फाँसी के बाद - 16 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फाँसी के बाद - 16

(16)

“और सुहराब जी, मिस्टर मेहता, मिस्टर नौशेर, लाल जी, उसकी लड़की सीमा, प्रकाश और इन्स्पेक्टर आसिफ़ को मौत की धमकियाँ मिल चुकी हैं ।”

“इसी लिस्ट में मुझे भी शामिल कर लीजिये ।” – हमीद ने कहा ।

“अरे ! कब ?”

“आज ही डेढ़ बजे । जब मैं रेड एरिया के चौरासी कमरों वाले होटल से खाना खाकर बाहर निकल रहा था ।”

“लगभग उसी समय सबको धमकी मिली थी । होम सेक्रेटरी अत्यंत परेशान हैं । मुझसे जवाब तलब किया गया है । बहुत बड़े बड़े लोगों का मामिला है । ऐसा लगता है कि अब इस शहर में किसी की जान माल सुरक्षित नहीं रहे ।”

“मैं केवल एक बात जानना चाहता हूं सर और वह यह कि रनधा को फांसी हुई थी या नहीं ?”

“फांसी तो हो गई ।”

“फिर रनधा कहां से टपक पड़ा ?”

“यही बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही है ।”

“रमेश की लाश कहां है और सरला ?”

“रमेश की लाश पोस्टमार्टम के बाद सरकारी मुर्दाखाने में रखी हुई है और सरला भी हास्पिटल ही में है – आज ही साढ़े नौ बजे मैं विनोद से संबंध स्थापित करने की कोशिश करूँगा ।”

“अगर आज्ञा हो तो उस समय मैं भी हाजिर हो जाऊं ?”

“आ जाना ।” – आवाज़ आई और फिर संबंध भी कट गया ।

हमीद ने रिसीवर रख दिया । जल्दी से नहा धो कर कपड़े बदले । एक कप गर्म गर्म काफ़ी पी और मोटर सायकिल निकाल कर चल पड़ा । सबसे पहले सीमा के यहाँ पहुँचा । सीमा अपने पिता लाल जीके सामने ही उससे मिली । सबसे पहले हमीद ने सीमा के मुख से कल रात उसकी गिरफ्तारी की रिपोर्ट सुनी फिर उसने सीमा से कहा ।

“मुझे यह बात मालूम हुई है कि आप एक नया प्रोजेक्ट आरंभ करने वाली है जिसके हिस्सेदार आप – सुहराब – नौ शेर – मेहता और प्रकाश है ?”

“जी हाँ ।” – सीमा ने कहा “यह सच है ?”

“मुझे यह भी मालूम हुआ है कि इसके लिये आप लोग कर्ज़ लेंगे ?”

“जी हाँ – यह भी सच है ।”

“कर्ज़ लेने की स्कीम किसने बनाई थी ?” – हमीद ने पूछा ।

“हम सबने मिल कर ।”

“वह तो प्रकट है मगर मैं यह जानना चाहता हूँ कि कर्ज़ लेने की बात आप पांचो में से सबसे पहले किसके दिमाग में आई थी ?” – हमीद ने पूछा ।

“मेरा विचार है कि हम सब के दिमाग में यह बात एक साथ आई थी ।”

“कर्ज़ लेने के संबंध में किसके मुख से लंदन की किसी फर्म का नाम निकला था ?”

“सुहराब जी के मुख से ।” – सीमा ने कहा ।

“पदों का बँटवारा आप लोगों ने किस प्रकार किया था ?”

“सुहराब जी और मिस्टर मेहता डायरेक्टर – मैनेजिंग डायरेक्टर मैं और प्रकाश तथा सेक्रेटरी मिस्टर नौ शेर ।” सीमा ने कहा फिर पूछा “मगर इस समय की परिस्थिति का हमारे प्रोजेक्ट से क्या संबंध है ?”

“बहुत गहरा संबंध है मिस सीमा ।” हमीद ने शुष्क स्वर में कहा “जिसके पास भी रनधा की लूटी हुई दौलत जमा है वह उसे हजम नहीं कर पा रहा है ।उस धन को वह प्रकट भी नहीं कर सकता इसलिये इस प्रोजेक्ट का चक्कर चलाया गया है । लंदन की वह फर्म जो कर्जे पर मशीन देंगी उस फर्म से केवल कागज़ी संधि होगी – रुपये उसी आदमी के होगे जिसके पास रनधा की लूटी हुई दौलत जमा है – समझी आप – और यह भी सुन लीजिये सीमा देवी कि मैं इस समय होश में नहीं हूँ – मेरा दोस्त क्राइम रिपोर्टर रमेश क़त्ल कर दिया गया है ।”

