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शुभि




एक चिड़िया आती है,चिव-चिव गीत सुनाती है,
दो दिल्ली की बिल्ली है,देखो जाती दिल्ली है,
तीन चूहे राजा है देखो बजाते बाजा है,
चार घर में कार है,हम जाने को लाचार हैं।.....
शुभि अपने कमरे में कविता बोल रही थी ,पहले वह धीरे-धीरे बोल रही थी फिर अचानक बोलते हुए रोने लगी ।
दादी ऑगन में बैठकर विष्णु पुराण पढ़ रही थीं,उनका ध्यान शुभि की आवाज़ पर गया तो उन्हें चिंता हुई कि वह क्यों रो रही है ।दादी शुभि के कमरे में गई तो देखा शुभि खिलौनों के पास बैठे हुए रो रही है ।


दादी ने शुभि को गोद में बैठाया प्यार करते हुए पूँछा-शुभि तुम क्यों रो रही हो बेटा क्या बात है ।


शुभि रोते हुए अपनी दादी से लिपट गई रो कर बोली—दादी मुझे अपने स्कूल की याद आ रही है,वहॉं मैं अपने सहपाठियों के साथ खेलती हूँ ।स्कूल में कविता- कहानी सुनती हूँ और पढ़ाई करती हूँ ।


अब स्कूल मॉं जाने नहीं देती,मेरे पड़ौस के बच्चे भी अब नहीं खेलते,मेरा मन स्कूल जाने का है।मेरा घर में मन नहीं लगता ।अब मॉं ,पिताजी ,आप कोई भी बाहर घुमाने नहीं ले जाते ।


दादी ने शुभि को प्यार से चुप किया और बताया—
बेटा शुभि इस समय कोरोनावायरस फैला हुआ है इसलिए कोई भी अनावश्यक बाहर नहीं जा रहे ।यदि बहुत ही आवश्यक कार्य हो तो जो भी बाहर जाता है पहले मास्क लगाकर जाता है फिर आकर बाहर से लाया हुआ सामान बाहर बरामदे में ही रखकर नहाकर कपड़े बदलता है ।


कल तुम्हारे पिताजी मेरी दवाई लेने गये थे तो दवाई लाने के बाद नहाकर कपड़े बदले थे ।तुमने देखा कि किराने का सामान भी आर्डर देकर मंगाया था ।सामान आने के दूसरे दिन उपयोग किया था ।सब्ज़ियों को भी धोकर रखा था फिर अगले दिन रेफ़्रीजरेटर में रखा था ।दादी की बातें शुभि बड़े ध्यान से सुन रही थी ।


दादी ने कहा—आजकल तुम्हारा स्कूल नहीं खुल रहा ।सभी ऑफिस भी नहीं खुल रहे तुम्हारे पिताजी भी तो घर में ही है ।सारे घर के काम सब लोग मिलकर करते हैं बाई भी नहीं आ रही ।


दादी के हाथों में पुस्तकें थीं ।दादी ने कहा—चलो शुभि बैठो मैं तुम्हें विष्णु भगवान और लक्ष्मी जी की कहानी सुनाती हूँ ।दादी ने सरल भाषा का उपयोग करते हुए कहानी सुनाई—


एक बार विष्णु भगवान और लक्ष्मी जी बैठे बातें कर रहे थे ।लक्ष्मी जी ने विष्णु भगवान से कहा—महाराज मेरी समाज में बहुत इज़्ज़त है ।सभी चाहते हैं कि मैं सबके घरों में विराजमान रहूँ ।सभी सामाजिक प्राणी मेरी आवश्यकता को महसूस करते हैं और प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास करते हैं ।लक्ष्मी जी को बहुत घमंड था वह सदैव यही बात कहा करतीं ।विष्णु भगवान शान्त ही रहते ।


