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एक थी...आरजू - 10 - (अंतिम भाग)

एक थी...आरजू-१०

गतांक से आगे
...........इंस्पेक्टर राठी ने मास्टर की से फ्लैट का दरवाजा खोला और सारा घर छान मारा लेकिन उसे वहां ऐसा कोई सुराग न मिला जो उसे ये हिंट दे सकता की शहजाद क्या काम करता था और कहाँ जा सकता था अलबत्ता उसे कुछ सबूत ऐसे जरूर मिले जो इस बात के गवाह थे की शहजाद के कई लड़कियों के साथ गहरे सम्बन्ध थे। वहीं से राठी ने उसकी कुछ फोटोग्राफ्स हासिल किये। राठी समझ गया की ये बेहद शातिर लड़का है,जो भोली भाली लड़कियों को अपने जाल में फंसाता है और उनका फायदा उठाता है। राठी को पूरा यकीन आ चुका था की आरजू के गायब होने के पीछे इसी लड़के का हाथ है।
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इसके बाद पुलिस के तीन दिन यूँ ही हाथ पैर मारते गुजर गए लेकिन न तो आरजू का पता चल सका न ही शहजाद के बारे में कोई लीड मिली। हरिओम और नैना रोजाना पुलिस स्टेशन जाते और पूछते तो इंस्पेक्टर राठी उन्हें सांत्वना देता हुआ यही कहता की तहकीकात चल रही है,आरजू जल्द ही मिल जाएगी। घिसा पीटा उत्तर सुन कर दोनो ही निराश हो जाते। धीरे धीरे आरजू के घर से भागने की खबर लोगों में आम हो गई। जो भी सुनता-हरिओम के पीठ पीछे थू थू करता। सब कुछ जानते समझते हुए भी हरिओम बेइज्जती का जहरीला घूंट पी कर रह जाते।
उधर दिनों दिन आरजू की हालत बद से बदतर होती रही। गुजरे तीन दिनों में जाने कितने ही हवसियों ने उसे रौंदा इसका अंदाजा तो वह खुद न लगा सकती थी। दिन हो या रात उसके कमरे में लगातार नए नए लोग आते और उसके जिस्म को भोगते,जम कर शराब पीते और चले जाते।
गुज़श्ता समय का उसका आशिक शहजाद भी आता तो उसके जिस्म को रौंदने के एकमात्र इरादे से आता और उसे पूरा करके चला जाता। बीच बीच में शांताबाई भी आती और उसे समझाती की वह भी घिनौने क्रिया कलापों में अपने पार्टनर का साथ दिया करे। और भी तमाम बातें शांताबाई उसे समझती जिसे वह कभी गौर नहीं करती। वह तो जल्द से जल्द इस बन्धन से आजाद होना चाहती थी। उसके पास उसका मोबाइल फोन भी न था जिसके जरिये वह बाहर किसी से मदद मांग सकती। कभी कभी वह दर्द और तड़प की ज्यादती के कारण चीखती चिल्लाती लेकिन वहां उसकी चीखें सुनने वाला कोई नहीं था।
बहुत ही कम वक्फे में उसकी हालत बेहद खराब हो गई। आंखों के नीचे काले धब्बे नजर आने लगे। पागलों जैसी स्थिति हो गई उसकी। अक्सर शांताबाई के साथ दो वेश्याएँ आती और उसके मुंह पर मेकअप पोत कर व उसके लिबास को सम्भाल कर चली जाती। आरजू मौके की तलाश में लगी रही। और एक दिन उसे मौका मिल गया--
उस दिन एक अधेड़ उम्र का आदमी आया था आरजू के पास। आरजू हमेशा की तरह मौके की तलाश में थी। इस आदमी ने जम कर पी रखी थी। काफी देर तक वह नशे के हाल में आरजू के साथ मनमानी करता रहा। आरजू भी प्रत्यक्ष में उसका साथ देने लगी और उसे जाम पर जाम बना कर देती रही। धीरे धीरे उसके दिमाग में नशे की खुमारी चढ़ती चली गई। उसकी आंखे बोझिल होने लगी और वह बिस्तर पर लुढ़क गया।
आरजू ने तेजी से उसकी जेबें खंगालनी आरम्भ कर दी। उसके पैंट की जेब से आरजू को उसका मोबाइल फोन हाथ लग गया। मोबाइल निकाल कर आरजू ने उससे तेजी से एक नम्बर डायल किया और दूसरी ओर से फोन उठाने की बेसब्री के साथ प्रतीक्षा करने लगी। दो तीन कॉल की गईं लेकिन दूसरी ओर से कॉल रिसीविंग न की गई। आरजू परेशान हो चली। उसने फिर से एक बार फोन मिलाया तो कुछ देर की रिंगिंग के बाद दूसरी ओर से फोन उठा लिया गया,और उसके कानों से हरिओम की आवाज टकराई-"हैलो,कौन?"
