फाँसी के बाद - 11 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फाँसी के बाद - 11

(11)

वह नगर का बाहरी इलाका था । यहां वह लोग आबाद थे जो मिल और फैक्ट्रियों में काम करते थे और उनके फ्लैट – ऐसा लगता था जैसे कांजी हाउस हो । एक के ऊपर एक । रातों में तो कभी कभी ऐसा भी होता था कि कुछ घरों में लोग जिस करवट सोते थे उसी करवट सवेरा कर देते थे । दूसरी करवट भी नहीं बदल सकते थे – ऐसी बस्ती में सोचा भी नहीं जा सकता था कि कोई आलीशान इमारत भी होगी । इस बस्ती में रहने वाले अपने भाग्य पर संतुष्ट थे । गर्मी के दिनों में फ्लैटों के सामने वाला मैदान रात में आबाद रहता था और जाड़े की रातों में भी यही होता था । एक लिहाफ़ में कई कई आदमी रात व्यतीत करते थे । लिहाफ़ की गर्मी से अधिक मानव शरीर की गर्मी उन्हें सुख पहुंचाती थी मगर बरसात का मौसम उनके लिये बड़ा दुखदायी और कष्टदायक होता था ।

मगर इस इलाके में भी कभी-कभी कारें दिखाई दे जाती थीं । कहा यह जाता था कि फैक्ट्री के कुछ ऐसे अफसर नाइट शिफ्ट में काम करने वाले मजदूरों को कार से पहुँचाने आते हैं और जिनके दिलों में इंसानी हमदर्दी की भावना है । यह कारें सड़क के किनारे रुकती थीं और फिर गायब हो जाती थीं ।

इसलिये यह कौन सोच सकता था कि यहां एक आलीशान इमारत होगी । अगर होती तो नज़र अवश्य आती । मगर यहां एक शानदार इमारत थी ।

बीसवी शताब्दी के इस चमत्कारिक और जादुई युग में यह इमारत अपने समस्त अस्तित्व के साथ तमाम सौन्दर्य को समेटे हुये मौजूद थी । अब यह और बात है कि उसे देखने के लिये नज़र चाहिये थी और नज़र पैदा करने के लिये जेब का भारी होना आवश्यक था – इतना भरी कि एक रात में कम से कम सौ सौ के नोटों की चार पाँच गद्दियाँ खर्च की जा सकें ।

यह आलीशान इमारत ज़मीन के अंदर थी ।

एक फ़्लैट जिसमें केवल एक आदमी अपनी पत्नी और साली के साथ रहता था । उसी फ़्लैट के नीचे यह इमारत थी । उसकी पत्नी और साली दोनों ही जवान और सुंदर थी । देखने में यह आप मजदूर औरतों की तरह नहीं नज़र आती थी बल्कि शहज़ादियां मालूम होती थीं ।

यह फ़्लैट सड़क से लगभग दस पन्द्रह गज के फासिले पर था । पहले यहाँ गोदाम था – फिर जब फ़्लैट बनने लगे तो उसी गोदाम के ऊपर यह फ़्लैट बन गया था । और वह गोदाम फ़्लैट के नीचे चला गया था । बाद में वही गोदाम एक आलीशान इमारत बन गया था जिसमें जाने का रास्ता उसी फ़्लैट के अंदर से था । यह बात कदाचित वहाँ के रहने वालों को मालूम नहीं थी और अगर मालूम भी थी तो उन्हें इतना अवकाश कहाँ था कि वह इत्मीनान से बैठ कर यह सोचते कि गोदाम तो ऊपर था फिर नीचे कैसे चला गया – गोदाम क्यों और कैसे एक आलीशान इमारत में परिवर्तित हो गया । उसमें क्या है – कौन रहता है – इत्यादि इत्यादि ।

