मेरी पगली...मेरी हमसफ़र - 10 Apoorva Singh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मेरी पगली...मेरी हमसफ़र - 10

मैं ऑफिस चला आया और ऑफिस में बैठ कर कार्य करने लगा! बैठा ऑफिस में था लेकिन मन घर पर मेरी पगली के पास था!बार बार उसका ही ख्याल आ रहा था।लेकिन काम तो करना ही था सो आँखे बन्द कर ठाकुर जी का नाम लिया और लग गया काम पर!सारी जरूरी मीटिंग्स,और पेपर अटैंड कर मैं दो घण्टे में ही फ्री हो गया।घड़ी में नजर डाली दोपहर के बारह बजने वाले थे।मन में ख्याल आया 'न जाने अर्पिता को मेरा फ्रिज पर छोड़ा हुआ नोट मिला भी होगा या नही!' सुबह आते हुए मैं उसके लिए फ्रिज के ऊपर एक राइटिंग नोट छोड़कर आया था!
"फ्रिज के अंदर खाना बना रखा है!भूख लगने पर गर्म कर खा लेना!और अंकल आंटी को लेकर ज्यादा परेशान नही होना मैं अपने तरीके से पता करने की पूरी कोशिश कर रहा हूँ☺️"

मुझे लग रहा था कहीं खुद को अकेले देख वो रात की तरह रोने न लगे और अगर रोने लगेगी तो खुद की सेहत पर बिल्कुल ध्यान नही देगी।एक बार श्रुति से बात कर उसे बोल देता हूँ आज थोड़ा जल्दी घर निकल जाये।सोचते हुए मैंने श्रुति को कॉल लगाया बेल गयी लेकिन उसने उठाया नही।लेक्चर रूम में होगी सोचकर मैंने उसके लिए एक संदेश छोड़ दिया, "छुटकी,लेक्चर खत्म हो जाये तो आज घूमना नही सीधे घर ही चली जाना और अर्पिता से बात कर उसका ध्यान बंटाने की पूरी कोशिश करना।उसका मन नही लग रहा होगा।"

टेक्स्ट कर मैं वापस से फाइलों में घुस गया और फिर श्रुति की कॉल से ही उनसे बाहर निकला।श्रुति बोली,'बस थोड़ा टाइम लगेगा भाई कुछ बुक्स इश्यू करानी है और फिर दूसरा लेक्चर अटैंड करना है उसके बाद मैं सीधा घर ही निकलूंगी।' ये सुन मन में ख्याल आया 'सारी साल भर की पढ़ाई इन्हें आज ही कर लेनी है थोड़ा कल के लिए भी बचा कर रख लो' लेकिन कुछ कह नही पाया क्योंकि बात पढ़ाई की थी और मैंने तो उसे हमेशा पूरे मन से पढ़ने को ही कहा है फिर मैं उससे लेक्चर छोड़ने को कैसे कहता।मेरे पास इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नही था।ऐसे में मन में ख्याल आया अगर उसका फोन गुम नही हुआ होता तो कितना आसान रहता सब!मैं खुद ही कॉल कर उसके हालचाल पूछ लेता उससे बात कर उसके मन को समझ पाता।समझ लेता सब!लेकिन अब जो होना था सो हो गया था।वो जिद्दी कम तो है नही जो आसानी से मेरी बात मान ले,उसे उसी के अंदाज में कहना पड़ता है।सोचते हुए मैंने दोबारा श्रुति को कॉल लगाया और एक ही बार में बोल गया, 'कहां पहुंची हो श्रुति?' वो बोली,'भाई बस पहुंच रही हूँ दस मिनट और लगेगा' सुनकर मन ने गहरी सांस ली और ख्याल उभरा 'शुक्र है दस मिनट बाद तुम अकेली नही रहोगी अप्पू!' लंच टाइम हो चुका था लेकिन मेरा मन नही था लंच करने का सो मैं उठकर बाहर चला आया।बाहर आकर मेरी नजर एक कपल पर पड़ी!एक स्वीट सा टीन एज कपल में लड़की आइस क्रीम के जरिये दूसरे को मनाने की कोशिश कर रही है।लड़की ने सामने आकर आइस क्रीम आगे कर दी तो लड़का मुंह घुमा कर एक कदम आगे बढ़ गया,फिर लड़की उसके सामने आकर खड़ी हो गयी और इस बार फिर उसने वही किया ये देख लड़की बोली देखो ज्यादा भाव नही खाओ नही तो अभी तुम यहीं ता ता थैया करने लगोगे!लड़के ने हल्का सा घूर कर उसे देखा तो लड़की ने हाथ में पकड़ी पूरी कोन उसके चेहरे पर थोप दी और बोली अब जी भर कर जितना नाराज होना है हो लो अब मैं सुन लूंगी तब से गुस्सा जताये जा रहे हो वो भी इस आइसक्रीम की वजह से!मैं तुरंत पलट गया और मन ही मन बोला न इस तरह किसी कपल के प्यार मनुहार को नही देखना चाहिए उन्हें नजर लग जाती है।मैंने फोन निकाला और वहां से चला आया!आते हुए फिर से श्रुति को कॉल किया लेकिन इस बार कॉल श्रुति ने नही उसने उठाया मन में लड्डू फूटने लगे और कान में मधु गुन गुनाने लगी।

पहले तो मैंने जल्दबाजी में आवाज पर ध्यान ही नही दिया और बोल पड़ा, "श्रुति घर पहुंच गयी, अर्पिता कैसी है,अब वो ठीक है?"

'हम्म' आवाज सुन मेरे मन की सारी बैचेनी खत्म हो गयी।मैं चुप हो गया समझ नही पाया आगे क्या कहूँ?मैं बातें जरूर करने लगता था लेकिन उसके लिए बस कम ही बातें होती थी मेरे पास।दो घड़ी की खामोशी हमारे बीच मे चली जाती है..जिसे तोड़ते हुए मैं आगे बोला "गुड"! और मेरा नोट मिला?

