Meri pagli meri humsafar - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

मेरी पगली...मेरी हमसफ़र - 8

प्रीत छत पर पहुंचा और आराध्या को कॉल लगाते हुए बोला, 'हां, बोलो आराध्या'!

आराध्या गुस्से में बोली, 'बोलूं क्या बोलूं मै, मतलब हम'! कहां बिजी हो इतने!और तुम्हारा फोन तानी के पास क्यों है'?

प्रीत ने फोन कान से लगाये रखा और शांति से झुला झूलने लगे।एक शब्द नही बोला मुंह से।जिसे जान कर आराध्या फिर बोली, 'अब मुंह पर क्या दही जमा लिए हो जो मुंह खोलोगे तो बाहर निकल गिर पड़ेगा?' सुनकर प्रीत ने फिर भी कुछ नही कहा।उसने सामने दरवाजे के पास छिपकर खड़ी समा और तानी दोनो को देखा तो मुस्कुराते हुए हाथो के इशारे से पास बुला लिया।तानी समा और उनके पीछे पीछे चित्रांश भी ऊपर चले आये।तानी प्रीत के पास जाकर फोन ले स्पीकर पर डाल मुंह पर हाथ रख बैठ गयी।वो बड़बड़ाते हुए बोली चिपकू ..सी।ज्यादा उलझी न तो मुंह तोड़ दे हम इसका..!उसे सुन प्रीत ने तानी की ओर आँखे फैलाते हुए देखा तो तानी ने दूसरा हाथ भी मुंह पर रख लिया।

आराध्या बोली, 'मैं बताये दे नही नही हम!हम बताये दे रहे है ये उपेक्षा अच्छी नही है प्रीत बाबू बहुत महंगी पड़ेगी आपको' जिसे सुन प्रीत अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बोले, सस्ते का शौक रखता नही मैं' और आप न ये दुसरो की नकल करना छोड़ क्यों नही देती।बात करने का लहजा बदलने से इंसान का वास्तविक स्वभाव या उसकी पहचान बदल तो नही जाती,सियार चाहे कितनी भी देर शेर की खाल पहन ले रहेगा तो वो सियार ही न,शेर तो नही बन जायेगा।न जाने आप कब ये बात समझेंगी आराध्या'।

'मैं नही समझती तो तुम समझाओ जैसे अपनी काली मेरा मतलब है तानी को समझाते हो।मुझे भी समझाओ तुम समझाओगे तो मैं जरूर समझूँगी'

तानी के बारे मे कुछ कहने पर प्रीत हल्का सा बिगड़ गया।उसे ये बिल्कुल पसंद नही था कि कोई उसकी प्रिंसेस के बारे मे कुछ भी कहे वो बोला 'पहली और आखिरी बात मेरी तानी के बारे में कुछ भी मत बोलना।जान बसती है मेरी उसमे उसकी आंखों में आंसू बर्दास्त नही है फिर वजह कोई भी हो।मेरी गुड़िया मेरी प्रिंसेस सबसे सुन्दर है और सबसे अच्छी है समझ गयी।' सुन कर तानी मुस्कुरा दी।और प्रीत को देख और धीमे से बोली 'हमारा भाई सबसे अच्छा है लव यू भाई'!

प्रीत का मूड बिगड़ गया जान कर आराध्या चुप रह गयी।कुछ क्षण की खामोशी के बाद वो बोली 'सॉरी प्रीत बस गलती से जुबां फिसल गयी।'

प्रीत :- गलती से लाइक रियली?
आराध्या :- हम्म,थोड़ा बुरा लगता है मैं इतने एफर्ट करती हूँ तुम्हारे लिए,लेकिन तुम हो कि कुछ भी रिएक्ट नही करते।तो मुझे लगता है इसके लिए कहीं न कहीं तानी जिम्मेदार है।

'बस आराध्या!किसी भी बात के लिए तानी को जिम्मेदार मत ठहराना!ये मैं टॉलरेट नही करूँगा।आप अच्छे से जानती हो आपकी बाते मैं सिर्फ तानी के लिए सुनता हूँ क्योंकि जिस कैम्पस में तानी और मैं हूँ उसमे आधा हिस्सा तुम्हारे अंकल का है।उस पर वो कॉलेज के प्रिंसिपल ठहरे।आप अगर चाहो तो दो मिनट में हमे वहां से निकलवा सकती हो।ऐसा हुआ तो उसकी स्कूलिंग बर्बाद हो जायेगी जो मुझे मंजूर नही।अभी तो उसे स्कूलिंग और कॉलेज भी वहीं से करना है तो पानी में रहकर मगर से बैर क्यों लिया जाये।'कहते हुए प्रीत ने तानी की ओर देख हाइ फाइव के लिए हाथ बढ़ाया जिसे तानी ने हाथ बढ़ा कर पूरा कर लिया।वो उठी और मुंह पर हाथ रख वहां से पौधों की ओर भाग गयी और हंसने लगी।

आराध्या बोली, ' हां तो तानी और मेरा मैटर अलग है उससे तो मेरा छत्तीस का आंकड़ा है।उससे तो मैं अपने तरीके से निपटूंगी मिस्टर प्रीत मिश्रा!'

