बाली का बेटा - राज बोहरे ramgopal bhavuk द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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बाली का बेटा - राज बोहरे

राज बोहरे- उपन्यास बाली का बेटा

बाल मन की नजर से समीक्षा समीक्षक -रामगोपाल भावुक
गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा है-रामायण सत कोटि अपारा। यानी राम कथा करोड़ों प्रकार से कही सुनी जाती है । अनेक लेखक अपनी तरह से रामायण लिख चुके हैं, संस्कृत ,बांगला,तमिल सहित उर्दू में भी रामायण लिखी गयी है।हिंदी में तो ऊपन्यास रूप में दर्जन भर से ज्यादा राम कथा देखने को मिलती हैं।
मैं रोजगार मूलक दिनचर्या के कारण जीवन भर बालमन को समझने में लगा रहा। बच्चे कैसे विकसित हों? कैसे अपने लक्ष्य तक पहुंचे? इस उपन्यास के कथ्य को इसी दृष्टि से परखने का प्रयास किया है।
जब- जब मेरे सामने रामकथा से जुड़े प्रसंग रामकथा के ही पात्रों के माध्यम से आये हैं। सभी ने कथा में सरीख रह कर अपनी- अपनी तरह से राम कथा कही है। मैंने जब अपने उपन्सास रत्नावली में रामकथा की चर्चा की तो वह रत्नावली की दृष्टि से सामने आई है।
शम्बूक उपन्यास में भी शम्बूक के माध्यम से अपनी तरह की राम कथा कही है। लेखक एक लेकिन कहन के लिए पात्र अलग- अलग है तो कहानी में भिन्नता स्वाभाविक है।
जब मेरे सामने राजनाराण बोहरे का राम कथा पर बाली का बेटा बाल उपन्यास सामने आया तो मुझे तत्काल पढ़ने बैठना पड़ा। बोहरे जी ने इस कथा को इस तरह संजोया है कि जाने- पहचाने रामकथा के प्रसंग बच्चों को रोचक और मनोरंजक लगें और बालमन को विश्वसनीय भी लगे, उनकी सोच पल्लवित हो और सीख लेकर कुछ नया करने को उद्दत हो जायें।
सम्पूर्ण कथा को राम का वनवास, तपस्वी का गुस्सा, सुलह ,बाली,ऋष्यमूक, कुश्ती, तलाश,लंका में हनुमान,विभीषण, लंका में अंगद, लड़ाई,वापसी, विदाई, आदि सौपानों में बांटकर राम कथा कही है।
राम का वनवास को भूमिका के रूप में प्रस्तुत किया है। सीता हरण के बाद राम- लक्षमण के सुग्रीव से मिलने तक की कथा इसमें कह दी है लेकिन दूसरे सौपान तपस्वी का गुस्सा से बालमन उसे रूचि के साथ आत्मसात करने लगता है।
बाली का बेटा स्वयं उस कथा का एक पात्र है।
तपस्वी का गुस्सा अध्याय की पहली पंक्ति में पम्पापुर के मधुवन नामक बगीचे में उसका प्राकट्य हो जाता है।
चातुरमास बरसात व्यतीत हो गये हैं। सुग्रीव ने वचन देकर भी सीता की खोज प्रारम्भ नहीं की है। लक्ष्मण जी को इसी बात को लेकर क्रोध आता है। सभी नगर बासी उनके क्रोध को देखकर भयभीत हो जाते हैं। जामवन्त के परामर्श से महारानी तारा और अंगद उनका क्रोध शांत करते हैं।
सुलह प्रकरण में सीता की खोज की योजना बनती है। चारो ओर खोजी दल भेजे जाते हैं। एक दल जामवंत जी के निर्देशन में दक्षिण की ओर भेजा जाता है। जिसमें अंगद, हनुमान और नल, नील साथ जाते हैं।
बाली प्रकरण में जामवंत जी अंगद को उसके पिता बाली की कथा सुनाते हैं। बाली बचपन से ही घूमने- फिरने का शौकीन रहा है। वह पर्यटन के लिए लम्बे समय तक राज्य छोडकर चला जाता था। इस बीच बाणासुर ने और एक बार तो रावण ने भी उसके राज्य भी कब्जा कर लिया था। बाली ने अपनी वीरता से अपने राज्य को मुक्त कराया और इनको अपने कारागार में बन्दी बना कर रखा था।
