द डार्क तंत्र - 8 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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द डार्क तंत्र - 8


प्रेमतंत्र - 4


नरेंद्र सिंह कोने में खड़े अमित की तरफ देखकर बोले -
" मुकेश का दिमाग खराब हो गया लेकिन अमित तुम क्यों उसका साथ दे रहे हो? तुम तो राहुल के दोस्त हो और तुम इस तरह उसके बहन की जिंदगी खराब होते देख रहे हो । "
अमित बोलता रहा ।


" हां अंकल जी आपने सही कहा । आपके उस भतीजे ने मुझे नौकरी दिलाने के नाम से कितना रुपया ऐंठ लिया आप क्या जाने । मैं तो जानता था उसके पास पैसों की कमी नहीं है फिर भी हम जैसे लड़कों को नौकरी का सपना दिखाकर उनके पैसों से मल्टीप्लेक्स में मूवी देखता है । गर्लफ्रेंड के लिए गिफ्ट व दुसरे कामों के लिए पैसा लेता है क्या आप जानते हैं । वह एक सेडिस्ट है । मेरी मां के बीमारी का पता चलते ही मैं राहुल के सामने रो पड़ा था । लेकिन उसने एक फूटी कौड़ी की भी सहायता नहीं किया । और मुकेश ही मेरी माँ के ट्रीटमेंट के लिए अक्सर पैसा देता है । आप जैसे बड़े खानदान में ऐसे नीच लड़के कैसे पैदा हो जाते हैं । "


नरेंद्र सिंह कुछ बोल नहीं पाए ।
मुकेश बोला - " अमित यह सब बातें रहने दो । अंकल जी उन सभी से अलग हैं । पहले दिन देखकर ही समझ गया था कि उस घर में केवल ये ही मुझे समझ रहे थे और मेरे साथ अच्छे से बात किया था । इसीलिए आज आपको यहां रोकना पड़ा । मैंने तो आपको बताया कृत्या अपने शिकार के वक्त कोई बाधा सहन नहीं करती । जो भी उसे रोकेगा वो मारा जाएगा । आज रात आपको उस घर में कैसे रहने दूँ । "


नरेंद्र सिंह जोर से बोले - " अरे पागल! तुम बहुत बड़े पागल हो । तुमने एक बार भी नहीं सोचा कि विवेक को मारते वक्त कोमल खुद ही उस कृत्या को रोकने की कोशिश कर सकती है । तब क्या होगा? जिसे पाने के लिए तुम यह सब कर रहे हो , उसके मृत्यु की व्यवस्था तुमने अपने हाथों से कर दिया है । ये तुम्हारा सच्चा प्यार नहीं मोह है । और उसी मोह में तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है । "

तुरंत ही मुकेश का चेहरा लटक गया । अपने सिर को पकड़ वह छटपटाते हुए बोला - " हे भगवान , मैंने यह क्या कर दिया । साले अमित तूने मुझे ये बात याद क्यों नहीं दिलाई । अब मैं क्या करू । "


" तुमने तो मुझे इन सब के बारे में ठीक से नहीं बताया था । शांत हो जा और ठंडे दिमाग से सोच की उस कृत्या को रोकने का कोई उपाय है । " अमित ने उसे सांत्वना देते हुए कहा ।


