Its matter of those days - 32 books and stories free download online pdf in Hindi

ये उन दिनों की बात है - 32

मैं यहाँ उसका इंतज़ार कर रही थी और वो वहां वो मुझसे मिलने आ रहा था |

दिव्या, दिव्या, मम्मी ने पुकारा |

नीचे आई तो देखा मेरे मामा-मामी आये हुए थे |

मामाजी दिल्ली रहते है और खासकर हम दोनों बहनों से ही मिलने आये थे वो |

वैसे तो मैं हमेशा उन्हें देखकर खुश हो जाती हूँ पर आज उन्हें देखकर मुझे जरा भी ख़ुशी नहीं हुई |

चेहरे पे एक नकली सी मुस्कान लिए मैं नीचे आई क्योंकि मन तो बस सागर के लिए ही तड़प रहा था |

मामा-मामी बातें किये जा रहे थे और मैं बस हाँ.....हूँ.......किये जा रही थी | मुझे तो ये भी खबर नहीं थी कि वे दोनों क्या तो कह रहे थे, क्या तो पूछ रहे थे |

अरे हाँ.........मैं तो भूल ही गयी | आज तो मेरी दिवु ने गाजर का हलवा बनाया है, मम्मी उन्हें बता रही थी |

अरे टिफ़िन............एकदम से याद आया की जल्दी-जल्दी में वो टिफ़िन तो मैंने टेबल पर ही छोड़ दिया है | मैं अभी आई और ये कहकर मैं भागती सी अपने कमरे में पहुंची | टिफिन को वहीं रखा देखकर जान में जान आई | शुक्र है भगवान का कि नैना की नजर इस पर ना पड़ी |

इधर सागर दिव्या से मिलने को बेताब तेजी से साइकिल के पेडल मारते आ रहा था | ठीक उसी समय सागर के दादाजी भी सामने से आ रहे थे |

अरे सागर बेटा..........इतनी जल्दी में कहाँ जा रहे हो?
और उसने दादाजी को देखते ही साइकिल की स्पीड धीमी की |
घर ही आ रहा था दादाजी |
चलो मैं भी चलता हूँ तुम्हारे साथ |
पर आप तो कहीं जा रहे हो ना!!
हाँ.....पर अब मन नहीं है, तू आ गया है ना इसलिए!!
सागर ने एक निगाह दिव्या की बालकनी की तरफ डाली और फिर वो आगे चल पड़ा |

इधर घर पर सागर गिटार लेकर बैठा था, कुछ धुनें छेड़ रहा था, लेकिन उसका मन बिलकुल भी नहीं लग रहा था | बार-बार खीज हो रही थी उसे जब धुनें ठीक से नहीं बज रही थी | गुस्से में आकर उसने गिटार को बिस्तर पर पटक दिया और खुद भी मायूस सा बिस्तर पर गिर पड़ा |

और यहाँ मैं हलवे का टिफिन हाथ में लिए बैठी थी | कुछ सुध-बुध ही ना थी मुझे | काश बस एक बार वो दिख जाए और उसे ये हलवा खिलाकर उससे माफ़ी मांग लूँ, बस यही सोच रही थी मैं |

नहीं.......मैं ऐसे हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकता | कुछ भी हो जाए आज तो दिव्या से मिलकर ही रहना है मुझे | सागर उठा और दिव्या से मिलने के मौके ढूंढने लगा | वो गिटार हाथ में लेकर छत पर आ गया था |
शाम ढल चुकी थी | चूँकि अमावस्या थी इसलिए अँधेरा था और फिर सर्दियों के मौसम में यूँ भी सूरज जल्द ही छिप जाता है और शाम होते-होते अँधेरा घिर आता है | प्रेम-पतंगों को यूँ भी इसी समय का इंतज़ार होता है जिससे वो आसानी से एक दुसरे से मिल पाते है | बस उनकी यही समस्या होती है की वो कैसे मिले? कहाँ मिले? बाकी बाहरी दुनिया से ना तो उन्हें कभी खबर थी और ना ही होती है |

तय तो मैंने भी कर लिया था कैसे भी आज सागर से मिलना है तो मिलना है |

हम सब खाना खाने बैठे | चूँकि आज कुछ भी खाने का मन बिलकुल भी नहीं था लेकिन अपनी भावनाओं को छुपाना भी जरूरी था इसलिए बड़ी मुश्किल से खाना खाया | मेरी हालत उस वक़्त ऐसी थी की एक-एक निवाले को पानी के साथ गटक रही थी मैं |

नैना,मम्मी, मामी और मैं हम चारों छत पर आ गए थे, कुछ देर टहलने | हालाँकि मन नहीं था बिलकुल भी पर नैना के ज़िद करने पर आ गई थी मैं और उसकी ये ज़िद बाद में बहुत काम आई थी मेरे |
छत पर टहलते वक़्त एक धुन बरबस ही मेरे कानों में पड़ी | कुछ जानी-पहचानी सी लगी वो धुन मुझे | जब मैंने गौर से सुना तो पाया की ये तो वही धुन है जो सागर ने मेरे लिए बजाई थी जब हम मिले थे |

उसने मुझे बताया था की ये धुन उसकी फेवरेट है और जब भी तुम्हारी याद सताएगी मैं ये धुन बजाऊँगा | ये एक इशारा होगा जिससे तुम मेरे पास चली आओगी, उसने तब कहा था मुझे |
तो इसका मतलब सागर...............
वो भी...........
यानी..............
सागर मुझसे मिलना चाहता है..............

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