टापुओं पर पिकनिक - 46 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 46

समय कितना बदल गया था।
कुछ साल पहले किसी समय आगोश और साजिद की बात फ़ोन पर यदि होती भी थी तो केवल ये पूछने के लिए होती थी कि टीचर होमवर्क कब चैक करेंगे? या ये पूछने के लिए, कि एनुअल फंक्शन के अगले दिन छुट्टी होगी क्या?
और अब?
रात के दो बजे थे। अपने- अपने कमरे में अकेले बैठे दोनों दोस्त ऐसे मुद्दों पर चिंतित होकर चर्चा कर रहे थे। साजिद बता रहा था कि उसकी बेकरी का पुराना नौकर अताउल्ला विदेश भागने की तैयारी में है।
साजिद ये भी बता रहा था कि उसे फ़ोन पर धमकी मिली है। गुमनाम फ़ोन से कहा जा रहा है कि मनप्रीत का पीछा छोड़ दो वरना नतीजा बुरा होगा।
- क्या तूने इस बारे में मनप्रीत से बात की? क्या उसे भी किसी ने कभी तुझे मिलने को मना किया? आगोश ने पूछा।
- नहीं यार। उसे मैंने कुछ नहीं बताया। और उसके व्यवहार से ऐसा भी नहीं लगता कि उसे किसी ने मना किया होगा, क्योंकि वो तो आज ही मिली थी। साजिद ने कहा।
- फ़िर कौन हो सकता है तुझे फ़ोन पर धमकाने वाला? आगोश ने किसी जासूस की तरह कहा।
लेकिन फिर साजिद के कुछ बोलने से पहले ही वह हंस पड़ा और बोला- साले तेरे अब्बू ने ही करवाया होगा फ़ोन। उनको पता चल गया होगा कि आजकल तेरा टैंकर वहां ख़ाली होता है।
साजिद एकदम से चुप हो गया, मानो मन ही मन इस संभावना की सत्यता को आंक रहा हो।
आगोश निश्चिंत होकर बोला- घबरा मत यार! तुझे क्या फ़र्क पड़ रहा है, मनप्रीत आ तो रही है न तेरे पास? उसने तो कभी तुझे मना नहीं किया?
साजिद एकदम से गंभीर होकर बोला- ओए, मुझे मेरे अब्बू की रत्ती भर भी फ़िक्र नहीं है, मुझे तो इस बात का ख़तरा लगता है कि कहीं मनप्रीत के घर वाले, उसके पापा या कोई और ऐसा न करवा रहे हों!
आगोश बोला- बेटा, बात तो तेरी ठीक है, खतरा तो है ही, तूने काम भी तो इंटरनेशनल लेवल का किया है...
छुप कर पर्दे के पीछे से बातें सुन रही आगोश की मम्मी को जब ये भरोसा हो गया कि आगोश की बात अपने दोस्त साजिद से हो रही है और प्रॉब्लम भी आगोश की नहीं बल्कि साजिद की ही है तो उन्होंने चैन की सांस ली और जाकर चुपचाप अपने कमरे में सो गईं।
उन्हें थोड़ी सी झुंझलाहट आजकल के बच्चों पर इसलिए हो रही थी कि ये दिन और रात में कोई फर्क समझते ही नहीं, आधी- आधी रात तक देखो, ऐसे गप्पें लड़ा रहे हैं जैसे दिन- दोपहरी हो। हमारे ज़माने में कोई लड़का या लड़की केवल अपनी परीक्षाओं के दिनों में ही इतनी देर तक जागते थे... सोचते- सोचते थोड़ी ही देर में नींद आ गई मम्मी को।
सुबह नाश्ते की मेज़ पर आगोश को खामोश सा देख कर उसकी मम्मी को एक पल के लिए ये शंका हुई कि कहीं आगोश को पता तो नहीं चल गया उनके छिप छिप कर उसकी बातें सुनने का।
आगोश से कुछ पूछा भी नहीं जा सकता था। भला कोई चोर ख़ुद सिपाही से ऐसा कैसे पूछ सकता है कि दरोगा जी आपने मुझे चोरी करते देखा तो नहीं?
आगोश चुपचाप बैठा खाता रहा तो मम्मी भी उसी तरह खामोशी से नाश्ता करती रहीं।
लेकिन एक पल में ही आगोश चहका। बोला- मॉम, आपने बहुत दिनों से वो अपने हाथ वाला स्पेशल खट्टा दलिया नहीं बनाया है जिसमें आप खट्टे वाले फ्रूट्स डालती हो। टेस्टी!