उसने फिर सीमित लफ्जो में कहा 'जी मिला!'
मैंने पूछा 'तो फिर काम पूरा किया?'वो फिर सधे शब्दो में बोली 'जी बस श्रुति का इंतजार कर रहे है हम वो रूम से चली।आये फिर!'

'बहुत अच्छे अप्पू।वो अभी आती ही होगी।तुम उसके साथ ही टाइम स्पेंड करो अगर कोई परेशानी है तो बेझिझक श्रुति या मुझसे कहना,ठीक है?' मैंने कहा और उसके जवाब की प्रतीक्षा करने लगा।

इसे सुनकर भी मेरी पगली भावुक हो गयी और हौले से बोली 'जी!'

उसकी आवाज में छुपी नमी को मैंने महसूस कर लिया लेकिन कुछ कहा नही।कुछ पल की खामोशी के बाद मैं बोला 'अच्छा अब मैं रखता हूँ!बाय!'

उसने फिर वही जाना सा लफ्ज बोला 'हम्म'! लेकिन उससे सुन कर वो मुझे कुछ ज्यादा ही प्यारा लग रहा था।मैंने मन न होने के बाद भी फोन रख दिया और अंदर चला आया।लंच ब्रेक खत्म हो चुका था और सभी अपने कार्य में रम चुके थे।मैं भी वापस आकर सर खपाने लगा।तभी मुझे प्रेम भाई के परिचित एक डॉक्टर का ध्यान आया और मैंने उन्हें कॉल लगा दिया अर्पिता के पेरेंट्स के बारे में सारी आवश्यक जानकारी दे उनसे मदद की रिक्वेस्ट कर मैंने कॉल रख दिया।धीरे धीरे शाम के पांच बज गये और मैं ऑफिस बन्द होने का समय देख उसे बन्द करवा कर वहां से निकल गया।लेकिन सीधे अकैडमी न जाकर रूम के लिये चला आया।ऐसा करने का एक ही तो कारण था अर्पिता।मैं बस उसे देख अपने मन को सुकून देना चाहता था जिसमे उसके लिए फिक्र भरी पड़ी थी।वो ठीक है।कहीं श्रुति उसकी उदासी को समझ नही पाई तो।सोचते हुए मैं जल्द ही रूम पर पहुंच गया!बाइक को नीचे गैलरी में खड़ी करते हुए मकान मालकिन ने मुझे देखा और अपने कमरे से निकल मेरे पास चली आईं।मैंने उन्हें देखा तो मन ही मन कहा,'इनको मैं भूल कैसे गया?' और शिष्टाचार वश बोला 'आंटी जी आप!प्रणाम।'
वो बोली 'प्रणाम !! तुम्हे देखा तो आ गयी।वैसे आज कुछ ज्यादा जल्दी आ गए तुम?'

हां आँटी जी आज गिटार ले जाना था तो शाम की क्लास के लिए सीधे न जाकर यहीं आ गया।अब यहीं से निकल जाऊंगा।मैंने धीरे से कहा।

माकन मालकिन आगे बोली 'ओह अच्छी बात है।वैसे आज श्रुति भी जल्दी आ गयी।शायद अपनी दोस्त की वजह से आ गयी होगी। सुबह श्रुति ने बताया था न कि उसकी दोस्त यहीं रुकेगी ..!'

उनकी बात सुन मैं फिर होठों पर मुस्कुराहट रख मन ही मन् बोला 'मुझे खबर थी कि आप बिना वजह तो चलकर मेरे पास बात करने आएंगी नही।घुमा फिरा कर बात तो अप्पू की छेड़ेंगी जरूर और उनसे बोला, 'हां आँटी जी वो सुबह हम लोग जल्दी में थे तो बस इतना ही बोल पाये आपको कि वो आज यहीं रुकेगी।लेकिन बात ये है कि वो अब से श्रुति के साथ यहीं रहेगी।दोस्त है उसकी यहां पढ़ने के लिए आई है एक ही कॉलेज में है तो साथ आना जाना रहेगा अब अकेली इतने बड़े शहर में कहां रहेगी ।इसिलिये श्रुति ने उसे यहीं रहकर पढ़ाई करने के लिए कहा है।'

'ये तो ठीक किया श्रुति ने।अब इतने बड़े शहर में अकेले रहना भी तो समझ नही आता।बड़ा मुश्किल होता है।अब जितना किराया वहां देगी उतना यहां मिलकर एडजस्ट कर लेगी है न्।' मकान मालकिन ने अपनी नजरे मेरे चेहरे पर जमाते हुए कहा।जैसे कि वो आंखों से मेरे चेहरे के जरिये मन के भावो को स्कैन कर रही हो।

उनकी सब गतिविधियों को समझते बूझते मैं उनसे बोला,'जी आँटी जी इसी शर्त पर तो वो यहां रहने को तैयार हुई है!अब मैं चलता हूँ बाय..!' कहते हुए मैं आगे बढ़ गया।मैं तो आगे बढ़ गया लेकिन मेरी मकान मालकिन के सवाल जवाब खत्म नही हुए!

वो फिर मुझे पीछे से टोकती हुई बोली "अरे प्रशान्त! बेटे तुम तो घनी जल्दी में लग रहे हो।मेरी पूरी बात भी नही सुनी और चल दिये।"

मैं बेमन से रुक गया!बड़ी जो ठहरी उस पर मकान मालकिन!कैसे इग्नोर कर चला जाता।उन्हे सुन मन में झल्लाहट तो बहुत आई मन ही मन कोसते हुए बोला न जाने क्यों लोगों को किसी और की लाइफ में झांकने में मजा आता है।अब ये कहेंगी आज हमारे जाने के बाद अर्पिता रूम लॉक कर बाहर गयी थी।फिर करीब एक घण्टे बाद वापस आई।इनकी जासूसी भी न कभी खत्म नही होनी है।सोचते हुए मैंने मुस्कुराते हुए पीछे मुड़ कर मकान मालकिन को देखा।

