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फाँसी के बाद - 14

(14)

इतने में एक खाली टैक्सी आकर रुकी और हमीद उस में बैठ गया । पहले तो ख्याल था कि सीधा घर जायेगा मगर बाद में इरादा बदल दिया और सीधा कोतवाली पहुंचा । उसे वहां एस.पी. नजर आया । उसने हमीद को देखते ही कहा ।

“यह लो ! कैप्टन भी आ गया । क्यों भाई ? तुम पर क्या बीती ? पहले बैठ जाओ ।”

“धन्यवाद !” – कहता हुआ हमीद बैठ गया । फिर एस.पी. से पूछा – “आपकी बात से यह साबित हो रहा है कि कोई ओर आया था ?”

“हां । इन्स्पेक्टर आसिफ़ आया था । वह बहुत डरा हुआ था इसलिये उसे उसके घर भिजवा दिया गया ।”

हमीद ने सारी बातें बताने के बाद कहा ।

“अब सबसे पहले आप उन चारों पूंजीपतियों के घरों पर टेलीफोन कीजिये – यह देखिये कि वे घर पहुंचे या नहीं ।”

जगदीश ने बारी बारी चारों के नंबर रिंग किये । मालूम यह हुआ कि चारों अपने अपने घर पहुंच चुके हैं । अत्यंत भयभीत हैं और पुलिस की सहायता चाहते हैं । उसके बाद हमीद ने सीमा के नंबर डायल किये । दूसरी ओर से सीमा के पिता लाल जी की आवाज़ आई ।

“सीमा देवी घर पर हैं ?” – हमीद ने पूछा ।

“हां, है ।”

“ज़रा उन्हें रिसीवर दे दीजिये ।”

“नहीं ।” – लाल जी की कठोर आवाज़ आई – “वह अब कैद में है । न फोन पर किसी से बात कर सकती है न किसी से मिल सकती है और न कोठी के बाहर जा सकती है ।”

“आप होश में हैं या नहीं ?” – हमीद ने गरजकर कहा – “मैं कैप्टन हमीद बोल रहा हूं । सीमा देवी से पुलिस कुछ मालूमात हासिल करना चाहती है ।”

“मैं बिलकुल होश में हूं, कप्तान साहब !” – लाल जी की आवाज़ आई – “आप समझते क्यों नहीं । मेरे लिये यह कितनी बड़ी बदनामी की बात है । अब तो मैं यह निर्णय कर चुका हूं कि अगर मुझे या उसे या फिर दोनों को मरना ही है तो इस घर की चारदीवारी के अंदर ही मरना है । अगर आप लोगों को सीमा से कुछ मालूम करना है तो फिर थोडा सा कष्ट उठाकर यहां आ जाइये ।”

इसी के साथ संबंध भी कट गया । हमीद ने भी मुंह बनाते हुए रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया और एस.पी. को यह बातें बता दीं जो सीमा के पिता लाल जी ने कही थीं ।

“ठीक है । अभी उसे देखते हैं । अब इधर की सुनो ।” – एस.पी. ने कहा और फिर सरला के आने और उसके साथ अमर सिंह के पार्क अविन्यु जाने तथा आसिफ़ के वहां मिलने की सारी बातें बताने के बाद कहा ।

“और अब अमर सिंह सरला को उसके फ्लैट में पहुंचाकर वापस आता ही होगा ।”

“मिस्टर राय से आपने संबंध स्थापित किया था ?” – हमीद ने पूछा ।

“हां । और जब उसे मैंने सारी बातें बताई तो पहले वह चौंका था फिर कहने लगा कि वह इस संबंध में कुछ नहीं जानता ।”

“इसका अर्थ यह हुआ कि हम पहले जहां थे वहीँ अब भी हैं ।”

“हां । और इसका यह भी अर्थ है कि रनधा का केस पहले से कहीं बहुत अधिक अब उलझ गया है ।” – एस.पी. ने कहा – “और अब तो हमारे लिये यह कहना भी मुश्किल है कि जिसे फांसी दी गई थी वह रनधा ही था या कोई दूसरा आदमी था और अब हम विश्वास के साथ यह भी नहीं कह सकते कि रनधा को फांसी दे दी गई थी ।”

“जेल वाले क्या कहते हैं ?” – हमीद ने पूछा ।

“उनका कहना तो यही है कि जो आदमी उन्हें सोंपा गया था उसी को फांसी दी गई थी ।”

इतने में अमर सिंह वापस आ गया और हमीद के पूछने पर उसने बताया कि आसिफ़ का बुरा हाल है । वह अत्यंत भयभीत है ।

