फाँसी के बाद - 3 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फाँसी के बाद - 3

(3)

आज रमेश को न्यू स्टार के आफिस में काफ़ी देर हो गई थी । हाल ही में जो सनसनीपूर्ण घटनाएं नगर में हुई थीं उनका विचार करते हुए न्यू स्टार के एडिटर ने उससे एक विशिष्ट राईट अप लिखने के लिये कहा था । इसी में देर हो गई थी । रमेश में राईट अप में सारा नज़ला पुलिस पर उतारा था । विनोद की अनुपस्थिति के कारण उसकी हिम्मत और खुल गई थी । यदि विनोद रहा होता तो उसकी लेखनी में इतनी कटुता न होती ।

एक बजे रात में वह अंतिम कोपी प्रेस को देने के बाद उठने की तैयारी कर ही रहा था कि फोन की घंटी बजी । उसने मुंह बनाकर रिसीवर उठाया । दूसरी ओर से सरला की आवाज़ आई । वह कह रही थी ।

“मैंने घर पर फोन किया था । वहां से उत्तर न मिलने पर आफिस के नंबर पर रिंग किये । आज तुमको इतनी देर क्यों हुई ?”

“तुम इस समय कहां हो और क्यों हो ?” – रमेश ने पूछा ।

“मै इस समय जार्ज रोड के पब्लिक कोल आफिस में हूं...” – आवाज़ आई – “और क्यों हूं इसका उत्तर यह है कि मैं लाल जी की सीमा के साथ के साथ वीकेंड शो पिक्चर देखने गई थी । मैं उसी की गाड़ी में गई थी और पिक्चर देखने के बाद उसी की गाड़ी से लौटी भी थी – मैं तो पिक्चर देखने के बाद सीधी घर ही जाना चाहती थी, मगर सीमा ज़िद करके जार्ज रोड ले आई । वहीँ होटल में हम दोनों ने भोजन किया । फिर सीमा ने कहा कि वह मुझे अपनी गाड़ी में मेरे फ़्लैट पहुंचा देगी । मगर मैंने यह कह कर उससे अपना पीछा छुड़ा लिया कि मैं टैक्सी से चली जाऊँगी । मुझे मेरे फ़्लैट तक पहुँचाने के बाद उसे अपने घर तक जाने में काफ़ी देर हो जायेगी । वह मेरी बात मान कर अपनी गाड़ी में बैठी और अपनी कोठी की ओर चली गई । मैं सड़क पर खड़ी होकर टैक्सी की प्रतीक्षा करने लगी कि अचानक बिजली फैल हो गई और चारों ओर अंधेरा छा गया । मैं घबड़ा कर सीमा की कोठी की ओर बढ़ी कि अचानक एक स्टेशन वैगन दिखाई पड़ी जो सीमा की कोठी की ही ओर जा रही थी । वह सीमा की कोठी के कुछ इधर ही रुक गई और उसमें से छः आदमी उतरे । फिर वह सीमा की कोठी के कम्पाउंड में दाखिल हो गये । मेरा विचार ही नहीं वरन विश्वास है कि उनमें से एक रनधा था ।”

“अच्छा । तुम जहां हो वहीँ ठहरो । मैं आ रहा हूं ।” – रमेश ने कहा और संबंध कट कर आफिस से बाहर निकल आया ।

दूसरे ही क्षण उसकी मोटर साइकल जार्ज रोड की ओर जा रही थी ।

सीमा की कोठी के लगभग सौ गज़ इधर ही रमेश ने सड़क के नीचे मोटर साइकल उतार कर खड़ी कर दी और पैदल चलता हुआ सीमा की कोठी के पिछले भाग की ओर आया और दीवार फलांग कर कम्पाउंड में आ गया । सरला का बयान उसे सौ फीसदी सच मालूम हुआ । इस लिये कि उसने एक सशस्त्र आदमी को कम्पाउंड के फाटक पर खड़ा देखा था । और एक सशस्त्र आदमी को कम्पाउंड में देखा था । उसे पूरा विश्वास हो गया कि रनधा अपने तीन साथियों सहित कोठी के अन्दर मौजूद है । वह पाँव दबाता हुआ इमारत की ओर बढ़ ही रहा था कि किसी औरत की चीख उसे सुनाई पड़ी और उसका दिल धड़क उठा । चूँकि सीमा सरला की प्यारी सहेली थी, इस लिये रमेश से भी उसकी गाढ़ी छनती थी और वह सरला के साथ कई बार सीमा की कोठी पर भी जा चुका था ।