यह आवाज सुन कर खुशी के मारे आरजू का दिल दहल गया। उसकी आंख से आंसू की धाराएं फुट पड़ी। वह रो पड़ी।
"डै...डैडी...."-उसके गले से भर्राई हुए आवाज निकली।
दूसरी ओर कान से मोबाइल फोन सटाये हुए हरिओम का दिल बेटी की आवाज सुन कर भर गया। गले से आवाज निकलती उससे पहले ही आंखों से आंसुओ की धाराएं फूट पड़ी,वह केवल इतना ही बोल सके--"आरजू...बेटी....।"
इससे पहले की आरजू आगे कुछ बोल पाती उसे शांताबाई की आवाज सुनाई दी जो उसके कमरे में दाखिल हो चुकी थी। आरजू चौंक गई। शांताबाई ने आरजू को मोबाइल पर बात करते हुए देख लिया था। उसने लपक कर आरजू के हाथ से मोबाइल छीन लिया और एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर रसीद दिया। तड़ाक की आवाज के साथ आरजू के हलक से निकली घुटी घुटी सी चीख कमरे में गूंज उठी। उसके गाल पर तमाचे का निशान छप गया।
शांताबाई ने मोबाइल तुरन्त स्विच ऑफ कर दिया और आरजू के बाल पकड़ कर उसे घसीटते हुए बाहर ले गई,जहाँ उसने आरजू को ढेर सारी गन्दी गन्दी गलियों से नवाजा और उसपर लात घूंसों की बरसात की। काफी देर तक वहां आरजू की चीखें गूंजती रही।
हरिओम ने आरजू से बात करने के लिए कई बार नम्बर डायल किया पर दूसरी ओर मोबाइल स्विच्ड ऑफ हो चुका था। उसके चेहरे पर परेशानी की लकीरें गहरा गईं। उसे विश्वास हो चला की उसकी बेटी किसी बड़े खतरे में फंस गई है।
उन्होंने आवाज दे कर नैना को अपने पास बुलाया। सारी बातें बताई जिसे सुन कर नैना भी अपनी बेटी की याद में रो पड़ी।

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तकरीबन बीस मिनट बाद ही हरिओम जी पुलिस स्टेशन में इंस्पेक्टर राठी के सम्मुख थे।
आरजू के कॉल के बारे में सुनकर इंस्पेक्टर राठी अपनी कुर्सी से उछल पड़ा। हरिओम ने राठी को आरजू की कॉल की बाबत सारी स्थिति से वाकिफ कराया तो उसके चेहरे पर चमक आ गई। राठी ने तत्काल ही वह अनजान नम्बर हासिल किया और उसकी जांच कराई। पता चला की वह नम्बर मुम्बई के अंधेरी नामक इलाके का था जो कि किसी अब्दुल खान के नाम से रजिस्टर्ड था।
"इसका मतलब मेरी आरजू मुम्बई में है इंस्पेक्टर साहब?"-हरिओम ने सजल नेत्रों से कहा।
"उम्मीद तो यही है"-राठी गम्भीरता पूर्वक बोला-"हमें मुम्बई जा कर देखना होगा।"
"मैं भी आपके साथ चलूंगा सर।"-हरिओम ने अनुनय किया।
"नहीं बंसल साहब,आप वहां नहीं चलेंगे। ये हमारा काम है,प्लीज हमें करने दीजिये। वैसे भी हम आपको वहां के अपडेट देते रहेंगे।"
"नहीं सर,मेरा मन नहीं मानेगा"-वह गिड़गिड़ाते हुए बोला-"जब से मैंने आरजू की एक आवाज सुनी है तब से मेरा दिल बहुत घबरा रहा है। वो किसी जबरदस्त मुसीबत में फंसी हुई है,अपने डैडी को याद कर रही है। मेरा आपके साथ चलना बहुत जरूरी है।"
