Aangan ki Chandni - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

आँगन की चाँदनी - 1




प्यार करना मतलब कुछ नहीं है, प्यार करने लायक बनना थोडा बहोत अच्छा है लेकिन प्यार करने और साथ में करने लायक बनना, ये सब कुछ है. प्यार को कभी किसी का दिया हुआ अनुदान समझकर स्वीकार ना करे.
बल्कि जिस से भी हम प्यार करते है, उस से बिना किसी शर्त के, बिना किसी लालच के बिना किसी द्वेषभावना के हमेशा दिल से प्यार करते रहना चाहिये. क्यूकी जब हम किसी को दिल से प्यार करते है तब हम सामने वाले के दिल में हमेशा के लिए बस जाते है. की जब दो लोगो के बिच प्यार होता है तब वह किसी दौलत का भूका नहीं होता, वह भूका होता है तो सिर्फ स्नेहभाव का. जिस से भी हम प्यार करते है उनसे हमेशा हमें प्यार से पेश आना चाहिये. एक दुसरे के लिए समय निकलते रहना चाहिये. तभी हम हमारे रिश्ते को सफलता से आगे बढ़ा पाएंगे.
प्यार से बोला गया आपका एक शब्द दो दिलो के बिच हो रहे बड़े से बड़े मनमुटाव को भी खत्म कर सकता है. प्रेमभाव से रहना कभी-कभी हमारे लिए भी फायदेमंद साबित होता है. क्यू की कई बार जो काम हजारो रुपये नहीं कर पाते वही प्यार से बोले गये हमारे दो शब्द काम आते है.

यह कोई काल्पनिक कहानी नही है इसमें नाम के इलावा किसी भी किस्म का बदलाव नही किया गया है,
यह कहानी है राहुल और आरोहि कि जिनके प्यार की हमारे ग्रुप में मिसाल दी जाती है, और मिसाल क्यों दी जाती है यह जानने के लिए आपको कहानी पड़नी होगी,
चलिए शुरू करते है,,,,,,,,,,,,







बारिश हो कर थम चुकी थी आसमान पर छाए बादलों को हवा किसी और तरफ उड़ा कर ले जा रही थी, सूरज के डूबते हुए लाल रंग आसमान ने नज़र आने लगे, एक लड़की जो बरामदे में खड़ी बारिश का मज़ा ले रही थी, बरामदे से निकल कर लॉन में आ गयी। उस लडक़ी ने अपनी नज़र उठा कर आसमान की तरफ देखा, उसकी गहरी काली आंखों में हवा बदल को उड़ा कर दुर ले जा चुकी थी। अचानक से उसकी नज़र झूमते लहराते पेड़ो पर पड़ी, बारिश हो जाने के बाद पेड़ बहोत ही खूबसूरत नजर आ रहे थे। और फूलों से लदी टहनियां झुक कर ज़मीन को छू रही थी।

उस लड़की ने अपनी सैंडल उतारी और भीगी भीगी घास पर नंगगे पैर चलने लगी। उस नरम नरम घास पर चलते हुए उसे बहोत ही अच्छा लग रहा था। तभी फिरसे हल्की हल्की बारिश होने लगी, उस ने अपनी नज़रें उठा कर आसमान की तरफ की तो बादल फिर से घिर चुके थे, उन बादलों की तेवर बाता रहे थे कि बरसे बिना ये नही जाएंगे। हल्की बारिश बूंदों में बदल गयी, लेकिन वो वही लॉन में टहलती रही, बारिश की बूंदे उसके सफेद गालों और गर्दन पर मोतियों की तरह ठहरे थे, वो अपनी हथेलियों में बारिश के पानी को कैद करने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

बारिश में भीगने का इरादा है क्या? पीछे से एक जानी पहचानी आवाज़ आयी, वो आवाज़ सुन कर वो पीछे मुड़ कर बोली जीजू उसके लहजे में खुशी साफ नजर आ रही थी, वो होंटो पर मुस्कान लिए दौड़ते हुए रोहित के पास आई।

आरोही: जीजू आप अकेले आये है दीदी को साथ नही लाये?
रोहित: अच्छी खासी बूंदा बंदी हो रही है, तुम तो भीग रही हो मुझे भी भीगने के इरादा है क्या?
चलो अंदर बैठ कर बात करते है।

बारिश की बूंदों ने आरोही के चेहरे के साथ साथ उसके दुपट्टे को भी भीग दिया,वो भीगे हुए दुपट्टे को ठीक करते हुए एक तरफ पड़ी सैंडल पहनते हुए वहा से चल दी।