***

सीमा उन लड़कियों में से थी जो संकट काल में भी अपने होशहवास पर अधिकार पर अधिकार रखती हो । उसके कई भाई थे, मगर सब ही उससे छोटे थे । वह अपने माता पिता की सबसे बड़ी संतान थी । इसलिये अपने घर में वह लड़का ही समझी जाती थी । अपने पिता के सारे कारोबार में अधिपति थी । डरना जानती ही नहीं थी । स्वतंत्र विचार की थी इसीलिये न केवल अपनी सहेलियों में बल्कि अपने पिता के मित्रों तथा नगर के सामाजिक क्षेत्रों में भी प्रिय थी । अधिक सुंदर तो नहीं थी, मगर चूँकि बचपन ही से उसे व्यायाम का शौक था इसलिये उसका शरीर सुगठित था । विश्वविध्यालय तक वह खेल कूद में भाग लेती रही थी । एन.सी.सी. की ट्रेनिंग में उसे बेस्ट क्रैडिट का प्राइज मिला था । निशाने बाज़ी में फर्स्ट आई थी । सीमा को घोंचू टाइप की लड़कियां बिलकुल पसंद नहीं थी । वीना उसकी सहेली थी, मगर सीमा के विचारानुसार वीना घोंचू लड़की थी और सरला स्मार्ट – इसलिये सरला से उसकी गाढ़ी छलती थी । मगर जब वीना के पिता की हत्या हो गई और वीना का अपहरण हो गया तो उसने शपथ ग्रहण की कि वह रनधा का पता लगाकर रहेगी और वीना को मुक्त कराएगी ।

आज सरला को वह ज़बरदस्ती अपने साथ पिक्चर दिखाने ले गई थी । वापसी पर भोजन करने के बाद जब उसने सरला को उसके फ़्लैट पर वापस पहुँचाना चाहा था तो सरला ने इन्कार कर दिया था, इसलिये वह अपनी कोठी चली आई थी । कार गैराज में खड़ी करके अपने सोने वाले कमरे में आई थी । भोजन कर चुकी थी । बस सोना ही सोना था । चोकीदार उसे जागता हुआ मिला था इसलिये संतुष्ट भी थी । कमरे का दरवाजा अंदर से बंद करके कपड़े बदलने ही जा रही थी कि अचानक लाइट ऑफ़ हो गई और एमरजेंसी बल्ब जलने लगा । टेलीफोन का डायल भी चमकता रहा जिसे उसने खास ढंग से बनवाया था ।

वैसे तो लाइट का चला जाना कोई खास बात नहीं थी । बहुधा ऐसा होता ही रहता था । मगर आज लाइट ऑफ़ होते ही हलकी सी घरघराहट सुनाई देने लगी थी । सीमा ने एमरजेंसी बल्ब बुझा दिया और धीरे से खिड़की खोल कर बाहर की ओर देखने लगी । सड़क का दृश्य साफ़ दिखाई दे रहा था । कम्पाउंड के फाटक से कुछ फासिले पर किसी खड़ी गाड़ी की छाया नज़र आ रही थी और कम्पाउंड में छः आदमी छाया समान नज़र आ रहे थे, जो कोठी की ओर बढ़ते चले आ रहे थे ।

“रनधा !” – वह मन ही मन बडबडाई और जल्दी से खिड़की बंद कर दी । कोई दूसरी लड़की रही हो तो उसके हाथ पैर फूल गये होते, या फिर उसने शोर मचाना आरंभ कर दिया होता । मगर उसने ऐसा नहीं किया । उसने पहले कैप्टन हमीद को फोन किया । फिर कोतवाली के नंबर मिलाये । वहां इन्स्पेक्टर आसिफ मिला था । संयोगवश वह उस समय कोतवाली में ही मौजूद था । रनधा के मामिले में वही तफ़तीश कर रहा था ।