"ओके,आप हमारे साथ चल सकते हैं।"-राठी ने हथियार डालने वाले अंदाज में कहा।
इसके बाद पुलिस का काफिला मुम्बई के लिए रवाना हो गया। इस काफिले में हरिओम भी शामिल था। जिद तो नैना ने भी जाने के लिए की थी पर हरिओम और राठी के समझाने पर उसे मन मारकर घर पर ही रुकना पड़ा।
मुम्बई पहुंच कर राठी ने सबसे पहले उसी मोबाइल वाले शख्स की खोज की जिसका नाम अब्दुल खान था। थोड़ी सी जद्दोजहद के बाद आखिर अब्दुल राठी के हाथ आ ही गया। ये वही शख्स था जिसके फ़ोन से आरजू ने अपने डैड को कॉल किया था।
पुलिस के हत्थे चढ़ने के बाद पहले तो बूढ़े अब्दुल ने अपने मोबाइल से किसी लड़की के दिल्ली में स्थित अपने डैड से बात करने की बात को सिरे से इनकार कर दिया,लेकिन जब राठी ने उसे दो चार थप्पड़ों से लाल कर दिया तो वह टूट गया,और गिड़गिड़ाते सब कुछ सच सच बता दिया।
वह रोते हुए बोला-"जनाब मुझे लगता है की उसी लौंडिया ने मेरे मोबाइल का इस्तेमाल किया होगा। वो..वो रंडी है। कालका नगर में जो रेड लाइट एरिया है न,उधर नई नई आयी थी। मैं मौज मस्ती के वास्ते गया था उधर। उड़ती उड़ती खबर आयी थी की शांताबाई के कोठे पर एक नई लड़की आयी है,सो उसी के लिए गया था। काफी पी रखी थी मैंने,मेरी बेहोशी का बेजा फायदा उठा कर उसी ने मेरे मोबाइल से कॉल की होगी?"
अब्दुल का बयान सुन कर सभी चौंक गए।
हरिओम पर तो मानो पहाड़ गिर गया हो।
गाज गिर गई हो।
ऐसा लग रहा था की अब्दुल की आवाज गर्म गर्म लावे की मानिन्द उनके कान में उतर गई थी।
"आरजू रेड लाइट एरिया में...वो भी कॉलगर्ल के रूप में?"-वो खुद से ही बड़बड़ाया। उसे अपना दिल अंधेरे में डूबता हुआ महसूस हुआ। कभी ख्वाबों में भी न सोचा था की आरजू के बारे में ये भी सुनने को मिलेगा।कदम लड़खड़ा गए। अगर इंस्पेक्टर राठी ने उसे सही वक्त पर थाम न लिया होता तो अवश्य ही बेहोशी के आलम में वह जमीन पर गिर पड़े होते। फिर भी वह मूर्छित अवश्य हो गये।
हरिओम को एक हवलदार के बाजू में थमा कर राठी अब्दुल की ओर पलटा और हिंसक अंदाज में गुर्राया-"क्या बकवास कर रहा है तू? सच सच बता लड़की को कहाँ छुपा कर रखा है? लड़की तेरे ही पास है,और हमें बरगलाने के लिए झूठी कहानी गढ़ रहा है।"
"नहीं जनाब,खुदा कसम कहता हूँ मैंने जो बताया वही सच है। वो लड़की शांताबाई के कोठे पर है। आजकल दिन रात उसके जिस्म का सौदा हो रहा है,जाने कितने ही मर्द उसे रोजाना रौंद....।"
"चुप कर हरामजादे"-राठी पुनः गरजा-"अगर तेरी बात में जरा सा भी झूठ होगा तो उसके बाद अपने होने वाले अंजाम का तू खुद जिम्मेदार होगा-समझा।"
अब्दुल ने थूक सटकते हुए सहमति में सिर हिलाया। नेत्रों में खौफ कत्थक कर रहा था।
"अब बोल, लड़की वाकई कालका नगर वाले रेड लाइट एरिया के एक कोठे में कैद है?"
