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क्षमा वीरस्य भूषनम

क्षमा " एक आंतरिक मानसिक शक्ति उत्थानक शब्द है, इसका उपयोग सहज नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसके लिए आत्मा का शक्तिशाली होना जरुरी होता है। वैसे तो संसार का कोई भी देश इस शब्द से अपरिचित नहीं है, क्योंकि मानव कमजोरियों से ओतप्रोत जीवन जीता है, अतः उससे कुछ ऐसी गलतियां होती है, जिनका परिणाम दूसरों को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचा सकती है। जब हालात काफी नाजुक स्थिति में पहुंच जाते है, तो क्षमा ही एक मात्र शब्द है, जो बिगड़ी परिस्थितियों पर अंकुश लगा सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है, क्षमा मानव जीवन का आधार है, इसके बलबूते पर ही हमारा दैनिक जीवन बहुत सी घटनाओं और दुर्घटनाओं से बच सकता है।

ये तो प्रायः तय सा सिद्धांत है, क्षमा अहंकार और क्रोध का समाधान है। किसी लेखक ने क्षमा को बड़े सुंदर ढंग से परिभाषित करने का प्रयास किया है। लेखक के अनुसार " क्षमा, शीलवान का शस्त्र और अहिंसक का अस्त्र है। क्षमा, प्रेम का परिधान है। क्षमा, विश्वास का विधान है। क्षमा, सृजन का सम्मान है। क्षमा, नफरत का निदान है। क्षमा पवित्रता का प्रवाह है। क्षमा, नैतिकता का निर्वाह है। क्षमा, सद्गुण का संवाद है। क्षमा, अहिंसा का अनुवाद है। क्षमा, दिलेरी के दीपक में दया की ज्योति है। क्षमा, अहिंसा की अँगूठी में मानवता का मोती है। "

क्षमा की समर्थता को संभालना हर इंसान के वश की बात नहीं है, क्योंकि क्षमा को ह्रदय की पवित्रता चाहिए, मजबूरी में क्षमा को गले लगाना इंसान की कमजोरी समझी जा सकती है। इस धरा पर शायद ही कोई इंसान हो, जिसने कभी भी किसी ने किसी रुप में गलती नहीं की हो। हकीकत को समझने के लिए हमें जीवन के इस सिद्धांत को स्वीकार कर लेना होगा की इस जग में अमर कोई भी नहीं हुआ, न ही होगा, सब को एक दिन मिटना है।

सभी धर्मो के पन्नों को पलटने से एक ही बात सामने आती है, जब जीवन क्षण भंगुर है, तो फिर आपस में क्या प्रेम क्यों नही रखे, हम अपने मन में राग, द्वेष और क्रोधित होकर क्या पा सकेंगे ? डगलस हॉर्टन के अनुसार "हम संसार रूपी जेल के कैदी है, और क्षमा हमारी जरुरत है"। जीवन को अगर मधुरता देनी है, तो हमें क्षमा का महत्व जरुर समझने की कोशिश करनी चाहिए।

वैसे तो सभी धर्म क्षमा को जीवन दर्शन का अहम हिस्सा बताते है, पर जैन दर्शन तो क्षमा को ही जीवन का सार और आधार मानता है। सारे धर्मो में पूजा और तपस्या का महत्व ज्यादा देखने को मिलते है, परन्तु उनमे अपनी व्यक्तिगत गलतियों के सुधार के लिए कोई विशेष जोर नहीं दिया गया, परन्तु जैन धर्म दैनिक जीवन में होने वाली गलतियों के लिए काफी सजग लगता है, इस लिए क्षमा को महत्व देते हुए इसको त्यौहार या पर्व के रुप में मनाता है, जिसे "पर्युषण पर्व" कहते है। "पर्युषण पर्व" एक आध्यात्मिक पर्व है। इस पर्व की तैयारी दीपावली पर्व की तैयारी के अनुरुप विक्रम संवत के भादवे महीने के शुरु होते ही शुरु हो जाती है। जैसे दीपावली के लिए हम अपने घरों की सफाई शुरू करते है, वैसे ही मानसिक व शारीरिक साधनाओं के द्वारा जैन समाज अपने आत्मा रूपी घर को साफ़ करने का प्रयास शुरु कर देता है। जैन धर्म के अनुसार दसलक्षण धर्म की संपूर्ण साधना के बिना मुक्ति का मार्ग प्राप्त करना कठिन होता है। इन दस धर्म में क्षमा को प्रथम स्थान दिया गया है, इसके बाद मार्दव (मृदुता), आर्जव (सरलता), शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन और ब्रह्मचार्य आते है। मानना है, यही दस लक्षण है, जो पर्युषण पर्व के रुप में आकर, सभी जैन समुदाय और उनके साथ-साथ संपूर्ण प्राणी जगत को सुख शांति का संदेश देते है। इस त्यौहार के समापन दिवस को " क्षमा याचना" दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस दिवस के पूर्व एक दिन प्रायः सभी समर्थ जैनी उपवास और तपस्या करते है। जानने और समझने की बात है, इस दिन सब मानव बन बिना हिचकिचाहट एक दूसरे से अपनी जानी अनजानी गलतियों के लिए क्षमा मांगते है। सचमुच, मे एक आत्मिक सुधार का अलौकिक त्यौहार है, "क्षमा याचना" दिवस, जिसमें मन, वचन और कर्म के संगम से क्षमा मांगी जाती है।