टेलीफोन करके वह संतुष्ट हो गई । उसे विश्वास था कि आज रनधा अवश्य गिरफ़्तार हो जायेगा ।

रनधा के डाके डालने का तरीका ऐसा था कि कोई कुछ कर ही नहीं पाता था । अभी तक तो ऐसा नहीं हुआ था कि ठीक समय पर पुलिस पहुंच सकी हो । मगर आज पुलिस के पहुँचने की शत प्रतिशत संभावना थी ।

सीमा के संतोष के कुछ और कारण भी थे । जैसे यह कि वह जानती थी कि कोठी में बहुत थोड़े रुपये हैं । उसके पिता लाल जी काला धन घर या लोकर में रखने के क़ायल नहीं थे – और यह कि जो रुपये और आभूषण थे भी तो वह ऐसे स्थान पर और इस प्रकार रखे हुए थे कि उन्हें प्राप्त करने में कम से कम आघा घंटा अवश्य लग सकता था और सीमा के अनुमान के अनुसार पुलिस दस मिनिट में वहां पहुंच सकती थी ।

वह क़दमों की आहट सुनती रही । आने वाले उसके कमरे के सामने सर गुज़रते हुये आगे बढ़ते रहे – फिर पहले दरवाज़ा खुलने की आवाज सुनी उसके बाद लाल जी की नींद में डूबी हुई आवाज उसके कानों में पड़ी ।

“कौन है ?”

“रनधा – तुम्हारी लड़की सीमा कहां है ?”

एक क्षण के लिये सीमा का दिल यह सोच कर धड़क उठा कि क्या वीणा के सामने उसे भी रनधा अपने साथ ले जाना चाहता है – फिर उसने सिर झटक दिया । कानों में इस प्रकार की आवाज़ें पड़ती रही ।

“वह सिनेमा गई थी – अभी तक नहीं लौटी ।”

“तुम झूठ बोल रहे हो लाल जी ! वह कोठी में मौजूद है ।”

“तो फिर तलाश कर लो ! मुझसे क्यों पूछ रहे हो ।”

“सेफ़ की कूंजी कहाँ है ?”

“यह लो – इनमें दो आल्मारियों की भी चाभियाँ है – मगर तुम्हें निराशा ही होगी रनधा – इसलिये की मुश्किल से चार पांच हज़ार पा सकोगे । इतनी रक़म तो में तुम्हें वेसे भी दे सकता था ।”

कुछ क्षणों तक खड़ खड़ की आवाज सुनाई देती रही फिर आवाज़े आने लगी ।

“सीमा का बेड रूम किधर है ?”

“इस कोठी में बारह कमरे है और हर कमरा उसका बेड रूम है ।”

“अच्छी बात है – मैं पता लगा लेता हूँ “तुम लोग पूरी कोठी में फैल जाओ और हर कमरे का दरवाज़ा खट खटा कर यह ऐलान कर दो कि अगर पांच मिनट के अन्दर सीमा अपने पिता लाल जी के बेड रूम में नहीं पहुँची तो लाल जी को क़त्ल कर दिया जायेगा ।”

फिर दरवाजों के खटखटाने की आवाज़ें सीमा को सुनाई देने लगीं । जब उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया गया तो उसने रेडियम डायल वाली अपनी रिस्ट वाच देखी । कोतवाली फोन किये हुये दस मिनट बिट चुके थे और अब तक पुलिस का पता नहीं था । एक बार फिर उसका दिल धड़क उठा – यह सोच कर कि रनधा जो कुछ कहता है उसे कर भी डालता है । उसे अपनी जान का मोह नहीं था मगर वह अपने पिता जी को क़त्ल होना नहीं देखना चाहती थी – उधर रनधा के दिये हुये समय में केवल एक मिनट रह गया था । उसकी आँखों से आंसू बहने लगे । उसने कपकपाते हाथों से कमरे की चिटखिनी गिरा कर दरवाज़ा खोला और बहार निकली । एक एक कदम मन मन भर का हो रहा था । अपनी समझ में वह बड़ी तेज़ी से अपने पिता के बेड रूम की ओर बढ़ी – मगर उस कमरे के दरवाज़े पर पहुंचते हु उसके क़दम लड़खड़ा गये ओर वह चीख पड़ी – “डैडी –।”

***