टापुओं पर पिकनिक - 18 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

टापुओं पर पिकनिक - 18

आज सुबह से ही डॉक्टर साहब के पास आने - जाने वालों का तांता लगा हुआ था।
नहीं- नहीं, ये कोई बीमार लोग या फिर उनके संबंधी नहीं थे जो इलाज के लिए या पंजीकरण के लिए अपॉइंटमेंट लेने आए हों। डॉक्टर साहब इनसे बात करने के लिए क्लीनिक पर अपने चैंबर में बैठे भी नहीं थे।
ये तो नौकरी के लिए एक विज्ञापन के जवाब में आने वाले वो बेरोजगार लोग थे जो ड्राइवर की नौकरी पाने के लिए आ रहे थे। डॉक्टर साहब इनसे अपने घर में ड्राइंग रूम के साथ बने अतिथि कक्ष में बैठ कर बात कर रहे थे।
तब आगोश को पता चला कि उनका ड्राइवर सुल्तान भी नौकरी छोड़ कर चला गया है और अब क्लीनिक पर नया ड्राइवर रखा जाना है।
आगोश के दिमाग़ में संदेह इस तरह घर कर गया था कि उसे पापा की किसी भी बात पर अब भरोसा नहीं रहा था। उसे लग रहा था कि शायद भेद खुल जाने के भय से पापा ने खुद ही सुल्तान को कहीं इधर - उधर भेज दिया हो और अब नया ड्राइवर रखने का दिखावा कर रहे हों।
सच में, विश्वास भी शीशे की बनी मूर्ति सा होता है, एक बार उसमें दरार आ जाए तो आ ही जाती है। फ़िर लीपापोती से कुछ नहीं हो पाता। मार्केटिंग कंपनी के लोग क्विकफिक्स या फेवीक्विक जैसे कितने ही उत्पादों के लुभावने विज्ञापन दिखाएं, बात आसानी से बन नहीं पाती।
आर्यन और सिद्धांत के समझाने के बावजूद आगोश बार- बार यही कहता रहा कि पापा ने अपने गैंग के शातिरों को कहीं छिपा दिया है।
वो सब दोस्त अब इस बात पर हंसा करते थे कि कुछ दिन पहले तक वो सुल्तान को ड्राइवर अंकल कह कर घर के मेंबर की तरह ही मानते थे।
एक- दो दिन बाद उन सब ने अपने दोस्त साजिद से उसके घर जाकर मिलने का प्लान बनाया।
साजिद से मिलने की बात के पीछे भी एक मज़ेदार कारण था।
उनके स्कूल में ये खबर फ़ैल गई थी कि साजिद के साथ किस तरह ग़लत- फ़हमी के कारण ये हादसा हो गया कि उसे पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी।
स्कूल के सभी परिचित बच्चे अपने - अपने हिसाब से अपना दिमाग़ दौड़ा रहे थे कि साजिद की सहायता किस तरह की जाए?
उनके साथ पढ़ने वाली दो लड़कियां एक दिन आर्यन से मिलने उसके घर पर आईं। उन्होंने आर्यन से पूरी घटना के बारे में विस्तार से सब जाना।
उनमें से एक, मनप्रीत तो बार- बार कह रही थी कि मैं साजिद को अच्छी तरह जानती हूं। वो बेहद इनोसेंट लड़का है। मैं किसी भी तरह से उसकी हेल्प करना चाहती हूं।
उसने आर्यन से ही पूछा कि उन लोगों को क्या करना चाहिए! बेचारे साजिद के साथ ये तो बहुत ही बुरा हुआ। ऐसे तो उसकी लाइफ ही स्पॉयल हो जाएगी।
मनप्रीत की बात सुन कर आर्यन कुछ गंभीर हो गया।
आर्यन ने जब ये बात आगोश, सिद्धांत और मनन से शेयर की तो सबको आश्चर्य हुआ।
- हमने तो कभी इस तरह कुछ सोचा ही नहीं। मनन बोला।
- लेकिन मनप्रीत को साजिद में इतना इंटरेस्ट क्यों है? सिद्धांत बोल पड़ा।... यार, अन बिलीवेबल..वो तेरे घर आई ये कहने?
- हां.. यार होगा कुछ! आर्यन ने कहा।
आगोश को मज़ाक सूझा। बोला- यार मनप्रीत से पूछ, क्या उसके पास कोई सबूत है क्या?
- काहे का?
- इस बात का, कि साजिद किसी को प्रेग्नेंट नहीं कर सकता! आगोश बोला।
सब हंस पड़े।
आर्यन सीरियस हो गया। बोला- मज़ाक छोड़, मैंने तो गर्ल्स से ये कहा है कि हम आज साजिद से मिलने जाएंगे। फिर उससे ही पूछेंगे कि क्या हम लोग उसके अब्बू से मिलें? हम उसके अब्बू को पूरी बात सच - सच बता कर समझाएं कि ये सब कैसे हुआ। उन्हें समझाएं कि आपकी बेकरी में काम करने वाला अताउल्ला कौन है और उसने साजिद का झूठा नाम क्यों लगा दिया। अब तो हम सब जानते हैं कि अताउल्ला सुल्तान का रिश्तेदार ही था। उसने ख़ुद की मुसीबत से बचने के लिए साजिद का नाम बिना बात ऐसे ही ले दिया। इसीलिए तो वह काम छोड़ कर भाग गया। और अब उसका रिश्तेदार सुल्तान भी तो नौकरी छोड़ कर भाग गया।
- हां यार, ये तो साजिद के अब्बू को समझना चाहिए कि अगर साजिद ने अपनी किसी फ्रेंड के साथ ग़लत काम कर भी दिया तो अताउल्ला और सुल्तान नौकरी छोड़ कर क्यों भागे? सिद्धांत ने भी सहमति जताई।
सबको ये ज़रूरी लगा कि उन्हें साजिद के पिता से मिलना ही चाहिए। सबके एक साथ उनके पास जाने से वो उनकी बात ध्यान से सुनेंगे भी और उस पर विश्वास भी करेंगे।
- यार हमसे अच्छी तो वो लड़कियां ही निकलीं जिन्होंने कम से कम साजिद की कुछ हेल्प करने के बारे में सोचा तो सही। हम सब तो ऐसे ही बैठ गए। मनन ने कहा।
- आर्यन अपनी आंखों से साजिद को उस दिन पिटते हुए देख आया था न, इसीलिए ये डर गया शायद! बाद में हममें से किसी का भी ध्यान इस तरफ गया ही नहीं। सिद्धांत बोला।
- पर सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि मनप्रीत साजिद के बिना इतनी परेशान क्यों हो गई? आगोश धीरे से बोला।
- चुप! नालायक। हमेशा लड़कियों के विरुद्ध ही सोचता रहता है। आर्यन ने कहा।
- लगता है ये लड़कियों के पक्ष में है... सिद्धांत ने स्पष्ट किया।
चलो, चलते हैं शाम को! आर्यन बोला।
- कहां? मनन ने पूछा।
- मनप्रीत के पास! ... सॉरी- सॉरी.. साजिद के पास! पहले उससे बात करेंगे, फ़िर उसके पिताश्री से! आगोश ने कहा।