दुंदभी ने भी बाली को कुस्ती के लिये ललकारा था। बाली ने उसे इस तरह पटका था कि उसके चिथड़े- चिथड़े उड़ गये। उसके खून के छींटे तप कर रहे, ऋषियों पर पड़े। उन्होंने बाली को शाप दिया कि जब कभी इस पर्वत पर वह पांव रखेगा उसे सिर के टुकड़े- टुकड़े हो जायेंगे। इसी कारण बाली ऋष्यमूक पर्वत पर आता नहीं है।
अंगद जामवंत से पूछता है कि मेरे पिता और काका में झगड़े का क्या कारण था। वे उसे समझाते हुए बोले-‘हाथी के बदन जैसा मायावी नामक दैत्य ने भी बाली को कुस्ती के लिये ललकारा था। बाली ने उसका पीछा किया तो वह एक पर्वत की गुफा में प्रवेश कर गया।
बाली उस गुफा में प्रवेश करने से पहले उसके द्वार पर सुग्रीव को बैठा गया और पन्द्रह दिन की प्रतीक्षा की बात कह कर अन्दर चला गया। सुग्रीव एक महीने तक वहीं डटा रहा। उस गुफा में से खून की धार बह निकली तो सुगीव बाली को मरा जानकर गुफा के द्वार को बन्द करके अपने राज्य में लौट आया। राजा विहीन राज्य जानकर वहां के मंत्रियों ने सुगीव को राजा बना दिया।
कुछ ही समय में बाली लौट आया तो वह उस पर बहुत क्रोधित हुआ और सुग्रीव को मारपीटकर भगा दिया। उसकी पत्नी को छीन लिया। बाली के डर से सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर जाकर रहने लगा। उन्हें यह ज्ञात था कि शाप के डर से बाली यहाँ आता नहीं है।
ऋष्यमूक के प्रसंग में जामवंत कहते हैं-‘ऋष्यमूक पर्वत पर रहकर सुग्रीव ने आदिवासी जन समूह को अपनी ओर कर लिया। बाली से त्रस्त होकर भी लोग उसके पास आते चले गये। यों ऋष्यमूक पर्वत एक छावनी का रूप धारण करता चला गया। सीता की खोज में राम और लक्ष्मण जब इस पर्वत पर पधारे तो हनुमान जी ने ब्राह्मण बनकर उन्हें पहचाना। सीता हरण के समय रथ से गिराये गये सीता के आभूषण उन्हें दिखाये। राम जी को उसका विश्वास हो गया तो उन्होंने वचन दिया कि बाली के आतंक से उसे मुक्ति दिलाकर रहेंगे।
कुश्ती वाले प्रकरण में राम सुग्रीव को बाली से कुश्ती लड़ने के लिये तैयार करते हैं। सुगीव बाली को कुश्ती के लिये ललकारता है। बाली सहन नहीं कर पाता। वह मैदान में आकर सुगीव की खूब धुनाई पिटाई करने लगता है। इस कुश्ती के लिये बाली राम को दोषी मानकर उनके मां बाप को गालियां देने लगता है। राम क्रोधित होकर उसका बाण से काम तमाम कर देते हैं।
इस प्रसंग के माध्यम से बोहरे जी बाली के मारने के दोष से राम को मुक्ति दिला देते हैं। बालमन को बांधे रहने में यह पूरा प्रसंग समर्थ है।
प्रसंग के अंत में राम जी बाली को राज वैद्य से बाली का उपचार कराते हैं। बाली अंगद को राम को सौपकर अपने प्राणों का उत्सर्ग कर जाता है।
तलाश प्रकरण में सीता की खोज के लिए सभी दिशाओं में दल भेजे गये। जामवंत के निर्देशन में हनुमान अंगद और नल नील के साथ दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान किया।