इस समय उसी शानदार इमारत में दो नंगी लड़कियाँ नाच रही थी और चार आदमी बैठे और लेटे हुये शराब पी रहे थे । या तो उनकी निगाहों की भूख मर चुकी थी या फिर उनके जेहनो पर इतना बोझ था कि वह अपनी दुनिया के इस द्रश्य से आनंद नहीं उठा पा रहे थे –

आखिर एक ने उकताये हुये स्वर में कहा ।

“बन्द करो यार ।”

फिर उसने दोनों लड़कियों को संकेत किया औरौर वह चले गई ।

“हाँ भाई – अब विजिनेस ।” दूसरा बोला ।

“क्यों न हम लोग मन को शांति प्रदान करने वाली कोई दवा खा कर सो जायें ।” – तीसरे ने कहा ।

“सो जाना तो क़यामत है ।” – चौथे ने कहा ।

“मैं कहता हूँ कि सो जाने का सवाल कहाँ से पैदा होता है ।” – दुसरे ने कहा “जब शराब से शांति नहीं मिली तो फिर दवा से क्या होगा – इसलिये अच्छा यही है कि विजिनेस की बात की जाये ।”

फिर वह चारों इस प्रकार की बातें करने लगे ।

“सवाल यह है कि आज जो प्रोजेक्ट तैयार हुआ है .....। ”

“ओह....तो क्या तुम प्रोजेक्ट के लिये चिन्तित हो ?”

“तो फिर किस लिये मुझे चिन्तित होना चाहिये ?”

“रनधा के बारे में । हम लोग तो रनधा ही के बारे में सोच रहे है ।”

“क्यों – रनधा क्यों ?”

“मैंने पता लगा लिया है – तीन या चार घन्टे बाद उसे फाँसी हो जाएगी ।”

“तो इसमें परेशानी की क्या बात है । यह बड़ी अच्छी खबर है ।”

“हाँ - है तो मगर बुरी ख़बरें भी है ।”

“वह क्या ?”

“यह कि – रनधा के बारे में यह रिपोर्ट है कि उसका चेहरा बदला हुआ है ।”

“तो फिर ?”

“क्या यह नहीं हो सकता कि गिरफ़्तार तो रनधा ही किया गया हो मगर इस बार उसका स्थान किसी दुसरे ने ले लिया हो ।”

“यह कैसे हो सकता है ।”

“रनधा के प्रति हर बात मुझे सम्भव मालूम होती है । जब वह दो बार जेल से फरार हो सकता है तो फिर उससे मिलता जुलता कोई आदमी उसका स्थान भी ले सकता है ।”

“हो सकता है कि आरम्भ से ही दो रनधा रहें हो ।”

“यह सब हमारा भ्रम है ।”

“पहली बार जब रनधा जेल से फरार नहीं हुआ था और हमें यह सूचना मिली थी कि रनधा जेल से फरार हो जायेगा तब भी यही कहा गया था कि यह हमारा भ्रम पात्र है – मगर नतीजा क्या निकला ?”

“हमारी हजामत बन गई ।”

“और यदि इस बार भी रनधा को फाँसी न हो सकी तो शायद.....।”

वाक्य पूरा न हो सका । सब चौंक पड़े थे और उनके मुंह खुले के खुले रह गये थे । इसलिये कि वह उस दृश्य को देखने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे । जिस दृश्य को अब वह देख रहे थे । उनके स्वप्न में भी यह बात नहीं आ सकती थी कि इस तहखाने में कोई और भी आ सकता है – विशेष रूप से जब आने वाला रनधा हो ।

रनधा के अधरों पर मुस्कान थी । वह दोनों हाथ कमर पर रखे निर्भीक खड़ा उन्हें देख रहा था, फिर उसने अत्यंत कटु स्वर में कहा ।

“छोटे बच्चों को ‘हाऊ’ कहकर डराते हैं लेकिन अगर मैं मुंह आगे बढ़ाकर धीरे से हाऊ कह दूं तो तुम सबके हार्ट फेल हो जायेंगे, क्यों ?”

