी में पशुओं पर कम कहानी लिखी गई है गली की कुत्तिया मलंगी को जिस शिद्दत के साथ राज बौहरे ने अपनी कहानी में उकेरा है! मलंगी में बहुत सारे ऐसे प्रयोग हैं जो लोगों को अच्छे लगते हैं ! मोहल्ले के खारे कुआं को उल्लास जाने वाली मलंगी पूरे मोहल्ले की मददगार है, बच्चों की दोस्त है! लेकिन एक दिन बाहर का लंगूर जब मोहल्ले में आता है और मोहल्ले के लोग उसे भगाना चाहते हैं तो मलंगी को पीछे लगा देते हैं ! लेकिन लंगूर यानी छतों पर दौड़ने वाला, आसमान में रहने वाला ,काले मुंह वाला, इतना इतना बदमाश है कि वह मलंगी कोई अपने पक्ष में कर लेता है !अब मोहल्ले की सिया, मलंगी को छिनाल, चरित्रहीन और जाने क्या क्या कहने लगती हैं ! अंत में उस आसमान में चलने वाले लंगूर के साथ दौड़ती मलंगी इकाई जमीन में आती है और बात करने लगती है ! तब मोहल्ले के लोग फिर से मलंगी को अपना लेते हैं हम लेंगे फिर से स्वस्थ हो जाती है! बच्चों के हिंदी में बहुत सारे ऐसे प्रयोग हैं जो हमको अच्छे लगते हैं और हम अपने बचपन में पहुंच जाते हैं!

इस संग्रह की सब एक और महत्वपूर्ण कहानी अस्थान है! अस्थान आयानी आश्रम! साधु लोग अपने आश्रमों को अस्थान ही कहते हैं! साधु संन्यासियों का रहने का धन चलने का बोलने का और आपस में मिलने का जो गोपनीय बातचीत का तरीका है ,बौहरे जी ने इस कहानी में बड़ी गंभीरता से प्रकट किया है !कहानी की शुरुआत में ही बौहरे जी पाठक को बांध लेते हैं, शुरुआत में बौहरे जी ने साधु द्वारा भोग लगाते समय बोलने जाने वाले जय कारों का जिक्र किया है और इन्हें पढ़ते-पढ़ते अपनी सुध बुध खो कर पाठक लगभग कहानी से बंध जाता है! पूरी कहानी में साधु सही शब्दावली का प्रयोग कहानी को सशक्त बनाता है !

इस संग्रह में भय नामक कहानी भी सम्मिलित है, जिसे की माननीय प्रधानमंत्री द्वारा 1997 में पुरस्कार से सम्मानित किया गया था ! यह कहानी एक प्रोफेसर द्वारा नकल पकड़ लेने पर प्रोफ़ेसर के पीछे लग जाने वाले बच्चों की कहानी है! बल्कि बच्चों के कारण भय में डूबे प्रोफेसर की कहानी है !जिसे मदद करने के बाद से आया हुआ पुराना छात्र जो अब एसडीओपी है वह भी अपना शत्रु लगता है! लेकिन यह क्या वह जिसे सत्य समझ रहे हैं मैं उनका सबसे बड़ा मददगार साबित होता है और यही नहीं जितने भावुक हुए हैं उनसे ज्यादा भावुक कुणाल निकलता है, इसकी नकल उन्होंने कभी पकड़ी थी और उसने 1 साल और बात करके ठीक से पढ़ाई के रास्ते पर आकर ईमानदारी पर चलने की कसम खाई थी !यही वह एक बार कसम फिर से प्रोफेसर रवि को खिलाता है कि वे कभी भी आइंदा ऐसे माहौल में डरेंगे नहीं सच के रास्ते पर चलते रहेंगे !

एक और प्रेम कहानी नाते रिश्तेदारों के बीच बन जाते संबंध दहेक संपर्क और प्रेम संबंधों में जीतने की कहानी डूबते जलयान है ! जिसमें दीपू विभा के सहायक संबंध बन चुके हैं लेकिन विभा का ब्याह ऐसी जगह होता है यहां की उसका कोर्स की कोई कदर नहीं की जाती ,बल्कि उसका पति उसे सास-ससुर की सेवा करने को अकेला छोड़कर दूर नौकरी करने निकल जाता है ,ऐसे में विभा विद्रोह की इच्छा करती है, पर वह विद्रोह ना ही कर पाती! उसके संस्कारों से इजाजत देते! दीपू हर बार उसकी ससुराल पहुंच कर रह जाता है!