अब्दुल ने सिर हिलाया।
"गूंगा हो गया है?"-दांत पीसते हुए बोला राठी।
"हां..हां...लड़की वहीं है...वहीं।"-वह घबराया।
"शांताबाई नाम है न उस औरत का जो कोठा चलाती है?"
"जी जनाब...।"
"गैरकानूनी है कोठा?"
वह कुछ न बोल सका।
जुबान पर ताले पड़ गए।
राठी ने तमाचा मारने के लिए हाथ उठाया ही था की वह गिड़गड़ा उठा,बोला-"हां जनाब,मारना मत,गैरकानूनी है कोठा-।"
"तू वहां का रेगुलर कस्टमर है?"-राठी बोला।
"जी जनाब। चार साल पहले बीवी का इंतकाल हो गया था,तब से तो डेली जाता हूँ। जरूरत पड़ती है न?''
"शहजाद नाम के किसी लौंडे से वाकिफ है?"
"अरे कहे वाकिफ नहीं होऊंगा जनाब। वो तो उधरिच रहता है। दल्ला है साला रंडियों का। नशे और अय्याशी में सबका बाप है। अभी दो दिन पहले ही मिला था मुझे। उसी ने तो मुझे उस नई लौंडिया के बारे में बताया था। सुन कर तबियत हरी हो गई थी,सो मैं भी चला गया था वहां,लेकिन छोकरी बहुत चालू निकली। मुझे शराब पिला पिला के पहले बेहोश किया फिर मेरे ही फोन से किसी को कॉल कर दिया था। शांताबाई ने अच्छी खासी मरम्मत की थी बाद में। बाद में मैं तो खिसक आया था वहां से।"
"आजकल कैसा चल रहा है धंधा,मतलब कस्टमर्स आते हैं?"-इंस्पेक्टर ने प्रश्न किया।
"हाँ जनाब,बिल्कुल आते हैं। आजकल रात सात बजे के बाद तो रेड लाइट एरिया की दुनिया ही रंगीन हो जाती है। बहुत अच्छा चलता है धंधा। लेकिन उससे आपको क्या वास्ता...?''
राठी ने उसकी ओर ध्यान न दिया। वह हवलदार की ओर मुड़ा और बोला-"इसे अरेस्ट कर लो।"
हवलदार ने उसे पकड़ लिया।
वह गिड़गिड़ाता रहा,लेकिन तब तक हाथों में हथकड़ियां डाल दी गई थी।
"यहां के लोकल पुलिस स्टेशन से मेरा कॉन्टेक्ट करवाओ"-राठी दूसरे हवलदार-जिसने हरिओम को सम्भाल रखा था-से हुक्माना लहजे में बोला-"आज रात शांताबाई के कोठे पर रेड डालनी है-पुलिस फोर्स की जरूरत पड़ेगी।"

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रात नौ बज रहे थे।
कोठे की दुनिया रंगीन थी।
नौजवान अपने अपने कामों में लगे थे।
शांताबाई नोटों की गड्डियों में उलझी हुई थी। शहजाद भी वहीं के एक कमरे में पच्चीसेक वर्षीया बाला के गोद में लेटा शराब के घूंट लगा रहा था। उसने खूब चढ़ा रखी थी। आंखों में नशीले कतरे तैर रहे थे।
आज रोज की तरह की काफी भीड़ थी। लोगबाग आते जा रहे थे। कुछ तो लड़कियों के साथ रूम में भी घुसते नजर आ रहे थे। एक तरफ अश्लीलता से भरे गाने बज रहे थे जो की लोगों की उत्तेजना में वृद्धि कर रहे थे। जवान जिस्मों पर माल असबाब लुटाए जा रहे थे। किसी ने सच ही कहा है की मर्द की डिमांड उसकी जेब से होती है और बाजारू औरतो की उसके ब्रा से।
खैर,
सब कुछ रोज की तरह ही नॉर्मल था।
अचानक,
फिजा में एक साथ तीन चार गोलियों की आवाजें गूंज उठी,इसी के साथ बिल्डिंग के जीने पर दर्जनों भारी बूटों के दौड़ने का शोर फैल गया। एक ही पल में भगदड़ मच गई वहां। जो लोग मस्ती और नशे के मूड में थे वह मानो सोते से जागे। चीख पुकार मच गई।