कोई कुछ नहीं बोला ।

“अच्छा । अब एक क्षण के अंदर अंदर अपने अपने गिलास खाली कर दो ।” – रनधा ने कहा ।

वह डरे हुए चारों आदमी जैसे हिप्नोटाइज हो गये हों । उन्होंने एक ही एक घोंट में अपने अपने गिलास खाली कर दिये ।

“अब अपने अपने खाली गिलास अपने अपने सिरों पर रख दो ।” – रनधा ने दूसरी आज्ञा दी ।

उन चारों ने उसकी आज्ञा का पालन किया ।

रनधा हंसकर बोला ।

“मैं केवल यह देखना चाहता था कि रनधा का आतंक उतना ही है या उसमें कोई कमी हुई है । मगर साबित यह हुआ कि अभी रनधा के नाम उतना ही आतंक है ।”

“तुम्हें तो चार घंटे बाद फांसी होने वाली है ।” – एक ने साहस करके कहा ।

“हां, और अब फांसी पाने के लिये मैं वापस जेल जा रहा हूं ।” – रनधा ने मुस्कुराकर कहा ।

“जेल वापस जा रहे हो !” – उसने आश्चर्य के साथ कहा और अपने साथियों की ओर देखने लगा ।

“हां । और इसलिये वापस जा रहा हूं कि फांसी पा जाने के बाद और अधिक शक्तिशाली हो जाऊँगा ।” – रनधा ने कहा और हंस पड़ा ।

“सवाल यह है कि तुम यहाँ कैसे पहुंचे ?” – दूसरे ने कहा और हंस पड़ा ।

“उसी प्रकार जिस प्रकार तुम्हारी कोठियों तक पहुंच जाता था ! रनधा का मार्ग कोई नहीं रोक सकता !”

“तुम यहां क्यों आये हो ?”

“अपनी एक वस्तु वापस लेने ।” – रनधा ने कहा ।

“कौन सी वस्तु ?” – चारों ने एक साथ कहा – “तुम्हारी तो कोई वस्तु हमारे पास नहीं है – बल्कि हमारे ही धन तुम्हारे पास हैं ।”

“मेरी एक वस्तु मेरी अनुपस्थिति में हथिया ली गई है ।”

“कौन सी वस्तु ?” – चारों ने एक साथ पूछा । वह सब अब चकित दृष्टि से रनधा को देख रहे थे ।

“वीना !” – रनधा ने उत्तर में कहा ।

“हम में से किसी को भी संगीत से कोई शौक नहीं है और न हमें यह मालूम है कि कभी तुम्हारे पास वीना थी । तुम तो रायफल-टामी गन और रिवाल्वर के रसिया हो ।”

“मैं उस वीना की बात नहीं कर रहा हूं जिसे वीना वीणा और बांसुरी कहते हैं ।” – रनधा ने गंभीरता के साथ कहा – “मैं उस वीना की बात कर रहा हूं जो हाड मांस की एक लड़की है और जिसे मैंने हरण किया था ।”

“सेठ दूमीचंद की लड़की वीना ?” – एक ने पूछा ।

“हां । वही वीना जो दूमीचंद की लड़की और प्रकाश की बहन है ।” – रनधा ने कहा – “वह कहां है ?”

“इस बात को हम में से कोई नहीं बता सकता । इसलिये कि हम जानते ही नहीं ।”

“कोई बात नहीं । तुम नहीं जानते या नहीं बताना चाहते तो कोई परवाह नहीं । तुम्हारा कोई भाईबंद उसका पता बता देगा ।” – रनधा ने कहा – “अब तुम लोग उठ जाओ ।”

“वह क्यों ?” – चारों ने एक साथ पूछा ।

“तुम लोगों को मेरे साथ चलना होगा ।”

“हमें कहां ले जाओगे ?”

“जहां मेरा दिल चाहेगा ।”

“मगर क्यों ?”

“मैं तुम लोगों को अपनी कैद में रखूंगा ।” – रनधा ने कहा ।

“मगर तुम तो अभी कह रहे थे कि तुम जेल वापस जाओगे ?”