प्रीत ने कहा :- उसके आगे उसका भाई खड़ा है याद रखियो!हम दोनो ही एक दूजे का सहारा है ज्यादा लिमिट क्रॉस की आपने तो दोनो ही आपकी नींदे हराम कर देंगे।आप दिल की साफ है,जो मन में होता है वो कह देती है इसीलिए मैं आपको झेलता हूँ!आपकी नादानियां बर्दाश्त करता हूँ।इससे ज्यादा कुछ नही है समझ गयी या और समझाऊं।और हां रही फोन की बात तो भाई हूँ मैं उसका मेरी चीजो पर सबसे पहला हक उसका है वो फोन भी लेगी मेरा और टाइम भी।उसका जब मन होगा तब लेगी अब रखो फोन बहुत देर हो गई है।प्रीत ने हल्के रुड़लि होकर कहा तो आराध्या बोली,आप मुझसे ऐसे बात नही कर सकते हैं,भूल गये अभी कुछ देर पहले कहे गये वो शब्द।'

प्रीत बोला :- भूला नही इसीलिए तो बस शांत हूँ अभी।कोई एक्शन नही लिया आप पर।तानी वापस आई और फोन लेते हुए बोली, 'हो गयी बात आपकी अब फोन हम लेकर जा रहे है भाई हमे मासी और बड़ी मां को अपने अच्छे अच्छे फोटो जो दिखाने है' कहते हुए उसने फोन कट कर दिया और प्रीत से बोली, ' ऐसे फोन काटते है भाई,भूल गये क्या।'

नही तो,'भूला नही हूँ बस इंतजार कर रहा था कब तू आकर अपना काम करेगी'

ये सही है भाई उससे हमारे कॉलेज का झूठ बोल दिया जिससे अब वो हमारे वहां से आने पर कोई तीन पांच नही करेगी।उसे पता भी नही चलेगा कि कब हम वहां से निकल अपने घर आ गये।इसे कहते है स्मार्टनेस!तानी ने सोचते हुए कहा।जिसे सुन प्रीत बोले नही इसे कहते है जैसे को तैसा।।

अच्छा!भाई।बस मजा आ गयी आपकी बातें सुन।अब चले नीचे।तानी ने उठते हुए कहा।हम्म चल कह प्रीत सबके साथ नीचे चला आया।

समर्पिता चित्रांश प्रियांक और बाकी सब शोभा जी से कह वहां से नदी के किनारे निकल गये।तानी और प्रीत घर पर ही सबके पास रुक गये।तानी फोन ले सबको अपने स्कूल फंक्शन के फोटो दिखाने लगी।तानी को व्यस्त जान प्रीत शीला जी और शोभा से कह वापस अपने कमरे में चले आया।उसने दरवाजा फेरा और वापस से डायरी निकालते हुए खुद से बोला, 'अब मैं कुछ देर के लिए निश्चिन्त होकर पढ़ सकता हूँ तानी अब सबके साथ व्यस्त रहेगी और कमरे का दरवाजा लगा देख बाकी सब मुझे सोया जान कर डिस्टर्ब करने नही आएंगे।'प्रीत ने डायरी का स्पर्श कर उसे चूम लिया और उसके पृष्ठ खोल कर आगे पढ़ने लगा।

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'प्रेम वो खूबसूरत रास्ता है जिसकी कोई मंजिल नही होती।'

उस घटना के बाद अर्पिता खामोश रहने लगी थी।श्रुति को कॉलेज छोड़ते हुए मेरी अक्सर उससे मुलाकाते होती रहती।उन मुलाकातों में जब भी मेरी आँखे उसकी खामोशी को पढ़ने की कोशिश करती तो एक ही बात समझ आती मुझे उसकी आंखों में कुछ खालीपन सा आ गया है जो शायद उसके मन में भरे गुबार से है।कहते है आँखे वो रास्ता है जिससे हम अगर चाहे तो व्यक्ति की नीयत और उसका स्वभाव दोनो पता कर सकते है।मुझे उसकी खामोशी चुभती थी लेकिन मैं उसे किस अधिकार से जताता!इसीलिए कभी कुछ कहा नही।एक दिन कॉलेज जाते हुए श्रुति ने मुझे बताया कि कॉलेज में सांस्कृतिक कार्यक्रम होने जा रहे थे वो चाहती है कि अर्पिता उसके साथ शामिल हो।भले ही वो उसमे कोई प्रस्तुति न दे लेकिन साथ रहकर हौंसला तो बढ़ा सकती है।इसीलिए वो अर्पिता से इस बारे में बात करेंगी।श्रुति की बात सुन मैंने उसे समझाते हुए बोला,वो अभी नही आयेगी श्रुति!इस बारे में कुछ मत कहना उससे कहीं ऐसा न हो उसे तुमसे न कहना पड़े और फिर तुम्हारी भावनाओ को तकलीफ हो।श्रुति ने एक बारगी मेरी ओर देखा जिससे मैं समझ गया उसके देखने का एक ही मतलब था 'मैं इतने विश्वास के साथ कैसे बोल सकता हूँ।' ख्याल आया प्रेम में खामोशियों को समझना बहुत मायने रखता है,अगर मैं उसकी खामोशी को नही समझ पाया तो फिर लफ्ज तो लफ्ज है हम कितना ही बोलते रहे सब अर्थहीन ही रहेंगे।'

