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शुभि (5)



बाल कहानी (5)

प्रत्येक दिन दादी जी सुबह नहाने के बाद मंदिर जाती तो शुभि का मन भी उनके साथ जाने का करता ।लेकिन सुबह ऑंखें नहीं खुलने से वह नहीं जा पाती ।शुभि ने दादी जी से पूछा—दादी जी आप इतने सुबह कैसे उठतीं है कौन उठाता है आपको?

दादी जी ने कहा—मैं जब रात को सोने के लिए बिस्तर पर जाती हूँ तो प्रार्थना करके ईश्वर को आज का दिन अच्छा बीता उसका धन्यवाद देती हूँ और आनेवाले कल के लिए प्रार्थना करके सुबह जल्दी उठने का प्रण लेती हूँ ।सुप्रभात में नियत समय पर मेरी ऑंखें खुल जाती है ।


सुबह ऑंखें खुलने के बाद में ईश्वर को याद करते हुए अपने दोनों हाथों को देख कर बोलती हूँ——
कराग्रे बसते लक्ष्मी कर मध्ये सरस्वती,
कर मूले तु गोविंदा प्रभाते कर दर्शनम्।

हाथों को ऑंखों पर लगाकर फिर पृथ्वी पर पैर रखने से पहले मैं क्षमा माँगते हुए स्पर्श करते हुए बोलती हूँ और सुबह की दिनचर्या से निवृत्त हो कर नहा कर मंदिर जाती हूँ।

समुद्र वसने देवि, पर्वत स्तन मंडले,
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्वमे।

एक दिन शुभि सुबह-सुबह उठकर जल्दी ही मॉं के पास आ गई और मॉं से कहा—
मॉं मुझे भी जल्दी ही नहाना है फिर दादी जी के साथ मैं भी मंदिर जाऊँगी ।


मॉं ने शुभि से कहा दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर आओ फिर नहाकर दादी के साथ मंदिर चली जाना ।जब दादी के पास नहाकर शुभि गई तो दादी जी ने कहा—
अरे शुभि तुम तो बहुत जल्दी तैयार होकर आ गई,तुम्हें किसने जगाया?

शुभि ने कहा—दादी जी मैंने वैसे ही किया जैसा आपने बताया और मेरी सुबह ऑंखें खुल गई ।मैं आपके साथ मंदिर जाऊँगी ।


मंदिर में जाकर शुभि ने देखा दादी जी ने पहले गणेश जी पर जल चढ़ाया ,चंदन लगा कर दूर्वा -पुष्प अर्पित किए फिर मोदक का भोग लगाया ।

पार्वती जी पर जल चढ़ाने के बाद रोली,पुष्प मिष्ठान अर्पण किए ।
ॐनम:शिवाय कहते हुए दादी जी ने शिव को जल ,दूध,चंदन,बेलपत्र,पुष्प,फल ,कलावा अर्पित करते हुए शिव परिवार कार्तिक सहित नंदी और सिंह को भी प्रणाम किया।दादी जी के साथ शुभि ने आरती की उसे बहुत अच्छा लगा।


शुभि ने दादी जी से कहा—दादी जी आपने सबसे पहले गणेश जी की पूजा की ऐसा क्यों?


दादी जी ने कहा—मैं तुम्हें सरलता से संक्षेप में इसका कारण बताती हूँ ।

एक बार शिव जी ने कार्तिकेय जी और गणेश जी को पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने को कहा—जो पहले आ जायेगा वह जीत जायेगा ।
कार्तिकेय अपनी सवारी मोर पर बैठकर पूरे ब्रह्माण्ड की परिक्रमा लगाने के लिए जल्द ही निकल पड़े ।अब गणेश जी का वाहन चूहा था,वह तो बहुत धीरे-धीरे चलता है ।वह विचार करने लगे ।

उन्होंने अपने माता-पिता को बैठाया और चूहे के साथ माता-पिता की परिक्रमा पूरी की।
कार्तिकेय पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाते हुए आये तो उन्हें देर हो चुकी थी ।

शिव जी ने गणेश जी से कहा—कि आप ब्रह्माण्ड का चक्कर क्यों नहीं लगाकर आये ।

गणेश जी ने कहा—मेरे लिये तो आप दोनों ही ब्रह्माण्ड है ।मैंने आप दोनों की परिक्रमा की है।
पिता आसमान के समान ,माता पृथ्वी के समान है पूरा ब्रह्माण्ड मेरे पास है मैं उनका आशीर्वाद चाहता हूँ ।

शिव जी प्रसन्न हो गये और उन्होंने उन्हें वरदान दिया कि आप प्रथम पूज्य देव है,कोई भी पूजा होगी तो पहले आपको पूजा जायेगा ।हम सबसे पहले गणेश जी को ही पूजते है क्योंकि उन्होंने बुद्धि का प्रयोग किया था ।

यह सब सुनकर शुभि को बहुत अच्छा लगा फिर दादी जी से पूछा—दादी! चूहा गणेश जी की सवारी है,
मोर कार्तिकेय की सवारी है,
सिंह मॉं पार्वती की सवारी है,
नंदी शिव जी की सवारी है, सर्प उनके गले में विराजमान हैं ।
ये सभी एक-दूसरे के विरोधी और विपरीत स्वभाव के है फिर भी यह सब एक ही परिवार में मिल-जुलकर रहते हैं?

दादी जी ने कहा—यही संदेश यह सब हम मानव को देते हैं ।
विपरीत स्वभाव होने पर भी सभी को साथ और मिल-जुल कर ही रहना चाहिए ।

बातों-बातों में शिव परिवार की जानकारी और उनका संदेश शुभि को समझ आ गया ।दादी जी के साथ मंदिर में प्रणाम किया और घर आकर उसने दादी जी से कहा—मैं यह सब बातें अपने मित्रों को बताउँगी...


क्रमशः ✍️


आशा सारस्वत



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