" कृत्या शक्ति रोकने का उपाय , पोथी में जैसा पढ़ा था ।
' हूं हूं काल प्रिया रक्त प्रिया अति घोरायं कृत्या निष्ठुरा सरसर्पिनी , रति रिया मरणं मुखे अति त्तवी सा भयंकरी ।
नवः प्राण बीजा धारणं फलवंतम तरुन यथा, सा विभेति स्पर्शनं बलहानिम् भवेत । '
लेकिन यहां से मैं कैसे? हाँ एक ही उपाय है । मैं खुद ही तीन बार आहुति देकर कृत्या को वापस बुला लूंगा । "
" लेकिन तुम अगर खुद ही कृत्या के शिकार में बाधा बनोगे तो वो तुमको ही । "
" जो भी हो देखा जाएगा । कोमल को मैं मरने नहीं दे सकता और वैसे भी मैं तंत्र साधक हूं । मुझे हानि पहुंचाना इतना असाना नहीं । "
पागलों की तरह मुकेश यज्ञ कुंड के सामने जाकर बैठा । एक चाकू को अपने बाएं हाथ पर चलाकर वहाँ से निकलने वाले खून को सुरापात्र में मिलाया । अपने खून को अच्छे से मदिरा में मिलाकर मंत्र पढ़ते हुए यज्ञ में तीन बार आहुति प्रदान किया । तुरंत ही एक काला धुआँ यज्ञ कुंड से पूरे कमरे में फैल गया । धुएँ से नरेंद्र सिंह व अमित खाँसते हुए अपने आँखों को बंद कर लिया ।

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कोमल फर्श पर गिरकर दर्द से कराह रही थी । अचानक धक्के से गिरने के कारण उसे चोट लगी है इसलिए उठकर खड़े होने में भी दिक्कत हो रही है ।
दर्द में ही वो चिल्लाकर बोलने लगी ।
" विवेक, विवेक प्लीज़ उसके पास मत जाओ । "
विवेक मानो कुछ सुन ही नहीं पा रहा । सम्मोहन वश वह भयंकरी की तरफ बढ़ता गया । ठीक उसी वक्त यह घटना घटी ।
किसी अदृश्य शक्ति ने उस मायावी को पीछे की तरफ आकर्षित किया । उस शक्ति के कारण कुछ देर तक मायावी की शरीर हवा में उड़ती रही । फिर वह अपने शक्ति से खुद को संभाल लिया । अचानक बाधा के कारण गुस्से से उसका चेहरा विकृत हो गया । कुछ मुहूर्त के लिए विवेक रुक गया था लेकिन फिर से वह बढ़ने लगा ।
फिर उस मायावी भयंकरी को किसी ने खींचना चाहा । गुस्से के कारण वह गर्जन करने लगी । फिर अपनी पूरी शक्ति से खुद को सम्हाल कर फर्श पर पैर रखा ।
ज्यादा देर उस आकर्षण से जूझ नहीं पाएगी यह देख कृत्या विवेक की तरफ स्वयं ही आगे चली आई । दोनों हाथों को फैलाकर व हंसते हुए एक-एक कदम बढ़ाने लगी । कोमल अपनी पूरी शक्ति से उठकर झटपट विवेक के सामने आकर खड़ी हो गई । कुछ भी हो जाए लेकिन वह उस भयंकरी को नहीं जीतने देगी । अगर जान भी चली जाए तो जाए लेकिन जब तक वो जिंदा है विवेक को वह भयंकरी मायावी नहीं छू पायेगी ।


कृत्या अपने होंठ को चाट रही हैं । उसके होठों के बीच दो बड़े दाँत साफ दिखाई दे रहे हैं , मानो कुछ भी नहीं हुआ है
यह सोचकर वह आगे बढ़ रही है ।
अंतिम बार के लिए कोमल ने उस भयंकरी मायावी को धक्का मारा और तुरंत ही कृत्या आतंकित होकर पीछे हट गई । मायावी का चेहरा ऐसा हो गया मानो उसने साक्षात मृत्यु को देख लिया है ।
कोमल के स्पर्श करते ही उसने मानो अपने माया शरीर की क्षमता को खो दिया है । किसी धुआँ के जैसे वह गायब हो रही थी । फिर किसी ने तीसरी बार के लिए उसे आकर्षक द्वारा अपने तरफ खींच लिया । वह भयंकरी काला धुआँ बनकर चिल्लाते हुए हवा में गायब हो गई ।