वो अचानक से हड़बड़ाते हुए बोली 'अरे वो मैं ये पूछ रही थी कि ये पहले कहीं और रहती थी क्या?आज ये बाहर गयी थी न फिर कुछ देर बाद वापस आ गयी।अब जब यहां कल ही आई है जानती नही तो यूँ ही..' कहते हुए वो चुप हो गयी।मैं उनके मतलब को बखूबी समझता था आखिर महीनों का साथ है हमारा।

मैं बोला 'अरे आँटी जी कहीं और नही रहती कल ही तो बाहर से आई है।वो क्या है न आज ठहरा बुधवार और ये ठहरी भगवान कृष्ण की भक्त तो बस मंदिर गयी थी दर्शन के लिए।' मैं बातें बनाते हुए वहां से ऊपर चला आया।कुछ कदम बढ़ा कर ही मेरी नजर सीढियो के पास खड़ी अर्पिता पर पड़ी।

उसे अचानक देख मेरे रहे सहे लफ्ज भी खत्म हो गये और मैं धीरे से इतना ही बोल पाया " ...सॉरी.. वो आँटी जी।" वो मेरे पास आई और धीरे से बोली, 'आपने हमारे लिये झूठ बोला प्रशान्त जी।'

उसकी बात सुन मैं उसके थोड़ा और पास गया और उसकी आंखों में देखते हुए बोला , 'हां!लेकिन इस झूठ से किसी का कोई नुकसान नही होगा।हमारे घर सभी ठाकुर जी के भक्त है तो उनकी नीति अपनाने में संकोच नही करते।' मैंने कहा और अपने कमरे में बढ़ गया।कमरे का लॉक खोल मैं अंदर चला आया।मन में ख्याल आया इसका व्यवहार देख तो मुझे यकीन हो चला है कि ये अब बिल्कुल ठीक है।बस इसी तरह खुद को सम्हालते हुए आगे बढ़े मैंने गिटार लिया बाहर हॉल में चला आया।मेरी नजर मैगज के पन्ने पलटती अर्पिता पर पड़ी जिसे देख मन में ख्याल आया अब इसका अगला पड़ाव जॉब ही होगा!संगीत से पीजी कर रही है तो पढ़ा तो सकती ही है उस पर टीचर भी बनना चाहती है अकैडमी ले जाकर आगे देखता हूँ शायद कुछ बात बन जाये।

मैं बोला, 'अप्पू सुनो, आज तुम बोर हो गयी होगी घर पर।अगर चलना चाहो तो मेरे साथ अकैडमी चल सकती हो।'फिर मैं मन ही मन बोला बस तुम तैयार हो जाओ तो शायद मैं आगे कुछ मदद कर पाऊं!सोचते हुए उसके शब्दो का इंतजार करने लगा!

'जी।हम श्रुति से पूछ कर तैयार होकर आते हैं।हो सकता है वो भी चले।' उस ने कहा तो मैं हौले से ही उछलते हुए बोला 'यस'!लेकिन जल्द ही खुद की खुशी को रोक लिया और बोला 'ओके।ठीक है पूछ लो।मैं नीचे इंतजार कर रहा हूँ।जल्दी आना' बोलकर अपना गिटार ले नीचे चला आया और नीचे बाइक पर बैठ गुनगुनाते हुए उसका इंतजार करने लगा।

कुछ पल ही गुजर पाये होंगे कि उसके आने की आहट सुनाई दी मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो श्रुति के इंडो वेस्टर्न कपड़ो में वो खड़ी हुई थी।उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट थी।उसे देख मैंने उसे बाइक पर बैठने का इशारा किया।वो आकर बाइक पर बैठ गयी तो मैंने खाली सड़क पर हौले से बाइक दौड़ा दी।

वो खामोश थी लेकिन उसकी आंखों में चमक थी!और चेहरे पर थी हल्की सी मुस्कुराहट।उसे देख मैं मन ही मन मुस्कुराते हुए बोला "मेरी वो कहीं तो होगी, आज मेरे पास है।उसके साथ आज मेरी पहली छोटी सी बाइक डेट हो गयी।"मन ही मन अपने इष्ट को याद कर बोला इस पल के लिए 'शुक्रिया ठाकुर जी।' वो लम्हा आज भी उसी तरह मुझे याद है जैसे वो सालो पुरानी नही अभी कल की ही तो बात है।वही मुस्कान,वही वो वही मैं और वही एहसास।उसकी आंखों में चमक और बातों में खनक!सब तो अब भी वैसा ही है।

अगले दस मिनट में मैं उसके साथ अकैडमी पहुंच गया।वो पहली बार अकैडमी आयी थी।अकैडमी के गेट पर मैंने बाइक रोकी तो वो सदे कदमो से दरवाजा देख उतर गयी।और टुकर टुकर मेरी ओर देखने लगी।मैंने मिरर में उसकी ओर देख कहा

'यहीं एक तरफ रुकना मैं बाइक पार्क कर अभी आया।'