रोहित:यह तुम्हे बारिश में भीगने की क्या सूझी।

आरोही मुस्कुराते हुए बोली में तो बस बारिश का मज़ा ले रही थी।
रोहित: अगर तुम बीमार हो गयी न तो सारा मज़ा धरा का धरा रह जायेगा।
आरोही: जीजू आप तो ऐसे कह रहे है जैसे कि आप चाहते हो कि मैं बीमार पड़ जाऊं।
रोहित: अब जब तुम बारिश में भिगो गी तो बीमार तो पडोगी न?
आरोही: मतलब आप चाहते है कि मैं बीमार पडूँ।
रोहित: भला मैं ऐसा क्यों चाहूंगा?
आरोही थोड़ा नाराज़ हो कर बोली और नही तो क्या एक ही बात की रट लगा रखी है आपने बीमार हो जाओ गी। ज़रा से बारिश में भीग गयी तो आप मुझे बीमार पड़ने की बदुआ देने लगे।
रोहित: भला मैं ऐसा क्यों चाहूंगा, तुम मेरी बीवी की एक लौती बहन हो भला तुम्हे बदुआ दे कर मुझे अपनी शामत थोड़ी न बुलवानी है।

आरोही मुस्कुरा कर रोहित को छेड़ने के अंदाज़ में बोली ओ हो इसका मतलब हमारे जीजू डरते भी है।

वो लोग अंदर गए सामने सोफे पर लग भग ५० से ५५ की एक औरत बैठी हुई थी, नित्या सक्सैना आरोही की दादी।
रोहित दादी के पास गया और बोला कैसी हो दादी माँ।
दादी: में ठीक हु रोहित बेटे तुम सुनाओ क्या हाल चाल है।
आरोही दादी के नज़दीक आते हुए बोली दादी आपने जीजू को कैसे पहचन लिया अपने इस वक़्त तो अपना चश्मा भी नही पहने हो।

दादी: मेरी बस नज़र कमज़ोर है कान बिल्कुल ठीक काम करते है, रोहित की आवाज़ सुन कर पहचान गयी।
रोहित: और बातये दादी माँ आपकी क्या हाल चाल है।
दादी: में तो बिल्कुल ठीक हु लेकिन यह डॉक्टर मानते ही नही हर बार चेकउप के बाद दवाईया दे देते है अब तो दवा खाते खाते मुंह का ज़ायक़ा की खराब हो गया है और ऊपर से यह परहेजी खाना कोई समझाए इन डॉक्टर्स को।
वो आरोही की तरफ देखते हुए बोली ज़रा देखो बेटा मेरा चश्मा कहा है।

आरोही ने अपनी नज़रे यहाँ वहां दौड़ाई उसे सामने मेज़ पर चश्मा दिख गया उसने दादी को चश्मा दी

उसे लगते हुए दादी हैरानी से आरोही की तरफ देखते हुए बोली यह तुम्हारे कपड़ों को क्या हुआ?

आरोही: वो थोड़ा बारिश में भीग रही थी।
दादी: मैं समझ गयी ज़रूर लॉन में घूम रही होगी, एयर देखो अभी तक गीले कपड़े पहन कर खाडी हो जाओ जा कर बदलो नही तो बीमार पड़ जाओगी।
आरोही:क्या दादी कब से यही जीजू भी कह रहे थे बीमार पड़ जाओगी अब आप भी कह रही हो, में आप दोनों को बता दूं मैं बीमार नही पड़ती हु।
दादी: ज़्यादा बातें मत बनाओ जा कर कपड़े बदलो।
वो रोहित की तरफ देखते हुए बोली ओर बेटा घर पर सब कैसे है।
रोहित: माँ पापा रोशनी दी से मिलने गए है।
दादी: सब ठीक तो हैन।
रोहित: हा सब ठीक है दरअसल रोशनी दी को बेटा हुआ है, मम्मी पापा उसी को देखने गए है।
दादी:यह तो भोय अछि खबर सुनाई तुमने, वैसे भी रोशनी की ससुराल वालों को बेटा चाहिए था, अब तो सब बहोत खुश होंगे।
रोहित: आप सच कह रही है दादी माँ वो लोग बहोत खूश है।
रोहित बात ही कर रहा था तभी उसे बाहर से आते हुए अर्जुन सक्सैना दिखे।
अर्जुन सक्सैना (आरोही के पिता) कैसे हो रोहित बेटा?
रोहित:ठीक हु पापा।
दादी:अरे अर्जुन तुमने सुना रोशनी को बेटा हुआ है, उनके लहजे में उनकी खुशी साफ झलक रही थी।
अर्जुन: तो यही खबर देने आप यहाँ आये थे बेटा।
रोहित: जी पापा, और आरुषि का संदेश भी लाया हूं।
दादी: क्या संदेश भेजा है हमारी बिटिया ने।
रोहित: दादी माँ आरुषि आज कल घर पे अकेले बोर हो रही है तो वो चाहती है आरोही कुछ दिन आ कर उसके पास रहे, अगर आप इजाज़त दे तो में आरोही को अपने साथ ले जाऊं।