“और रमेश की क्या दशा है ?” – हमीद ने पूछा ।

“देखने से तो उस पर इन घटनाओं का कोई प्रभाव नहीं है । उसने कहा है कि वह तुमसे शीघ्र ही मिलेगा । हां, सरला बहुत भयभीत है ।”

“मिस्टर राय के आफिस की तलाशी ली गई ?” – हमीद ने एस.पी. से पूछा ।

“तलाशी लेने के लिये आदमी गये हुए हैं । उनके साथ फिंगरप्रिंट सेक्शन वाले भी हैं । थोड़ी देर में पूरी रिपोर्ट मिल जायेगी ।”

इतने में फोन की घन्टी बज उठी । एस.पी. ने रिसीवर उठा लिया । दूसरी ओर से प्रकाश की घबड़ाई हुई आवाज़ सुनाई दी । वह कह रहा था ।

“मैं प्रकाश बोल रहा हूं श्रीमान जी । मेरा जीवन खतरे में है ।”

“ओह !” – एस.पी. के मुख से निकला । फिर उसने ढारस दिलाने वाले स्वर में कहा – “घबड़ाओ नहीं, मैं एस.पी. बोल रहा हूं । क्या बात है ?”

“ओह एस.पी. साहब ! यदि आप कष्ट उठाकर आ जाते तो बड़ा अच्छा होता । मैं फोन पर नहीं बता सकता ।”

“मैं आ रहा हूं ।” – एस.पी. ने कहा । फिर रिसीवर रखकर प्रकाश की बात बताने के बाद माथा ठोकता हुआ बोला – “एक कर्नल विनोद के न होने के कारण कितनी बदनामियाँ उठानी पड़ रही हैं और कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है ।”

“तो आप जायेंगे ?” – हमीद ने पूछा और उसे फौरन ही वह ड्राइवर याद आ गया जिसको उसने सीमा के साथ भी देखा था और प्रकाश के साथ भी देखा था । वह एस.पी. को ध्यानपूर्वक देखने लगा ।

“जाना ही पड़ेगा ।” – एस.पी. ने कहा – “जगदीश और अमर सिंह को यहां इसलिये छोड़े जा रहा हूं कि पता नहीं किस प्रकार की स्थिति उत्पन्न हो । आसिफ़ को साथ ले जाने का प्रश्न इस लिये नहीं उठता कि वह नंबरी गधा है और फिर इतना डर गया है कि उसके होश हवास उसके काबू में नहीं हैं । रह जाते हो तुम – तो तुम इतने थके हुए हो कि मैं तुम्हें और अधिक परेशान करना नहीं चाहता ।”

“जी नहीं । मैं थका हुआ नहीं हूं । मैं आपके साथ अवश्य चलूंगा ।” – हमीद ने कहा ।

एस.पी. ने कुछ नहीं कहा और हमीद को अपनी ही कार में बैठाकर उस इलाके में आया जिसकी एक गली में सेठ दूमीचंद की कोठी थी । फिर जब सड़क से दूमीचंद वाली गली में कार मुड़ने लगी तो हमीद की नज़र चौरासी कमरों वाले होटल की बालकोनी की ओर उठ गई और वह एकदम से चौंक पड़ा, इसलिये कि बालकोनी पर दो आदमी नज़र आये थे जो अपने अपने कद के लिहाज के शोटे और टामीगन वाले मालूम पड़ते थे । हमीद ने जब उन दोनों को देखा था तब उनके चेहरों पर नकाब पड़े हुए थे और इस समय उनके चेहरों पर नकाब नहीं थे इसलिये केवल कद के विचार से उन्हें शोटे और टामीगन वाला मान लेना कोई बुद्धिमानी का कार्य नहीं था क्योंकि उन कदों के आदमी तो हजारों हो सकते थे, मगर हमीद की छटवीं ज्ञान इन्द्रिय यही कह रही थी कि वह दोनों वही शोटे और टामीगन वाले हैं ।

फिर हमीद ने सोचा कि अभी उन्हें चेक करना किसी प्रकार उचित नहीं होगा । उन्हें थोडा सा अवसर देना चाहिये । उसे इसका विश्वास था कि वह दोनों चाहे जो भी हो इसी होटल में ठहरने वालों में से हैं – अगर किसी से मिलने वालों में होते तो फिर उस आदमी के कमरे में होते जिससे मिलने आये हो ।

एस.पी. ने कार रोक दी और नीचे उतरता हुआ हमीद से पूछा ।

“तुम क्या सोचने लगे थे ?”

