चाहत - 12 sajal singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चाहत - 12

पार्ट -12

मैंने नेहा को कहा था कि वो मुझसे उस दिन के बारे में ना पूछे जब मैं सलिल से मिल कर आई थी। अब उन बातों को एक साल हो गया था। इस एक साल में उसने एक अच्छी दोस्त की तरह मेरी बातों का मान रखा और कभी भी दोबारा कुछ नहीं पूछा उस दिन के बारे में। इस एक साल में मैं और नेहा और अच्छे दोस्त बन गए हैं। अब नेहा हमारे घर पर ही पेइंग गेस्ट बन कर रहती है। हमने उसे गेस्ट रूम रहने के लिए दे दिया है। अब सब हम उसे प्यार से नेहु बुलाते हैं। वो भी मुझे चीनू बुलाने लगी है। अब हम दोनों ने अपनी पीएचडी का एक साल कम्पलीट कर लिया है। हमें बड़े ही टैलेंटेड और अनुभवी टीचर्स मिले हैं हमारे पीएचडी कोर्स में। साथ ही साथ हमे दो नए दोस्त मिल गए हैं कॉलेज में -पूजा और आशीष। दोनों ही बड़े मजाकिया हैं। कभी -कभार पूजा और आशीष भी हमारे घर आ जाते हैं। उन दोनों से प्राची और सुमन भी एक -दो बार मिल चुके हैं। कुल मिलाकर हमारा फ्रेंड सर्कल अब बड़ा हो गया है।

अब सावी डेढ़ साल की हो गयी है। सावी अपनी प्यारी तुतली आवाज़ से सबको हसाती रहती है। अब वो उठते -पड़ते पैदल चलने की कोशिस करती रहती है। कॉलेज से आकर मैं और नेहु सावी के साथ बड़ी मस्ती करते हैं। खैर, इस एक साल में सबकी ज़िंदगी में बदलाव आ गए हैं। शिव भैया और हमारा परिवार अब और करीब आ गया है। दादी तो सावी के साथ ज्यादा से ज्यादा वक़्त बिताती हैं। बस हम सब अब बेसब्री से प्राची और शिव भैया की शादी का इंतज़ार कर रहे हैं। एक साल इंतज़ार का खत्म हुआ अब दस दिन ही बचे हैं उनकी शादी में। दूसरी ओर सुमन और अमन की शादी हो चुकी है। उनकी शादी में हम सब ने बड़ा एन्जॉय किया था। सुमन अब घर सँभालने के साथ -साथ स्कूल भी जाती है बच्चों को पढाने के लिए। सच में ,अमन बड़े अच्छे से सुमन का साथ दे रहा है। नेहा अब भी सिंगल है।

ये तो थे दुसरो के हाल -समाचार। मेरा हाल इस एक साल में बिलकुल ही अलग था। कहते हैं कई बार इंसान की हार में उसकी जीत छुपी होती है। मेरे साथ उल्टा हो रहा है मैं सलिल से जीत कर भी हार गयी थी। हर पल सलिल का चेहरा और उसकी इंतज़ार करने वाली बात मेरे जहन में रहती। लेकिन वो अपनी बात का पक्का निकला। उस मैच के बाद उसने ना मुझे फ़ोन किया ना मैसेज। ना ही कभी हमारे घर आया। जब कभी हमारा शिव भैया के यहाँ आमना -सामना होता तो वो अपनी नजरें फेर लेता। कहाँ उसकी नजरें हर वक़्त मुझे ढूंढ़ती रहती थी और कहाँ अब वो मेरी तरफ देखता भी नहीं। कई बार मेरा और नेहा का प्राची के घर जाना हुआ। वैसे तो सलिल घर पर मिलता नहीं था अगर मिल भी जाता तो मेरे सामने से अनजान बनकर निकल जाता। उसकी ये हरकत मुझे बहुत चुभती। लेकिन फिर ये सोच कर मन को दिलासा दे लेती कि उसकी मुझसे दूर रहने में ही भलाई है। कई बार भैया -भाभी ने मुझसे पुछा कि सब तुम्हारे दोस्त घर आते हैं बस अब सलिल नहीं आता। मैं अब उन्हें क्या बताती बस ये कहकर टाल देती कि वो अपने बिज़नेस में बिजी रहता है। इसलिए नहीं आ पाता। ये बात सही भी थी प्राची और शिव भैया ने बताया था कि सलिल ने अपना बिज़नेस एक्सपैंड कर लिया है। अब तो वो फॉरेन बिज़नेस टूर पर भी जाने लगा है। अब मुझे यकीन हो गया था कि सलिल अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ गया है। मैं खुश थी उसके लिए लेकिन पता नहीं मेरे दिल से सलिल की अनदेखी सही नहीं जा रही थी।