हम क्षमा को किसी एक धर्म का सिद्धान्त नहीं कह सकते, क्योंकि इसके कई व्यवहारिक गुणों का उपयोग हम अपने दैनिक जीवन कि गलतियों को सुधारने में कर सकते है, और अपने व्यक्तित्व को प्रखर तथा उज्ज्वल बना सकते है। इस शब्द की महिमा इतनी विशाल है कि "क्षमा" उच्चारण के बाद सारी रंजिशों को अल्पविराम तो लग ही जाता है, और चेहरे को मुस्कान का उपहार मिल जाता है। क्रोध विनाशक यह शब्द प्रेम को प्रवाहित करता है, आत्मा की मलिनता इससे क्षीण हो जाती है। क्षमा को कभी भी कमजोरी के ताने बाने में बुन कर देखना नहीं चाहिए, ऐसा दृष्टिकोण सिर्फ अहंकार से पीड़ित मानव ही रख सकता है। भगवान महावीर ने भी कहा है " क्षमा वीरस्य भूषण" अर्थात क्षमा वीरो का गहना होता है। स्वामी विवेकानन्द भी मानते थे, " कि तमाम बुराई के बाद भी हम अपने आपको प्यार करना नहीं छोड़ते तो फिर दूसरे में कोई बात नापसंद होने पर भी उससे प्यार क्यों नहीं कर सकते है"।

आइये संक्षिप्त में एक नजर से क्षमा भाव के गुणों का अवलोकन कर, हम अपने दैनिक् जीवन को आदर्श और मधुर बनाने की कोशिश करे।

1. क्षमा जीवन का आधार है, जैसे गलतियां मानव की विवशता है, वैसे ही प्रसन्न्ता जीवन की जरुरत। जरुरत की पूर्ति विवशता से ज्यादा जरुरी होती है, अतः क्षमा से अगर बिगड़े सम्बंधों में सुधार होता है, तो हर्ज ही क्या क्षमा मांगने और देने में। विचार योग्य तथ्य है, ध्यान दे।

2. क्षमा क्रोध का समाप्त कर सकता है, इतिहास गवाह है, क्रोध के कारण राजाओं को राज्य से वंचित होना पड़ा, आज के सन्दर्भ में इतना ही चिंतन सही होगा कि अति क्रोध से विवेक नष्ट हो सकता है, और कई शारीरिक मानसिक व्याधियों का निर्माण स्वत् ही शुरु हो सकता है।

अतः क्षमा का प्रयोग दैनिक जीवन की गरिमा बढ़ा सकता है, यह तय है। हाँ, यह बात जरा ध्यान में रखे की क्षमा का उपयोग पवित्र आत्मा से करे, कलुषित दिमाग से नहीं।

3.क्षमा प्रार्थना भी है, और वरदान भी। जब हम किसी गलती के लिए क्षमा मांगते है, तो वो प्रार्थना बन जाती है, जब किसी को आत्मा से क्षमा करते है तो वरदान।

4.आज की अव्यवहारिक दुनिया में क्षमा पर एक ही संकोच होता है, क्षमा कभी सर्मपण में न गिनी जाए। ऐसी क्षमा शुभ नहीं हो सकती जो अप्रभावकारी हो और व्यक्तित्व को कमजोर भी साबित करती हो, इस पर प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह ' दिनकर' की इन पंक्तियों पर गौर करना जरुरी होता है।
"क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसका क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो"

5. अहंकार और अभिमान ऐसे तत्व है, जो क्षमा को जल्दी से स्वीकार नहीं करते, ये जानते हुए भी कि गलत हो रहा है या हुआ है। रावण का अहंकार और अभिमान जग प्रसिद्ध है, और उसका पतन भी। कहते है, रावण के पास ज्ञान सहित सब कुछ था, परन्तु विनय और क्षमा की चाहना नहीं थी। आज के सन्दर्भ में इतना ही ध्यान रखना है, हमारा अहंकार जब भी रावण बनाने की कौशिश करे तो क्षमा की निर्मलता प्राप्त करने की चेष्टा करें।

6. दैनिक जीवन में सब जगह क्षमा को जीवन उपयोगी नहीं समझना ही उचित होगा, वहां उसका प्रयोग करना सही नहीं भी हो सकता है जैसे शासन, व्यापार, युद्ध, व्यवस्था सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन या जहां देश की सुरक्षा का सवाल हो।

7. भौतिक साधनों के दुरूपयोग से जीवन की विषमताओं दूर करने में क्षमा एक सशक्त साधन है, इसका उपयोग भी काफी आसान है, अतः इसका प्रयोग चिंतन के साथ किया जाय तो निश्चय ही संक्षिप्त मानव जीवन को सही मंजिल प्राप्त हो सकती है। सिर्फ, एक बात का हम ध्यान रखे, अपनी गलतियों को क्षमा न कर सुधारे, शायद यही "क्षमा" का सार है।
"क्षमा बलमशक्तानाम् शक्तानाम् भूषणम् क्षमा।
क्षमा वशीकृते लोके क्षमयाः किम् न सिद्धाति ।।"
( क्षमा निर्बलों का बल है, क्षमा बलवानों का आभूषण है, क्षमा ने इस विश्व को वश में किया हुआ है, क्षमा से कौन सा कार्य सिद्ध नहीं हो सकता है ॥ )
.....क्षमा याचना सहित... मिच्छामी दुक्कड़म ***लेखक***कमल भंसाली***

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