(15)
“जब तुम लोग वहां पहुंचे थे तो मैं भी वहां मौजूद था ।” – हमीद ने शुष्क स्वर में कहा – “क्षमा करना प्रकाश ! मेरा स्वर तुम्हें उखड़ा उखड़ा मालूम हो रहा होगा । मैं तुम्हारा मित्र हूं इसलिये तुम्हारी जान की रक्षा करने के लिये मैं सच्ची बात जानना चाहता हूं । अब बता दो कि वह ड्राइवर कौन है ?”
“मैं मिस्टर राय के पास इसलिये गया था ताकि उनसे मालूम कर सकूं कि रनधा को फांसी होगी या नहीं ।”
“बहलाने की कोशिश मत करो दोस्त !” – हमीद मुस्कुराया – “मैंने तुमसे उस ड्राइवर के बारे में पूछा था ।”
“वह आदमी !” – प्रकाश जबान होठों पर फेरकर बोला और भयभीत नज़रों से इस प्रकार चारों और देखने लगा जैसे वह आदमी यहीं कहीं हो और जैसे ही उसने उसका नाम लिया वह उसे मार डालेगा ।
“ठीक है । तुम उसका नाम नहीं बताना चाहते तो न बताओ, मगर इतना तो बता ही दो कि इस समय वह कहां मिल सकेगा ?”
“हो सकता है वह इस समय आप को सामने वाले होटल में मिल जाये ।”
“तुम्हारा नया प्रोजेक्ट कितने का है ?” – हमीद ने पूछा ।
“बताया तो था कि पांच करोड़ का है ।”
“और पांच ही हिस्सेदार भी हैं – तुम, सीमा, नौशेर, मेहता और सुहराब ?”
“जी हां ।”
“और मेरा ख्याल है कि बराबर बराबर का हिस्सा होगा ?”
“जी हां ।”
“क्या तुम सब लोगों के पास एक एक करोड़ रुपये हैं ?”
“जी नहीं । हम लोग कर्ज़ ले रहे हैं ।”
“किस से ?”
“लंदन की एक फर्म से । मशीनों के रूप में ।”
“उस फर्म का पता बताओगे ?”
प्रकाश ने पता बताया । हमीद ने उसे डायरी में नोट किया और बोला ।
“मुझे तुमसे जो कुछ मालूम करना था वह कर चुका । अब रह जाता है तुम्हारे जीवन की रक्षा का प्रबंध । तो इसके लिये दो ही रास्ते हैं । एक तो यह कि तुम्हें जेल में बंद कर लिया जाए या फिर तुम कुछ दिनों के लिये अपनी इसी कोठी में बंद हो जाओ और तुम्हारी कोठी पर फ़ोर्स लगा दी जाए, जो उचित समझना मुझे बता देना ।”
“मैं कैप्टन हमीद से सहमत हूं ।” – एस.पी. बोल उठा – “तुम जो उचित समझो अभी बता दो ताकि वैसी ही व्यवस्था की जाए । जेल में भी तुम्हें कष्ट नहीं होगा ।”
“मैं आपके आदेश का पालन करूँगा । दो दिन इस अपनी कोठी से बाहर नहीं निकलूंगा । आप हमारी रक्षा का प्रबंध कर दीजिये ।”
“हो जायेगा ।” – एस.पी. ने कहा और फिर उठ गया । बाहर आने के बाद हमीद ने एस.पी. से कहा ।
“वह चार आदमी जो रात मेरे साथ थे उनमें से एक का नाम सुहराब जी था । दूसरा बूचा, तीसरा बाटली वाला और चौथे का नाम भूल रहा हूं ।”
“उसका नाम एस.एच. नागर था ।” – एस.पी. ने कहा ।
“आर्लेक्च्नू में डांस का जो प्रोग्राम प्रस्तुत किया जा रहा है उसके आर्गेनाइजर्स में से सुहराब जी भी है ।”
“कहना क्या चाहते हो ?” – एस. पी. ने कहा ।
“हम लोगों ने मादाम ज़ायरे की हत्या को उपेक्षित कर रखा है – बस रनधा ही के चक्कर में पड़े हुये है ।”
“ठीक है – देखो । मेरी तो बुध्धि काम नहीं कर रही है ।” – एस. पी. ने कहा फिर पूछ बैठा “हाँ –वह तुमने लन्दन का पता क्यों नोट किया था”
“मैं आज ही कर्नल साहब को इसकी सूचना देकर उनसे प्रार्थना करूँगा कि वह उस फार्म को चेक करें ।” – हमीद ने कहा फिर अत्यंत गम्भीरता से साथ कहने लगा “इस समय तो यह सारे लोग उत्पीड़ित नजर आ रहे है – मगर इनके काले रुपये – इस ओर शायद आपका ध्यान नहीं गया था । मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि प्रकाश ने जिस लन्दन वाली कम्पनी का पता बताया है उससे केवल कागज़ ही परपर दिखाने के लिये लें देन होगा । वह फर्म रुपये नहीं देगी – यह सब इस चाल से अपना अपना काला धन ही उस प्रोजेक्ट में लगायेंगे ।”