(मैं और नेहा अपनी स्टडी करके सावी के साथ खेल रहे हैं। तभी भाभी आती है। )

भाभी -चलो बहुत खेल लिया तुम सब ने। अब सावी का सोने का समय है।

मैं - भाभी ,अभी तो 9 ही बजे हैं। खेलने दो ना हमें।

नेहा -हाँ भाभी। plz थोड़ी देर और खेलने दो।

भाभी -बिलकुल नहीं। मैं सावी को दूध पिलाकर सुलाती हूँ। तब तक तुम दोनों फ्रेश हो कर आ जाओ डिनर के लिए।

मैं - भाभी , plzz .........

भाभी -नहीं , तुम दोनों रोज ऐसा ही करती हो। पहले देर तक सावी के साथ खेलती हो। फिर देर रात तक पढ़ती रहती हो।

नेहा -तो क्या हुआ भाभी ?

भाभी -अच्छा ,क्या हुआ ? कॉलेज जाने के लिए सुबह तुम दोनों से उठा तक नहीं जाता। आज से टाइम से तुम दोनों सोना और उठना। ओके !

(इतना कहकर भाभी सावी को ले गयी। अब हम कर भी क्या सकते हैं ? तो हम भी चल दिए डिनर करने। भैया हम दोनों के साथ डिनर के लिए बैठे हैं। भाभी सावी को सुलाने अपने रूम में ले गयी हैं। )

भैया -क्या बात है ? तुम दोनों आज बड़े उदास लग रहे हो ?

नेहा -और नहीं तो क्या ? भाभी ने हमें आज थोड़ी देर ही सावी के साथ खेलने दिया।

भैया -रिया ने सही किया। वैसे तुम दोनों सावी के साथ खेल कर थकती ही नहीं हो।

मैं - आप भी भाभी की साइड ले रहे हो भैया।

भैया -मैं बस इतना कह रहा हूँ कि तुम अपनी हेल्थ पर भी ध्यान दो। टाइम से सोया करो।

भाभी ( डाइनिंग टेबल पर आते हुए ) और नहीं तो क्या ? निसाचरों की तरह रात भर जागती रहती हो।

नेहा - क्या भाभी ?

(तभी लैंडलाइन फ़ोन बजता है। भाभी उठाने जाती हैं। हम अपने डिनर को एन्जॉय कर रहे हैं। )

भाभी -(हमारी ओर आते हुए ) जल्दी से हॉल में आइये आप सब।

(हम सब उठकर हॉल में गए। भाभी ने टीवी ऑन किया। )

टीवी पर हैडलाइन बार -बार आ रही है- "यंग बिज़नेसमन अवार्ड ऑफ the ईयर" मिला है मिस्टर सलिल जैसवाल को। साथ में सलिल की अवार्ड लेते की फोटो टीवी पर बार -बार दिखा रहे हैं।

इस खबर को सुनकर हम सब बहुत खुश हुए। मैंने एक बार फिर से सलिल का लोहा मान लिया कि वो सच में बहुत काबिल है। थोड़ी देर बाद हमने टीवी ऑफ किया।

भैया -रिया ,तुम्हे कैसे पता चला न्यूज़ के बारे में ?