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उधर मुकेश द्वारा दूसरी बार यज्ञ में आहुति देते ही नरेंद्र सिंह के पैरों तले जमीन कांपने लगी थी । यह किस अशुभ की सूचना है । कमरे के एक कोने में खड़े होकर अमित कांप रहा था । मुकेश ने फिर से मंत्र पढ़ते हुए सामने के यज्ञ कुंड में अंतिम आहुति को प्रदान किया । तुरंत ही यज्ञ की आग तेज हो गई । उसी वक्त इस कमरे का एकमात्र दरवाजा अपने आप टूट गया । एक गर्म हवा आक्रोश में मुकेश के ऊपर झपट पड़ा ।
आतंकित होकर नरेंद्र सिंह ने देखा कि मुकेश अपने आसन से छिटककर दूर जा गिरा है । उसका एक पैर किसी तरह आसन पर अटका हुआ है । मुकेश के अंदर हिलने डुलने की भी क्षमता नहीं है मानो कोई दानवीय शक्ति उसके सीने के ऊपर बैठ गया है । गुस्से व आक्रोश में वह अदृश्य शक्ति मुकेश के गले के लटके मलाओं को तोड़ने लगी । मुकेश का शरीर बलवान है लेकिन इतनी ताकत नहीं है कि वह उस भयंकरी मायावी को रोक सके । इसके बाद दर्द से चिल्लाने की आवाज , नरेंद्र सिंह ने देखा कि मुकेश के सीने में किसी अदृश्य दानवीय शक्ति ने पांच गड्ढे कर दिए हैं जहां से खून निकलता ही जा रहा है । शरीर को कंपाने वाली एक अदृश्य हंसी सुनाई दिया और फिर खून चाटने की आवाज़ भी आने लगी । कोई मुकेश के शरीर से निकलने वाले खून को बड़े मौज से पी रहा है ।
" अंकल जी चली गई यहां से जल्दी भाग चलिए । "
अमित ने नरेंद्र सिंह के हाथ को पकड़कर तेजी से बोला ।
नरेंद्र सिंह उठ खड़े हुए फिर किसी तरह दरवाज़े की ओर बढ़ गए । नरेंद्र सिंह कुछ भी नहीं कर सकते । पागल लड़के ने जो मृत्यु जाल अपने हाथों से बुना है ,अपना खून देकर उसका प्यास बुझाना होगा ।

