उन्होंने मुझसे पूछा ---क्या हुआ था उस दिन?
मैं समझ नहीँ पाई कि वे किस संदर्भ में पूछ रहे हैं?
-किस दिन?
"एक सप्ताह पहले....." वे गुस्से में दिख रहे थे।गुस्से में उनकी आंखें लाल हो जाती थीं और होंठ टेढ़े ।वे दाँत पीसकर बोलने लगते थे।आवाज भी सख्त हो जाती थी।ऐसा मैंने अब तक सुना था,आज सामने देख रही थी।
मैंने सहजता से बताया कि बच्चे क्लास डिस्टर्ब कर रहे थे किताब/ कॉपी भी नहीं लाए थे इसलिए मैंने उनके सरगना को एक चांटा जड़ दिया था।
वे गुस्से से बोले--"किताब कॉपी नहीं लाएंगे तो मारेगा।किसने आपको ये पावर दिया?सुना बच्चों ने आपको घेर लिया था।वे हाथ भी उठा सकते थे।अकेले आती -जाती हैं रास्ते में कोई बदतमीजी कर सकते थे। ये आपके और हमारे जमाने के बच्चे नहीं हैं जो गुरू की मार को प्रसाद समझते थे।आपको गुस्सा बहुत आता है।कई शिकायत मिल चुकी है।पिछले साल एक पैरेंट्स भी आए थे शिकायत लेकर।आप क्लास में बच्चों को इंसल्ट करती हैं ।ग्रोनअप करते बच्चों का ईगो बड़ा हो जाता है।उनको टीचर की किसी भी बात से नहीं लगना चाहिए कि उनका अपमान किया जा रहा है। वे पढ़े न पढ़े ,किताब/ कॉपी लाए न लाएं ,उनपर हाथ उठाने का आपको कोई हक नहीं ।आजकल सब कुछ प्रोफेशनल है।टीचिंग भी।"
और भी बहुत कुछ उन्होंने कहा ।वे सामने वाले को बोलने का अवसर ही नहीं देते हैं ।जवाब देने पर और भी नाराज़ हो जाते हैं,इसलिए मैं देर तक चुप सुनती रही।
बस एक बात कही कि--आप सी टी फुटेज से देख लीजिए उस दिन क्लास में क्या हुआ था? मैं बच्चों को बहुत प्यार करती हूँ और अब तो सब ठीक हो चुका है।आप शिकायत करने वाले बच्चों से आज पूछे ,वे कोई शिकायत नहीं करेंगे उन्हें अपनी गलती समझ में आ गयी है।
मेरी बात पर वे और भड़क गए--मुझे कुछ नहीं सुनना/समझना बस आप गुस्सा करता है।अपशब्द भी कहता है इंसल्ट भी करता है।एक दो नहीं कई शिकायत है
और कई क्लासों की है।
उनकी हिंदी ग्रामर दोषों से भरी होती है पर वे मुझसे हिंदी में ही बात करते हैं।बाकी टीचर्स से एक शब्द भी हिंदी नहीं बोलते ।
मैं समझ गई कि खूब अच्छी तरह उनके कान भरे गए हैं और वे कान के कच्चे तो हैं ही।ग्यारहवीं का क्लास टीचर उन्हीं के क्षेत्र का और उनका मुँहलगा खास टीचर था और मुझसे जलता भी था।बच्चों को उसने आवश्यकता से अधिक छूट दे रखी थी,इस तरीके से वह अपने विषय की अल्पज्ञता को छिपा लेता था।बच्चे उसकी शिकायत भी नहीं करते थे क्योंकि वे भी जानते थे कि उसकी शिकायत सुनी नहीं जाएगी उल्टे उनका नुकसान हो जाएगा।
आजकल के बच्चे भी अपना भला नुकसान समझते हैं और अवसर के अनुकूल आचरण करते हैं ।सच है कि आजकल की शिक्षा उन्हें प्रेक्टिकल और प्रोफेशनल बना रही है ।मैं जान गई थी कि अपनी सफाई देने का कोई मतलब नहीं है।वे उतना ही समझते हैं ,जितना समझना चाहते हैं।उनका ईगो इतना बड़ा है कि प्रतिपक्षी द्वारा सफाई देने पर तिलमिला जाता है।तो फिर समझदारी इसी में है कि सॉरी बोलकर उनके सामने से हट जाया जाए।उनके हाथ में पावर है और नौकरी मेरी जरूरत।गरजू तो मैं हूँ इसलिए मुझे ही ज़ब्त कर लेना होगा। मैंने सॉरी कहा और भविष्य में ध्यान रखने को भी कह दिया, फिर भी वे जैसे मुझे छोड़ने के मूड में नहीं दिखे।मुझे लगा कि वे मेरी सहनशक्ति की परीक्षा ले रहे हैं या फिर मुझे उकसा रहे हैं ताकि मैं रिएक्ट करूँ और मुझे नौकरी से निकाल देने का उन्हें बहाना मिल जाए।उन्होंने कहा कि सैकड़ों एप्लिकेशन पड़े हुए हैं आपके विषय के लिए ।अगर आपका यही रवैया रहा तो मैं मजबूर हो जाऊँगा।मैं सोच रही थी कि ये कितने अभिमानी हैं इस तरह बात कर रहे हैं जैसे भाग्य विधाता हों।संयोग से उसी समय उनके लिए जरूरी कॉल आ गयी और उन्होंने यह कहकर जाने को कह दिया कि फिर बुलाऊँगा।खैर उन्होंने फिर उस बावत मुझे नहीं बुलाया पर उनकी बातें कभी भूली नहीं।नौकरी करना अपने सेल्फ रेस्पेक्ट को ताक पर रखना होता है क्या?क्रोध और अपमान से मैं तिलमिलाती रहती पर उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती थी।नौकरी छोड़ना भी मुश्किल था ।अपनी मजबूरी का अहसास ईश्वर से फरियाद करके और आँसू बहा कर संतोष पा लेता था।लेकिन आह का असर होता है ।एक सप्ताह बाद ही स्कूल में एक कार्यक्रम था।वे ही बच्चे कुछ ऐसी अनुशासन -हीनता कर रहे थे कि वे छड़ी लेकर उनकी तरफ दौड़े और उन्हें चांटे जड़ दिए।फिर पूरे एक महीने के लिए उन्हें स्कूल न आने की नोटिस दे दी।मेरा जी चाहा कि उनसे पूछूँ कि आपको गुस्सा क्यों आया ?आप तो संन्यासी हैं!पर मैं यह नहीं पूछ सकती थी ।हालाँकि उन्हें मुझे डांटने का अफसोस है,इस बात का पता चल गया था।दूसरे ही दिन प्रार्थना के बाद अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि कुछ छात्र अपने टीचर्स के साथ मिस बिहैब करते हैं ,यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।हमारे टीचर्स वेल-एजुकेटेड और परफेक्ट टीचर हैं।बच्चे ही अनुशासनहीन होते जा रहे हैं!उनकी इस बात से मन को संतोष हुआ।