“ओह !” एस. पी. की आँखे विस्मय से फैल गई फिर उसने मुस्कुराते हुये कहा – “आखिर हो तो कर्नल विनोद ही के शिष्य ना । और अब मेरी समझ में यह बात आई है कि कर्नल तुम्हें इतना कुओ मानते है ।”
“और इस पर भी विचार कीजिये ।” – हमीद ने कहा “कि अब तक वही लोग रनधा का शिकार हुये है जिन जिन के पास काला धन था और उन सब ने पुलिस में बस पांच – दस हज़ार की रिपोर्ट दर्ज कराई है जब कि उनके लाखो गये है ।”
“यह बात भी विचारनीय है ।” एस.पी. ने कहा “तुम इसे भी देखो और ज़रा इसका भी पता लगाने की कोशिश करना कि रनधा की लाश ले जाने वाले वह दोनों आदमीं कौन थे ।कहीं न कहीं उनके पते तो अवश्य नोट होंगे ।”
“कोशिश करूँगा ।” – हमीद ने कहा ।
“अच्छा अब गाड़ी में बैठो – चला जाये ।” एस. पी. ने कहा ।
आप जाईये ! मुझे अभी इस होटल को चेक करना है और सुहराब जी से भी मिलना है ।” हमीद ने कहा ।
“मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं मगर इतना उपदेश अवश्य दूँगा कि अपनी रक्षा का पूरा विचार रखना और मुझसे बराबर सम्बन्ध स्थापित रखना ।” एस.पी. ने कहा और कार में बैठ कर कार स्टार्ट कर दी ।
हमीद होटल की और बढ़ा और चारों ओर देखने के बाद ऊपर जाने के लिये सीढियां चढ़ने लगा । इस होटल को वह दो कारणों से चेक करना चाहता था । पहला कारण तो यह था कि आते समय उसने बालकोनी पर जिन दो आदमियों को देखा था वह उसके विचारानुसार रनधा और शोटे थे । दूसरा कारण यह था कि प्रकाश ने कहा था कि वह ड्राइवर इसी होटल में मिल सकता है ।
होटल के मैनेज़र के कमरे में पहुँच कर पहले उसने अपना आइडेंटिटी कार्ड मैनेज़र को दिखाया फिर रजिस्टर तलब करके ठहरने वालों के नाम और पते देखने लगा । लगभग आधी संख्या को तो उससे आयु और राष्ट्रीयता के विचार से छांट दिया – फिर नारियों को छांटा उसके बाद उन लोगों को छांटा जो परिवार सहित ठहरे थे । इस छंटाई के बाद कुल बीस आदमी बचे । उसने मैनेज़र को कहा ।
“मै इन बीस आदमियों को चेक करना चाहता हूँ ।”
मैनेजर ने उन बीसों आदमियों के नाम देखे जिनको हमीद एक कागज़ पर नोट करता गया था फिर बोला ।
“इनमे से नौ आदमी इस समय होटल में मौजूद नहीं है । उनके कमरे बंध है मगर उन कमरों को चाभियाँ आपको मिल जायेंगी । शेष ग्यारह आदमी इस समय आपको डाइनिंग हाल में मिल जायेंगे ।”
“क्या मुझे भी खाने को कुछ मिल सकता है ?” – हमीद ने पूछा ।
“वहां केवल उन्हीं लोगों के भोजन या नाश्ते का प्रबंध किया जाता है जो वहां ठहरे होते हैं । बाहरी लोगों के लिये कोई प्रबंध नहीं किया जाता मगर आप को तो मिल ही जायेगा ।”
“शुक्रिया ।” – हमीद ने कहा और उठने ही जा रहा था कि मैनेजर ने उसे रोक लिया और घंटी बजाकर एक बैरा को बुलाया । फिर हमीद की ओर संकेत कर के कहा ।
“आपको डाइनिंग हाल में ले जाओ और जो खाना चाहें खिलाओ ।”
“जी अच्छा ।” – बैरे ने कहा और हमीद से चलने के लिये कहा ।
हमीद ने कमरे से बाहर निकल कर बैरा को वह लिस्ट दिखाई फिर अपने बारे में बताने के बाद कहा ।