श्रुति से कहा, 'बस यूँही जानता हूँ।'सुनकर उसने फिर से अपनी आँखे रास्तो पर जमाई और चुप हो गई।मैं चुपचाप बाइक राइडिंग करने लगा।कुछ देर बाद वो बोली 'भाई वो बहुत खामोश हो गयी है, ऐसा लग रहा है वक्त ने उससे उसकी मुस्कुराहट और बातें दोनो चुरा ली हो!'मैं समझ रहा था उसके लिए मुश्किल हो रहा होगा इन सब का सामना करना।श्रुति से कहा,' उसे थोड़ा और वक्त दो श्रुति अभी उसके जख्म भरे नही!!आसान नही होगा उसके लिए इस हादसे से निकलना।हां वो इतनी मजबूत है कि अवश्य निकलेगी।'हम्म ऐसा ही हो भाई' श्रुति ने कहा।उसका कॉलेज आ गया तो मैंने बाइक रोक दी श्रुति उतर कर कॉलेज गेट पर खड़ी अर्पिता के पास चली गयी जिसकी नजरे मुझ पर ही जमी थी।लेकिन मेरे देखते ही उसने हटा ली।यही आंख मिचौली चलती थी हमारे बीच।मैं वहां से ऑफिस आ गया।ऑफिस मे बैठा फाइले समेट रहा था तभी मेरे पास श्रुति का कॉल आया, मैंने फोन उठाया तो उधर से अर्पिता की आवाज सुनाई दी।पहली बार मैंने फोन पर उसकी आवाज सुनी थी उस दिन।बहुत प्यारी आवाज थी,मुझे लग रहा था कि मधु गुन गुन कर कुछ कह रही हो मुझसे।वो बोली, सुनो अभ्यास करते हुए श्रुति गिर पड़ी है उसके सर और पैर दोनो में चोट लग गयी है,अगर आप आकर उसे ले जाये तो ठीक रहेगा।'

'हम्म आता हूँ' मैं इतना बोला तो उसने 'धन्यवाद' कह फोन रख दिया।मैं दोबारा उसके कॉलेज पहुंचा जहां वो श्रुति की बैंडेज कर बड़े प्यार से उसके पास बैठ पैर की मसाज कर रही थी।

उसे कतई झिझक या शर्म नही थी सबके सामने कार्य करने मे।देख ख्याल आया 'यूँ ही तुम्हे मेरे दिल ने नही चुना अर्पिता' मुस्कुराते हुए मैं उसके पास पहुंचा।उसने बिन ऊपर देखे कहा, 'आ गये आप,प्रशांत जी!'