उनकी मुलाकात जटायु के भाई संपाती से होती है जो एक विमान चालक है। संपाती का विमान सूर्य के पास जाते समय जल कर उस जगह गिरने से वहीं रहने लगा था। हनुमान ने उस विमान का परीक्षण किया और बोले- ‘इसका ऊपर का हिस्सा ही जला हैं यह चलने लायक है।’
सभी वानर उस विमान में बैठकर उडने का आनन्द लेते हैं। बालमन को लगने लगता है, शायद वे इसी से लंका जायेंगे। लेकिन वे ऐसा नहीं करते उसे संपाती को सौपकर उसकी बतलाई पहाड़ी सुरंग से समुद्र के किनारे पहुँच जाते हैं।
जामवंत हनुमान को लंका जाने के लिये प्रेरित करते हैं। उन्हें वहाँ जाकर क्या-क्या काम करने हैं, समझा देते हैं।
उनके जाते ही सभी उनकी प्रतिक्षा में अपना समय व्यतीत करने लगते है। बोहरे जी ने विस्तार से रोचक वर्णन किया गया है।
लंका में हनुमान प्रकरण में लंका से लौटकर हनुमान अपनी लंका यात्रा का सारा किस्सा सुनाते हैं-

“ मैं ने एक ऊँची पहाड़ी पर चढ़कर समुद्र में छलांग लगाई। तैरकर मैंनाक पर्वत पर पहुंच गये। मैंनाक से पता चला कि वह विष्णू के सहायक के रूप में उनकी मदद के लिये नाव पर पर्वत का रूप धरकर मदद करता यहाँ रहता है। जिससे लोग पहचान नहीं पाते।
इस तरह मैंनाक नाम के नाविक की सहायता से टापूनुमा नाव से लंका के पास जा पहुँचा। शेष यात्रा तैर कर पार की। पहली मुटभेंड़ लंकिनी से हुई। उसे मूर्छित करके मैं नगर में प्रवेश कर गया। सभी जगह सीता जी को ढूढता फिरा। रावण- मंदोदरी का महल देखा, उसके बाद उसके अन्न भण्डार को भी देख लिया।
विभीषण जी को भजन- पूजन करते देख उनके दर पर पहुँच कर मैं चौंक गया। जय जय श्रीराम उनके मुँह से सुनकर लगा मैं सही जगह पर आ गया हूँ। उनसे खूब बातेँ हुईं। विभीषण जी के बतलाये अनुसार मैं अशोक वाटिका में पहुँच गया।
सीता जी की सुरक्षा में लगे सैनिकों की निगाह बचाकर उस पेड़ पर जाकर छिपकर बैठ गया जिसके नीचे सीता जी बैठी थीं।
उसी समय लंकापति रावण वहाँ आया। उसने उन्हें पटरानी बनाने के लिये तमाम प्रलोभन देकर समझाया और एक माह का समय देकर वहाँ से चला गया। जामवंत जी चलते समय आपने कहा था कि त्रिजटा रावण की विरोधी है। मैंने देखा वे ही सीता जी को हिम्मत बंधाने का प्रयास कर रहीं थीं।
उसी समय त्रिजटा ने सपने की बात कही कि मैंने आज ऐसा सपना देखा है कि एक वानर ने लंका का दहन कर दिया हैं। रावण को सिर मुड़ाये गधे पर बैठे देखा है। लंका का राज्य विभीषण को मिल गया है। अब तो मुझे लगता है कि अपन सब सीता को अकेला छोड़कर अपने घर चली जाये।
यह सपना सुन कर मुझे लगा कि सपने के माध्यम से लंका को जलाने और लंका के सैनिकों की मारपीट करने का सन्देश मुझे दिया गया है जो पूरा करना है।
कुछ ही देर में वे सब चलीं गईं। उसी समय मैंने मौका देखकर जनेऊ में बंधी अंगूठी खोलकर गिरा दीं।
अंगूठी गिरीं तो वे चौंकी। उन्होंने अंगूठी उठाई। वे उसे पहचान गईं और बोलीं-‘ यह अंगूठी कौन लाया है?
मैं उनके सामने पहुँच गया। मैंने कहा-‘ करुणानिधान ने मुझे यह अंगुठी दी है।’
सीताजी राम जी से करुणा निधान ही कहतीं थीं। यह सम्बोधन सुनकर उन्हें मेरा पूरा विश्वास हो गया।
उन्होंने पूछा-‘ आप वानर और वे अयोध्या के राज कुमार?’