अर्जुन: ज़रूर ले जाओ वैसे भी यूनिवर्सिटी में स्ट्राइक की वजह से वो भी घर बैठे बोर हो रही है। दोनों बहनें साथ रहेगी तो बोरियत नही होगी।

इतने में एक बूढा आदमी नाश्ते की ट्रे लिए उनके सामने आया।
अर्जुन: अरे रामु काका आपको कैसे पता चला में वापस आ गया हूं।
रामु काका: वो आरोही बिटिया ने बताया है और उन्होंने ही आपके लिए नाश्ता भेजा है।
अर्जुन: मतलब अगर आरोही न बताती तो आपको पता ही नही चलता।
रामु काका: ऐसी कोई बात नही साहब,

इतने में आरोही अपने कपड़े बदल कर आ गयी, और नाश्ते की ट्रे पर नज़र डालते हुए रोहित से बोली, जीजू आपने तो कुछ खाया ही नही मैं ने बड़े चाव से आपके लिए समोसे बनाई और आपने समोसे को हाथ भी नही लगाया, वो दादी के पास बैठते हुए समोसे की प्लेट रोहित की तरफ बढ़ा दी।
रोहित प्लेट आरोही के हाथ से ले कर टेबल पर रखते हुए बोला मैं खलिया है।
आरोही: पापा अब आप ही जीजू से कहिये भला यह भी कोई बात हुई मैंने इतनी मेहनत से नाश्ता बनाई हु और जीजू नखरे दिखा रहे है।
अर्जुन: रोहित बेटा खालो।
रोहित: पापा अब जरा भी जगह नही है।

ठीक है आज के बाद में आपके लिए कुछ भी नही बनाऊँगी, न ही नाश्ता करने के लिए कहूंगी, वो रोहित को धमकाने वाले अंदाज़ में बोली।

दादी मुस्कुराते हुए बोली सुन लिया तुम्हरी साली क्या कह रही है।
रोहित: सुन लिया और समझ भी गया जब तक मैं यह समोसे की प्लेट खाली नही करूँगा। आरोही मुझे धमकी देती ही रहेगी। फिर समोसे की प्लेट अपने पास रखली, वो एक के बाद एक करके चार समोसे खा गया और समोसे की प्लेट खाली करदी, फिर आरोही से बोला अब ठीक है।

आरोही हस्ते हुए बोली हा।
रोहित: अच्छा अब ऐसा करो फटाफट तैयार हो जाओ।
आरोही: वो किस लिए जीजू?
रोहित: वो तुम्हारी दी ने तुम्हे बुलाया है और अब तुम मेरे साथ चल रही हो।
आरोही: दी से मिलने का दिल तो कर रहा है लेकिन मम्मी अभी है नही अगर मैं आपके साथ चली गयी तो दादी का ध्यान कौन रखेगा।

दादी: आरोही तुम कुछ दिन जा कर आरूषि के पास रह लो।
आरोही: में चली जाती दादी लेकिन आपको अकेले छोड़ कर कैसे जाऊं।
अर्जुन: तुम फिकर मत करो आज तुम्हारी मम्मी को फ़ोन करके उन्हें आने के लिए कह दूंगा।
आरोही: फिर ठीक ही मैं चली जाती हूं।


कुछ देर बाद आरोही तयार हो कर हैंड बैग संभालते हुए नीचे आयी।
रोहित उठ कर उसके पास जा कर हैंड बैग ले लिया।

आरोही: दादी मैं ने आपकी रात की दवा टेबल पर रखदी है आप याद से खा ली जियेगा।

दादी अपनी जगह से उठती हुई ठीक है मैं ले लुंगी।


रोहित ठीक है दादी माँ हम लोग चलते है।

आरोही: पापा मम्मी को फ़ोन ज़रूर कर दीजियेगा ताकि वो कल तक वापस आ जाये।

अर्जुन: तुम फिकर मत करो मैं फ़ोन कर दूंगा।

आरोही आपने पापा के गले लग कर कार में जा कर बैठ गयी। एक घण्टे का सफर तय करने के बाद वो आरुषि के घर पहोंची। सामने आरुषि खड़ी उन दोनों का इंतज़ार कर रही थी,
वो आरोही को गले लगा कर बोली में जानती थी रोहित तुम्हे ले कर ही आएंगे।

रोहित कंधे से हैंड बैग उतार कर साइड में रखते हुए आरुषि के पास आया ओर बोला आपको लगता है मैं अकेले आ जाता, वैसे आपकी बहन ने के लिए तैयार ही नही थी।