'हम्म' मैंने कहा और श्रुति का बैग और उसे दोनो को घर ले आया।घर आकर श्रुति को पेन किलर दे मैं वापस ऑफिस चला आया।धीरे धीरे पंद्रह दिन और बीत गये।एक शाम मैं रूम पर बैठा हुआ ऑफिस प्रोजेक्ट की प्रेजेंटेशन तैयार कर रहा था।श्रुति मुझसे कुछ दूर ही थी वो वीडियो कॉल पर किसी से बात कर रही थी।उसके कान में हेडफोन था जिस वजह से मुझे ये तो पता नही चल रहा था कि फोन पर आखिर है कौन लेकिन इतना पता चल रहा था कि उसका कॉल आने पर श्रुति खुश बहुत थी।वो एकदम से बोली,हेल्लो अप्पू!आज वीडियो कॉल कैसे कर लिया!'अप्पू' नाम सुन कर ही मेरे मन में हलचल हो आयी।पता चला इतने दिनों में पहली बार उसने वीडियो कॉल की थी।मैं काम करते हुए उसे सुनने लगा।कुछ देर बाद श्रुति चौंकते हुए बोली,'तुम कल घर जा रही हो अप्पू!' मेरे कान खड़े हो गये।अब तक तो उसे श्रुति को छोड़ने के बहाने चोरी चुपके देख लेता था लेकिन जब वो जा रही थी तो कैसे देखूंगा उसे।न जाने कितना समय लगेगा उसे वापस आने में।इंतजार तो मैं कर लूंगा लेकिन एक बार दीदार तो बनता है।सोचते हुए मैं अपनी जगह से उठा और लैपी लेकर श्रुति के पीछे से गुजरा!जहां वो आज भी हल्के नीले रंग में थी।उस दिन से मुझे नीले रंग से भी इश्क़ हो गया वो रंग मेरा पसंदीदा रंग बन गया उसकी वजह भी वही थी अर्पिता,जो नीले रंग में बहुत प्यारी नजर आती थी।मैं लैपी लेकर वहां से रूम में चला आया और उसे एक ओर रख उसके बारे में ही सोचने लगा।कुछ देर बाद रोज की तरह मैं गिटार लेकर छत पर चला गया और उसे ट्यून करने लगा।लेकिन उस दिन मन एकाग्र ही नही हुआ!कोई नयी पुरानी धुन मुझसे बन ही नही रही थी।मन में उसका ख्याल आ रहा था न जाने अब उससे कब मुलाकात होगी,कितना समय लगेगा उसे वापस आने में इन ख्यालो से उलझ मैंने गिटार उठा एक ओर रखा और बस उस चंद्रमा को देखने लगा।देखते हुए मैं वहीं बैठे बैठे नींद की आगोश में चला गया।

अगली सुबह हमेशा की तरह साढ़े चार बजे के आसपास मेरी आंख खुल गयी।मैं उठ कर गिटार ले नीचे चला आया और सारे काम से फ्री होकर जिम निकल गया।सर्दियां शुरू होने जा रही थी।सुबह शाम बहुत हल्की हल्की गुलाबी सी सर्दी पड़ती थी मैं रोज की तरह जिम पहुंच गया।रोज से कुछ टाइम पहले पहुंचा था इसीलिए कोई स्पॉट खाली नही था।ये देख मैंने वहीं जिम में चल रही टीवी ऑन की और न्यूज़ सुनने लगा।चलाते ही मेरा मन सिहर गया।"ट्रेन के पटरी से उतरने के कारण हुआ बड़ा हादसा।"ये खबर ब्रेकिंग न्यूज बन बड़े बड़े अक्षरो में टीवी पर चल रही थी।जिसे सुन मैं सकते में आ गया उस पल मेरे जेहन में तुरंत अर्पिता का ख्याल आया।बहुत घबरा गया मेरा मन।बस दुआ कर रहा था वो ठीक हो।मुझे उसके पेरेंट्स के बारे में कुछ नही पता था।नही जानता था मै कि वो भी उसके साथ हैं।मैंने तुरंत फोन उठा कर घुमाया!फोन लगा नही!और जब लगा तो फिर रिसीव ही नही हुआ।उस पल मुझे बहुत तकलीफ हो रही थी लग रहा था बस अभी इसी क्षण मैं उसके पास पहुंच जाऊं।उसकी ट्रेन के बारे में तो मैंने श्रुति से बातों ही बातों में पता करा लिया था।बिन देर किये मैं वहां से रूम पहुंचा।चेंज किया वॉलेट और एक कैरी बेग डाला और अगली गाड़ी पकड़ कानपुर सेंट्रल के लिए निकल गया।मन में बस उसके ठीक होने की दुआ ही गूंज रही थी।मन बहुत परेशान था एक एक लम्हा बड़ी मुश्किल से गुजर रहा था!सौ किलोमीटर की दूरी मुझे हजार लग रही थी!मैं बस जल्द से जल्द उसके पास पहुंचना चाहता था!लेकिन ट्रेन तो लेट पर लेट हुए जा रही थी।गाड़ी में बैठे लोग मुझे परेशान देख सवालिया नजरो से मेरी ओर देखने लगे जिसे जान कर मैं सीट से उठकर दरवाजे पर चला आया।लगभग दो घण्टे बाद मैं कानपुर सेंट्रल पहुंचा और उतर कर आगे बढ़ने लगा वहां मेरी नजर वहीं एक बेंच पर बैठी हुई अर्पिता पर पड़ी। जिसे देख मैने 'ठाकुर जी का कोटि कोटि धन्यवाद है कि तुम ठीक हो अप्पू'कहते हुए उनका आभार प्रकट किया। मैं उसके पास पहुंचा तो उसे देख चौंक गया।वो अपनी सुध खोते हुए गिर रही थी।उसके बाल बिखर चुके थे।खूबसूरत सी आँखे आंसुओ से हल्की गुलाबी होने लगी।उसे गिरता देख बिन देर किये मैंने उसे थाम कर सीधा बैठाया और अपने पास मौजूद पानी की बोतल निकाल उसके मुंह पर पानी के छींटे दिये।कुछ ही देर में अर्पिता की मूर्छा टूटी और उसने अपनी आंखें खोल दी।जिसे देख मैंने राहत की सांस ली। उसकी आंखों झरने लगी।अगले ही पल वो फूट फूट कर रोने लगी।उसने कहा 'हमारे मां पापा उस ट्रेन में थे वो कहाँ है ये हमे पता नही चला।हमने वहां जाकर उन्हें बहुत ढूंढा प्रशांत जी।लेकिन वो हमें नही मिले।मां पापा।हमे जाना होगा उन्हें हमारी जरूरत है कहते कहते वो अचानक से उठी और आगे बढ़ गयी।लेकिन इस बार उसे थोड़ा आगे बढ़ कर रुकना पड़ा।मैंने देखा उसका आँचल मुझसे उलझा था पड़ा था।वो पीछे मुड़ी और अपना दुपट्टा मेरे हाथ से छुड़ाते हुए बोली।'प्लीज हमारी मदद कर दीजिए आप,हमारे मां पापा को ढूंढने में!!प्लीज'।उसकी आँखे अब तक लाल हो चुकी थी।उसे यूँ इस तरह दुखी देख मेरी आँखे भर आई मैं खड़ा हुआ और उसके आंसुओ को पोंछ निशब्द 'हां' में गर्दन हिलाई।उसका हाथ थामा और रेलवे अधिकारियों के रूम की ओर बढ़ गया।

