एक थी...आरजू - 2 Satyam Mishra द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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एक थी...आरजू - 2


और एक रात,
अपनी एक खास फ्रेंड रंजना की बर्थडे पार्टी के मौके में जो कि एक बार में दी गई थी-आरजू गई हुई थी।
रात के तकरीबन ग्यारह बज रहे थे जिस वक्त नशे के आलम में डांसिंग फ्लोर पर डांस रही थी वह। कुछ फ्रेंड घर जा चुके थे तो कुछ उसी बार के उपरले फ्लोर पर बने रूम में नशे के प्रभाव में लुढ़के पड़े हुए थे।
वेटर अपने कामो में लगे थे।
डीजे अपने काम में मशगूल था। तेज अवाज में बज रहे म्यूजिक से बार थर्रा रहा था। चारो ओर रंग बिरंगी लाइटे चक्कर लगा रही थी। माहौल में उड़ रहा सिगरेट का कसैला धुंवा लोगों के नथुनों के रास्ते से हो कर दिमाग पर छा रहा था।
ऐसे में आरजू बुरी तरह नशे की हालत में डांसिंग फ्लोर पर झूम रही थी। घण्टे भर पहले ही घर पर कॉल करके मां को खबर कर दी थी की आज लेट हो जाने के कारण रंजना के घर पर ही रुक जाएगी--इसलिए घर जाने की कोई भी टेंशन न थी उसे।
शराब का नशा उसपर पूरी तरह से हावी हो चुका था।
आंखों में लाल कतरे गर्दिश कर रहे थे।
उसके साथ अन्य कई लोग भी डांस में शामिल थे,कुछ लोग ड्रिंक कर रहे थे और जिन्होंने ड्रिंक का हैवी डोज़ पहले ही लगा लिया था वो सभी ऊपर बने रूम में चले गए थे।
काफी देर से एक अजनबी नौजवान शराब के नशे में आरजू के साथ डांसिंग फ्लोर पर डांस कर रहा था और रह रह कर उसके जिस्म पर हाथ फिरा रहा था,उसे छूने की और मनमानी करने की कोशिश कर रहा था। पहले तो आरजू उसे डांस का ही हिस्सा मान कर कुछ न बोली लेकिन धीरे धीरे उसने महसूस किया की उसकी ज्यादतियों में इजाफा होने लगा था। वह जानबूझकर उसके जिस्म के नग्न हिस्से को छूने और उनपर हाथ फिराने की कोशिश कर रहा था। अगले ही पल आरजू उससे अलग हुई और खींच कर उसके गालों पर एक जोरदार तमाचा रसीद दिया। तमाचे की आवाज से बार गूंज गया।
म्यूजिक थम गया।
लाइटे स्थिर हो गई।
सभी के झूमते कदम रुक गए।
वेटर और बार स्टाफ भौचक्के।
तमाचा खाये हुए उस नौजवान लड़के के चेहरे पर खूंखार भाव बिखरते चले गए। अब तक जाने कौन से जादू के जोर से,न जाने कहाँ से उसके दो तीन साथी भी आ चुके थे। सभी शक्लों सूरत से मवाली किस्म के नजर आ रहे थे। दरअसल वो इस इलाके के गुंडे ही थे जो अक्सर देर रात वहां मुफ्त की शराब और अय्याशी के इरादे से आ जाया करते थे। उस गुंडे ने आरजू को पकड़ लिया। आरजू ने अपना हाथ छुड़ाना चाहा मगर तमाम कोशिशों के बावजूद असफल रही। एक ही पल में उसका सारा नशा जलते कपूर की तरह उड़ गया था।
"मुझपर हाथ उठाया तूने"--वह गुस्से और चेहरे पर दरिंदगी के भाव समेटे हुए गुर्राया--"मेरे नीचे आने को तो लड़कियां मरती हैं और साली तूने मुझ पर हाथ उठा दिया--अब देख तेरी इज्जत कैसे तार तार करता हूँ मैं।"
आरजू चीखी--मुकम्मल दम लगाकर।
सभी सांस साधे खड़े।
किसी ने भी आगे बढ़ने का हौसला न किया क्योंकि अब तक उस गुंडे के चेले अपने अपने चाकू छुरे निकाल चुके थे। सभी की आंखों में खौफ गर्दिश कर रहा था। गुंडा आरजू को घसीटते हुए बार के ऊपरी फ्लोर पर बने रूम में ले गया और उसे बेड पर पटक दिया। आरजू मदद के लिए चीख पड़ी। गुंडे ने अब तक अपनी तैयारी का आगाज कर दिया था। अंजाम के बारे में सोच कर आरजू की रूह फना हो गई। जिस्म में गर्दिश करता खून बर्फ की तरह ठंढा हो चला। इसके बाद उस गुंडे ने छलांग लगा दी आरजू पर लेकिन...
तभी
'भड़ाक' की तेज आवाज के साथ दरवाजा खुला और एक अच्छी खासी बॉडी वाला नौजवान रूम में घुसा। यह कौन था इसके बारे में आरजू भी नहीं जानती थी। 'शायद पहले कहीं देखा' हो यह विचार उसके दिमाग में उठा पर उत्तर न मिल सका। वह उसके लिए नितांत अजनबी था।
इस नौजवान ने गुंडे के बाल पकड़ कर उसे फेंक दिया और इसके बाद उस पर बुरी तरह से टूट पड़ा। वह उसपर ताबड़तोड़ घूंसे बरसाता रहा। इस किस्म के अप्रत्याशित हमले से वह गुंडा बुरी तरह से घबरा गया। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। जिस्म पर जहाँ तहाँ चोटें आ चुकी थी। कुछ ही देर में उसके जिस्म का पोर पोर दर्द और पीड़ा के मारे कांप रहा था।