“अवश्य जाऊँगा मगर तुम लोगों को अपनी कैद में डालने के बाद ।” – रनधा ने मुस्कुराकर कहा फिर एक दम से खौफनाक स्वर में कहने लगा – “मुझे इस बात का पता लग चुका है कि किसी ने मेरे वकील मिस्टर राय को इसलिये गहरी रिश्वत दी है कि वह मेरा मुक़दमा बिगाड़ दे और मुझे फांसी हो जाये – और मुझे यह भी मालूम है कि कोई उस धन की तलाश में है जो मैंने तुम लोगों से छीनकर एकत्रित कर रखी है । तुम लोगों को कान खोलकर यह सुन और समझ लेना चाहिये कि मैं अपने शत्रुओं को क्षमा करना नहीं जानता । मिसाल के तौर पर सुन लो कि कैप्टन हमीद, इन्स्पेक्टर आसिफ़, रमेश और सीमा मेरी कैद में हैं और अब में तुम लोगों को भी अपना कैदी बनाने जा रहा हूं । कल सवेरे नौ बजे तक मैं तुम सब लोगों को मुक्त कर दूंगा और फिर परसों शायद तुम सब मार डाले जाओ ।”

“क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आज कुछ घंटो के लिये तुम हमें क्षमा कर दो ?” – चारों में से एक ने कहा ।

“नहीं । यह नहीं हो सकता ।”

“और अगर हम जाने से इन्कार कर दें तो ?”

“तो फिर तुम्हें अभी और इसी समय यहां एक दूसरे की तड़पती हुई लाशें देखनी पड़ेंगी और मेरा विचार है कि तुम में से किसी को यह बात पसंद न होगी ।”

फिर किसी ने कुछ नहीं कहा और उठकर सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगे । रनधा उनके पीछे चल रहा था । वह चारों मन ही मन इस बात पर अफ़सोस कर रहे थे कि वह निहत्थे क्यों हैं । अगर इस समय उनके पास तरकारी काटने वाला चाकू भी होता तो काम दे जाता । मगर यह केवल उनके सोचने ही की बात थी । तब भी वह कुछ नहीं कर सकते थे । इसलिये कि इस समय रनधा भी निहत्था ही था । अगर वह चारों लिपट पड़ते तो रनधा कठिनाई में पड़ जाता, मगर उनमें इतना साहस ही नहीं था । वह बाहर आ गये । रनधा अब भी उनके पीछे ही पीछे चल रहा था । अगर वह चाहते तो इधरउधर भाग सकते थे – इस प्रकार अगर होता तो बस इतना ही होता कि रनधा दौड़कर किसी एक को पकड़ लेता मगर शेष तीन तो अवश्य ही बच निकलते । वह बाहर निकलने के बाद शोर भी मचा सकते थे । उनकी आवाज़ें सुनकर लोग अवश्य दौड़ पड़ते और इस प्रकार हो सकता था कि रनधा अपने बचाव के लिये उन्हें छोड़कर भाग खड़ा होता – इसलिये कि वह निहत्था था । मगर था तो रनधा ही जिसका केवल नाम सुनकर बड़ों बड़ों को पसीना आ जाता था । फिर जब वह सामने हो तो भला कौन आतंकित नहीं हो सकता था !

सारांश यह कि वह चारों उसके आदेश पर चलते हुए सड़क तक आये जहां एक कार खड़ी थी । रनधा ने अत्यंत कोमल स्वर में कहा ।

“तुम लोगों ने किसी प्रकार की शरारत नहीं की इसके लिये मैं तुम लोगों का शुक्रिया अदा करता हूं । और अब खामोशी के साथ तीन आदमी पिछली सीट पर और एक आदमी अगली सीट पर बैठ जाओ ।”

जब वह चारों बैठ गये तो रनधा ने ख़ुद दरवाजा बंद किया और फिर ख़ुद ड्राइविंग सीट पर बैठकर कार स्टार्ट कर दी ।

***