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आशीर्वाद - जीवन अमृत

आशीर्वाद” एक ऐसा अमृतमय शब्द है, जिसकी चाहत हर कोई इंसान अपने जीवन की शुभता के लिए करता है। इस शब्द की सबसे प्रमुख विशेषता है, कि ये किसी भी मानवीय सीमा रेखा से बंधा नहीं रहता। इस शब्द को मानो कोई अमृतमय वरदान मिला है, इसका विरोध कोई भी जाति, धर्म, परिवेश, क्षेत्र, समाज और भूमिमण्डल का कोई देश नहीं करता है। ऐसा क्या है ? आशीर्वाद में और क्यों इसे हम इसे जीवन पूरक तत्व के अंतर्गत लेते है, जरा इसका अध्ययन करने की कोशिश करते है। इसकी सम्पूर्ण विवेचना करना किसी के भी वश की बात नहीं है, ये लेख सिर्फ समझने की कोशिश भर है।

"आशीर्वाद" शब्द की अगर हम सबसे पहले विवेचना करे, तो शायद हमारी सही शुरुआत हो, इसलिए हम यहीं से प्रारम्भ करते है। आशीर्वाद यानी आशीष या असीस, ये तो हुआ इसका शाब्दिक अर्थ, परन्तु ये उन शुभ विचारा से जुड़ा है, जिनसे हम दूसरों से कुछ आत्मिक प्रोहत्सान लेते है, या किसी को देते है। इसकी विवेचना भी हम जरुर करेंगे, पर धीरे धीरे। सबसे पहले हमें ये जानकार आश्चर्य हो सकता है, कि ” आशीर्वाद” एक अकेला शब्द है, जो अभूतपूर्व विश्वास देता है। इसके समकक्ष कई और शब्द हो सकते है, पर इसकी सार्थकता अलग ही होती है। यह जान कर जरा हैरानी हो सकती है कि इसका कोई पर्यायवाची और विलोम शब्द, इसके समकक्ष नहीं होता है। अतः इसकी शुभता पर हमारी कभी कोई शंका नहीं होनी चाहिये। चूँकि इस शब्द की पवित्रता पर कोई सवाल नहीं है, अतः आशीर्वाद का प्रयोग हर देश के दैनिक जीवन में कई बार किया जाता है। हालांकि हमारा मोह अंग्रेजी भाषा से, अपनी धरोहर भाषा से ज्यादा है, परन्तु “आशीर्वाद ” हम ज्यादातर अपनी ही भाषा में देते है। इसकी सकारत्मकता तभी अतुल्य कहलाती है।

आशीर्वाद की कई विशेषताओं में एक विशेषता यह भी है, कि यह सिर्फ हमें उम्र से बड़ों से मिलता है, सिर्फ गुरु ही एक इसका अपवाद है, जो हमसे ज्ञान में बड़े होते है, इसे हम उनसे भी ले सकते है,। आशीर्वाद है, ही ऐसा है, जिसकी शुद्धता पर हम कोई प्रश्न नहीं कर सकते। आशीर्वाद सिर्फ एक शारीरिक क्रिया नहीं है, इसमे देनेवाले की आत्मा की पवित्र ऊर्जा भी होती है, जो लेनेवाले के भाग्य के नवनिर्माण में सहयोग करती है। आशीर्वाद का भारतीय संस्कृति में सबसे उच्च स्थान हासिल है, इसलिये जन्म से ही बच्चे को आशीर्वाद देना शुरु हो जाता है और बचपन से उसे प्रणाम करने की आदत डाली जाती है, जिससे उसे आशीर्वाद मिलता रहे और उसका जीवनपथ आसान हो जाए। हमारे यहां बड़े बुजर्गो और गुरु के आशीर्वाद का बहुत महत्व है। भगवान को हम सब किसी ने किसी रुप में अपना जीवन ईष्ट मानते है, और उनके आशीर्वाद के लिए लम्बी लाईनो में खड़े होते है। परन्तु हमारी संस्कृति में गुरु महिमा को अम्परम्पार माना गया है, क्योंकि वो ही उस तक के वापसी सफर का सही रास्ता दिखाने की कोशिश करते है,अतः गुरु का दर्जा काफी उच्चस्थान पर है। हकीकत में सही भी लगता है, क्योंकि बिन गुरु ज्ञान पाना आसान नहीं होता और बिना ज्ञान का जीवन, “जीवन” नहीं कहलाता। इस सन्दर्भ में महान संत कबीरदास का जिक्र करना सही होगा, उन्होंने कहा ” गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पॉय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय”। पर क्या आज के युग में गुरु के प्रति इस दृष्टिकोण से विचार किया जा सकता है ? यह एक चिंतन की बात है, जिसका जबाब आज के आर्थिक युग में तलाशना व्यर्थ होगा। आज हमलोगों को ज्ञान की नहीं जीवन तकनीक की जरुरत ज्यादा है, और तकनीक खरीदी जाती है। अतः जिसकी कीमत तय हो, वो कीमती जरुर कहला सकती है, पर वह विशिष्ट नहीं हो सकती, यह भी तय है। विशिष्ट बिना “श्रद्धा” का पैदा होना, वो भी आत्मा में, कठिन काम है।

आशीर्वाद को अंग्रेजी में BENEDICTION कहते है, इसे इंग्लिश में और भी कई शब्दों में लोग व्यक्त करते है, उसमे bless (noun), Wish ( Verb), Valedictory (Adjective) परन्तु ये सहयोगी शब्द है, पर्याय नहीं। हिंदी में आशीर्वाद का संक्षिप्त अर्थ किसी की मंगलकामनाओं के लिये बडों की ओर से कहे हुए शुभ वचन समझना ही सही होगा। चूँकि हमारा लक्ष्य इसके महत्व को जानना ज्यादा है, और आशीर्वाद का अर्थ हमारे दिमाग में बचपन से सही समाया हुआ है। हम अब जरा आगे बढ़ने की सोचते है।

