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हौसला

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इतिहास में गुज़रे कुछ पल ऐसे होते हैं जिन्हें बिना किसी वज़ह के आप कभी साझा नहीं करना चाहते और मेरे इन पलों को वज़ह दी थी एक प्रतियोगिता ने। इस प्रतियोगिता में एक ऐसे नारी किरदार के बारे में लिखना था जो कि इस घरती पर वास्तविकता में अपना वज़ूद रखती हो। दरअसल प्रतियोगिता तो एक माध्यम थी इस कहानी को लिखने के लिए पर मुझे बहाना मिल गया एक हीरो को आप सबसे मिलवाने का।
आज मैं एक ऐसी महिला की कहानी को आप सब से बाँटने जा रही हूँ जो हिम्मत और हौसले की बुलंदियों को छू कर आई है। इस कहानी के सभी चरित्र अपने वज़ूद के साथ आज भी मौजूद हैं। जिस तरह से इस घटना ने हमेशा मुझे हिम्मत दी है, हो सकता है कि इस कहानी से प्रेरित होकर किसी की डूबती, कमजोर पड़ती जिंदगी को एक दिशा मिल जाए और उसका आने वाला कल सितारों से जगमगा उठे। इसी वजह से आज एक माँ की सच्ची कहानी आप सबसे बाँटने जा रही हूँ। पात्रों के नाम गोपनीयता की दृष्टि से बदल दिए हैं।
दोस्तों! यह सच है कि उड़ान भरने को पंखों की नहीं हौसलों की जरूरत होती है। यह हौसला दिखा मेरी सहेली निशा की माँ "विमला देवी" में। एक अनपढ़, गवार, साधारण नाक-नक्श और गहरे साँवली रंगत वाली किसान परिवार में जन्मी गाँव की 14 साल की नाबालिग लड़की जिसका विवाह हुआ 26 साल के एक इंजीनियर से। 16 साल की होते ही गौना हुआ और विमला देवी पहुँच गईं शहर की भागती दौड़ती ज़िंदगी में। नए शहर और पति को समझते-समझते 22 साल की उम्र तक विमला देवी तीन पुत्रियों को जन्म दे चुकी थीं। अब तक उनकी जिंदगी अपने दूसरे रंग में प्रवेश कर चुकी थी। पति का हर दिन नशे में धुत होकर लौटना, गाली-गलौज करना और एक भी सवाल किए जाने पर रूई की तरह धुना जाना, रोज की दिनचर्या बन चुका था। एक दिन यह दिनचर्या टूटी जब उनके पति के साथ गारा ढ़ोने वाली एक मजदूर कमसिन लड़की दरवाजे पर आ खड़ी हुई। उनके होश उड़ गए। विमला देवी इस अनर्थ को अपनी लड़कियों की खातिर देख कर भी अनदेखा कर गयीं। वो नहीं चाहती थी कि उनके पति के इस गन्दे चरित्र का बुरा असर किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी उसकी बड़ी बेटी निशा के कोमल मन पर पड़े। अब यह सिलसिला हर रात चलने लगा। वह अपनी लड़कियों को उनके पिता के साए से भी दूर रखने लगीं, मगर एक रात जब उस हैवान को कोई और ना मिली तो उसकी नजर अपनी ही 15 साल की बेटी निशा पर पड़ गई। उन्होंने अपने पति को समझाने का बहुत प्रयास किया, भीख माँगी परन्तु नशे में धुत उनके पति पर तो वासना और दरिन्दगी का भूत सवार था। नशेड़ी पति ने विमला देवी को धक्का देकर गिरा दिया और पीटने लगा। अब तक वो समझ चुकी थीं कि अपनी बेटियों की रक्षा उन्हें स्वयं ही करनी होगी। खुद लहुलुहान होने के बावजूद अचानक उन्होंने अपने पति को धक्का देकर गिरा दिया और भागकर तीनों बेटियों को कमरे में बंद करके ताला लगा दिया और स्वयं हाथ में हसिया ले चंडी का रूप धारण कर लिया। जिस पत्नी ने उसके सामने कभी ज़ुबान भी न खोली हो, उसका यह चण्डी रूप देखकर वो सकते में आ गया किन्तु फिर उसे लगा कि उसकी पत्नी उसका क्या बिगाड़ पाएगी? उसने दोबारा विमला देवी को मारने के लिए हाथ उठाया पर इस बार वो भूल गया कि उसके सामने पत्नी नहीं बल्कि एक माँ खड़ी है। वो कुछ समझ पाता उसके पहले ही किसान की उस बेटी के हाथ घास पर न चलकर अपने पति पर चल चुके थे। पत्नी का यह रूप देख पति का सारा नशा एक क्षण में ही काफूर हो चुका था। वो विमला के सामने गिड़गिड़ाने लगा, माफी माँगने लगा परन्तु "तब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत"। अब तक पड़ौसी इकठ्ठे हो चुके थे जिसमें मेरा परिवार भी शामिल था। विमला देवी के ही कहने पर पुलिस को बुलाया जा चुका था। पति को जेल भेजने के बाद जब विमला देवी अपने होश में आईं तो जैसे उनकी सोचने समझने की शक्ति खत्म हो चुकी थी। इस भयानक तूफान के बाद विमला देवी के सामने उनका भविष्य मुंह फाड़े खड़ा था। अब उनका हौसला शायद पल भर के लिए कमजोर पड़ने लगा था क्योंकि उनकी आँखों से बहते आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। तारीफे काबिल था विभाग वालों का सहयोग। उनके टूटते हौसले को संबल देने के साथ-साथ विभाग की तरफ से जो मदद उन्हें दी जा सकती थी, वह जल्द से जल्द उन्हें दिलवाई गई। व्यक्तिगत तौर पर भी लोगों ने इस परिवार की बहुत मदद की। कुछ समय बाद अपनी तीनों बेटियों को साथ लेकर विमला देवी अपने मायके चली गईं। वहीं रहकर उन्होंने अपनी बेटियों को शिक्षित किया। लगभग 6 वर्षों पश्चात निशा की शादी का कार्ड देख कर मन भर आया। निशा एम•ए• कर चुकी थी और उसका विवाह एक संभ्रांत एवं प्रतिष्ठित परिवार में होने जा रहा था। कुछ वर्षों पश्चात बाकी दोनों बेटियों का विवाह भी हो गया और विमला देवी आज अपनी बड़ी बेटी निशा के साथ सुकून की जिंदगी व्यतीत कर रही हैं। उम्र के ढलान पर पहुँची विमला देवी को आज भी अपने पति के लिए कोई अफसोस नहीं है। होना भी नहीं चाहिए। निशा और उसकी दोनों छोटी बहनों को अपनी माँ पर गर्व है।
मुझे पूरा विश्वास ही नहीं बल्कि यकीन है कि विमला देवी की इस आपबीती को जानकर बहुत से लोगों को हिम्मत और हौसला मिलेगा। मेरी ज़िंदगी में घटित इस व़ाकये ने मुझे हमेशा विषम परिस्थितियों से जूझने और उनसे लड़ने की हिम्मत दी है। संभवतः मैं इस सच को सदैव अपने अन्दर दफन ही रखती, परन्तु मुझे लगा कि यह सच्ची घटना किसी के लिए प्रेरणा बन सकती है जैसे मेरे लिए है। इसीलिए किसी भी वास्तविक तथ्य के साथ छेड़छाड़ किए बिना इस कहानी को प्रस्तुत किया है।
नीलिमा कुमार
( मौलिक एवं स्वरचित )

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