द डार्क तंत्र - 7 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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द डार्क तंत्र - 7


प्रेमतंत्र - 3


सभी काम समाप्त करने में थोड़ी देर हो गई इसलिए नरेंद्र सिंह थोड़ा तेज ही कार चला रहे थे । खराब नेटवर्क के कारण कोमल के पास भी फोन नहीं कर पा रहें हैं ।
वातावरण में ठंडी की मात्रा थोड़ी और भी बढ़ गई है । अभी ज्यादा अंधेरा नहीं हुआ हैं आसमान में शाम की लालिमा अब भी उपस्थित है ।


सामने रास्ते के दृश्य को देखकर नरेंद्र सिंह ने जल्दी से ब्रेक लगाया । किसी ने रास्ते के बीचो बीच एक कार खड़ी कर रखी है । कौन हैं ऐसे इडियट ?
नरेंद्र सिंह अच्छे ड्राइवर हैं वरना इस पहाड़ी रास्ते पर अभी एक्सीडेंट होने ही वाला था । बार-बार हॉर्न बजाने पर भी वह कार साइड नहीं हो रहा । नरेंद्र सिंह परेशान होकर अपनी कार से बाहर आए और फिर उस कार के सामने जाकर जोर से बोले - " अरे भाई रास्ता ब्लॉक करके क्यों खड़े हो ? "
कार का दरवाजा खुला उसके अंदर अमित बैठा था ।
यह देख नरेंद्र सिंह बोले - " अमित! तुम यहां पर क्या कर रहे हो ?
अमित बोला - " अंकल गाड़ी खराब होने की वजह से हम फंस गए हैं । "
" रुको देखता हूं, कई सालों से इस रास्ते पर गाड़ी चला रहा हूं इसीलिए थोड़ा बहुत मकैनिक का कार्य भी सीख लिया है । "
नरेंद्र सिंह कार के सामने गए । तभी कार से एक और लड़का बाहर निकला । उस लड़के ने नरेंद्र सिंह को नमस्कार करते हुए कहा - " अंकल जी आप कैसे हैं ? "
यह तो मुकेश है । उसे देखकर नरेंद्र सिंह का चेहरा कोमल हो गया ।
" मैं तो ठीक हूं मुकेश, वैसे तुम कैसे हो ? रुको पहले तुम्हारे कार को देखता हूं । अगर टॉर्च हो तो जलाओ , इन छोटे मोटे चीजों को फिक्स करना मुझे अच्छे से आता है । शाम हो गई है इसलिए जल्द ही घर लौटना होगा । "
धीरे-धीरे मुकेश बोला - " अंकल आज आप घर नहीं जा पाएंगे । "
" मतलब? "
मुकेश आगे आया और अपने जैकेट के पॉकेट में रखें बाएं हाथ को निकाल एक रुमाल से नरेंद्र सिंह के चेहरे को दबा दिया । तुरंत ही नरेंद्र सिंह का सिर चकराने लगा और कुछ ही सेकंड में उनके आँखों में अंधेरा उतर आया ।