कोहरा हटकर बगीचे में सूर्य की रोशनी आ गई है । नरेंद्र सिंह हाथ में कॉफी के कप को लेकर बैठे हैं । उनके सामने ही कोमल और विवेक बैठे हैं । कल रात के भयानक विभीषिका की छाप अब भी उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा है ।
" अमित भैया नहीं आए बड़े चाचा ? " धीरे से कोमल ने प्रश्न किया ।
" नहीं , उसने कहा कि वह अब अपनी गलती का प्रायश्चित करेगा । वैसे अमित भी दमदार लड़का है अगर वह मुझे खींचकर उस कमरे से बाहर नहीं निकालता तो पता नहीं मैं वहाँ से बाहर निकल भी पाता या नहीं । मेरा हाथ पैर तो मानो सुन्न ही हो गया था । "
" चाचा जी मुझे एक बात समझ नहीं आ रहा कि कोमल के छूते ही वह भयानक आत्मा डरकर पीछे क्यों हट गई थी । "
" बेटा तंत्र - मंत्र बहुत ही रहस्यमय होता है । तंत्र शास्त्र में कुछ बातें ऐसे बताई जाती है कि अच्छे साधक भी कई बार उसका अर्थ समझ नहीं पाते । मुकेश साधना पथ में बहुत दूर तक आगे बढ़ गया था इसमें कोई दो राय नहीं । मुझे इतनी जल्दी सम्मोहन करना आसान नहीं । लेकिन वही मोह जिसके कारण वह लड़का एक के बाद एक गलती करता गया । और इसी वजह से उसका काल निकट आया । प्रेम और मोह का अंतर जिसे समझ नहीं आता उसे कोई क्या ही समझाए । "
कोमल सिर झुकाए दातों से नाखून चबा रही है ।
विवेक अपने प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा में नरेंद्र सिंह की तरफ देख रहा है ।
नरेंद्र सिंह बोलते रहे ।
" पहली बात यह है कि कृत्या को अपना मूल कार्य करने से पहले कोई और कार्य कराने पर उसका शक्ति कुछ कम हो जाता है । परसों रात को मेरे चेंबर तोड़ने जैसा तुक्ष्य कार्य कृत्या द्वारा करवाने के कारण उसकी शक्ति थोड़ा कम हो गई थी । दूसरी यह है कि कृत्या को एक बार अपने कार्य में भेजनें के बाद उसे कार्य समाप्त किए बिना वापस बुलाने पर वह गुस्से में पागल होकर साधक पर ही हमला कर देगी । तंत्र - मंत्र को लेकर मैंने एक समय बहुत सारी किताबों को पढ़ा था । मुकेश भी यह जानता था लेकिन कोमल को बचाने के लिए उसने अपनी परवाह नहीं किया । और तीसरी बात जिसके बारे में तुम ने प्रश्न किया वह मुकेश के बात को सुनकर जाना था । वैसे कल सुबह ही मैंने इसका अंदाजा लगा लिया था लेकिन मैं पूरी तरह निश्चित नहीं था लेकिन मैं इस वक्त पूरी तरह निश्चित हूं । "
" क्या चाचा जी "
" मुकेश ने किसी तंत्र की पोथी में पढ़ा था कि कृत्या मृत्यु कामना की संकेत है इसीलिए नए प्राण रुपी बीज से वह डरती है । बीज से निकला पौधा इसका एक उदाहरण है । तथा इसके साथ ही जो नारी अपने शरीर में बीज धारण करके गर्भवती है , उससे भी कृत्या डरती है । किसी गर्भवती नारी के स्पर्श से कृत्या की माया खत्म होने लगती है । "
" क्या , क्या सचमुच । "
" हाँ विवेक तुम पिता बनने वाले हो । तुम्हारा संतान कोमल के गर्भ में है इसीलिए कल सुबह वह बेहोश हो गई थी । "
अचानक ही कोमल नरेंद्र सिंह के कंधे पर सिर रखकर रोने लगी । उसके मन में इतनी देर से जमी सभी आंसू मानो मुहूर्त के अंदर बाहर निकल आई ।
नरेंद्र सिंह उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले - " मेरी बेटी क्या इस वक्त कोई रोता है । ये तो सेलिब्रेट करने का समय है ।
कोमल के आंसू को पोछते हुए नरेंद्र सिंह बोले - " रोना नहीं । जाओ तुम दोनों बातें करो मैं जाकर चेंबर को फिर से थोड़ा सजा लेता हूं । और जाता हूं निकिता को भी खबर पहुंचा देता हूं कि इस ख़ुशी के मौके पर आज कुछ अच्छा व स्वादिष्ट भोजन बनाए । ठीक है । "
नरेंद्र सिंह कुर्सी से उठकर चेंबर की तरफ चलने लगे ।
वो जानते हैं कि विवेक अपने प्यार से कोमल को वश में कर लेगा । भगवान की कृपा से लड़की ने ऐसा जीवनसाथी पाया है । कोमल अब विवेक की पत्नी ही नहीं उसके आने वाले बच्चे की माँ भी है । लेकिन नरेंद्र सिंह यह भी जानते हैं कि कोमल के मन में एक प्रेम धारा हमेशा रहेगा जो मुकेश के लिए था । लेकिन इस बारे में किसी को भी कभी पता नहीं चलेगा । नरेंद्र सिंह ने इस धारा का नाम रखा प्रेमतंत्र ।

...समाप्त...



द डार्क तंत्र की कहानियां क्रमशः ....