'जी' उसने कहा और चलकर एक ओर खड़ी हो गयी।मैं बाइक ले पार्किंग एरिया की ओर बढ़ गया।बाइक पार्क करते हुए मेरी एक स्टूडेंट पूर्वी मिल गयी।वो मुझसे बोली, 'क्या बात है सर आज तो मैडम जी को साथ लेकर आये हो!' मेरे सभी बच्चो में एक वही स्नातक पास थी और थोड़ी उधमी भी।क्लास के बाहर मुझसे अक्सर ऐसे ही हल्की फुल्की बात कर लिया करती।मैं उसी के अंदाज में बोला, ' हम्म घर पर बोर हो रहीं थी सोचा उन्हें भी जॉइन करा ही लेते हैं!'
अच्छा सर फिर ठीक है 'अब मैं क्लास में जाती हूँ आपसे डांट नही खानी' कह वो क्लास में दौड़ जाती है तो वहीं मैं भी अर्पिता के पास आते हुए बोला 'चले'।वो हमेशा की तरह बोली 'जी'!और मुस्कुराई।अंदर चलते हुए मैं उसे अकैडमी और बच्चो के बारे में बताने लगा 'अर्पिता इस अकैडमी के बच्चे शरारती भी है और टैलेंटेड भी!क्लास के बाहर खूब उधम और मस्ती मजाक और क्लास के अंदर सिंसियर।तो अगर कोई बच्चा कुछ बोल दे तो बुरा मानने की जगह उसी के अंदाज में जवाब देना।उसने मेरी ओर देखा और बोली 'हमसे ज्यादा उधमी नही होंगे!' उसकी बात सुन मैंने उसके चेहरे की ओर देखा क्योंकि मुझे उसके शब्दो पर यकीन नही हुआ।ये देख वो धीमे से बोली 'अर्पिता व्यास है हम हमारे बारे में अभी आप न के बराबर ही जानते हैं प्रशांत जी।' बातो ही बातों में हम क्लासरूम में पहुंच गये ये देख मैं बोला "आराम से जान लूंगा अर्पिता लेकिन पहले क्लास अटैंड कर लूं।तुम कोई भी सीट पर जाकर बैठ जाओ क्योंकि मुझे आगे खड़े रहना है।" 'हम्म ठीक है' कहते हुए वो सबसे आखिर वाली सीट पर जाकर बैठ गयी।

उसे देख मैंने सी स्माइल की और अपनी जगह पर जाकर खड़ा हो गया और बच्चो से बातें करने लगा!मुझे देख पूर्वी बोली, 'लगता है आज सर का मूड बहुत ज्यादा अच्छा है तभी तो आज सर का खुद का गिटार यहां आया है।मतलब आज की क्लास तो रॉक.. होने वाली है।'

उसके शब्द खत्म होते ही पूरी क्लास ये..ये.. शब्दो के साथ हुल्लारे करने लगती है।ये देख मैंने सख्त होकर मुस्कुराना बन्द किया और तल्खी से पूर्वी से बोला अब अगर तारीफे खत्म हो गयी हो तो कल जो सीखा उसे दोहरा कर बताएंगी आप या फिर भूल गयी..भूलभुलैया के रास्ते की तरह।कहते हुए मैं चुप हो गया!और उसके बोलने का इंतजार करने लगा।

मुझे सुन पूर्वी थोड़ा यूँ सकपकाइ जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।चोरी ही तो थी मैं उसके सीक्रेट लव के बारे में जानता था घर जाते हुए कुछ दिन पहले ही उसे इमामबाड़ा जाते हुए जो देखा था।अब ये नही बोलेंगी सोचते हुए मैं आगे बोला 'अरे बहुत समय ले रही है आप।सुनाइये.साथ ही ट्यून भी कीजिये।'उसे चुप देख अर्पिता ने पूर्वी की ओर देखा जो थोड़ी सी घबरा रही थी।वो मुस्कुराई और अपनी सीट से उठ उसके पास पहुंची।मैं वहां खड़े हो 'वो आगे क्या करती है' ये देखने लगा।वो उससे बोली, " एक अच्छे लर्नर की पहचान यही होती है कि उसके अंदर झिझक नाम के शब्द का अस्तित्व ही नही होता!अगर आपके गुरु ने आपसे कुछ कहा है तो आपको बिन झिझके तुरंत ही उसे पूरा करना चाहिए।" मैं हल्का मामूली सा मुस्कुराया।पूर्वी बोली "आपकी बात बिल्कुल सही है लेकिन मुझे अभी वो ट्यून इतनी अच्छे तरीके से नही आई है इसीलिए थोड़ा सा घबराहट हो रही है।अगर मैंने टूटी फूटी धुन सुना दी तो सर गुस्सा ही करेंगे और सबके सामने इज्जत का कचरा बन जायेगा वो अलग।सब हंसेंगे मुझ पर बोलेंगे देखो हम सब में सबसे सीनियर है लेकिन सीखने में सबसे पीछे।तो फिर चुप रह गयी।"

अर्पिता उसे समझाते हुए बोली 'हम समझ सकते है।लेकिन फिर भी हम यही कहेंगे जब तक शुरू नही करोगी तो पता कैसे चलेगा कि सीखी कि नही। आप तो सीखने आई हो तो यहां इज्जत का कचरा कहां से आ गया।' उसकी बात सुन मैं पलट गया और हंस दिया।अब बच्चो के सामने हंसता कैसे।तभी मेरे मन में इस बात को लेकर ख्याल आया क्यों न पूर्वी से कुछ ऐसा करने को बोली जिससे अर्पिता खुद ही गाने लगे तो शायद उसकी जॉब की बात ही बन जाये ये सोच कर मै पलटा और अर्पिता से बोला "अर्पिता,यहां आगे आओ "