सीमा इतनी जोर से उछली जैसे उसे साँप ने काट लिया हो । लाल जी की आँखे भी भय के कारण बाहर निकल आई थी और हमीद कहता जा रहा था ।

“मेरी और रमेश कीं आपस में कभी नहीं बनीं हम में बराबर नोक झोंक होती रहती थी – चख चलती रहती थी मगर आज जब रमेश दुनिया में नहीं रहा तब मुझे यह एहसास हुआ है कि मै उसे कितना चाहता था । मेरा कलेजा खून हो गया है । प्रतिशोध की भावना मुझे जलाये दे रही है । मुझे रमेश के क़त्ल का बदला लेना है और अब मुझे यह कहने मैं ज़रा भी झिझिक नहीं महसूस हो रही है कि रनधा की लूटी हुई दौलत और वीना आप ही पाँचो आदमियों में से किसी के पास है ।”

“मैं आप की यह बात इसलिये नहीं मान सकता कप्तान साहब कि इन पाँचो में कोई भी ऐसा नहीं है जिसे रनधा ने न लूटा हो ।” – लाल जी ने कहा “और मगर आप की इस बात को सच मान भी लिया जाये तो फिर उस आदमी को तो गुप्त हो जाना चाहिये था । जिसके पास रनधा की लूटी हुई दौलत जमा है ताकि रनधा उसका कुछ न बिगाड़ सके – मगर ऐसा नहीं है – पाँचो आदमी मोजूद है ।”

“रनधा को फाँसी हो चुकी है मिस्टर लाल जी !” – हमीद ने कहा ।

“तो फिर मौत की धमकियां आप भिजवा रहे हैं ?” – लाल जी ने व्यंग भरे स्वर में कहा । फिर गंभीरता के साथ बोला – “आप लोग गलत सोच रहे हैं । यह पांचों आदमी पहले भी रनधा का निशाना थे और आज भी हैं । यह पांचों आदमी सीधे सादे तरीके से एक नया कारोबार करने जा रहे हैं । और आप लोगों का यह सोचना भी गलत है कि रनधा को फांसी हो गई – आप लोग धोखा खा रहे हैं । रनधा को फांसी नहीं हुई ।”

“वह रनधा ही था मिस्टर लाल, जिसे आपकी कोठी में इन्स्पेक्टर आसिफ़ ने हथकड़ियां पहनाई थीं ।”

“यह मैं मनाता हूं मगर वह फिर फरार हो गया ।”

“इस विषय पर मैं आप से फिर बातें करूँगा ।” – हमीद ने कहा । फिर सीमा की ओर मुड़कर बोला – “मिस सीमा ! अब तक मैं आपको छुट दिये हुए था मगर अब वार्निंग दे रहा हूं कि अगर आप ने अभी और इसी समय यह नहीं बताया कि वह ड्राइवर कौन है तो मैं इसी समय आपको हिरासत में लेकर पुलिस के हवाले कर दूंगा और वह आपसे सब कुछ उगलवा लेगी ।”

लाल जी का चेहरा क्रोध से लाल हो गया, मगर कुछ बोला नहीं । सीमा ने अपने चेहरे से हाथ हटाया । कुछ क्षणों तक फटी फटी नज़रों से हमीद को देखते रही । फिर उसकी आंखें भर आइन और होंठ कांपने लगे ।

“मैं अपने सवाल का जवाब चाहता हूं ।” – हमीद ने कहा – “वह ड्राइवर कौन है ?”

“मिस्टर रमेश !” – सीमा ने भर्राये हुए स्वर में कहा ।

हमीद ने बड़ी कठिनाई से अपने आपको संभाला । उसे सीमा का उत्तर सच प्रतीत हुआ । उसने अपनी मनोदशा को छिपाने के लिये लापरवाही का प्रदर्शन करते हुए कहा पूछा ।

“क्या उसने वह मेकअप किसी खास कारणवश...।”

“जी हां ।” – सीमा ने बात काटकर कहा – “मिस्टर रमेश ने मुझसे कहा था कि न कर्नल विनोद को बल्कि उनके पूरे विभाग को एक ऐसे आदमी की तलाश है जो किसी प्रकार सामने नहीं आ रहा है । इसलिये मिस्टर रमेश ने उस आदमी का मेकअप किया था । मैंने एक बार उनसे यह भी कहा था कि इस प्रकार तो पुलिस आप ही को धर लेगी । इस पर उन्होंने हंसकर कहा था कि धर लेगी तो सच्ची बात जानने के बाद छोड़ भी देगी मगर वह रहस्यपूर्ण आदमी, जिसे पुलिस तलाश कर रही है, जब अपना सादृश्य देखेगा तो अपने बिल से अवश्य बाहर निकल आयेगा ।”