मैं उसे लेकर रेलवे ऑफिसर्स के कमरे के अंदर गया और उसका हाथ थामे हुए ही उन ओफिसर्स से ट्रेन में मौजूद घायलों को ले जाने वाली जगह के बारे में पूछा।उन्होंने मुझे अस्पताल का पता बताया।तो मैं वहां से उसे साथ लेकर नजदीकी अस्पताल पहुंचा।वहां रेल हादसे से घायल हुए मरीज एडमिट थे।जो दर्द से कराह रहे थे।उनके शरीर के कई हिस्सो पर चोट लगी थी।वहां घूम घूम कर हमने सारा वार्ड देख लिया लेकिन वो कहीं नजर नही आये।हर गुजरते लम्हे के साथ उसके चेहरे पर परेशानी के भाव बढ़ते जा रहे थे जिसे देखना मेरे लिए असहनीय हो रहा था।ये देख मैंने सोचा 'टूट कर जीने से बेहतर है एक उम्मीद के सहारे जिया जाए।'सोचते हुए मैंने अर्पिता का हाथ अपने दोनों हाथों मे लिया।उसने नजरे मुझ पर जमा ली मैं बोला, 'अप्पू,यहां के लगभग सभी वार्ड हमने देख लिए है।अब मैं जरा यहां के डॉक्टर्स से बात कर आता हूँ उनसे पूछता हूँ कि इसके अलावा और घायलों को कहां रखा गया है।यहां कुछ ही बचे है तुम यहां देखो मैं पता कर के आया।बस भरोसा रखना अंकल आंटी जहां भी होंगे बिल्कुल ठीक होंगे।यहां से कहीं जाना नही ओके।'

अर्पिता ने रोते हुए हां में गर्दन हिला दी।उसकी आंखों में आंसू देख इस बार मैं खुद को रोक नही पाया और उसके गले से लग गया।मैं धीरे धीरे बोला 'अप्पू रोना नही है बस भरोसा रखना है सब ठीक होगा।सब सही होगा।'
उसने कुछ नही कहा बस यूँही खड़ी रही।मुझे याद आया इमोशन मे मैं मेरी लिमिट भूल गया।याद आने पर मैं सॉरी कहते हुए उससे अलग हुआ और वहां से चला गया।
ख्याल आया 'काश मैं कुछ कर पाता।काश' !! हालात क्यों इंसान को इतना बेबस बना देते है, जहां वो चाह कर भी कुछ नही कर सकता क्यों?मैं वहां से दूसरे रूम में चला आया।वो रूम उन लोगों का था जो इस जहां से जा चुके थे।हृदय कड़ा कर वहां भी अर्पिता के मां पापा को ढूंढा।वहां कोई नही दिखा।सो मैं वहां से वापस अर्पिता के पास चला आया।अर्पिता वहीं बेंच पर बैठ चुकी थी।मेरे आने पर उसने उम्मीद भरी नजरों से देखा।जिसे देख मैं अर्पिता के पास बैठ उससे बोला 'अप्पू हमे हिम्मत से काम लेना होगा आज नही तो कल अंकल आंटी जरूर मिल जाएंगे।हमे अब यहां से निकलना होगा।रात होने वाली है और तुम्हारे घर जाने वाली रूट की सभी गाड़िया काम चलने की वजह से अभी रद्द कर दी गयी है।हमें यहां से लखनऊ के लिए निकलना होगा।' मेरी बात सुन अर्पिता उठ कर खड़ी हो गयी।मैं उसे लेकर बस स्टॉप पहुंचा वहां से वापस लखनऊ जाने वाली बस पकड़ी।
उसे विंडो सीट पर बैठने को कहा तो वो बिन कुछ कहे चुपचाप बैठ गयी।परम को अपने बारे में बताने के लिए मैंने अपना फोन निकाला तभी वो अचानक से खड़ी हुई और तेजी से बस से बाहर निकल आई।मैं समझ नही पाया क्या चल रहा था उसके मन में।शायद उसकी मन स्थिति भी ठीक नही सोचते हुए मैं उठा और उसका साथ देने के लिए चुपचाप नीचे चला आया।प्रेम की पहली कसौटी ही यही है कि बिन किसी सवाल के अपने प्रेम का साथ हर हाल में दिया जाये।सुख हो या दुख मिल कर बांट लिया जाये!' मैं भी बस बिन सवाल किये उसके पास चला आया और उसके पास आकर खड़ा हो गया उसे ये एहसास दिलाने के लिये शान हमेशा उसके साथ है।चाहे वो कुछ कहे या बस खामोश रहे।