अर्पिता ने मेरी ओर देखा और उठकर मेरे पास चली आई।उसके आते ही मैंने अपनी प्लानिंग के अनुसार पूर्वी के पास गया और एक उसकी नोटबुक देखने के लिए उठाई और उस पर लिखा, आपको इन्हें गाने के लिए मजबूर करना है वो भी एक नही दो बार और ये आपके लिए चैलेंज है' मैंने नोटबुक रखी और पीछे आकर धीरे से बोला 'मेरे सर में मुझे पेन महसूस हो रहा है,तो प्लीज् आज की क्लास तुम हैंडल कर लो।आफ्टर ऑल सीनियर हो तो इतना अनुभव तो होगा ही तुम्हे।' कहते हुए मैं मुंह बना कर चुप हो गया और बेचारे की एक्टिंग करने लगा।अब वो है ही चिकने घड़े जैसी उसे जितना बातों में डुबाओ रहेगी कोरी की कोरी ही सब पानी एक ओर और वो एक ओर।उसके लिए ही ये टेढ़े झूठे सही गलत तरीके आजमाने सीखे थे मैंने।जैसे कि मुझे उम्मीद थी उसी अनुसार वो अपना मुंह फाड़े बोली 'व्हाट! ..'।सीनियर? यहां कहां जूनियर दिख रहे है आपको?सारे के सारे ग्रेजुएशन वाले ही लग रहे।अर्पिता ने फुसफुसाते हुए कहा।अब मैं तो पहले से ही तैयार था सो उसकी फुसफुसाहट सुन मैं धीमे से बोला 'यहां सिर्फ एक ही सीनियर है और वो है पूर्वी।बाकी सब स्नातक में है' और बिन देर किये सभी छात्रों की ओर देख बोला, " आज के लिए सॉरी गाइज!आज मेरी जगह ये क्लास लेंगी आपकी! मिस अर्पिता।सो एन्जॉय।" मैंने कहा और वहां से नौ दो ग्यारह हो दरवाजे से बाहर निकल आया।लेकिन उसे छोड़ कर जाता कैसे सो वहीं कमरे की खिड़की पर खड़े हो उसे देखने लगा।मेरे बच्चे कम थोड़े ही है मैं क्लास नही लूंगा ये जान कर कुछ तो उठ कर जाने ही लगते हैं।उन्हें देख मैं मन ही मन बोला ये देख वो अब जरूर कुछ गुनगुनायेगी।अब बात उसके मान पर जो आ गयी है। क्लास छोड़ कर जाते हुए मेरे बच्चे दरवाजे से पास जाकर ही रुक गये जब अर्पिता ने अपने ज्ञान और हुनर का उपयोग कर गिटार को ट्यून करना शुरू किया।
उसने एक फिल्मी धुन ट्यून की थी।
उसकी ये ट्यून सुन मैं मन ही मन बोला 'एक दिन इस धुन पर कोई न कोई गाना मैं तुमसे जरूर सुनुगा अप्पू!अब देखना ये है कि उस एक दिन का मुझे कितना इंतजार करना है।वैसे भी वो इश्क़ ही क्या जिसमे इंतजार की घड़ियां शामिल न हो।'

प्लीज एक बार फिर .कुछ छात्रों की आवाज से मैं ख्यालो से बाहर निकला।चैलेंज के अनुसार पूर्वी बोली 'कोई फिल्मी धुन ट्यून करना बहुत आसान है मुश्किल है तो अपनी खुद की रची गयी कोई कविता या लाइन उसे ट्यून करना।अगर वो कर सको तो जाने कुछ बात है आपमें..!'कहने के बाद उसने खिड़की ओर देखा।उसे देख मैंने उसे (थम्ब) अंगूठा दिखा दिया।बात बन सकती है ये सोच मैंने अपना फोन निकाला और रवीश के लिए एक संदेश लिख "आप अभी के अभी मेरी क्लास में आइए"भेज दिया।

और अंदर चल क्या रहा है ये देखने लगा।पूर्वी की बात सुन कर अर्पिता मुस्कुराते हुए बोली 'हममे कोई बात है या नही ये आपकी रजामंदी पर निर्भर नही करता।अगर बात नही होती तो आप यहां होती और हम वहां आपकी जगह।क्योंकि हम तो आज पहली बार यहां आए है फिर भी वहां आप सबके बीच मे न् होकर यहां है तो कुछ तो टैलेंट दिखा होगा आपके सर को हमारे अंदर।'उसकी बात सुन मन गदगद हुआ और बोला 'कुछ नही अप्पू बहुत कुछ दिखा' तभी उसकी नजर खिड़की के पास खड़े मुझ पर पड़ी तो आगे मैंने अपना काम करते हुए उसे कुछ सुनाने के लिए रिक्वेस्ट करने लगा।ये देख उसने अपनी पलको के साथ हल्की सी गर्दन झुकाई और पूर्वी से बोली 'खैर हम भी न ये व्यर्थ की बातें लेकर बैठ गए चलिए आज कुछ नया ही सुनाते है..लेकिन हम बस कुछ लाइने ही ट्यून करेंगे जो हो सकता है बेतुकी हो लेकिन इस समय हमारे हृदय में आ रही है तो वही ट्यून कर देते हैं..क्योंकि कहते है संगीत की धुने तो हृदय से निकलती है और सीधा हृदय को बेधती है।'

तब तक रवीश भी मेरे पास चला आया और बोला "क्या हुआ क्यों बुलाया मुझे अचानक।"मैं बोला, "बस आज आपको एक नए टैलेंट से मिलवाना है तो बस आज आप चुपचाप खड़े होकर उसे सुनना"।।कहते हुए मैंने उसे सामने अर्पिता की ओर इशारा कर दिया।जो उस समय कुछ गुनगुना रही थी।

मेरे दर्द को महसूस कर जिसकी आंखों में पानी होगा! कहीं तो वो होगा!! कहीं तो वो होगा।

जो मेरी खामोशी में छुपे लफ्जो को मेरे बिन कहे समझ लेगा कहीं तो वो होगा! कहीं तो वो होगा।

जो मौसम की पहली बारिश में पानी भरी सड़क पर बिन हिचकिचाए बिन घबराए मेरे साथ साथ भीगेगा! कहीं तो वो होगा !! कहीं तो वो होगा।

जो करता होगा परवाह हर रिश्ते की संजीदगी से
लेकिन फिर भी मस्तमौला होगा!! कहीं तो होगा वो कहीं तो होगा।

कहीं तो वो होगा... कहीं तो वो होगा
गाते गाते वो रुक गयी।

उसकी नजर फिर मेरी ओर आई तो मैंने 👌👌का इशारा करते हुए बस मुस्कुरा दिया।मैंने वापस रवीश की ओर देखा जो न जाने कब छात्रों के बीच पहुंच उनके बीच का हिस्सा बन कर अर्पिता को सुन रहे हैं।सांग प्ले करने में बाद अर्पिता ने गिटार साइड में रखा और बोली चलो अब ये एक बार फिर तो हो गया।अब आगे हम ट्यूनिंग के बारे में बात कर लेते हैं..!

उसकी बात सुनकर पूर्वी ने मेरी ओर देखा मैंने उससे गर्दन हिलाते हुए कहा जैसा चल रहा है चलने दे।।मैं वहां से रवीश के पास चला आया और उससे बोला "कहिये रविश जी,कैसा लगा आपको ये नया टैलेंट?"

