टापुओं पर पिकनिक - 17 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 17

इस बात पर किसी को भी यकीन नहीं हुआ। पर ये सच थी। साजिद की बेकरी में काम करने वाला अताउल्ला अपने जिस रिश्तेदार के साथ उसके घर पर रहता था वो और कोई नहीं, बल्कि आगोश के घर का ड्राइवर अंकल सुल्तान ही था।
लो, आर्यन, साजिद और आगोश जिस अताउल्ला को नकली ग्राहक बना कर सुल्तान के पास भेजना चाहते थे वो तो ड्राइवर सुल्तान के साथ उसके घर पर रहने वाला उसकी पत्नी का दूर के रिश्ते का कोई भाई ही निकला।
इसीलिए बच्चों की बात सुन कर वह चौकन्ना हो गया। उसने तत्काल घर जाकर सुल्तान को सारी बात बताई और सुल्तान ने फ़ौरन उसे काम छोड़ कर कहीं भाग जाने को कहा।
जाते - जाते वो शातिर दिमाग़ नौजवान अपने मालिक के लड़के को मनगढ़ंत कहानी सुना कर उसके बेटे साजिद को ही फंसा गया।
ये एक तरह से साजिद और उसके दोस्तों को अप्रत्यक्ष धमकी ही थी कि वो अपनी कोशिशों से बाज़ आएं वरना वो उन्हें रास्ते से हटाने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं।
आगोश का माथा ठनका। अब उसकी चिंता ये जानने की थी कि ड्राइवर सुल्तान जो भी कोई अनैतिक या गैरकानूनी काम कर रहा है वो उसके पापा की जानकारी में है या फिर वो पापा को भी धोखा देकर उनके क्लीनिक का बेजा फायदा उठा रहा है।
क्या वो सब मिलकर किसी गोरखधंधे में लिप्त हैं? क्या पापा ये सब जानते हैं? क्या उनकी शह पर ही ये सब हो रहा है? क्या ये पापा के ही कारनामे हैं, और सुल्तान या अताउल्ला जैसे लोग उनके मोहरे भर हैं?
आगोश ने अपने दिमाग़ पर ज़ोर डाला तो उसे ख़्याल आया कि क्या उसे पढ़ने के नाम पर अपने से दूर हॉस्टल में भेजने के मंसूबे के तार भी कहीं पापा के इन्हीं इरादों से तो नहीं जुड़े?
जब उन्हें पता चला कि ख़ुद उनका बेटा किसी संदेह या शंका के चलते उनके कारोबार की तहक़ीकात के लिए अपने दोस्तों को एकजुट कर रहा है तो उन्हें बेटे को इस सब से अलग करने का शायद यही उपाय नज़र आया हो कि उसे शहर से बहुत दूर ही भेज दें!
- ओह शिट! अपने जिन पापा को वो अपनी लाइफ का आइडियल समझ कर उन पर गर्व करता है वो असल में इतने क्रूर और इंसान विरोधी हैं? आगोश का माथा घूम गया।
उसका दिल बुझ गया। काश, ऐसा न हो! पापा की ज़िन्दगी इतनी मैली न निकले।
शाम को जब वो आर्यन से मिला तो आर्यन ने ग़ौर किया कि आगोश आज कुछ अलग तरह से बिहेव कर रहा है। वह अपने पापा के बारे में बात करते हुए उन्हें पापा नहीं कह रहा, बल्कि " देट मैन" कह कर संबोधित कर रहा है। वह बहुत नर्वस लग रहा है। हताश भी।
हद तो तब हो गई जब वह उस रात की बात अपने दोस्त आर्यन को सुनाते हुए बेहद क्रूर हो गया जब उसने मम्मी - पापा के बीच की वो बातचीत सुन ली थी, जो ख़ुद आगोश के बारे में थी।
आगोश शिष्टाचार की भी सारी सीमाएं लांघ गया। बोला- वो नंगा आदमी अपनी वाइफ के साथ सेक्स करते हुए भी पैसा कमाने की बात सोच रहा था...!
- क्या बोल रहा है बे? आफ्टरऑल ही इज़ योर फादर यार! वो तेरे पापा हैं। ...और सेक्स नहीं, लव बोल... उनके साथ तेरी मॉम थीं।
- शिट!
आर्यन ने उसका हाथ पकड़ लिया और धीरे - धीरे उसकी पीठ को सहलाने लगा। जैसे उसे ज़िन्दगी की किसी बड़ी हार पर सांत्वना दे रहा हो। दोस्त की उलझन में दिलासा देना भी दोस्ती ही तो है।
बच्चे देखते - देखते दिन दूने रात चौगुने बड़े हो रहे थे। ज़िन्दगी के सबक इंसान को जल्दी सिखाते हैं।
आगोश कुछ देर चुप रह कर फ़िर बोला- अब चाहे कुछ भी हो जाए मैं ये शहर छोड़ कर कभी नहीं जाऊंगा, कहीं नहीं जाऊंगा।
उसके कुछ ज़ोर से बोलने से आर्यन घबरा गया। उसने आगोश को अपने सीने से चिपटा कर भींच लिया। वह देर तक अपने दोस्त को मौन सांत्वना देता रहा।
वो दोनों इसी तरह न जाने कितनी देर तक बैठे रहते अगर आर्यन के घर में काम करने वाली मेड एक प्लेट में कटे हुए फल लाकर वहां न रखती।
लड़की के घुसते ही वो दोनों आपस में अलग हुए और लड़की प्लेट रख कर जल्दी से बाहर निकल गई।
कुछ देर बाद आर्यन ने फ़ोन करके सिद्धांत और मनन को भी पास वाले पार्क में आने के लिए कहा।
आर्यन ने लोअर उतार कर ट्राउज़र पैरों में डाला और दोनों टहलते हुए पार्क की ओर निकल गए।
ये चारों दोस्तों का लगभग रोज का ही रूटीन था कि वो सब साथ में घूमने के लिए शाम को किसी जगह मिला करते थे।
जब आर्यन और आगोश सड़क क्रॉस करके पार्क के गेट पर आए तो उन्हें वहां सिद्धांत अपनी बाइक पार्क करता हुआ दिखा। शायद सिद्धांत और मनन साथ ही आकर अभी- अभी वहां खड़े हुए थे।
मनन के हाथ में एक बड़ा सा रंग- बिरंगा बैलून लगा था।
आर्यन ने देखते ही कहा- ओये, पड़ोसन की बर्थडे पार्टी से आ रहा है क्या?
मनन बोला- ये तो अभी- अभी ट्रैफिक सिग्नल पर ख़रीदा है।
- क्यों? ये बच्चा रो रहा था क्या? आर्यन ने सिद्धांत की ओर इशारा करते हुए कहा।
सिद्धांत ने बाइक अब तक ठीक तरह खड़ी कर दी थी। वह नज़दीक आते हुए ज़ोर से बोल पड़ा- मैंने ही ख़रीदा था।
- क्यों?
- क्योंकि लड़की बेच रही थी। मनन बोला।
- लड़की देगी तो तू कुछ भी ले लेगा? आर्यन ने कहा।
इस हंसी मज़ाक में दोस्तों में से किसी का ध्यान इस बात पर नहीं गया कि आज उनका यार आगोश फ्यूज़ है।
लेकिन दोस्ती जिंदगी की छोटी- मोटी रिपेयरिंग और ओवरहॉलिंग का ही तो नाम है!
चहल- पहल बढ़ रही थी।