लक्ष्मी जी की बात सुन कर भगवान बोले—चलो देवी जनता ही इसका निर्णय करेगी ।

एक जगह विष्णु भगवान ब्राह्मण का वेष धारण करके कथा सुना रहे थे सभी भक्त तन्मयता से कथा सुन रहे थे ।तभी कथा के बीच में लक्ष्मी जी एक भिखारिन का वेष बनाकर सब श्रोताओं के बीच में जाकर बैठ गई ।बैठे हुए लोगों ने भिखारिन को वहॉं से हठात् हटाया तो वह चुपके से एक सोने का कटोरा वहॉं रखकर चली गई ।


लोगों ने वहाँ कटोरा देखा तो वहाँ चर्चा होने लगी ।
अगले दिन फिर कथा का आनंद सब लोग ले रहे थे ।ध्यान तोड़ने को फिर लक्ष्मी जी चुपके से दो कटोरे रखकर चली गईं ।हर दिन कटोरा रख जाती ,लोगों को कथा में कम कटोरे में दिलचस्पी होने लगी प्रतिदिन भिखारिन का इंतज़ार करने लगे ।जिन लोगों को कटोरे नहीं मिलते वह दूसरे लोगों से लड़ने लगते ।जिन को मिलता वह अगले दिन और पाने की चाह में वहॉं जाता।जिसे मिलता वह ख़ुश होता,जिसे नहीं मिलता वह लड़कर दूसरे से छीनने की कोशिश करता ।


इस तरह एक सप्ताह में ही वहॉं मार काट शुरू हो गई । कितने ही लोग चोटिल हो गये ।

विष्णु भगवान ने घर पर लक्ष्मी जी से कहा— महारानी अब आप मत आना,बहुत से लोगों के चोटें लग चुकी हैं,आपके आने से लोगों में भगदड़ मच जाती हैं और लोग कथा न सुनकर आपका इंतज़ार करते हैं आप चुपके से कटोरे रख आतीं हैं ।फ़्री में मिलने की उम्मीद में अनेक लोग चोटिल हो जाते हैं ।


लक्ष्मी जी बोलीं—महाराज आप जिस दिन अपनी हार मान लेंगे,मैं नहीं आऊँगी ।


विष्णु भगवान कथा करने चले गये ।विष्णु भगवान कथा कर रहे थे तभी उन्होंने देखा लक्ष्मी जी फिर कटोरे लेकर चुपके से जा रही थी ।सभी कटोरे विष्णु भगवान की दृष्टि के सामने आते ही लोहे के कटोरे में परिवर्तित हो गये।एक व्यक्ति ने उठाया तो देखा लोहे का है ।सभी कटोरे लोहे के है तो पूरी भीड़ भिखारिन के पीछे दौड़ते हुए कटोरे फेंक कर लक्ष्मी जी के सिर में मारने लगी।


लक्ष्मी जी आगे-आगे दौड़ रही थी,भीड़ कटोरे लेकर लक्ष्मी जी के ऊपर फेंक रही थी ।दौड़ते-दौड़ते लक्ष्मी जी थक गई और विष्णु भगवान के चरणों में गिर कर क्षमायाचना करने लगी—महाराज मैं ग़लत थी आप सही थे। आपने कभी नहीं कहा कि आप बड़े है और मैं सदैव स्वयं को बड़ा बताती रही ।आप की महिमा अपरंपार है ।


कलियुग में आपकी भक्ति और सूझबूझ ही काम आयेगी ।मनुष्य ज्ञान के द्वारा सबकुछ पा सकता है ।मेरा क्या ,मैं तो चंचल स्वभाव की हूँ ।आज यहाँ कल वहॉं ।


शुभि को कहानी बहुत अच्छी लगी ।उसने दादी से कहा—दादी मुझे और कहानी सुनाइए मैं जब स्कूल जाऊँगी तो अपनी सहेलियों को सुनाऊँगी ।


दादी ने कहा—आज एक कहानी ही बहुत है एक दिन में ही ज़्यादा कहानी सुनोगी तो याद नहीं रहेंगी ।मैं प्रतिदिन एक कहानी तुम्हें सुनाऊँगी ।इस तरह घर पर रह कर शुभि और दादी का समय अच्छा बीता,प्रतिदिन दादी से कहानी सुनकर बहुत ही आनंद आया ।

आशा सारस्वत



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