"पुलिस-पुलिस-भागो..!"-का शोर भगदड़ में फैल गया। जो जैसी हालत में था वैसे ही रूम से निकल निकल के भागने लगा। कोठे पर काम करने वाली लड़कियों की भी यही हालत थी। वह भी अर्धनग्न हालत में भागने और छुपने का रास्ता ढूंढने लगीं। किसी को इस बात का इल्म भी न था की वहां पुलिस का छापा पड़ सकता है-लेकिन आज ऐसा हो चुका था।
सबसे ज्यादा हालत खराब थी शांताबाई की। वह उस वक्त नोटों की गड्डियों के बीच में उलझी पान चबा रही थी,जब उसे गोलियों की आवाजें सुनाई दी थी। वह बुरी तरह से बदहवाश नजर आने लगी। इससे पहले की वह कुछ समझ पाती,वहां मौजूद उसके ग्राहकों में खलबली और भगदड़ मच गई। सभी दहशतजदा थे। कारण सिर्फ एक था-इनमे से कई तो शहर के इज्जतदार लोग थे जो पुलिस के हत्थे किसी भी कीमत पर नहीं आना चाहते थे।
अगले ही क्षण एक साथ दर्जनों की संख्या में पुलिस वाले बिल्डिंग के उपरले मंजिल पर-जहां जिस्मों की सौदागरी चलती थी-दाखिल हो चुके थे। इंस्पेक्टर राठी इस दल का नेतृत्व कर रहा था। वह चीख चीख कर अपनी टीम को आदेश दे रहा था। वहां बने एक एक रूम के दरवाजे खोल कर लोगों को निकाला और पकड़ा जा रहा था। जो लोग भागने के इरादे से दरवाजा खोल कर बाहर निकलते,वह भी अपने सामने पुलिस को खड़ा पाते। जो लोग खिड़की के रास्ते से बाहर जाते वह भी बाहर पुलिस के हत्थे चढ़ जाते। पुलिसदल ने चारों ओर से बिल्डिंग को घेर रखा था। कहीं से एक परिंदा भी उनकी नजर से उस दायरे के बाहर नहीं जा सकता था।
एक के बाद एक सारे लोग पकड़े गए।
शांताबाई भी रँगे हाथों पकड़ी गई।
उसे एक लेडी कॉन्स्टेबल ने अपने कब्जे में ले लिया था। वह उसे बुरी तरह से धमका रही थी और गन्दी गन्दी गालियां दे रही थी। जब गालियां उस लेडी कॉन्स्टेबल की हद से बाहर हो गईं तो उसने तो चार थप्पड़ उसके गालों पर रसीद दिए। शांताबाई की जुबान पर ऑटोमेटिक ताले पड़ गए। वह खामोशी से अपनी बर्बादी का मंजर देखने लगी।
पुलिस के आने के बारे में जानकर शहजाद ने खिड़की के रास्ते से भागने का प्लान बनाया था लेकिन कामयाब न हो सका। बाहर ही उसे पुलिसवालों ने धर दबोचा। वह भी पकड़ा गया। वह एक पुलिसवाले को धक्का दे कर भागने लगा,लेकिन अगले ही पल एक फायर हुआ और एक तेज रफ्तार गोली उसके दाहिने पैर में दाखिल हो गई। वह लड़खड़ा कर गिरा और पकड़ा गया।

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कुछ ही देर में रेड लाइट एरिया की उस बिल्डिंग में बर्बादी और तबाही का मंजर था। शांताबाई और शहजाद दोनो अपराधी पकड़े गए थे। शहजाद के अलावा चार दलाल और पकड़े गए जो शांताबाई के लिए दूर दूर के क्षेत्रों से लड़कियों को प्यार के जाल में फंसा कर लाते और वेश्यावृत्ति की भट्ठी में झोंक देने का काम करते थे।
इसके अलावा वहां गैरकानूनी रूप से रखी नशे की गोलियों,हानिकारक कामोत्तेजक दवाओं और ज्वैलरी की अच्छी खासी मात्रा बरामद की गई।
आरजू!