उसके बाद तो मैंने उन्हें सारी कथा कह सुनाई। मैंने उन्हें वह गुप्त संदेश भी सुनाया जो श्री राम ने मेरे कान में कहा था।
उसके बाद मैंने लंका के सैनिक शक्ति का परीक्षण करने की दृष्टि से सीताजी से कहा-मुझे भूख लगी है। ’
वे बोलीं-‘ लंका में चार तरह के सैनिक हैं-भट,सुभट,महाभट और दारुण भट। दारुण भट अकेला एक ही है वह है मेघनाथ। ऐसे सैनिक इस बगीचे की रखवाली करते हैं। मैंने उनसे कहा आप आज्ञा दे तो मैं इन सैनिकों की ताकत का परीक्षण कर लेता हूँ।
उनकी अनुमति से मैं फल खाने बगीचे में चला गया। मुझे देखकर सैनिक गालियाँ देने लगे। मैंने उनकी पिटाई कर तो वे जाकर अक्षय कुमार को बुला लाये। मैंने उसकी तलवार छीनकर उसके पेट में घुसेड़ दी। वह वहीं गिर गया। मैं आराम से बगीचा उजाड़ते हुए फल खाने लगा।
कुछ ही देर में में मेघनाथ आ गया। उसने मुझे पकड़ने की दृष्टि से कहा-‘ तुम जनेऊ पहने हो अतः तुम्हें ब्र्ह्मा की सौगंध है तुम इस बगीचे को उजाड़ना बन्द कर दो और अपने आप को मेरे हवाले कर दो।
उसकी यह बात सुनकर मैं जहां का तहां खड़ा रह गया। उसने मुझे पकड़ लिया। वह मुझे रावण की सभा में ले गया।
रावण ने मुझे मौत के घाट उतार देने की आज्ञा दे दी। ठीक उसी समय विभीषण जी ने आकर कहा-‘दूत को मारा नहीं जाता।’
रावण बोला-‘ वानर को पूछ बहुत प्यारी होती है। इसकी पूछ में कपड़े लपेट दो और तेल डालकर आग लगा दो’
कपड़े लपेट कर, तेल डालकर आग लगा दी।मैं उछलता कूंदता यहाँ वहाँ फिरने लगा तो सारी लंका में आग लग गई।
समुद्र में कूद कर मैंने जलती पूंछ बुझा ली। अब मैं सीताजी के सामने जाकर खड़ा हो गया। उनसे लौटने की अनुमति लेकर मैं जैसे गया था वैसे ही आपके पास आ गया हूँ। “


विभीषण का प्रसंग संक्षिप्त में दिय गया है। इसमें हनुमान जी से लंका की बातें सुनकर श्रीराम जी सुग्रीव से बोले-‘ मित्र अब हमें क्या करना है?’
और दूसरे ही दिन सुबह सुग्रीव के आदेश से सभी ने युद्ध के लिए लंका प्रस्थान किया। जामवंत जी का रास्ता देख हुआ था। इसलिये उन्हें समुद्र तक पहुँचने में कोई कठिनाई नहीं हुई। समुद्र पार करने की योजना बनाई जाने लगी। ऐसे समय में ही वहाँ विभीषण का आगमन हुआ। हनुमान जी उन्हें आदर सहित लेकर आ गये। श्रीराम उनसे गले लगकर मिले। उन्हें लंका का राजा घोषित कर, उनका राज तिलक कर दिया गया।
अब समस्या थी समुद्र पार करने की। श्री राम ने नल, नील को बुलाया । वे दोनों बोले-‘ हम दोनों भाइयों को ऐसे पत्थरों की पहचान है जो तैरते रह सके। नल नील की सहायता से योजना बनाकर समुद्र पर शीध्र ही पुल बनकर तैयार हो गया।
सारी वानर सेना श्रीराम जी के साथ लंका में पहुँच गई।
लंका में अंगद प्रकरण में लंका की सीमा में पहुँचकर योजना बनाई गई कि युद्ध शुरू करने से पहले किसी दूत को रावण की सभा में शान्ति प्रस्ताव लेकर भेजा जाये। सभी के परामर्श से इस कार्य में विवके शील दक्ष अंगद को भेजा गया।