भाभी -प्राची का फ़ोन था। उसी ने बताया।

नेहा -सलिल ने तो कमाल कर दिया अवार्ड जीत कर।

भैया -सच में ,इतनी कम उम्र में इतना सब कुछ अचीव कर लिया सलिल ने।

भाभी -सुन चीनू , प्राची को पर्सनली फ़ोन करके badahi दे देना। और हो सके तो सलिल से भी बात कर लेना।

मैं -जी भाभी ,मैं प्राची से बात कर लुंगी।

(इतना कहकर मैं अपने रूम में आ गयी। फ़ोन देखा तो प्राची के मिस्ड कॉल्स थे। मैंने तुरंत प्राची को फ़ोन लगाया। पर उसने रिसीव नहीं किया। )

नेहा -(मेरे कमरे में आकर ) हो गयी बात प्राची से।

मैं -नहीं ,उसने कॉल नहीं रिसीव की।

नेहा -शायद बिजी होगी। बाद में कर लेना। चल मैं तब तक घर पर बात करके आती हूँ। (इतना कहकर नेहा चली गयी। )

मैं फ़ोन को टेबल पर रख कर पढ़ने बैठ गयी। एक घंटे बाद प्राची का कॉल आया।

मैं -(फ़ोन उठाते हुए ) हेलो !प्राची ,

प्राची -हे चाहत ! कैसी हो ?

मैं -मैं ठीक हूँ। तु कैसी है ? घर पर सब कैसे हैं ?

प्राची -सब अच्छे हैं। और आज तो भैया की अचीवमेंट से सब बहुत खुश हैं।

मैं -हाँ ,मैंने तुम्हें badahi देने के लिए फ़ोन किया है। मेरी और मेरे परिवार की तरफ से आप सब को सलिल की कामयाबी पर ढेर सारी badahi !

प्राची -थैंक्स ! वैसे तू भाई को विश नहीं करेगी।

मैं -तु ही बोल देना मेरी तरफ से।

प्राची -जानती हूँ। तू फ़ोन नहीं करेगी। एक सेकंड रुक। भैया अभी घर आये हैं। मैं ही बात करवाती हूँ। (प्राची सलिल को फ़ोन देती है। ) भैया बात करो।

सलिल -लेकिन ये तो बताओ फ़ोन पर है कौन ?

प्राची -आप खुद ही देख लो। मैं अभी आयी। (प्राची चली जाती है। )

मैं -(क्या सच में प्राची सलिल को फ़ोन दे देगी ,नहीं मैं प्राची से बहाना बना देती हूँ कोई ) सुन प्राची ,तू ही अपने भाई को मेरी और से विश कर देना। (सामने से आवाज़ ना आने पर ) प्राची ,सुन रही है क्या ?

सलिल -(गंभीर आवाज़ में ) जी आप कौन बोल रही हैं ?

मैं -(सलिल की आवाज़ सुनकर ) जी आप हैं फ़ोन पर।

सलिल -हाँ। मैं उसका भाई हूँ। आप कौन ?

मैं -(सलिल का ये सवाल मेरे अंदर सीसे की तरह चुभ गया ) मैं चाहत। प्राची की दोस्त।

सलिल -ओके !

मैं -आपको अवार्ड मिला। मुबारक हो !

सलिल -थँक्स ! (इतना कहकर उसने फ़ोन काट दिया। )

मैं सलिल के इस व्यहवार से बहुत दुखी हुई। क्या सच में वो मुझे भूल गया ? कितनी जल्दी उसने फ़ोन काट दिया। क्या वो अब सच में आगे बढ़ गया है?

(नेहा तभी रूम में आती है। )

नेहा -सॉरी चीनू ,थोड़ी देर हो गयी। आज मैंने घर पर थोड़ी ज्यादा ही बात कर ली। प्राची से बात हो गयी।

मैं -हाँ ! मैंने विश कर दिया।

नेहा - चीनू , ये एकदम से तेरा चेहरा क्यों उतर गया है ? क्या हुआ है ?

मैं -कुछ भी तो नहीं। चल सोते हैं। कल कॉलेज जल्दी चलेंगे।

नेहा -क्यों ?

मैं -तू भूल गयी क्या ? फिर तीन दिन कॉलेज बंद है वीकेंड पर। और आते वक़्त शिव भैया की शादी के लिए 10 दिन की लीव भी तो लेनी है हमें।

नेहा -हाँ यार ! ओके ! मैं सोने जा रही हूँ।

नेहा तो चली गयी सोने। पर मैं अब भी करवटें बदल रही हूँ। सलिल की आवाज़ आज एक साल बाद सुनी और उसने मुझे कैसे अजनबी बना दिया। ये बात मुझे बुरी तरह लग गयी।