Ek Thi...Aarzoo - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

एक थी...आरजू - 8



अगले एक घण्टे में हरिओम जी लोकल थाने के इंस्पेक्टर राजेन्द्र सिंह राठी के सम्मुख बैठे अपनी बेटी आरजू की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवा रहे थे। पहले तो इंस्पेक्टर राठी ने गुमशुदगी के चौबीस घण्टे के अंदर ही पुलिस रिपोर्ट लिखने से इंकार कर दिया पर जब हरिओम जी ने उन्हें सारी स्थिति से वाकिफ कराया तो उन्हें मानना ही पड़ा की मामला सीरियस हो चला है अतः रिपोर्ट लिख ली गई। हरिओम ने इंस्पेक्टर को संजय के बारे में भी बताया। इसके पश्चात जब हरिओम जी ने इंस्पेक्टर राठी से आरजू को जल्द से जल्द ढूंढने की दरख्वास्त की तो उन्होंने बड़े ही धीर गम्भीर लहजे में उन्हें आश्वासन दिया की आरजू के केस में पुलिस पूरी तत्परता दिखाएगी-आरजू जल्द से जल्द मिल जाएगी।
इंसपेक्टर राठी ने हरिओम जी से आरजू का मोबाइल नम्बर और उसकी फोटो के अलावा उसके वाकिफ़कारों के मोबाइल नम्बर और ऐड्रेस ले लिए और इसके बाद उन्हें वापस भेज दिया।
हरिओम जी के जाने के बाद इंस्पेक्टर राठी ने अपने पर्सनल मोबाइल फोन से आरजू का नम्बर डायल किया-फोन स्विच ऑफ था-लिहाजा न उठाया गया। उन्होंने आरजू का फोन सर्विलांस पर डलवा दिया ताकि जब आरजू का मोबाइल ऑन होता तो उसकी लोकेशन के बारे में तुरंत ही पता चल जाता।
इंस्पेक्टर ने एक नजर उस कागज पर डाली जिस पर उसने आरजू के फ्रेंड्स के नाम,मोबाइल नम्बर और एड्रेस दर्ज किये थे। क्रमवार सभी नामों को पढ़ते हुए वह एक नाम पर रुक गया-"रंजना।"
रंजना की बाबत हरिओम ने उसे बताया था की वो आरजू की बेस्ट फ्रेंड थी और अक्सर आरजू उसी के साथ रहती थी। इंस्पेक्टर का दिमाग तेजी के साथ दौड़ने लगा।
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सुबह से शाम हो गई। शाम के बाद रात भी आ गई। आरजू अपने रूम में ही लेटी शहजाद का इंतजार करती रही लेकिन वह न आया। उसने मौसी से इस बाबत पूछा भी तो उसने कहा की शहजाद अभी किसी काम से बाहर गया हुआ है,रात तक लौट आएगा। अब तक खुद शांता मौसी उसके लिए तीन बार खाना दे कर चली गई थी और आखिरी खाना देते वक्त ये हिदायत भी दे कर गई थी की रात का वक्त हो चला है इसलिए वह अच्छी तरह से मेकअप कर ले,शहजाद आता ही होगा। लिहाजा खाने के बाद आरजू अपने रूम में लगे आईने के सामने बैठी मेकअप कर रही थी,श्रृंगार कर रही थी जब उसके रूम का दरवाजा खुला और उसमे से एक अनजान आदमी भीतर दाखिल हुआ। उसने भरपूर नजर आरजू पर डाली और पलट कर दरवाजा अंदर से लॉक कर दिया। जब वह वापस घूमा तो उसका एक हाथ बड़ी ही बेशर्मी से उसके सीने पर उगे बालों के गुच्छे से खेल रहा था और दूसरा हाथ उस सिगरेट के बचे खुचे भाग को मसल रहा था जो कुछ वक्त पहले तक उसके होंठो में फंसी हुई थी।
आरजू उसे देख कर चौंक पड़ी।
तीस पैंतीस के बीच ही उम्र होगी उस चेचक के दागों से भरे काले चेहरे वाले शख्स की जिसकी आंखों से वासना की बूंदे टपक रही थी। वह हवशी नजरों से आरजू के गदराए हुए जिस्म को अपनी मानसिक वासना का शिकार बना रहा था। जीभ अनायास ही अपने होंठो पर फिरा रहा था।
"ऐ मिस्टर,हू आर यू"-आरजू ने प्रतिवाद के लिए मुंह खोला-''अंदर कैसे आये? और ये दरवाजा क्यों लॉक किया तुमने?"