नीचे आकर अर्पिता वही खाली पड़ी जगह पर बैठ गयी।उसकी आंखें भर आई थी।वो खुद से बड़बड़ाने लगी," सब हमारी ही गलती है।अगर हम कभी लखनऊ पढ़ने के लिए नही आते, तो हमारा सामना शिव और उसके दोस्तों से होता ही नहीं,जब सामना नही होता तो झगड़ा भी नही होता।जिससे बात इतनी आगे बढ़ती कि हमारा अपहरण होता।अपहरण नही होता तो हमारी मासी भी आज हमारे साथ होती।हमारी तरफ आने वाली मृत्यु को मासी ले कर चली गयी।दादी ने हमे घर से निकाल दिया।हम अगर यहां नही आते तो ये सब होता ही नही।दादी हमारे मां पापा को यहां नही बुलाती और न ही उनके साथ ये हादसा होता।सब हमारी वजह से हुआ है!इन सब के जिम्मेदार हम ही तो है।" उसे सुन मैं चौंक कर रह गया।सुन कर समझ आया वो अपनी मर्जी से इस शहर से नही जा रही थी ,बल्कि उसकी दादी ने उसे जाने को कहा था।किरण की दादी उसे आंटी जी के साथ हुई दुर्घटना का जिम्मेदार मानती हैं।जो गलत है,हादसे किसी की भी लाइफ में कभी भी हो सकते है।।उस दिन जो हुआ वो जानबूझकर तो नही किया गया था।

उसकी बातों से साफ पता चल रहा था कि वो तनाव में थी जहां से उसे निकालना जरूरी था मैं उसे समझाते हुए बोला 'अप्पू,ये उल्टा सीधा सोचना बंद करो।तुम्हारी कोई गलती नही है!सब एक हादसा था और कुछ नही।तुम अभी मेरे साथ लखनऊ चल रही हो ओके।चलो बैठो बस में।'

अर्पिता अटकते हुए बोली 'नही हम नही जाएंगे अब वहां।हम जा भी नही सकते अब!हमें घर जाना है आगरा! हम वहां की बस पकड़ते हैं।फिर चुप हो गयी।मैं कुछ बोलने को हुआ तो वो फिर बड़बड़ाई 'नही आगरा भी जाकर करेंगे क्या..? वहां भी जब सबको पता चलेगा कि ट्रेन हादसे में हमारे माँ पापा खो गए है और हम बच गए तो सब हम पर ही सवाल पर सवाल करेंगे।सब कोई हमे हमदर्दी से देखेगा।ये कोई नही समझेगा कि आपकी वजह से हमारी ट्रेन मिस हो गयी।आप की वजह से।आप सुबह से हमारे साथ थे और हम उस सब को अपना वहम समझ रहे थे।नही आना चाहिए था आपको।नही दिखना चाहिए था हमे आप का चेहरा!न हम आपको देखते न ही हम सब भूल कर स्टेशन पर रुकते,न ही हमारी ट्रेन मिस होती और न ही हमे अपने माँ पापा से अलग होना पड़ता।जिससे हमारे पास ये बदनामी वाली जिंदगी नही बचती।अर्पिता परेशानी में बड़बड़ाती जाती रही थी।उसकी आवाज बहुत धीमे धीमे सुनाई दे रही थी सो मैं सब सुन कर समझने की कोशिश कर रहा था।धीरे धीरे वहां आसपास लोग खड़े हुए और उसकी हरकते देख कानाफूसी करने लगे।समझ आया मुझे वो सब उसे पागल समझ रहे थे।उन्हें देख मैं उसके पास गया।मैंने धीरे से कहा 'सॉरी अर्पिता,लेकिन अभी तुम्हारा बेहोश होना ही सही है कहते हुए मैंने उसके गर्दन पर एक नस को पिंच किया जिससे वो बेहोश हो गयी।उसको गोद मे उठा कर मैंने वहां मौजूद बाकी सब से बोला मैं उसे अच्छे से जानता हूँ।ये मेरी मंगेतर है।सुबह जो ट्रेन हादसा हुआ था उसमें उसके माँ पापा भी थे जिस कारण वो सदमे में पहुंच गई।मैं उसे वापस लखनऊ ले जा रहा हूँ इसकी मासी के घर।' मन ही मन अपने इस झूठ के लिए सॉरी कहा क्योंकि कोई और विकल्प शेष था ही नही मेरे पास।

