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भीडतंत्र

भीडतंत्र

एक पाठशाला में प्रधानाचार्य महोदय प्रतिदिन छात्रों को शाला छूटने के बाद एक कहानी सुनाते थे। इससे छात्रों को मनोरंजन के साथ साथ सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों के विषय में भी उन्हें ज्ञान प्राप्त होता रहता था। एक दिन उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि लोकतंत्र से जनता का हित नही हो पाता उसे भीडतंत्र के रूप में जाना जाता है। हमारे जनप्रतिनिधि अलग अलग विचारधारा कार्यकलाप एवं कार्य करने की प्रणाली में इतने एक दूसरे से इतने मतभिन्न होते है कि वे बंधी हुई रस्सी को अलग अलग दिशाओं में मोडकर स्वयं भी दिग्भ्रमित हो जाते है।

हम कभी कभी सुनी सुनाई बातों पर ध्यान देकर अप्रत्याशित कठिनाईयों में अपने आप को बांध लेते है और समय निकल जाने के पश्चात उसी कृत्य के लिये अफसोस व दुख प्रकट करते है परंतु जब समय निकल जाता है तब अब पछताय होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत की कहावत चरितार्थ होती है। ऐसी ही एक घटना जो मेरे सामने घटी थी आज भी मेरे मन को भीतर तक हिला देती है। यह वाक्या उस समय का है जब पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के असामयिक निधन पर उनके सहयोगियों एवं समर्थकों द्वारा बिना वजह मातम के वातावरण को द्वेष, हिंसा, भाई चारे की समाप्ति, हम एक है की विचारधारा पर गहरा आघात पहुँचाया।

मै उस समय गुरूद्वारे के पास से गुजर रहा था तभी अचानक दंगाईयों की भीड के बीच में फंस गया। मेरे सामने ही वे छुरे चाकू चला रहे थे और बिना सेाचे समझे, बिना की जाति पाति की पहचान के लोगों को सामान लूटना और प्रतिरोध करने पर जान से मारने की धमकी देना प्रारंभ कर दिया। मैं तो घबराहट के मारे ईश्वर कृपा की अपेक्षा करने लगा। इसी समय अचानक से एक दंगाई जिसके हाथ में पेट्रोल बम एवं अन्य हथियार थे मेरी ओर आने के लिये बढा तभी उसके एक दोस्त ने चिल्लाकर कहा कि तेरी बहन को प्यार करने वाले लडके को मैने पकड लिया है। यह सुनते ही वह मुझे छोडकर उसकी ओर भागा और उसके पीछे पीछे अन्य लोग भी उसका अनुसरण करते हुए उसके पीछे हो लिये। इसी समय पुलिस की गाडियों के सायरन बजने चालू हो गये और मैं वहाँ से निकल गया।

दूसरे दिन के समाचार पत्रों से पता चला कि जिस जगह दंगाईयों ने आतंक मचाया था वहाँ पर घायल होने वाले अधिकांश व्यक्ति उन्ही दंगाईयों के नाते रिश्तेदार और परिचित थे। इतना बताकर गुरूजी ने कहा कि दंगाईयों का कोई धर्म, मजहब, ईमान नही होता। वे बिना किसी लक्ष्य के एक उद्देश्य विहीन भीड का हिस्सा होते है। यदि वे समझदारी से काम लेते तो ऐसी अप्रिय स्थिति नही आती और उनके भाई, बंधु निकट संबंधी, उन्ही के अपनों से घायल न होते। सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नही करना चाहिये इस दंगे मे आहत व्यक्तियो को राजनीति या सामाजिक मनोदशा से कुछ लेना देना नही था। वे तो अपने कार्यवश बाहर निकले थे और बेवजह हताहत होकर अस्पताल पहुँच गये। तुम लोग जीवन में चिंतन करते समय स्वविवेक और आत्ममंथन से विचार करना, किसी की बातों में आकर निर्णय मत लेना।

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