“इस लिस्ट में नौ आदमी ऐसे हैं जो इस समय होटल में नहीं हैं । उनके नामों के आगे क्रास बना हुआ है । शेष ग्यारह इस समय डाइनिंग हाल में हैं । तुम्हारा काम यह होगा कि मुझे उन्हें पहचनवा दो ।” – फिर उसने दस की एक नोट बैरा को देते हुए कहा – “इन क्रास लगे नामों के बारे में मुझे भी बता दो ।”
“इनमें से केवल तीन ही के बारे में मैं बता सकता हूं । शेष छः के बारे में डाइनिंग हाल का स्टोवर्ड ही बता सकेगा । मगर इनमें से भी चार ऐसे हैं जो केवल कल से ठहरे हुए हैं इसलिये हो सकता है कि वह उन चारों के बारे में कुछ अधिक न बता सकें ।”
फिर हमीद ने कुछ नहीं कहा । बैरा के साथ डाइनिंग हाल में आकर एक खली मेज पर बैठ गया और बैरा को आर्डर दिया । फिर जब बैरा खाना लाकर मेज पर लगाने लगा तो उसने धीरे धीरे उन ग्यारह आदमियों के बारे में बता दिया कि उनके हुलिये क्या हैं और वह कहां कहां बैठे हुए हैं । बैरा के जाने के बाद हमीद भोजन करने लगा और कनखियों से बारी बारी करके उन ग्यारहों को देख भी लिया । भोजन करके वह स्टोवर्ड से मिला और शेष नै आदमियों के बारे में उससे पूछा । स्टोवर्ड के बताए हुए हुलियों के आधार पर एक आदमी का हुलिया ऐसा था जो ड्राइवर से मिलता जुलता था । उस आदमी के बारे में स्टोवर्ड को आदेश देकर बाहर निकाला और फिर झुक कर कागज़ का वह टुकड़ा उठा लिया जो फर्श पर पड़ा था । कागज़ को देखते ही उसके मुख से हलकी सी सीटी की आवाज़ निकल गई । कागज़ वैसा ही था जैसा अभी थोड़ी देर पहले उसने प्रकाश के यहां देखा था । कागज़ पर फांसी का फंदा बना हुआ था और उस पर लिखा था :
‘कैप्टन हमीद ! मौत तुम्हारा इंतज़ार कर रही है ।’
हमीद ने कागज़ जेब में रखा और बाहर निकलकर गली पार करता हुआ सड़क पर आ गया । फिर टैक्सी करके घर की ओर चल पड़ा । सोच रहा था कि होटल में तो सब ही लोग असंबंधित से नज़र आ रहे थे । किसी ने उसकी ओर देखा तक नहीं था फिर वह कागज़ का टुकड़ा वहां किसने डाला था और डाला भी था तो ऐसी जगह कि उसकी नज़र उस कागज़ पर अवश्य पड़े । इसका अर्थ तो यही हो सकता है कि होटल का कोई कर्मचारी रनधा की टोली से संबंध रखता है । हो सकता है कई हों ।
घर पहुंचकर पहले तो उसने नौकरों को चौकन्ना रहने के लिये कहा फिर अपने कमरे में जा कर सो गया ।
आंख खुली तो टेलीफोन की घंटी बज रही थी । शायद घंटी ही की आवाज़ से आंखें खुली थीं । उसने लेटे ही लेटे हाथ बढ़ाकर रिसीवर उठा लिया और फिर “हलो” कहने के बाद ही उठकर बैठ गया इसलिये कि दूसरी ओर उसके विभाग का डी.आई.जी. था जो कह रहा था ।
“मैं जानता हूं कि मैं जो कुछ कहने जा रहा हूं उसे सुनकर तुम्हें बहुत दुख होगा मगर सच्चाई छिपाई भी तो नहीं जा सकती । खबर यह है कि क्राइम रिपोर्टर रमेश क़त्ल कर दिया गया ।”
“जज...जी !” – हमीद के हाथ से रिसीवर गिरते गिरते बचा ।
“मुझे भी पहले विश्वास नहीं हुआ था । इसलिये मैंने ख़ुद जाकर देखा था । उसकी लाश उसी के फ्लैट में उसके कमरे में पड़ी हुई थी । उसकी साथी सरला मौजूद नहीं थी । वह जब वापस आई तो लाश का पता चला । सरला का रोते रोते बुरा हाल था । तुम्हारे बारे में जब मैंने पता लगवाया था तो मालूम हुआ था कि तुम कहीं तफ्तीश करने गए हो ।”
“यह दुर्घटना कितनी देर पहले हुई श्रीमान जी ?”
“अब से चार घंटा पहले – लगभग तीन बजे ।”
हमीद ने अपनी रिस्टवाच पर नज़र डाली । साढ़े छः बज रहे थे । इसका अर्थ यह हुआ कि उसके होटल से आने के एक घंटा बाद यह दुर्घटना हुई थी । डी.आई.जी. कहता जा रहा था ।