वे रावण की सभा में चतुराई से पहुँच गये। अंगद ने रावण को समझाने का बहुत प्रयास किया, जब वह नहीं माना तो अंगद ने अपना पांव जमा दिया और कह दिया यदि कोई मेरा पांव हटा दे तो श्रीराम हार मानकर वापस लौट जायेंगे।
जब अंगद का पैर किसी ने नहीं हिला पाया तो रावण स्वयं पैर उठाने आ गया। अंगद ने पैर हटा लिया। आप मेरे पिता की तरह पूज्य है। पैर पकड़ना ही है तो जाकर श्रीराम के पकड़ो। वे तुम्हें जरूर छमा कर देंगे।
यह कह कर वे उस सभा से सम्मान पूर्वक लौट आये थे।
लड़ाई प्रकरण
राम रावण युद्ध शुरू हो गया। मेधनाथ युद्ध करने अपना रथ लेकर आ गया। लक्षमण उनका सामना करने के लिये आगे बढ़े। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ । लक्षमण जी शक्ति लगने से मूर्छित हो गये। राम जी की आज्ञा से हनुमान जी लंका से सुषेन वेद्य को लेकर आ गये। उन्हांने संजीवनी वूटी लाने के लिये कहा। हनुमान जी मैनाक की सहायता से दोणाचल पर्वत से संजीवनी वूटी लेकर सुबह होने से पहले लौट आये। बैद्य ने उस बूटी से उनका उपचार किया और वे स्वस्थ्य हो गये। अगले दिन के युद्ध में मेधनाथ मारा गया और सबसे अन्त में श्री राम ने रावण को मार कर लंका पर विजय प्राप्त कर ली। राम जी की आज्ञा से विभीषण ने रावण का अन्तिम संस्कार किया।
अगले ही दिन विभीषण का राज तिलक किया गया। सीता जी को पूरे सम्मान के साथ श्री राम को सौंप दिया।
वापसी प्रकरण में श्रीराम जी की विमान से अयोध्या की वापसी होती है। अयोध्या जाकर श्रीराम सबसे सम्मान पूर्वक मिलते हैं। इस प्रकरण में सभी अतिथियों का नगर भ्रमण और नगर बासियों द्वारा उनका यथा योग्य सम्मान की चर्चा भी की गई है।
विदाई प्रकरण सभी अतिथियों को साम्मान पूर्वक विदा किया जाता है लेकिन अंगद चाहता है कि वह यही रहे। श्रीराम जी कहते हैं तुम पम्पापुर के युवराज हो तुम्हें वह राज्य सभ्हालना है। बहुत समझाने पर वे सबसे अन्त में विमान द्वारा उन्हें विदा करते हैं। अंगद फूट- फूट कर रोते हुए विदा होते हैं। यही उपन्यास का समापन हो जाता है।
मेरी दृष्टि में इस उपन्सास का पढ़कर बालमन रामाकथा की वास्तविकता से निश्चय ही परिचित हो सकेंगे। लेखक ने वैज्ञानिक सोच का परिचय देते हुये सारी कथा कही है जिससे बालमन अंधविश्वास से न बंध पाए।
बच्चो को बांधने वाली भाषा और संवाद हैँ इस कारण उपन्यास रोचक और बांधने वाला है।
रामकथा को तो सब जानते हैं, लेकिन उस कथा के रामचरित मानस आधारित मूल ढांचे से छेड़छाड़ किये बिना नए ढंग से संवाद और छोटी सी घटना में रामकथा के परसङ्गो में तर्क खोज लेना बोहरेजी की रचना शीलता औऱ बाल मन पर पकड़ को दर्शाता है। ऊपन्यास खूब पसंद किया जा रहा हैं।

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कृति का नाम-बाली का बेटा (बाल उपन्यास )
कथाकार- राजनाराण बोहरे
प्रकाशक- नेशनल पब्लिकेशन्स जयपुर
वर्ष - 2018
मूल्य- 300 रू0 मात्र
समीक्षक- राम गोपाल भावुक कमलेश्वर कॉलोनी डबरा, भवभूति नगर
जिला ग्वालियर म.प्र. 475110
मो 0- 9425715707
Email tiwariramgopal5@gmail.com

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