चूंकि सुबह हादसा हुआ है ये बात सबको पता थी सो मेरी बात सुन सभी वहां से हट गये तो मैं अर्पिता को लेकर बस में चढ़ गया।कुछ ही देर में बस चलने लगी।मैंने उसे खाली सीट पर बैठाया और उस का सर सीट से टिका दिया।मैं हाथ थाम वहीं उसके पास बैठ गया।धीरे धीरे अर्पिता का सिर बस के धक्के लगने के कारण मेरे कंधे पर आकर टिक गया।मेरे मन में उसके लिए कई ख्याल उमड़ रहे थे 'इतनी सी उम्र में उसे इतना दर्द मिल गया था।जिसे मैं कम नही कर सकता था बस बांट सकता था।सो कोशिश करूंगा अप्पू कभी तुम्हे अकेलापन महसूस न हो।मेरी नजर अर्पिता पर पड़ी जो खिड़की से आती ठंडी हवा के कारण सिकुड़कर मेरे बहुत पास आती जा रही थी।ये जान मैंने उसे ठीक से बैठाया और खिड़की बन्द कर उसे उसके दुपट्टे से कवर कर दिया जिससे कुछ हद तक उसे ठंडी हवाओ से निजात मिल सके।मैंने वापस अपनी आंखे बंद की और सीट पर सिर टिका कर बैठ गया।इस बार मेरे ख्यालो में अर्पिता के कहे हुए शव्द गूंजने लगे, 'न हम आपको स्टेशन पर देखते न ही वो रुकती और न ही उसकी ट्रेन मिस होती।'

मैं मन ही मन खुद से सवाल करने लगा 'लेकिन मैं उससे कैसे मिल सकता था मै तो दोपहर को पहुंचा था।जब वो बेहोश हुई तो उस बेंच पर अकेले बैठी थी।फिर इसने मुझे कब देखा!! क्या कह रही थी वो!!मुझे कुछ समझ नही आया।'

अर्पिता के स्वास्थ्य को लेकर मैं थोड़ा चिंतित हो गया।मैंने वापस से उसका हाथ थामा और लखनऊ पहुंचने तक वैसे ही अर्पिता का हाथ थाम उसके साथ रहा।लगभग डेढ़ घण्टे में मैं लखनऊ बस स्टैंड पर था।अर्पिता की बातों को याद कर मैं उसे सीधा अपने रूम पर ले गया जहां पहुंच कर मैंने नीचे खड़े हो श्रुति को कॉल लगाया और उसे नीचे बुलाया।सुनकर श्रुति चली आयी वो अर्पिता को देख इतनी खुश हुई कि खुशी से चिल्लाने लगी थी अप्पू तुम मिल गयी तुम ठीक हो।भाई! आप अप्पू को ले आये! थैंक यू भाई।मैं कितना डर गई थी सुबह इसे लेकर।कितने बुरे बुरे ख्याल आ रहे थे मेरे मन मे।अब जब इसे देखा है तो अब जाकर सुकून मिला है मुझे।'श्रुति के चेहरे पर मुस्कान देख मैंने कहा 'बाते आराम से करते रहना पहले इसे अपने कमरे में ले जाओ।मैं भी कुछ देर में आता हूँ।

श्रुति उसे सहारा देकर अंदर अपने कमरे में चली गयी।अंदर जाते हुए मेरी नजर सामने बालकनी पर खड़े परम पर पड़ी।जिसके चेहरे पर तनाव था।मैं समझ गया कि परम् अभी किरण से बात करने में व्यस्त है किरण अर्पिता को याद कर उदास हो रही होगी।शायद उसने अभी तक अर्पिता को देखा नही।ख्याल आया जब तक अर्पिता मुझे स्पष्ट नही बता देती कि वो आगे क्या चाहती है।मैं इस बारे में परम किरण या किसी और को नही बता सकता।मुझे श्रुति से बात करनी होगी इस बारे में।कहीं ऐसा न हो हालात सम्हलने के बजाय बिगड़ जाए।'

सोचते हुए मैं तुरंत श्रुति के पा पहुंचा उससे कहा, " श्रुति, अर्पिता हमारे साथ है, हमे ये बात अभी किसी से शेयर नही करनी है।अर्पिता के जीवन मे अभी बहुत कुछ ऐसा हो चुका है जिसके बारे में सोच कर ही मेरी रूह कांप रही है।"

श्रुति हैरान हो गयी थी सुनकर 'ऐसा क्या हो गया है भाई? हमारी अप्पू तो ठीक है?