रवीश आदतन बोला 'टैलेंट तो बढ़िया ढूंढ कर लाये हैं आप मिश्रा जी लेकिन क्या ये यहां इन छात्रों को हैंडल कर पायेगी।'

'अरे रवीश जी सब आपके सामने है फिर भी आप को संदेह है फिर तो ये बहुत ही गलत है।मैं कोई सिफारिश नही कर रहा हूँ बस मुझे लगा एक बार आपको खुद से देखना चाहिए।' मैंने रही सही कसर पूरी करते हुए कहा और अर्पिता की ओर देखने लगा।

'हम।जानता हूँ मैं।तुम यूँ ही किसी को मुझे खुद से देखने के लिए नही कहोगे।इनसे एक बार बात कर लेना अगर इन्हें सूटेबल हो तो फिर पार्ट टाइम या फुल टाइम यहां जॉइन कर सकती हैं।' रवीश ने कहा तो मैं मन ही मन खुशी से पगला गया।लेकिन बिन उसे जताये बोला 'ओके रविश जी धन्यवाद!' और मैं निकलकर अप्पू के सामने चला आया।मुझे यूँ अचानक से देख वो एक लम्हा झिझकी।लेकिन अगले ही पल खुद को संयत कर सबको टॉपिक क्लीयर कराने लग गई।आगे बढ़ कर मैं भी अर्पिता को जॉइन करते हुए क्लास कंटीन्यू करने लगा।

कुछ ही देर में क्लास खत्म हो जाती है तो पूर्वी मुझे बाय कहने मेरे पास चली आती है।मैंने उसे थैंक्स कहा तो वो जवाब में मुस्कुरा दी और चली जाती है।अर्पिता हम दोनो की ये हरकत देख मुझसे धीमे से बोली 'तो ये आप दोनों की मिलीभगत थी नही।'

मैं छात्रों की ओर देख उन्हें बाय करते हुए बोला, 'हां थी तो,लेकिन इसका फायदा भी तुम्हे होगा अप्पू' बस तुम देखती जाओ।मेरी बात सुन उसने भवें सिकोड़ते हुए कहा 'हमे, हमे!कैसे?'

मैं अपने ही अंदाज में बोला 'वो ऐसे अप्पू, यहां के जो मैनेजर है मिस्टर रवीश उन्होंने तुम्हारी परफॉर्मन्स देखी है तो उन्हें लगता है तुम यहाँ के इन छात्रों को अच्छे से हैंडल कर सकती हो।उन्होंने तुम्हे यहां पढ़ाने का ऑफर किया है अब चाहो तो तुम पढ़ा सकती हो यहाँ।वो भी पार्ट टाइम या फुल टाइम ये चॉइस भी तुम्हारी है।'

मेरी बात सुन उसने हैरानी से मेरी ओर देखा उसकी आंखों में सवाल थे जिनके जवाब वो मुझसे जानना चाहती थी।मैं बोला 'हैरान होने की जरूरत नही हैअर्पिता ये तो तुम्हारा टैलेंट है जो तुम्हे जॉब ऑफर करा रहा है मैंने इसमे कुछ नही किया।'कहते हुए मैंने हाथ खड़े कर दिये।मुझे देख वो कुछ सोची और फिर बोली

ठीक है।लेकिन हम यहां पार्ट टाइम ही कर सकते है।क्योंकि ये माहौल हमे ज्यादा सूटेबल नही है कुछ घण्टो बाद ही सरदर्द होने लगता है।कॉलेज की बात अलग है।

'फुल टाइम के लिए हम केवल ऑफिस जॉब ही चाहेंगे।ये नही।'

'ओह ऐसा क्या।ठीक है तो समझो तुम्हारी ये प्रॉब्लम भी सोल्वड।कल ठीक दस बजे तक तैयार रहना और मेरे साथ चलना ओके।'मैंने कुछ सोचते हुए कहा।

इस बार वो हैरान होने के साथ परेशान हो जाती है।उसका खिला चेहरा एकदम से उतर जाता है।मैंने उसे देखा।और उसे समझते हुए बोला 'उदास होने की जरूरत नही है मैं जहा लेकर जाऊंगा वहां तुम्हे जॉब तुम्हारी नॉलेज के आधार पर मिलेगी कागजो और मेरी सिफारिश पर नही।'

वो हौले से मुस्कुरा दी जिसे देख मै मन ही मन बोला मैं कोशिश करूँगा अर्पिता कि तुम्हारा हर दर्द हर परेशानी अपनी बेइंतहा मोहब्बत से दूर कर सकूं।बस मुझे नही अच्छा लगता तुम्हारा ये मुरझाया चेहरा, बुझी हुई मुस्कान और सूनी सी खाली आंखे।मुझे तो तुम्हारे चेहरे पर सुकून और मुस्कुराहट ही भाती है।जिसके लिये मैं कुछ भी कर सकता हूँ।' कुछ भी।मैं मनमें ही सोच रहा था कि तभी उसकी आवाज आई "क्या हुआ प्रशांत जी?"

मैंने कहा 'कुछ नही' और बाहर गैलरी में चला आया।रवीश को देखने लगा जो फोन पर वहीं खड़े हो किसी से बात कर रहा था।मैंने उसके फोन रखने का इंतजार किया।कुछ देर बाद उसने फोन रखा तो मैं बात शुरू करते हुए बोला,"रविश,आज मुझे थोड़ा जल्दी जाना है?"