गोष्ट इस संग्रह की ऐसी कहानी है जो गांव में रहने वाले ही समझ सकते हैं ,बल्कि गांव में रहने वाले ज्यादा बारीकी से समझ सकते हैं और शहर में रहने वाले यह कहानी पढ़कर एक सहकार आपसी सहयोग और परस्पर सहयोग से तैयार किए गए संगठन का महत्व समझते हैं !गांव में चरवाहा नहीं है ,तो सारे गांव के लोग गोष्ट बनाते हैं मीठा बनाते हैं और उस गोष्ट यानी गोष्टी से बड़ा इस शर्त के साथ बनाया जाता है कि गांव भर के डोर सब लोग मिलकर बारी बारी से चलाएंगे ! यही गोष्ट जब खेतों में जो तय की जाती है तो बनी जोतना ऑल स्टार के लिए भी सारे गांव वाले 1 दिन इकट्ठा हो जाएंगे !इस तरह वह गांव एक आदर्श गांव होता है और तो बौहरे जी ने इस कहानी में पुनर्जीवित किया है पुनर्जीवित किया है!

मुहिम कहानी में ऐसे डाकू की कहानी है जो चंबल घाटी में 20 वर्ष तक अपने जाति बिरादरी के बंधुओं के कारण अभिजीत रहा और जो पुलिस से चार कदम आगे चलता रहा ! ऐसे डाकू को पकड़ने के लिए पुलिस की बटालियन ने जब चंबल के ऊंचे नीचे पर का अभियानों में भटक रही होती हैं, तो अपनी मार्ग दे के लिए निशानदेही के लिए वे ऐसे लोगों को साथ ले लेती हैं जो पहले डाकू की पकड़ में रहे हैं ! स्थानों को दिखाते हुए वे दोनों पकड़कर व्यक्ति गिर्राज और लल्ला बार-बार कभी पुलिस का बर्ताव देखते हैं तो कभी डाकूयों का जो उन्हें एक-एक से महसूस होते हैं और वे कभी पुलिस का खौफ खाते हैं तो कभी डाकू से और महसूस करते हैं कि इस क्षेत्र में लगभग दोनों से ही यहां की जनता आक्रांत है !इस कहानी में बहुत ही मार्मिक कहानी केतकी नामक लड़की की है जिसे दस्यु लोग अमृत कर लेते हैं और उसका दैहिक शोषण भी करते हैं !कहानी को पढ़ने के बाद पाठक हिल जाता है !

इन संपूर्ण कहानियों में बौहरे जी ने कोई कल्पित पात्र नहीं रखे हैं, कल्पित घटनाएं नहीं हैं ,सब कुछ यथार्थ है और हमारे आसपास की घटनाएं हैं !इसलिए देश काल और वातावरण की दृष्टि से यह संग्रह बहुत सशक्त और प्रमाणित संग्रह कहा जा सकता है !

भाषा को लेकर भी बौहरे जी की तारीफ की जा सकती है बौहरे जी ने जिस अंचल की कहानी है वहां की भाषा शब्द कहावतें और मुहावरे इतनी सजा कर प्रस्तुत किए हैं कि उनकी कलम को काम करने को जी चाहता है!

इस संग्रह में अगर भूमिका ना भी होती तो भी पाठक उन्हें उनसे प्रभावित हो सकता था लेकिन भूमिका ने उस तरह की स्थिति पैदा की है जैसे खजाने के ऊपर बीजक हो और बीजक को पढ़कर खजाना खोज ना हो !इस तरह बौहरे जी के साथ डॉक्टर पदमा शर्मा की भी तारीफ की जानी चाहिए!

इस संग्रह के संवाद बहुत शुक्र है रोचक हैं और तेज गति वाले हैं कुल मिलाकर यह संग्रह हिंदी के यादगार संग्रह में शामिल होगा और लोग इसे हमेशा याद रखेंगे आगे बौहरे जी से अच्छी कहानियां आने की संभावनाएं भी प्रतीत होती हैं!

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