मैंने उसे टालने के लिए इतना ही कहा 'अभी मैं तुम्हे हर बात स्पष्ट नही बता सकता।मैं थक चुका हूं बस पहले थोड़ा रेस्ट कर लूं तब आराम से बैठ कर पूरी बात बताता हूँ।'

'ठीक है' भाई श्रुति बोली।मैंने एक नजर अर्पिता की ओर देखा जो बेहोशी में श्रुति के बिस्तर पर पड़ी थी।मैं अपने कमरे में चला आया।शावर ले थकान मिटाई और चेंज कर हॉल में आकर बैठ गया।जहां श्रुति मेरा ही इंतजार कर रही थी।

मुझे आया देख श्रुति ने खाने का पूछा।मेरा मन नही था मैंने पूछा 'अर्पिता उठी और तुमने खाया!' 'नही भाई' श्रुति बोली।

तो फिर मैं अभी नही खाऊंगा मैं जाकर पहले अर्पिता को उठाता हूँ।तुम भी अपनी थाली लगाकर वहीं ले आना आज हम साथ ही खाना खाएंगे।ठीक है श्रुति से बोलते हुए मैं खड़ा हुआ मैंने अपनी थाली उठा श्रुति के कमरे की ओर बढ़ गया।श्रुति भी अपनी थाली लगा कर कमरे में चली आई।उसे आया हुआ देख मैं दरवाजे से उसके साथ कमरे के अंदर बढ़ गया।मैंने अर्पिता की ओर देखा और उसकी बेहोशी तोड़ने के लिए पानी की कुछ बूंदें उसके चेहरे पर डाली।अर्पिता एकदम से हड़बड़ा कर उठ बैठी।
उसे देख मैं मन ही मन सोचा 'अब ये मुझसे बस स्टॉप वाला वाक्या पूछेगी'।उसने पूछने के लिए जैसे ही मुंह खोला तो मैंने झट से हाथ मे पकड़ी हुई थाली में से निवाला ले अर्पिता के मुख में रख दिया।कहा जी भर के सवाल कर लेना अप्पू! मैं सब बताऊंगा।लेकिन अभी तुम्हे अपनी सेहत पर ध्यान देना है।सो बाकी सवाल जवाब होते रहेंगे। अगर तुमने अभी अपनी सेहत पर ध्यान नही दिया तो अंकल आंटी जब आएंगे न लौट कर तब मुझे और श्रुति को ही डांटेंगे कहेंगे!! हमने अपनी दोस्त और उनकी बेटी का बिल्कुल ध्यान नही रखा।तो बताओ किस पर डांट पड़ेगी हम दोनों पर इसीलिए हम पर रहम करो और अपना ध्यान रखो।नही तो...कहते हुए मैं चुप रह गया।

वो सामान्य होने की कोशिश करते हुए बोली .नही हमारी वजह से अब किसी पर डांट नही पड़ेगी..!! क्योंकि हम आपकी बात मान रहे है जब मां पापा आएंगे तो किसी को डांट नही पड़ेगी अगर पड़ी तो मिल कर डांट खा लेंगे ठीक है।वो होठों से बोल कुछ और रही थी और उसकी आँखे वो नम होकर कुछ और कह रही थी।उस पल मैं एक बार फिर उस पर खुद को हार गया!वो उस समय मेरे और श्रुति के बारे में सोच रही थी।परेशान वो थी! बेइंतहा थी!लेकिन छुपाने की कोशिश कर रही थी।

उस की बात सुन मैं भी जानबूझ कर मुस्करा दिया।श्रुति को हम दोनों के बीच की बाते समझ आई या नही आई ये नही पता लेकिन अर्पिता का साथ देते हुए वो मुस्कुराने लगती है।मैंने बाहर आकर हाथ धो कर अपनी आंखो में छुपे हुए आंसू पोंछे कहा 'मैं जानता हूँ अप्पू तुम बहुत ज्यादा दुखी हो केवल हम लोगो की वजह से सब भूल मुस्कुराने की कोशिश कर रही हो।लेकिन एक कोशिश कर तो रही हो।यही बड़ी बात है।जब तक तुम दिल से मुस्कुराने नही लगती तब तक मैं तुम्हे अकेला नही छोड़ सकता।।न कभी नही..!सोचते हुए मैं कमरे में चला आया...

क्रमशः....

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