'ठीक है।जाओ वैसे भी भई तुम अपने शौक और दोस्ती की वजह से यहां आ जाते हो फ्री सर्विस रहती है तुम्हारी तो तुम्हे मैं कैसे रोक सकता हूँ'।उसने हंसते हुए कहा।

मैं उसी के अंदाज में बोला "मैं वो शांत हवा का झोंका हूं जिसके शोर को सिर्फ खामोशी से सुना जा सकता है मेरे भाई।।कब कहाँ से गुजर जाऊ पता लगाना हर किसी के वश की बात नही।"

"जी, लेकिन हवा के झोंके को अगर चंचल खुशबू का साथ मिल जाये तो ये झोंका खुद महकने के साथ ही पूरी बगिया को महका सकता है।"अर्पिता ने बाहर आते हुए कहा।उसकी बात सुन मैं मुस्कुरा दिया और धीरे से बोला "हम्म खुशबू अगर तुम्हारे जैसी हो तो।" मैंने कहा तो लेकिन सुना किसी ने नही।रवीश बोला 'ये तुझे सही मिल गयी है जैसे सोने पर सुहागा।' कहते हुए वो मुस्कुराते हुए वहां से चला गया।

उसके जाने के बाद मैंने अर्पिता की ओर देखा और धीमे स्वर में कहा 'चले घर!' मेरी आवाज सुन उसने फिर मेरी ओर देखा जिसे देख मैं मन ही मन सोचते हुए बोला, 'कितने सवाल भरे पड़े है तुम्हारे इस दिमाग में! उससे कहा 'ओह हो! घर मतलब रूम अब साथ आये है तो साथ चलना तो होगा।'

मेरे इस अंदाज से वो हड़बड़ाई और बोली 'जी सो तो है।चलिए।'मैंने उसे देखा और उसे साथ ले निकल आया।मैंने घड़ी में नजर मारी रात के आठ बज रहे है मॉल खुला होगा सोच कर मैंने बाइक मॉल की ओर मोड़ दी!अकैडमी से मॉल तक के रास्ते में उसने एक शब्द नही कहा।पूरे रास्ते खामोश रही।शायद अंकल आंटी को याद कर रही है ये सोच मैंने भी उससे कुछ नही कहा।कुछ ही देर में मैंने मॉल के एंट्री गेट पर बाइक लाकर खड़ी कर दी।बाइक रुकी देख उसने सामने देखा और और बोली 'प्रशांत जी हम यहां क्यों...?'

मैं सपाट लहजे में बोला 'पहले नीचे उतरो फिर बताता हूँ।'

बिन किसी सवाल जवाब के वो ओके...कह उतर गयी।तो बिन उसकी ओर देख मैं बोला 'अंदर एंट्री गेट पर मेरा इंतजार करना मैं बस अभी आया ओके ..!' जवाब के लिए मैंने उसकी ओर देखा तब वो धीरे से बोली "ठीक है!"।मैं बाइक पार्क करने गया और तेज कदमो से वहां वापस चला आया।वो अभी भी वहीं खड़ी थी।अपने दोनो बैग मैंने लगेज रूम में रखे।बैज लिया और उसके पास पहुंच कर बोला
'चलो,अंदर!'मैं उसके साथ मॉल के अंदर चला आया।रात का समय था सो ज्यादा भीड़ भाड़ नही थी।मैं उसे लेकर वुमन्स क्लॉथ स्टोर के काउंटर पहुंचा और वहां मौजूद स्टाफ बोला, "इनके लिए कुछ अच्छी फॉर्मल ड्रेसेज दिखाइए।"

मेरे मुंह से लफ्ज निकलने भर की देर हुई थी और वो अगले ही पल अपनी बड़ी बड़ी आंखों से मेरी ओर देख रही थी उन आंखों में फिर एक सवाल 'ये क्यों?'

मैं तो पहले से ही होम वर्क किये खड़ा था सो बोला, 'ऑफिस में जाओगी तो क्या ऐसे ही जाओगी।कुछ अच्छी ड्रेसेज चाहिए कि नही।सो अभी अपनी पसंद से देख लो,खरीद लो।साथ ही पूरा हिसाब किताब भी रखना।काहे कि मेरी उधार छोड़ने की आदत नही है।तो ..अब तुम्हे कोई परेशानी नही होनी चाहिए।'

वो हल्का सा मुस्कुराई और 'हम्म' कहते हुए कुछ कपड़े देखने लगी।'धन्यवाद' कह मैं वही एक ओर चला आया और अपने मोबाइल को उठाकर ऑफिस का काम निपटाने लगा।बीच बीच में अर्पिता के चुने हुए कपड़ो को भी देख लेता।कुछ ही देर में उसने कपड़े सलेक्ट कर लिए।सफेद,हरा गुलाबी तीन ड्रेसेज चुन कर उसने निकाली थी।तीनो ही सादा सी थी लेकिन फिर भी मेरी नजर से कुछ खास थी।

उसने उन्हें अलग करते हुए कहा 'इनकी बिलिंग करवा दीजिये।' सेल्समैन उन सबको समेट कर पॉलीबैग में रखते हुए बोला 'मैम!आपका सामान नीचे काउंटर पर मिल जाएगा।प्लीज आप लोग वहीं पे कर अपना सामान ले लीजिये!'

'ओके'।कहते हुए वो वहां से मेरी ओर चली आई और अपने चिर परिचित अंदाज में बोली 'चलिये'!

मैंने फोन बन्द किया और पॉकेट में रखते हुए बोला 'ठीक है अप्पू, और भी कुछ लेना हो तो देख लो हम अभी भी मॉल में ही खड़े है।

'हमम कुछ लेना तो है लेकिन...!'कह वो चुप हो गयी।

मैं समझ गया गाड़ी फिर वहीं अटक गयी 'मेरे साथ शॉपिंग करनी भी चाहिए या नही।इससे ज्यादा क्या हम इनके पैसे चुका पाएंगे या नही!' बहुत सोचती हो अप्पू सोचते हुए मैं उसे सहज कराने के लिए बोला 'अप्पू जो भी लेना है ले लो इतना सोचो नही।यहां बिल निकाल कर देते है तो सब तुम्हारी नजर में रहेगा।धीरे धीरे आराम से पे कर देना।तुम भी न कितना सोचती हो ..!
जो बात तुम सोचती हो स्पष्टता के मामले में वही मैं भी मानता हूं और सच कहूं तो मुझे तुम्हारी ये आदत बहुत अच्छी लगी।ये एक ऐसा गुण है जो हर किसी मे नही होता।खैर बातें तो बाद में भी होती रहेगी.. तुम देख लो अपने लिए जो भी कुछ लेना हो।एक एक पैसे का हिसाब ले लूंगा मैं तुमसे।श्रुति नही हूँ न मैं समझ गयी।'मेरी बात सुन वो बोली 'हम समझ गये ठीक है अपने शब्द याद रखना आप ओके।'उसे सुन मैं भी बोल पड़ा 'हम्म,भूलने की आदत नही है मेरी!हमेशा याद रखूंगा।'

