शुभि (9) Asha Saraswat द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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शुभि (9)

शुभि (9)
आज शुभि का मन बहुत ख़राब था ,पढ़ाई में भी उसका बिलकुल मन नहीं लगा ।बार-बार उसकी ऑंखें ऑंसुओं से गीली हो रही थी।आज अपने किसी मित्र से भी बात करने का मन नहीं हो रहा था।
मध्यावकाश में वह अपनी सहेलियों के साथ खो-खो खेल रही थी।खेलते-खेलते उसे बहुत ही तेज प्यास लगी ।
वह पानी पीने के लिए नल पर जा रही थी जैसे ही वह नल के पास पहुँची तभी कुछ बच्चे नल को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये ।
शुभि ने कहा मुझे पानी पीना है मुझे रास्ता दे दो मैं पानी पीने के लिए आई हूँ ।
शुभि जल्दी से पानी पीकर खेलने के लिए जाना चाहती थी,उसकी सहेलियाँ उसका इंतज़ार कर रही थी ।
जब बहुत देर हो गई तो शुभि आगे बढ़कर पानी पीने की कोशिश कर रही थी ।
तभी एक लडका जो उसकी कक्षा का नहीं था, उससे बड़ा था ; उससे लड़ने लगा भद्दे अपशब्द बोलने लगा ।शुभि को बहुत बुरा लगा ।शुभि कुछ बोल नहीं पाई ,बहुत ग़ुस्सा आ रहा था ।उसने धक्का दिया तो वह लड़का स्वयं गिर गया उसके पैर में चोट लगी ।शुभि को भी चोट लगी लेकिन प्रिंसिपल साहिबा ने दोनों को ही बाहर प्रांगण में खड़ा कर के सजा दी।शुभि को बहुत बुरा लग रहा था लेकिन दूसरा बच्चा निडर होकर खड़ा था ।
शुभि रोते हुए घर पर आई ।उसने दादी जी को पूरी घटना बताई ।
दादी जी ने पूरी बात सुनी और प्यार करते हुए कहा—
स्कूल में कुछ बच्चे बहुत शरारती होते हैं हमें उनकी बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए। तुम क्यों परेशान हो रही हो।तुम्हें मैं एक कहानी सुनाती हूँ ,बाहर गर्मी बहुत है चलो कमरे में आकर बैठते हैं ।तुम्हें कहानी अच्छी लगेगी और सरलता से समझ में आ जायेगा ।
एक बार गौतम बुद्ध भ्रमण पर निकले ।चलते-चलते वह बहुत दूर निकल गये।उन्हें बहुत तेज प्यास लग रही थी।उन्होंने देखा सामने एक व्यक्ति घर के चबूतरे पर बैठा है, वेशभूषा से वह कोई सेठ लग रहा था।उन्होंने सेठ से कहा—क्या भाई तुम्हारे यहाँ मुझे पानी मिलेगा,मुझे प्यास लगी है।

सेठ ने गौतम बुद्ध की ओर देखा और पानी तो नहीं पिलाया।
सेठ बहुत भद्दे अपशब्द बोलने लगा ।लगातार सेठ गंदी-गंदी गालियाँ दे रहा था और वह वहाँ खड़े रहे ।बहुत देर तक सेठ अपमानित करता रहा फिर थक कर चुप हो गया ।
जब सेठ ने बोलना बंद किया तो गौतम बुद्ध मुस्करा कर आगे चले गये।
सेठ को बड़ा आश्चर्य हुआ कि उसके अपशब्द बोलने पर भी वह कुछ नहीं बोले।
वह दौड़ कर फिर उनके पास गया और वहाँ जाकर बोला —कि मैंने आप को बहुत से अपशब्द कहे लेकिन आप कुछ नहीं बोले ।
क्या आपको कुछ भी बुरा नहीं लगा ।वह बोले —नहीं मुझे बुरा नहीं लगा क्योंकि मैंने तुम्हारे शब्दों को लिया ही नहीं ।
सेठ की समझ में कुछ नहीं आया फिर उसने अपनी बात दोहराई ।
गौतम बुद्ध बोले—सुनो सेठ जी! आप यदि मुझे गाय देते हैं और वह गाय में न लूँ तो वह गाय किसकी होगी?
सेठ जी बोले —वह गाय यदि आप नहीं लेंगे तो हमारी ही रहेगी ।
गौतम बुद्ध बोले—जिस तरह गाय मेरे न लेने पर तुम्हारी ही रहेगी , उसी तरह तुम्हारे अपशब्द मैंने लिए ही नहीं तो वह तुम्हारे ही रहेंगे ।मुझे बुरा क्यों लगेगा? मुझे बुरा नहीं लगा ।
यह सुनकर सेठ गौतम बुद्ध के सामने हाथ जोड़कर क्षमा माँगने लगा।

✍️क्रमश:

आशा सारस्वत