मम्मी एकदम से खुश होकर मुस्कुराने लगीं। ... मतलब न तो आगोश ने उन्हें बातें सुनते हुए देखा है और न ही वो गुस्सा है। उनका जी हल्का हो गया।
बोलीं- ले, कल ही ले, तूने मुझसे कभी कहा ही नहीं कि वो तुझे इतना पसंद है। मैं कल ही बनाऊंगी। उसमें फालसे और कमरख पड़ते हैं। आज तो दोनों ही फल घर में हैं। फालसे तो कल तेरे डैडी लेकर आए थे।
आगोश फ़िर चहका - वाह! डैडी आ गए। तो कहां हैं? रात को देर से आए थे क्या? आपने बताया ही नहीं। कम से कम आज नाश्ता तो डैडी के साथ ही करते। सो रहे हैं क्या?
आगोश ने एक साथ कई सवाल किसी रस्सी की तरह बट कर मम्मी के सामने उछाल दिए।
लेकिन मम्मी ने कई सवालों की ये रस्सी झटके से पकड़ ली। उनके पास एक ही जवाब था... वो.. वो, बेटा उन्हें तो अमृतसर निकलना था न शाम को ही...!
आगोश बिना कुछ बोले उठ गया।
उसके जाते- जाते भी मम्मी ने उसके बुदबुदाने की आवाज़ सुन ही ली। वो मानो अपने आप से ही कह रहा था... ओके, ही इज़ वेरी बिज़ी.. केवल हमारे दांत खट्टे करने ही आए थे सर! चलो, फालसे तो लाए।
मम्मी फ़िर कुछ मायूस सी हो गईं और नाश्ते के बाद टेबल के बर्तन समेटने में नौकरानी की मदद करने लगीं।
लो, इस लड़के का भी जवाब नहीं। पल में तोला, पल में माशा..अब क्या हुआ? सोचती हुई मम्मी आगोश के कमरे की ओर जाने लगीं।
आगोश ज़ोर- ज़ोर से हंस रहा था।
आगोश नहाने से पहले शेव बना कर अब नहाने के लिए जा ही रहा था कि साजिद का फ़ोन आ गया।
आगोश ने शॉर्ट्स उतारे भी नहीं थे कि घंटी बजी। आगोश ने लपक कर फोन उठा लिया।
- साले, पंद्रह मिनट रुक नहीं सकता था तू, मुझे नहाने भी नहीं जाने दिया। आगोश ने झुंझला कर साजिद से कहा।
उधर से साजिद की आवाज़ आई- अबे, बात ही इतनी अर्जेंट थी कि तू नहाना शुरू भी कर देता तो मैं नहीं रुकने वाला था..
- चाहे मैं नंगा ही होता तो भी..
- तो मैंने कौन सा वीडियो कॉल लगाया है? तू मेरी बात सुन ले, बाक़ी दूसरे हाथ से करता रह तुझे जो भी करना है। साजिद बोला।
- अच्छा बोल, बता तो सही, बात क्या है? आगोश ने कहा।
- धमकी देने वाले का पता चल गया।
- चल गया, कौन है? बोल, जल्दी बता, अपन साले का सिर फोड़ देंगे...
- बस, पता चल गया न, अब कोई जल्दी नहीं है, तू पहले नहा कर आजा, फ़िर बात करते हैं।
- साले, पागलपंती मत कर। बता कौन है वो भो..
- तू नहा तो ले, गंदा ही पीटेगा क्या उसको?
- मज़ाक मत कर। या तो कुछ बताता ही नहीं, अब आधी बात बता दी तो सस्पेंस मत रख। बता उसका नाम! पता कैसे चला?
- तू गैस कर
- तेरे अब्बू ने ही करवाया होगा अपने किसी लौंडे से। उनके शागिर्द तो ढेरों हैं।
- नहीं रे, अब अब्बू के सारे लौंडे मेरे शागिर्द हैं, अब बेकरी मैं चलाता हूं। साले उनमें से किसी की हिम्मत नहीं है कि मुझे फोन पर धमकी दे दे।
- दिलवाई तो तेरे अब्बू ने ही होगी न।
- अरे नहीं यार। अब्बू को तो कुछ मालूम भी नहीं है मनप्रीत के बारे में।
- तो फ़िर मनप्रीत के पापा का काम होगा... मतलब उन्होंने किसी और के कंधे पर रख कर बंदूख दागी होगी। किससे करवाया?
- तू इतना उतावला मत हो। नहा ले फटाफट... मैं वहीं आ रहा हूं तेरे पास। कह कर साजिद ने फ़ोन काट दिया।
आगोश ने सोचा कि मामला पेचीदा है और भीतर जाकर शॉवर के नीचे खड़ा हो गया।