'ओके' लेकिन शॉपिंग के लिए हमे काउंटर चेंज करना पड़ेगा।उसने धीरे से कहा।मैं समझ गया शायद मेरी मौजूदगी उसे असहज करा रही है।मैं उससे बोला 'ठीक है फिर तुम मुझे पेमेंट काउंटर पर मिल जाना मैं वही जा रहा हूँ'!कहते हुए वहां से चला आया।लेकिन बाहर न जाकर वहीं गैलरी में खड़ा हो गया।अंदर झांक कर देखा तो वो वहां से आगे बढ़ चुकी थी ये देख मैं मुस्कुराया और वापस से उसी काउंटर पर पहुंच कर सेल्समैन से बोला 'अभी वो लेडी जो कपड़े देख रही थी न उनमे एक ब्लू डेनिम कुर्ती थी उसके दो पीस निकाल कर अलग से पैक कर दीजिये।'

'ओके सर।'कह वो सेल्स पर्सन मेरे बताए हुए वो कपड़े निकाल कर काउंटर पर रख देता है जिसे देख मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी।मैंने दोनो कुर्ती पैक करा कर काउंटर पर भेजने के लिए कहा और नीचे काउंटर पर चला आया।वहीं पास ही वेटिंग एरिया था सो मैं वहीं पड़ी एक कुर्सी पर जाकर बैठ हेडफोन लगा कर सॉन्ग सुनने लगा।कुछ ही देर में अर्पिता भी अपने हाथ में दो तीन बैग्स पकड़े चली आई।उसने लाकर सबको काउंटर पर रखा सभी सामान की बिलिंग करवा कर मेरी ओर देखा।मैं उठकर उसके पास चला आया और एक नजर उसके हाथ में पकड़े बिल पर डाली। ऑनलाइन सर्विस के जरिये पेमेंट कर मैं उसकी बैग्स उठाते हुए बाहर चला आया जिसे देख वो वहीं खड़ी हो गयी।उसे साथ न आते देख मैं रुका और पलटते हुए बोला 'श्रुति की दोस्त के नाते मदद कर रहा हूँ ये भी नही करने दोगी तुम!' उसने न में गर्दन हिलाई।जिसे देख मैं हल्का गुस्साते हुए बोला 'लेकर नही भागूंगा मैं।मेरे किस काम के है ये।बाहर तक ही ले जा रहा हूँ चलो चुपचाप बाहर खुद से पकड़ लेना।' मुझे सुन वो चुपचाप चलकर आगे बढ़ गयी और बाहर जहां मैंने उसे उतरने को कहा था वहीं खड़ी हो गयी।उसे देख मैं बाहर आकर उससे बोला, 'अप्पू ये बेग पकड़ो मैं अब बाइक लेकर आता हूँ फिर चलते हैं।' उसने संक्षिप्त में उत्तर दिया 'जी'।और सारे बैग्स पकड़ लिए।मैं वहां से लगेज रूम की ओर बढ़ गया अपना गिटार और बैग दोनो लेकर बाइक मॉल के दरवाजे के सामने लाकर फिर खड़ी कर ली।वो बिन कुछ कहे सभी बैग्स को सम्हाल कर बैठ गयी।उसे बैठा जान मैंने बाइक दौड़ा दी।

कुछ आगे चल मैंने मिरर से उसे देख महसूस किया इतने सारे बैग्स पकड़ने में उसे थोड़ी सी परेशानी हो रही थी तो मैंने बाइक रोकी और बोला 'नीचे उतरो'!

इस बार भी वो बिन कुछ कहे सम्हल कर उतर जाती है।मैंने बाइक स्टैंड की और अर्पिता का दिया वही रुमाल अपनी पॉकेट से निकाला।उसके हाथ से सारे बैग्स लेकर नीचे रख रुमाल को राउंड राउंड करते हुए फोल्ड किया और सभी बैग्स के सिरों को रुमाल से इकट्ठे बांध दिया।उसे उठकर अर्पिता को देते हुए बोला 'अब इन्हें रख कर आराम से बैठना ठीक है।मैंने एक नजर उसकी ओर देखा और वापस से अपनी बाइक पर बैठ गया।

हम्म।उसने धीमे से कहा और एक हाथ मे बैग पकड़ कर बैठ गयी।मैंने मिरर में देख उससे पूछा 'चले' उसने हां कहा तो मैंने मुस्कुराते हुए बाइक दौड़ा दी।बाइक राइड करते हुए मेरी नजर मिरर के जरिये जब तब उस पर जाती है और उसे अपनी ओर देखता पाकर मैं हड़बड़ा कर इस तरह नजरे फेर लेता जैसे मेरी चोरी पकड़ी गयी हो।

बाइक चलते हुए उसके चेहरे पर हवा के जोर से बाल आ जाते है जिन्हें देख मैं मन ही मन बोला..ये जो तुम्हारे चेहरे पर लहराते बाल है ये उन्ही का कमाल है जो घने अंधेरे के बीच लुकते छिपते चांद का एहसास करा रहे हैं।'और मैं यूँ ही मुस्कुराने लगा।कुछ ही देर में हम रूम पर पहुंच गये और मैंने बाइक रोकी।बाइक के रुकने पर ही वो बोली 'हम घर आ गए प्रशान्त जी...।'

मैं मुस्कुराया और बैग्स उठाते हुए बोला 'हां..हम हमारे घर आ गए।'

क्रमशः....