इंस्पेक्टर राठी को आरजू भी वहीं पर मिल गई थी। हाँलाकि वह बेहद बुरी अवस्था में थी-कमजोर और रौनकहीन हो चुकी थी फिर भी राठी ने उसे पहचान लिया। उस समय वह अर्धनग्न हालत में बिस्तर पर घुटनों में सिर झुकाए शर्म के मारे सिसक रही थी। राठी ने सबसे पहले वहां पड़ा कपड़ा उसके बेलिबास हो रहे जिस्म पर ओढ़ाया और बड़े ही प्यार और स्नेहसिक्त लहजे में बोला-"आरजू उठ जाओ। तुम्हारे वनवास का अंत हो गया है। तुम्हारी गलतियों की जो सजा तुम्हे मिलनी थी वो मिल चुकी हैं। दुख की रात कट चुकी है और अब तुम्हारे जीवन का नया सवेरा होने वाला है। शहजाद और शांताबाई कानून के हिरासत में हैं।"
आरजू ने सिर ऊपर उठा कर देखा।
दिन रात रोने के कारण उसकी आंखे सूझ आयी थी।
आंखों के नीचे काले दायरे प्रसार में आ चुके थे। धीरे धीरे चेहरे पर छाई मुर्दनी दूर होने लगी।
खुशी के मारे उसकी आंखें डबडबा आयीं।
वह इंस्पेक्टर राठी से लिपट गई,और रोती रही।
"अपने मॉम डैड से मिलना नहीं चाहोगी आरजू"-राठी बोला।
मम्मी पापा का नाम सुन कर आरजू के दिल में तरंगे उठ गईं। वह उम्मीद भरी नजरों से राठी की आंखों में देखने लगी।
"नीचे पुलिस जीप में हैं तुम्हारे मॉम डैड। बड़ी ही बेसब्री से अपनी बेटी का वेट कर रहे हैं। जाना नहीं चाहोगी? कब से तड़प रहे हैं वो अपनी बेटी के लिए। जाओ आरजू-जाओ।"
आरजू ने बाहर की ओर दौड़ लगा दी।
ऐसा लगा जैसे वर्षों से पिंजड़े में कैद पंक्षी को आजाद कर दिया गया हो और वह आसमान में जी भर के ऊंचाई पर उड़ जाने का तमन्नाई हो।
आरजू जब बाहर पहुंची तो हरिओम और नैना को खड़ा देख कर उसकी डबडबाई आंखों ने आँसुओ की गंगा जमना बहाना आरम्भ कर दिया। अब्दुल से आरजू के बारे में जानने के बाद हरिओम ने नैना को भी दिल्ली से मुम्बई बुला लिया था। बेटी की खबर पा कर वह खड़े पैर दौड़ी चली आयी थी। आरजू अपने मॉम डैड के गले लग कर रो पड़ी। माता पिता दोनों की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे। दोनों रह रह कर अपनी बिछड़ी हुई बेटी के ललाट को चूम रहे थे। सुबह का भूला शाम को घर वापस आ गया था,और रह रह कर अपनी गलती के लिए शर्मिंदा हो रहा था। और वो मां बाप ही क्या जो अपने बच्चों की गलतियों को माफ न करें।
राठी जब बिल्डिंग से बाहर आया तो मां बाप के प्यार को देखकर आप ही बड़बड़ाया-"वाकई--मां बाप जैसा प्यार करने वाला इस जहाँ में न कोई दूसरा है,ना कभी होगा। अगर आप सुबह-शाम सिर्फ दो वक्त अपने मां बाप के पैरों में सिर झुका कर सदका करते हैं,तो यकीन जानिए जन्नतनशीं होने के लिए आपको उतनी भी पूजा पाठ की दरकार नहीं है जितनी आप करते हैं।"

(समाप्त)

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