नरेंद्र सिंह के दोनों आंखों में जलन हो रहा है इसलिए ठीक से कुछ देख नहीं पा रहे । हिलते डुलते वक्त उन्हें पता चला कि अब भी उनके शरीर में पूरी शक्ति नहीं लौटा है । कुछ देर इधर-उधर करने के बाद वो ठीक से अपनी आँख फैला पाए ।
एक बड़े कमरे के अंदर लकड़ी की कुर्सी पर उन्हें बैठाया गया है । कुछ दूर सामने ही ईटों को सजाकर एक यज्ञ कुंड बनाया गया है और उसके अंदर आग जल रहा है । इसके अलावा आसपास नरमुंड , हड्डी , फूलों की माला, सिंदूर , लाल चंदन , सुरापात्र , आहुति के लिए करछी इत्यादि पूजा की सामग्री सजाया गया है ।
यज्ञ कुंड के सामने पुजारी के आसन पर मुकेश बैठा है । उसने काला धोती पहना है तथा सिर के बाल जटा की तरह बंधा हुआ है । इसके अलावा उसके गले में लड़की व रंगीन पत्थरों की माला भी है । इतनी ठंडी में भी मुकेश के शरीर पर केवल एक पतला सूती का गमछा लटक रहा है ।
देखकर ऐसा नहीं लगता कि उसे ठंडी लग रही है बल्कि उसके बलशाली शरीर से बूंद - बूंद पसीना निकल रहा है ।
वहीं एक कोने में अमित जैकेट व टोपी पहने खड़ा है लेकिन फिर भी उसे ठंड लग रहा है । इसीलिए दोनों हाथों को रगड़ते हुए राहत पाने की कोशिश कर रहा है ।
नरेंद्र सिंह जोर से बोले - " यह सब क्या है ? मुझे यहां लाकर तुमने ये सब क्या शुरू किया है? "
" अरे अंकल जी इतना मत चिल्लाइये । आज आपको घर नहीं जाने दे सकता क्योंकि आप वहां पर आज आप सुरक्षित नहीं हैं । " मुकेश ने धीरे-धीरे यह सब बोला ।
" मतलब? "
" आज अमावस्या है अंकल जी , कई घंटो से मदिरा व अपने खून से आहुति देकर आपको पता है मैंने किसे जगाया ? वैसे अंकल जी क्या आप कृत्या के बारे में कुछ जानते हैं ? "
" कृत्या , हाँ कुछ कुछ जानता हूं । तांत्रिक क्रिया के द्वारा इस अशुभ शक्ति को जगाया जाता है । इसका प्रयोग शत्रु मारण के लिए किया जाता है । अगर वह अपने काम में असफल हुई तो लौटकर जागृत करने वाले तांत्रिक को ही अपना शिकार बनाती है । एक समय था जब मैंने भी इन सबके बारे में कुछ किताबों को पढ़ा था । लेकिन तुम इन सभी भयानक खेल में क्यों जुड़े हो ? यह सब करने का उद्देश्य क्या है? "
" अभी बताता हूं अंकल । मैंने आज जिस कृत्या को जगाया है,उसका नाम सरसर्पिणी कृत्या है । अमावस्या के दिन किसी पुरुष का नाम बोलकर आहुति देकर उन्हें जागृत करने पर , वह पुरुष दुनिया के चाहे किसी भी स्थान पर रहे कृत्या उसे खोज लेगी । इसके बाद उस पुरुष के परिचित किसी नारी का वेश बदलकर सम्मोहन द्वारा सहवास करने पर मजबूर कर देती है । और उसी सहवास क्रिया के दौरान धीरे-धीरे वह परुष के प्राण शक्ति को चूस लेती है । इसके इस क्रिया में जो भी बाधा बनेगा कृत्या उसे भी मारकर अपना कार्य सम्पन्न करेगी । अब आप समझे । "
मुकेश अब खड़ा हुआ फिर नरेंद्र सिंह की तरफ बढ़ते हुए बोला - आपके प्यारे दामाद श्रीमान विवेक का आज ही अंतिम रात है । सरसर्पिणी कुछ देर पहले ही आपके घर में गई है ।

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दोपहर तक कोमल पूरी तरह ठीक हो चुकी थी । दोपहर में खाने के बाद विवेक ने जबरदस्ती कोमल को आराम करने के लिए मजबूर किया । शाम को निकिता रात का खाना बनाकर व अपने लिए खाना लेकर घर चली गई । निकिता के जाने के बाद नए प्रेमी जोड़े एक दुसरे के बाहों में खो गए ।