आरोही अपनी सफाई पेश करतर हुए बोली दी मैं तो सिर्फ दादी की वजह से मना कर रही थी।

आरुषि: क्या मम्मी मामू के यहां से अभी भी नही आयी।
आरोही: नही
आरुषि: इस बार मम्मी ने बहोत वक़्त लगा दिया।
आरोही: इसीलिए तो मैं नही आ रही थी, लेकिन पापा ने कहा वो आज उन्हें फ़ोन करके बुला लेंगे।

आरुषि: दादी की तबियत तो ठीक है ना।
आरोही:दवा वक़्त पर लेती है तो ठीक रहती है, ज़रा सी ला परवाही हुई तो तबियत खराब हो जकती है।

रोहित: बातें बाद में कर लेना आरोही को उसके कमरे में ले जाओ पहले थोड़ा आराम करने दो।

आरुषि: आप ठीक कह रहे है, चलो आरूही मैं तुम्हारा रूम दिखाती हु।

फिर वो थोड़ा रुक कर रोहित की तरफ मुड़ते हुए बोली आप उसका समान ऊपर पहोंचा दी जिये।

रोहित झुकते हुए बोला आपका हुक्म सर आंखों पर।
रोहित की इस हरकत पर दोनों बहने खिलखिला कर हसने लागी।

कमरे में पहोंच कर आरुषि आरोही से बोली में तुम्हारे कपड़े अलमारी में लगा देती हूं।

आरोही:इसकी जरूरत नही है मैं खुद कर लुंगी।

रोहित: पहले उसके लिए कुछ चाय नाश्ते के इंतेज़ाम करो यह सब बाद में होता रहेगा।

आरोही: जीजू दी को पटक है मैं इस टाइम चाय नही पीती हु।

आरुषि: तुम नही पीती लेकिन तुम्हारे जीजू पीते है, मैं चाय बना के लाती हु,
वो एक कदम उठा कर आगे बढ़ी ही थी कि रोहित ने उसका हाथ पकड़ लिए,
मेरे लिए चाय बनाने की ज़रूरत नही आरोही ने मुझे इतना खिलाया है अब जरा भी कुछ खाने के दिल नही कर रहा है।

वो अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली तो आप एक काम करे जा कर कपड़े चेंज करले मैं आरोही के साथ बैठ कर बात करती हूं।
रोहित हस्ते हुए बोला ठीक है वैसे भी बहन के आगे हमारी क्या ही औकात है।

आरोही: जीजू कहि आपको जलन तो नही हो रही मुझे कहि से जलने की बू आ रही है।

रोहित: नही नही ऐसी कोई बात नही ठीक ह तुम दोनों बातें करो में जाता हूं।

उसके जाने के बाद आरोही अपने कपड़े निकलने लगी,
आरुषि: लाओ मैं तुम्हारे कपड़े अलमारी में रख देती हूं।
आरोही ठीक है, वैसे दी आपकी दोस्त स्वाति थी ना,
आरुषि मुड़ कर उसकी तरफ देखते हुए हा तो क्या हुआ?
आरोही: उन्हें कुछ नही हुआ है पिछले दिनों आपसे मिलने के लिए आई थी उन्हें तो पता ही नही था आपकी शादी हो गयी है।

आरोही मुझे अच्छी तरह याद है में ने उसे शफी का कार्ड भेजा था तो ऐसा कैसे हो सकता है उसे इस बात खबर न हो।

आरोही: मेरे खयाल से उन्हें शादी का कार्ड नही मिला।
आरुषि: हो सकता है।
आरोही: में ने उन्हें आपका एड्रेस और नम्बर दे दिया है, हो सकता है कुछ दिनों में वो आपसे मिलने आये।
आरुषि: अच्छा, चलो बाहर चलते है तुम्हारे जीजू बाहर अकेले बैठे बोर हो रहे होंगे।

आरूही: ठीक है चलते है।

अगली सुबह

रात को देर से सोने की वजह से आरोही की आंख देर से खुली, बिस्तर से उठ कर अपने हाथों से बाल को ठीक करते हुए टेबल पर पड़ी हेयर क्लिप को बाल में लगा कर वो कमरे से बाहर निकली,
सीढ़ियों के पास वाले कमरे के पास पहोंच कर वो रुक गयी।
वो सोचने लगी कल जब आयी थी तो यह कमरा बन्द था, बल्कि रात तक बंद था इस वक़्त खुला कैसे है।
वो यह सब सोच रही थी तभी उसे अहसास हु जैसे कोई अंदर वो थोड़ा झुक कर अंदर झांकने लगी।

नाईट ड्रेस में एक आदमी खड़ा हो कर गुनगुनाते हुए शेव कर रहा था।



© "साबरीन"

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