"तेरे लिए आए हैं जानेमन"-वह धूर्ततापूर्वक मुस्कराया। उसकी आंखे आरजू के वक्षस्थल पर केंद्रित हो गई।
"व्हाट नॉनसेंस?"
"सही तो कह रहे हैं हम। तुम्हारे लिए ही तो आये हैं हम यहां,छम्मकछल्लो।"
"दफा हो जाओ यहां से। अगर एक मिनट भी और यहां नजर आये तो...मैं...मैं...शोर मचा दूंगी..मौसी।"
"जितना शोर मचाना है मचा ले। आज की रात तो तेरा ही शोर गूंजेगा यहां-नई नवेली जो ठहरी। धीरे धीरे आदत बन जाएगी..."
"क्या मतलब?"
"...इन सब की"--वह कहता चला गया-"आज की रात तू मेरी है। मेरे लिए बुक है तेरा ये संगमरमरी बदन। इसे जैसे चाहूं नोचूँ खसोटूँ-समझी। पूरे पांच हजार का रुक्का थमाया है मैंने शांताबाई को तेरे लिए। तुझ जैसी कमसिन छोकरी के लिए तो कब से दरख्वास्त कर रहा था मैं उससे,आज पूरी हुई है मेरी मंशा...।"
अजनबी के शब्द लावे की मानिन्द ही आरजू के कानों में उतरते चले गए।
दिल ने एक झटके से धड़कने से मानो इनकार कर दिया हो।
"क्या बकवास....?"--गले से फसी फसी आवाज ही निकल सकी।
"शायद अभी तक तुझे पता नहीं है की जिस औरत के दौलतखाने पर तू ठहरी हुई है,असल में वो उसका रंडीखाना है। जिस औरत को तू मौसी जैसे पाक साफ रिश्ते से नवाज रही है वो ऐसी बाई है जो दौलत के लालच में एक रंडीखाना चलाती है। तेरे जैसी जाने कितनी ही लड़कियां-बल्कि वेश्याएं-यहां शांताबाई के लिए वेश्यावृत्ति करती हैं। ऊंचे ऊंचे दामों में वेश्याओं के जिस्म पर हर रात कीमत लुटाई जाती है यहां जिसका सारा लाभ वो औरत कमाती है जो इस वक्त तेरी मौसी होने का ढोंग कर रही है। उस औरत के पालतू भड़वे दूर दूर की लड़कियों को अपने झूठे प्यार के जाल में फंसा कर लाते हैं और रेड लाइट एरिया के इस दलदल में झोंक देते हैं-समझी। अब सीधे सीधे जो और जैसे मैं करने जा रहा हूँ उसमे मेरा साथ दे,वर्ना तेरी वो गत बनाऊंगा की तेरे फरिश्ते भी कांप जाएंगे।"
सचमुच ही अपने अंजाम के बारे में सोचकर आरजू के फरिश्ते कांप गए थे। शहजाद और उसकी मौसी के बारे में जो कुछ भी उस हवशी अजनबी ने उसे बताया था वो उसके लिए दुनिया का सबसे बड़ा झटका था। एक ही पल में उसके सामने शहजाद से मिलना,उसकी बाहों में बिताए हसीन पल, उसके घर से भाग चलने की सलाह,मौसी के पास लाना--सब कुछ किसी फ़िल्म की तरह घूम गया।
उसे ऐसा लगा की किसी ने उसे बीस माले की बिल्डिंग से धक्का दे दिया,और वो कंठ में फंसे दिल के साथ गहराई-और गहराई-में गिरती चली जा रही थी। जुबान तालू से चिपक गई थी।