कोई बार बार डोर बेल बजा रहा है । शायद बड़े चाचा लौट आए । विवेक के बाहों से खुद को छुड़ाकर कोमल उठ बैठी । कमरे के अंदर बहुत ही अंधेरा है इसीलिए वह लाइट का स्विच ऑन करने गई लेकिन लाइट नहीं जला ।
फिर से लोड शेडिंग , इन पहाड़ी जगहों पर यही समस्या है । पास ही टेबल पर रखे टॉर्च को जलाकर कोमल ने विवेक को जगाया ।
" बड़े चाचा जी शायद लौट आए हैं । और बिजली भी चली गई है । चलो न दरवाजा खोलने । "
" क्या हुआ महारानी को अकेले डर लग रहा है । "
" चाचा जी इतनी ठंड में बाहर खड़े हैं और तुमको मस्ती सूझ रही है । जल्दी उठो । "
पत्नी की डांट से विवेक को उठना ही पड़ा । टॉर्च से मोमबत्ती खोज फिर उसे जलाकर वो दोनों कमरे से बाहर निकले । कोमल कांप रही है शायद आज ठंडी कुछ ज्यादा ही है । किसी दूसरे दिन शाम होते ही आसपास की झाड़ियों से झींगुर की आवाज सुनाई देती है लेकिन आज चारों तरफ पिन ड्रॉप साइलेंस है । इसके अलावा मोमबत्ती जलाने पर जो कीड़े - मकोड़े उड़ते हुए चले आते हैं आज वो भी नहीं दिख रहे । कोमल फिर से कांप उठी । नहीं ठंड की वजह से नहीं , इस बार वह एक डर की अनुभूति से कांप उठी । इसीलिए चलते हुए उसने विवेक के हाथ को पकड़ लिया ।
दरवाजा खोलते ही वह दोनों चौंक गए । बड़े चाचा नहीं, निकिता वहाँ खड़ी थी ।
" भैया जी मैं अपना फोन भूल गई हूं शायद रसोई घर में है । इसीलिए लेने चली आई ।"
कोमल को कुछ ठीक नहीं लग रहा था । क्योंकि निकिता, विवेक की तरफ ऐसे निगाहों से देखकर बात क्यों कर रही है । कोमल लड़कियों के इस इशारे का मतलब अच्छी तरह जानती है ।
" आओ अंदर आओ । " कहते हुए विवेक दरवाजे से साइड हुआ ।
मुस्कुराते हुए निकिता अंदर आई ।
" टॉर्च दीजिये । "
विवेक ने टॉर्च निकिता की तरफ बढ़ा दिया । इसी बीच कोमल ने ध्यान से देखा कि निकिता अपनी जीभ से होंठ को चाट रही है । टॉर्च लेकर निकिता किचन की तरफ चली गई । इसके बाद कोमल , विवेक को खींचते हुए अपने बेडरूम में लेकर आई ।
विवेक कुछ बोलने ही वाला था कि कोमल ने हाथ से उसे चुप करा दिया । जल्दी से बेडरूम के दरवाजे को बंद करके कोमल खड़ी हो गई ।
" क्या हुआ तुम्हें ? " धीरे से विवेक ने पूछा ।
" विवेक वो मानव नहीं है । "
" मतलब , तुम कहना क्या चाहती हो । "
" तुमने नहीं देखा लेकिन मैंने स्पष्ट देखा कि मोमबत्ती की रोशनी में निकिता की कोई परछाई नहीं थी । "
" तुम क्या कह रही हो । जिस लड़की को पिछले दो-तीन दिन से देख रहा हूं और आज तुम उसे भूत - प्रेत बता रही हो । "
" तुम विश्वास करो मैं झूठ नहीं बोल रही । मैंने अपनी आंखों से देखा है । वो कोई मानव नहीं है । "
" ठीक है । पर पिछले कुछ दिनों से उजाले में वह हमारे सामने घूमती रही । खाना बनाकर खिलाया वह सब क्या था । तुम्हें क्या नशा हो गया है । "
कोमल कुछ जवाब देने वाली थी ठीक उसी समय बेड पर रखा मोबाइल बजने लगा । मोबाइल को उठाते ही वो दोनों चौक गए क्योंकि निकिता ने फोन किया था ।
कोमल अचंभा होकर खड़ी है या देखकर विवेक ने खुद ही कॉल रिसीव किया ।
उधर से आवाज़ आई - " हैलो , भाभी जी डॉक्टर साहब अभी तक लौटे या नहीं । "
" निकिता मैं विवेक बोल रहा हूं । वो अभी तक नहीं लौटे । लेकिन तुम तो इसी घर में हो फिर यह प्रश्न क्यों कर रही हो । "
" नहीं भैया मैं तो शाम से पहले ही घर लौट आई थी । डॉक्टर साहब लौटे या नहीं जानने के लिए कॉल किया था । आप मेरे आसपास लोगों की आवाज़ सुन सकते हैं । "

