टापुओं पर पिकनिक - 5 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 5

एक कहावत है- बिल्ली के भाग से छींका टूटना।
बिल्कुल यही हुआ। आर्यन के दोस्त आगोश के पापा को एक दिन के लिए किसी ज़रूरी काम से शहर के बाहर जाना पड़ा। और संयोग ऐसा हुआ कि आगोश की मम्मी के लिए भी उसी दिन एक शादी में जाने का इन्विटेशन आया। शादी समारोहों पर संख्या के कंट्रोल के चलते ये इन्वाइट केवल एक ही व्यक्ति के लिए था। अतः आगोश की मम्मी आगोश को भी अपने साथ नहीं ले जा सकीं।
ऐसे में उसकी मम्मी को याद आया कि कुछ दिन पहले बच्चे अकेले कहीं जाकर साथ में नाइट-स्टे करने की परमीशन मांग रहे थे। तो क्यों न बच्चों को वही मौक़ा आज घर में ही दे दिया जाए?
आगोश की मम्मी ने आगोश से कहा कि आज रात को वो अपने सब दोस्तों को यहीं अपने घर बुला ले। आज उसके मम्मी और पापा दोनों ही बाहर रहने वाले थे।
आगोश ने झटपट सबको फ़ोन किया। देखते - देखते सबको अपने घर पर इसकी अनुमति मिल गई। आख़िर बच्चों का दिल रखने के लिए इस घुटन भरे माहौल में सब माता- पिता उनकी ख़ुशी के लिए इतना तो कर ही सकते थे।
आगोश की मम्मी ने ड्राइवर से कह दिया कि वो सब बच्चों को उनके घर से ले आए। उनके लिए नाश्ते -खाने की व्यवस्था भी कर दी गई और वो चली गईं।
शाम होते - होते आर्यन, साजिद, मनन, सिद्धांत और आगोश सब एक साथ थे।
- नहीं- नहीं, अब कहीं जाने- आने की ज़रूरत किसी को नहीं पड़ेगी, आप भी जाकर आराम करो... आगोश ने ड्राइवर अंकल को भी भेज दिया और बंगले का मेन गेट बंद कर लिया।
बच्चे खासे उत्साहित थे। वैसे तो आगोश के जन्मदिन या किसी अन्य अवसर पर यहां आते ही रहते थे लेकिन ये पहला मौक़ा था जब पांचों दोस्त इस तरह किसी घर में एक साथ अकेले हों, वो भी रात भर!
दरअसल ये आइडिया भी आर्यन को महीनों पहले टीवी पर देखी किसी मूवी से ही मिला था। तभी से उसके दिमाग़ में ये बात बैठी हुई थी कि वो सब दोस्त भी अपने पैरेंट्स से एक दिन ऐसी परमीशन लेकर एक रात साथ में बिताएंगे।
उन्हें शहर से बाहर जाने की अनुमति तो नहीं मिली थी लेकिन ये भी क्या कम था कि उन्हें अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर इस तरह मिला।
पांचों ने इकट्ठे होकर डाइनिंग टेबल पर खाना खाया। आगोश की मम्मी ने ढेर सारी चीज़ें बच्चों के लिए मंगवा कर रख दी थीं। मज़ा आ गया।
आगोश का ये घर दुमंजिला था। नीचे की मंज़िल पर उसके पापा का बड़ा सा क्लीनिक था और ऊपर के तल पर वो लोग रहते थे। बंगले के पीछे एक छोटा सा सर्वेंट क्वार्टर था जिसमें कभी- कभी उनका ड्राइवर रहता था।
बंगले के दोनों ओर गैरेज बने हुए थे जिनमें से एक तरफ़ का कमरा डॉक्टर साहब की क्लीनिक के लिए रिसेप्शन के काम आता था।
- हम सोएंगे कहां? मनन के इस सवाल पर चारों एक साथ हंस पड़े।
सिद्धांत बोला- यहां सोने आया है क्या? जा भाग, सोना ही है तो अपने घर चला जा।
मनन कुछ मायूस सा हो गया। तभी सबको हंसते देख कर वो समझ गया कि शायद सब उससे मज़ाक कर रहे हैं।
तभी साजिद बोल पड़ा- फ़िर हम सारी रात क्या करेंगे?
उसकी बात सुनकर मनन थोड़ा ख़ुश हुआ, क्योंकि यही तो वो भी पूछ रहा था।
आर्यन बोला- डोंट वरी, हम जो भी करेंगे, वो बहुत एक्साइटिंग होगा। मज़ेदार।
पांचों बच्चे एक ही क्लास में पढ़ने वाले हमउम्र बच्चे थे लेकिन एक रात के लिए अपने - अपने घर से अकेले दूर आने पर उनके मन के भीतर का अंतर अब दिख रहा था।
यही तो पर्सनैलिटी कहलाती है।