बाल कहानी - शुभि (4)
बहुत दिनों तक घर में काम करने वाली बाई नहीं आई तो घर के काम सब को बॉट दिये गये ।पूरे दिन के घरेलू काम सब लोग मिल-जुलकर पूरा कर लेते ।
शुभि के घर के पास ही एक बस्ती थी,जहॉं अधिकतर दैनिक मज़दूर रहा करते थे ।वहीं पर काम बाली बाई भी रहती थी ।
एक दिन दादी के साथ वह उनकी बस्ती में गई,दादी ने वहाँ जाकर जानकारी की कि कोई परिवार ऐसा तो नहीं जहॉं खाने पीने की कोई परेशानी हो।
वहॉं जाकर देखा कई परिवारों के व्यक्ति बेरोज़गार हो गये हैं,उन्हें बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है ।दादी ने उन्हें आश्वासन दिया कि जितना हम से होगा हम आप सब की सहायता करेंगे ।हमारी काम वाली बाई को दादी जी पूरा वेतन देकर लौट रही थी ।शुभि ने देखा कुछ बच्चे उस बस्ती के रेलगाड़ी का खेल खेल रहे थे ।
एक बच्चा इंजन बना हुआ है और कई बच्चे रेल के डिब्बे बनकर मस्ती से खेल रहे थे।शुभि को देख कर बहुत अच्छा लग रहा था ।वहीं एक लाल रंग की क़मीज़ कंधे पर डालकर और एक हाथ में पेड़ की छोटी डाली लेकर बच्चा गार्ड बना हुआ,बहुत ही ख़ुशी से खेल रहा था।दादी जी आ गई तो शुभि अपने घर आ गई ।
दादी जी ने अपने आस-पास के लोगों से संपर्क करके निर्णय लिया कि हम प्रतिदिन कुछ खाने का सामान सब की सहायता से उन्हें देने जायेंगे।
दूसरे दिन दादी जी अपने घर पर ही इंतज़ाम करके सामान देने जा रह थी तो शुभि भी साथ जाने को तैयार हो गई ।खाने का सामान देकर आ रहे थे तो देखा वहाँ बच्चे रेलगाड़ी बनकर खेल रहे थे ।
शुभि ने देखा कि इंजन बनने वाला बच्चा बदला हुआ है ।रेल के डिब्बे वाले बच्चे भी आगे-पीछे लगे थे लेकिन लाल क़मीज़ वाला गार्ड नहीं बदला ।वह गार्ड बनकर ही ख़ुशी से खेल रहा था।सामान देने के बाद शुभि और दादी जी घर पर आ गई ।
अगले दिन शुभि के बराबर घर में रहने वाली चाची जी को कुछ सामान देने जाना था।उन्होंने दादी जी को साथ लेकर जाने को कहा ।
आज दादी जी को कुछ थकान महसूस हो रही थी उन्होंने चाची जी से कहा—तुम शुभि को अपने साथ ले जाना ।जब वह गई तो शुभि उनके साथ ही गई ।जब आ रहे थे तो शुभि ने देखा—सभी बच्चे खेल रहे थे, वह वहाँ देखने लगी।उसने देखा कि इंजन वाला बच्चा भी बदला हुआ था,अन्य बच्चे भी आगे-पीछे डिब्बे बने हुए थे ।लाल क़मीज़ वाले बच्चे को गार्ड ही बने देखा ।
जब अगले दिन शुभि दादी जी के साथ गई तो उसने दादी जी को बताया,फिर दादी के साथ जाकर उस बच्चे से कहा—क्या तुम्हारा मन इंजन या रेलगाड़ी के डिब्बे बनने का नहीं करता तुम प्रतिदिन गार्ड ही बनते हो ।मैं जब यहाँ आती हूँ तो तुम्हें ही गार्ड के रूप में देखती हूँ ।
उसने पहले कोई जबाब नहीं दिया लेकिन दादी जी ने उसे गोद में लेकर प्यार से पूछा तो उसने बताया—मेरे साथियों के पास अलग रंग के कपड़े है और मेरी क़मीज़ लाल है इसलिए मैं गार्ड बनता हूँ ।मेरे पास लाल ही क़मीज़ है और मेरे किसी साथी के पास लाल क़मीज़ नहीं है ।हमारे पास एक या दो जोड़ी कपड़े ही है ।
यह सुनकर शुभि के ऑंखें भर आईं क्योंकि उसके पास तो अनगिनत ड्रेस थी फिर भी वह हर त्यौहार,हर उत्सव पर नये कपड़े लाने की ज़िद किया करती थी।
उसने घर आकर अपने सभी कपड़े देखे तो बहुत से कपड़े नये थे लेकिन छोटे हो गये थे जिन्हें पहनने का नंबर ही नहीं आता था ।कुछ कपड़े ऐसे भी थे जिन्हें पहनने का मन नहीं करता क्योंकि वह पुराने रिवाज के थे।उन्हें उसने बहुत दिनों से नहीं पहना था ।
दादी जी के साथ कपड़े इकट्ठे किए और दादी जी के साथ जाकर बस्ती में बच्चों को कपड़े दिए।कुछ अपनी कालोनी में रहने वाले लोगों से कपड़े इकठ्ठे किए और सभी को ज़रूरत के अनुसार दिए।कुछ साड़ियाँ ,पेंट-शर्ट,सलवार सूट,गर्म कपड़े सब को दिए।
शुभि के पास बहुत सारे खिलौने थे वह कुछ खिलौने भी देकर आई और अपनी गुल्लक में से कुछ रुपये उसने दादी जी को दिए और कहा—दादी जी उन सभी बच्चों को आप फल ख़रीद कर दे आइएगा ।
दादी जी ने कहा—कि शुभि तुम अपनी गुल्लक के पैसे अपने पास रखो ।मैं उन सब को फल और दवाइयाँ देने जा रही हूँ ।तुम चाहो तो हमारे साथ चलकर उन्हें दे सकती हो ।शुभि दादी जी के साथ गई तो उसे बहुत ख़ुशी हो रही थी ।अभाव ग्रस्त बच्चों को भी सब कुछ लेकर बहुत ही ख़ुशी हो रही थी ।शुभि ने दादी से कहा—दादी जी मुझे बहुत अच्छा लग रहा है ।दादी जी ने प्यार से शुभि के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया,सदैव ख़ुश रहो शुभि।
क्रमश:✍️
आशा सारस्वत