इसी वक्त उनके कमरे के दरवाज़े को किसी ने खटखटाया । बाहर से धीमी आवाज़ में निकिता की आवाज़ सुनाई दिया ।
" भैया , भैया । "
कोमल ने विवेक के हाथ से मोबाइल को ले लिया फिर कहा - " निकिता हम थोड़ा बिजी हैं । चाचा जी के लौटते ही मैं तुम्हें कॉल कर दूंगी । अब रखती हूं । "
इसके बाद कोमल, विवेक की तरफ देख कर बोली - " अब विश्वास हुआ । "
" निकिता अपने घर में हैं फिर इस घर में कौन आई है ? हट जाओ मैं जानना चाहता हूं कि दरवाजे के बाहर कौन है । "
कोमल ने विवेक को जकड़ लिया ।
" नहीं कुछ भी हो जाए मैं तुम्हें दरवाजा नहीं खोलने दूंगी । "
" हट जाओ , बाहर कौन है मैं देखना चाहता हूं । "
विवेक मानो अब होश में नहीं है । जैसे किसी ने उसे हिप्नोटाइज कर दिया है ।
कोमल को धक्का देकर दरवाजा खोलते ही एक ठंडी हवा ने उन दोनों को स्पर्श किया । इस हवा से वो दोनों कांप गए । लेकिन दरवाजे से बाहर कोई नहीं है । विवेक ने दरवाजे से बाहर झांका वहाँ कोई भी नहीं था ।
कोमल ने विवेक के हाथ को पकड़ कमरे के अंदर खींच लिया फिर दरवाज़े को बंद करके हांफते हुए बोली -
" विवेक तुम कुछ समझ क्यों नहीं रहे । जो यहां पर आई है वो कोई मनुष्य नहीं है । "
लेकिन कोमल के बातों का विवेक पर कोई असर नहीं हो रहा । वो एकटक ऊपर की तरफ देख रहा है । विवेक के नजरों को अनुशरण करके कोमल ने देखा । मोमबत्ती की रोशनी में दिखाई दिया स्काईलाइट कांच के खुले भाग से
धीरे - धीरे एक सफेद धुआँ जैसा कोहरा कमरे के अंदर प्रवेश कर रहा है । उनके आँखों के सामने धीरे - धीरे वह कोहरा एक आवरण में बदलने लगा । कुछ ही देर में वहाँ एक मनुष्य की आकृति उभर आई । लेकिन क्या वह मनुष्य हो सकता है ऐसा भी संभव है ? क्या कोई मनुष्य सरीसृप की तरह दीवारों पर वैसे चल सकता है ? क्या किसी मनुष्य की आँखे वैसे चमकती है?
कांपते हुए कोमल ने देखा कि कमरे के एक कोने में एक लड़की का शरीर उपस्थित है । वह पूरी तरह नग्न है । उसके चेहरे पर अद्भुत लालसा व भूख है मानो कोई सर्पिनी अपना शिकार करने वाली है । निकिता मतलब निकिता जैसे दिखने वाली वह मायावी इशारों से विवेक को बुला रही है । कोमल ने देखा कि विवेक अब भी मानो हिप्नोटाइज है । विवेक का चेहरा भी अब लालसा पूर्ण हो गया है । उत्तेजना से उसका पूरा चेहरा लाल हो गया । कोमल के उपस्थिति की बात मानो उसे याद ही नहीं ।
विवेक ने उस मायावी की तरफ पैर बढ़ाया ।
विवेक को पीछे से पकड़कर कोमल चिल्लाई - " विवेक उसकी तरफ मत देखो । वहाँ मत जाओ वो तुम्हें मार डालेगी । "
लेकिन विवेक के शरीर में उस समय किसी दानव के जैसी शक्ति है । एक ही झटके में कोमल फर्श पर गिर पड़ी । और कोमल को आतंकित करते हुए उस मायावी के मुँह से एक भयानक हंसी निकल आई । वह जानती है कि आज उसके और उसके शिकार के बीच आने का साहस किसी में भी नहीं है ।...

। अगला भाग क्रमशः