'क्या शहजाद ने मुझे धोखा दिया?'-उसका दिमाग चीख उठा-'सिलवटों से भरे बिस्तर पर जिसने मुझसे मोहब्बत के दावे किये थे वो फरेबी निकला। उस रात बार में होने वाली मुझसे मुलाकात उसकी कोई साजिश थी और अगले दिन कॉफी हाउस में हुई उससे मुलाकात इत्तेफाक थी,फिर शहजाद के साथ बढ़ी मेरी नजदीकियां और होटल के बन्द कमरे में हुए सारे वाक्यात-सब कुछ प्रीप्लान थे?? क्या उस रात होटल के बन्द कमरे में उसने मुझे कामोत्तेजक दवा मिली शराब पेश की थी जिसे ड्रिंक करने के बाद मैं अपने काबू में न रही थी। और अपनी सबसे बड़ी दौलत-अपनी आबरू- उसपर यूँ ही लुटा दी थी। अगर ये सब हकीकत थी तो कितना बड़ा धोखा दिया था शहजाद ने मुझे। कल के लड़के के लिए मैंने अपने मां बाप के मुंह पर कालिख पोत दी। समाज में उनके इज्जत की धज्जियां उड़ा कर मैं उस लड़के के साथ भाग आई जिसके बारे में मैं ठीक से ये भी नहीं जानती की वह है कौन-उसका बैकग्राउंड क्या था। शहजाद और कॉलगर्लस का दलाल-भड़वा। अगर मैंने आज अपने मॉम डैड की छूट का नाजायज फायदा नहीं उठाया होता और गलत सोहबत में न पड़ी होती तो शायद आज मेरा ये हाल न होता। ओह गॉड,मुझसे ये कितनी बड़ी गलती हो गई,प्लीज हेल्प मी गॉड। सेव मी गॉड।'
अजनबी ने आरजू को अपने हाथों से मजबूती से पकड़ लिया। वह ठीक उसी चूहे की तरह ही फड़फड़ा उठी जो चील के पंजे में फंस कर जिंदगी बचाने की आखिरी उम्मीद से फड़फड़ाता है। पकड़ बेहद सख्त थी। लाख कोशिशों के बावजूद भी आरजू सफल न हो सकी। वह चीख पड़ी-मदद की गुहार लगा पड़ी लेकिन उसे वहाँ सुनने वाला कोई नहीं था। शहजाद के रूप में इस अंजाने शहर में उसकी एक ही उम्मीद थी जो हकीकत से रूबरू होने पर खत्म हो चुकी थी।
कसाव एक बार बढ़ा तो फिर ढीला न पड़ा।
बढ़ता ही रहा। बीच बीच में उसे काबू में लाने के लिए कमीने ने उसे तमाचे मारे,गन्दी गन्दी गलियों से भी नवाजा।
काफी देर तक आरजू उस पाश से मुक्त होने के लिए संघर्ष करती रही।
पर कब तक करती।
अन्ततः वह भी समझ गई की उसके प्रतिवाद और संघर्ष का कोई खासा फर्क नहीं पड़ेगा। जो होना था-वो हो कर रहेगा। फिर न चाहते हुए भी उसने खुद को ढीला छोड़ दिया,बस उसके आंखों के कोरों से आँसुओ की मोटी मोटी बूंदे उसके गालों पर लुढ़क आयी थी।
दरिंदे की मानो मन की मुराद पूरी हो गई हो।
वह आरजू पर भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़ा। इज्जत तार तार करने लगा। कुछ ही देर में उस कमरे में दर्द और पश्चात्ताप से भरी चीखें गूंज रही थीं।

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क्रमशः.........

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