बिजली के समान कई विचार हमीद के ज़ेहन में आये और उसे ऐसा लगा जैसे वह एक दम से अंधेरे से उजाले में आ गया हो । उसने उठते हुये कहा ।

“अब में जा रहा हूँ । आप लोगों की रक्षा के लिये पुलिस यहाँ तैनात कर दी जाएगी मगर आप लोग तीन दिन तक न इस कोठी से निकलेंगे और न किसी से मिलेंगे और इस बात की कोशिश करेंगे कि फोन पर भी किसी से बात न करें । अगर इनमे से किसी बात की अवग्ना हुई तो फिर नतीजे के ज़िम्मेदार भी अप ही लोग होगे ।”

बहार निकल कर हमीद ने मोटर साइकिल संभाली और सुहराब जी की कोठी की और चल पड़ा । उसने मोटर सायकिल फूल स्पीड पर छोड़ रखी थी – इसलिये कि सुहराब जी से मिलना भी था और ठीक समय पर डी. आई. जी. के यहाँ पहुँचना भी था । मगर जब मोटर सायकिल उस भाग में पहुँची जहाँ लगभग सो गज का रास्ता बिल्कुल सुनसान पड़ता था तो अचानक एक ओर फायर हुआ मगर उसने किसी ओर देखा नहीं और न उसे उसकी चिंता हुई – और फिर सड़क के दोनों ओर से फायर होने लगे मगर या तो उसके दिन पूरे नहीं हुये थे या फिर फुल स्पीड पर मोटर सायकिल दौड़ाने का चमत्कार था कि कोई गोली उस पर नहीं पड़ी और वह साफ़ बचता हुआ निकला चला गया ।

सुहराब जी की कोठी के कम्पाउंड में उसने मोटर सायकिल रोकी मगर अभी सीट से नीचे उतरने भी नहीं पाया था कि कई आदमी रायफलें और बंदूके ताने हुये आ गये और उसे अपने घेरे में ले लिया । हमीद ने जेब से अपना आइडेंटिटी कार्ड निकाला और बोला ।

“कैप्टन हमीद – फ्राम इन्टेलिजेन्स ।”

एक आदमी कोठी के अंदर गया और फौरन ही वापस आकर हमीद को लिये हुये कोठी के अंदर चला गया । एक बड़े से कमरे  में सुहराब जी मसहरी पर लेटा हुआ था । उसके चेहरे की लालिमा ग़ायब थी । उसने हमीद को देखते ही पहले बैठने के लिये कहा फिर बोला ।

“मैं जीवन में कभी बीमार नहीं पड़ा कैप्टन ! अक्सर सोचा करता था कि मरूँगा कैसे मगर अब यह सोचता हूँ कि रनधा मुझे मारे या न मारे – इस जबरदस्त मानसिक तनाव के कारण ख़ुद मेरा हार्ट फेल हो जायेगा ।”

“क्या आप आर्लेक्च्नू में हिस्सेदार है ?” – हमीद ने पूछा ।

“हाँ – अभी हाल ही में उसके कुछ हिस्से मैंने ख़रीदे है ।”

“मादाम जायरे के प्रोग्राम से जो आमदनी होती थी वह किसे मिलती थी ?”

“पहले जब आमदनी कम थी तो मादाम जायरे से पाँच प्रतिशत कमीशन लिया जाता था मगर जब आमदनी अधिक होने लगी तो दस प्रतिशत कमीशन माँगा गया मगर मादाम जायरे इस पर तैयार नहीं हुई ।”

“कमीशन में ब्रुध्धि की माँग तो प्रोग्राम के आर्गेनाइज़र्स ने ही की होगी ?”

“जी हाँ ।”

“और मादाम जायरे के इन्कार पर आपस में खिंचाव भी पैदा हुआ होगा ?”

“जी हाँ ।” सुहराब जी ने कहा ।

“प्रोग्राम आर्गेनाइज़र में कौन कौन लोग थे ?” – हमीद ने पूछा ।

“केवल मैं ।”

“मादाम ज़ायरे के चाहने वाले कौन कौन लोग थे ?”

“अरे साहब ! वह एक कलाकार थी – हज़ारों चाहने वाले रहे होंगे भला मैं क्या बता सकता हूं ।”

“कल रात वाली दुर्घटना के बारे में बताइये ।”

“हम चारों एक जगह बैठे ड्रिंक कर रहे थे कि अचानक रनधा वहां पहुंच गया और हम चारों को रायफल के जोर पर ले गया, मगर अब सोचता हूं कि वह अच्छा ही हुआ था वर्ना मैं अब तक मर चुका होता । इसलिये कि हमारी वापसी के समय ही मेरी कोठी के सामने ठीक उस स्थान पर बम फटा था जहां से गुज़रते हुए मुझे कोठी में दाखिल होना था ।”