नौजवान उसे तब तलक मारता रहा जब तक वह बुरी तरह से घायल होकर जान बचाने की भीख न मांगने लगा। इसके बाद इस नौजवान के कहने पर उस गुंडे ने आरजू से अपने किये गुनाहों की माफी भी मांगी और उसके पैरों में गिर कर नाक भी रगड़ी। आरजू के कहने पर ही उस नौजवान ने गुंडे को छोड़ा।
वह गुंडा तो अपनी जान बचा कर वहां से भाग गया लेकिन आरजू अपने उस अनजान मददगार को अपना दिल दे बैठी।
वह एक निहायत की खूबसूरत और लम्बे चौड़े जिस्म वाला क़द्दर नौजवान था जिसकी झील से नीली आंखे और गुलाबी होंठ उसके शानदार शख्सियत में इजाफा कर रहे थे। उसकी शख्सियत बेहद जहीन नजर आ रही थी। आरजू ने उसे देखा तो अपलक उसे देखती ही रह गई। ऐसा लगा की वह जन्नत से उतरा हुआ भगवान का कोई नेक बन्दा था जो उस रात सिर्फ उसकी मदद के लिए इस धरती पर आया था। जाने ही कितनी देर तक उस कमरे में आरजू उसकी झील सी गहरी आंखों में डूब कर मोहब्बत के गोते लगाती रही।
और फिर उस स्पर्श से वह जाग कर मौजूदा हकीकत के रूबरू हुई जब उसी झील सी आंखों वाले ने उसे कन्धे पर हाथ रख कर झिंझोड़ा--"आप ठीक तो हैं न? सुनिए मैडम मैं आप से ही पूछ रहा हूँ,आप ठीक तो हैं न?"
"हां...जी हां"--वह बोली थी--"आयम ओके। थैंक्यू,अपने मेरी हेल्प की। अगर आप सही टाइम पर नहीं आते तो वो गुंडा...।"
"डरने की कोई बात नहीं है मैडम--वो जा चुका है। मैंने उसे भगा दिया है अब वो वापस पलट कर इस ओर देखेगा भी नहीं।"
"ओह..थैंक्यू। रियली वेरी थैंक्यू। अपने सही टाइम पर आ कर मेरी मदद की मैं आपका अहसान ताजिंदगी नहीं भूल सकूँगी।"
"नो प्रॉब्लम, आप जैसी हसीनाओं को बचाना ही तो 'शहजाद' का काम है। इट्स माय जॉब,माय ड्यूटी।"-वह अदा के संग बोला-"मैं तो यहां इस बार में अपने फ्रेंड संजय के साथ आया था। उसी के साथ बैठा ड्रिंक कर रहा था जब आप जैसी दिलफरेब हसीना पर नजर पड़ी। काफी देर से वी सुअर का बच्चा आप पर हाथ साफ कर रहा था। मुझसे देखा न गया। इतने में ही अपने उसे तमाचा रसीद दिया और उसने मैटर खड़ा कर दिया। खादिम को तो सम्हलने का मौका ही न मिला की उसके साथी भी आ गए। वो गुंडा जबर्दस्ती के मंसूबे से आपको यहां ऊपर ले आया तो खुदा कसम मेरा खून खौल गया। मैं नीचे उसके साथियों से भिड़ गया। उन्हें धूल चटा कर-यहां से भगा कर-सीधे यहां ऊपर आया...फिर जो हुआ उसकी दर्शक आप भी रह चुकी है मोहतरमा। "--कहते हुए वह मुस्कराया था।
आरजू भी उसकी इस अदा पर मुस्करा दी थी।
''शहजाद''--'वाह-। क्या लाजवाब नाम था। ठीक किसी राजकुमार जैसा'--वह खुद से ही बोली।
"मैडम क्या खादिम आपका नाम जान सकता है?"
"आयम आरजू--आरजू बंसल।"
"व्हाट आ लवली नेम"--वह प्रशंसात्मक लहजे में बोला--"आई लाइक इट।"
उसके मुंह से अपने नाम की प्रशंसा सुन कर आरजू का दिल बाग बाग हो गया। जब वह कथित शहजाद के साथ नीचे पहुंची तो उसके फ्रेंड जोन ने उसे घेर लिया। आरजू ने सभी को हकीकत से रूबरू कराया। सारी बाते सुन कर उन्होंने शहजाद को थैंक्स कहा। उसने भी सिर झुका कर सबका शुक्रिया कुबूल किया।
वहीं दूर खड़ा संजय उसे लगातार घूर रहा था जिसकी ओर किसी की भी तवज्जों नहीं थी।
पार्टी एक बार फिर से शुरू हो गई।
लाऊड म्यूजिक,डांस,ड्रिंक और सिगरेट।
सभी अपने आप में मस्त हो गए।
आरजू टेबल के पास पहुँची और एक हार्ड ड्रिंक की फरमाइश की। वेटर ने पैग बना कर दिया। उसने होंठो से ग्लास लगा लिया। मोबाइल पर टाइम देखा तो बारह बजने में पूरे दस मिनट बाकी थे। निगाहें चारों ओर दौड़ाई पर वो उसे कहीं नजर नहीं आया जिसे वह खोज रही थी।
"कहाँ चला गया वो हैंडसम"-वह शराब का घूंट उदरस्थ करते हुए स्वयं से बड़बड़ाई-"दिल की बात भी न बोल पाई मैं....।"
उसके आंखों में नींद की खुमारी छाने लगी।
वह ऊपर रूम में जाने के लिए सीढ़ियों की ओर बढ़ चली।

● ● ●

क्रमशः....