हमारे जीवन को जो सबसे पहला आशीर्वाद मिलता है, “वो” ही देता है, जिसने इस धरा के लिए हमें किसी खास उद्देश्य के लिए भेजा है। हमें भी उसका तहदिल से शुक्रगुजार होना चाहिए, और उसकी पवित्रता का आभास करने के लिए रोज उसका नमन करना चाहिए।
ऐसी ही धारणाओं के अंतर्गत प्रणाम व आशीर्वाद शब्दों का निर्माण हुआ।

माँ ही वो देवी है, जो हमें पनपने के लिए नौ महीने अपनी देह में जगह ही नहीं प्यार भरा आशीर्वाद, “स्वयं” बिन मांगे देती रहती और सभी से हमारे कोख में सलामती, और सही जन्म के लिए दूसरों से आशीर्वाद लेती। जिस घर में प्रेम का आँगन होता है, वहा परिवार का हर सदस्य जैसे दादा, दादी, बड़े बुजर्ग सदस्य हमें जन्मते ही आशीर्वाद देना शुरु कर देते है, हकीकत यहीं है, इस प्यार से ही हमारी जीवन समझ शुरु होती है। ध्यान देने की बात है, जन्म तक हमें कितने बिन मांगे आशीर्वाद मिलते है, पता नही हम बड़े होकर उनका मूल्य क्यों नही समझ पाते। पिता और गुरु का आशीर्वाद सहजता से प्राप्त होना थोड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि ये जीवन संस्थापक की भूमिका करते है, और इनसे कटु अनुभव प्राप्त होते है,,जो जीवन को आगे सहज और सरल करने में श्रेष्ठ होते है। इनके प्रति अगर आस्था हमारी नहीं हो तो निश्चित है, यह व्यवहारिक आशीर्वाद दे देंगे, परन्तु आत्मिक नहीं और उसके बिना सही ज्ञान मिलना मुश्किल काम है। इन दोनों रिश्तों को चाहिए, नम्रता और आज्ञा पालन और दोनों जरुरी है, सही, सुंदर और समृद्धिमय जीवन के लिए। जिनको आशीर्वाद की कीमत में आस्था नहीं होती उनके लिए यह सम्बन्ध कमजोर होते है, और उनको कोई विशेष उन्नतमय जीवन हासिल भी नहीं होता, यह तथ्य है, स्वीकार या अस्वीकार की इसमे कोई भूमिका नहीं है।

आशीर्वाद एक ऊर्जा है, इसका संचालित अनुभव हमारी आत्मा करती है। तथ्य यही कहते है, अगर हमारी आस्था इससे जुडी होती है, तो सुखद परिणामों की प्रतीक्षा ज्यादा दिन नहीं करनी पड़ती। किसी विशेष प्रयोजन या उद्धेश्य के लिए चाहा गया आशीर्वाद प्रयास में मृदुलता जरुर करता है, हालांकि परिणाम तो वक्त की मेहरवानी और अपनी सक्षमता पर निर्भर होता है। आशीर्वाद को कभी भी प्राप्त वरदान नहीं माना जा सकता, क्योंकि ये मनुष्य की क्षमता के बाहर है। फिर भी , राजा महाराजा क्या देवताओं तक इसकी महिमा है। आशीर्वाद के परिणाम गौण जरुर रहते है, पर शुभता में इसका होना तय है। नम्रता से अगर दुश्मन से भी आशीर्वाद लिया जाय तो वो भी इंकार नहीं करते। इसका उदाहरण महाभारत के उस प्रकरण में हमें नजर आ सकता है, जब अर्जुन भीष्म पिता से आशीर्वाद उसी युद्ध की विजय के लिए मांगते है, जिसमे वो अर्जुन के विरुद्ध युद्ध करनेवाली सेना के सेनापति थे। परन्तु आज हम यह नहीं कह सकते कि ऐसी परिस्थितयों में ऐसा आशीर्वाद मिलेगा, इसका एक ही कारण है, हमारे जीवन से नैतिकता का गायब हो जाना।

आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हमें नम्र बनकर प्रणाम और प्रार्थना दोनों की जरुरत होती है। जब हम अपने इष्ट से आशीर्वाद लेना हो तो आत्मा की पवित्रता जरुरी होती है, उसी पवित्रता से हमको प्रार्थना और प्रणाम के स्वरुप जो आशीर्वाद मिलेगा, वो हमें सकारत्मक बनाकर किसी भी क्षेत्र की सफलता की तरफ निश्चिंत आयाम जरुर प्रदान कर देगा। बड़ों से आशीर्वाद पाने के लिए हमें अभिमान को दरकिनार करना होगा,और सम्मान सहित उनके चरणों को छूना होगा। कई वार हमारे हाथ उनके चरणों तक नहीं पहुंचते आधी दूर ही रहते, किसी भी कारण से, तब शायद इससे वो परिणाम नहीं प्राप्त हो सकते, जिनका पाना हमारा लक्ष्य था।

अंततः यह मानना भी उचित ही होगा, कि शुभकामना, मंगलकामना, भी जीवन उपयोगी है, अगर किसी की आत्मा की गहराई से आती हो पर ऐसा होना हर समय संभव नहीं होता क्यों कि ज्यादातर हम इनका व्यवहारिक प्रयोग ही करते है। मजबूरी है, मिलती है, तो कह देते है, अर्थ की दुनिया में आखिर दिखावटी सम्बंध भी तो कोई चीज है। लेखक✍️कमल भंसाली

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