“जी कुछ नहीं । बस इन्हीं उलझनों के बारे में सोच रहा था ।”

सेठ दूमीचंद की कोठी पर बिलकुल सन्नाटा था । कार रुकने की आवाज़ सुनते ही चार सशस्त्र आदमी गेट पर आ गये थे और उन्होंने एस.पी. तथा हमीद को गेट पर ही रोक लिया था । फिर प्रकाश का चेहरा दिखाई दिया । उसने चारों को संकेत किया । वह सब हट गये और एस.पी. हमीद को लिये हुए सीढ़ियाँ चढ़ने लगा ।

“प्रकाश बहुत भयभीत है ।” – एस.पी. ने हमीद से कहा ।

“इसीलिये तो उसने इतनी जबरदस्त व्यवस्था कर रखी है ।” – हमीद ने कहा ।

प्रकाश सीढ़ियों पर ही मिल गया । वह दोनों को अपने कमरे में लाया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और फिर बोला ।

“नीचे की व्यवस्था आप लोगों ने देख ली । इस दरवाजे का अब ऐसा सिस्टम कर दिया गया है कि जो भी अनजान आदमी इसे छूने की कोशिश करेगा उसे शोक लगेगा मगर इन व्यवस्थाओं के बाद भी मुझे विश्वास है कि मैं क़त्ल कर दिया जाऊँगा ।”

“हिम्मत रखिये ! और बताइये कि क्या बात है ?” – एस.पी. ने कहा ।

प्रकाश ने मेज की दराज खोलकर एक लिफ़ाफ़ा निकाला जिसके एक कोने पर फांसी का फंदा बना हुआ था । उसने लिफ़ाफे के अंदर से एक कागज निकाला और उसे एस.पी. की ओर बढ़ा दिया । कागज़ पर लिखा था ।

‘जान बचानी है तो देश छोड़ दो वर्ना मरने के लिये तैयार हो जाओ । चौबीस घंटे का समय दिया जा रहा है ।’

कागज पर भी रनधा का विशिष्ट निशान फांसी का फंदा बना हुआ था ।

***

“आपकी मौत से किसको लाभ पहुंच सकता है ?” – एस.पी. ने प्रकाश से पूछा ।

“वीना को ।” – प्रकाश ने उत्तर दिया ।

“और यदि आप देश छोड़कर चले जाएं तो ?”

“विदेश जाने का अर्थ यह होगा कि मैं अपना कारोबार बंद कर दूं ।”

“मैंने लाभ की बात पूछी थी ।” – एस.पी. ने टोका ।

“तो फिर मेरे सहयोगियों अर्थात पार्टनर्स को लाभ पहुंचेगा या वीना को ।”

“आपके पार्टनर्स कौन कौन हैं ?”

“मिस्टर नौशेर, मिस्टर मेहता, सुहराब जी और सीमा ।”

हमीद चौंक पड़ा । फिर प्रकाश से पूछा ।

“सीमा से आपका क्या मतलब है ?”

“हमने पाँच करोड़ का एक प्रोजेक्ट तैयार किया है जिसके हम पांचों बराबर के हिस्सेदार हैं ।”

“रात जिन लोगों को रनधा की कैद में समय व्यतीत करना पड़ा था उनमें सीमा और सुहराब जी भी थे ।” – हमीद ने एस.पी. से कहा । फिर प्रकाश को सम्बोधित करते हुए कहा – “तुम्हारा कारोबार तो वनस्पति घी और तेल का है ना ?”

“जी हां । हम लोग यह नया कारोबार कर रहें हैं ।”

“तुम्हारा छोटा भाई क्या करता है ?” – हमीद ने पूछा ।

“लंदन में पढ़ रहा है और आने ही वाला है ।”

“तुम्हारे कारोबार में उसका हिस्सा भी तो होगा ही ?”

“हां । मगर कानूनी तौर पर नहीं । इसलिये कि अभी उसका नाम नहीं चढ़ा है ।”

“एक आदमी तुम्हारा दोस्त है जिसका नाम मैं नहीं जानता इसलिये मैंने उसका नाम ड्राइवर रख लिया है । उसे मैंने परसों सीमा की कार ड्राइव करते हुए देखा था और उसी को कल तुम्हारी कार ड्राइव करते हुए देखा था । क्या मैं गलत कह रहा हूं ?”

“जी नहीं । आप ने सच कहा है ।”

“और कल ही तुम उसके साथ पार्क अनिव्यु गये थे, मिस्टर राय एडवोकेट के आफिस तक, क्यों ?”

“जज...जी हां, मगर... आप...।”

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