(12)
रात के तीन बज रहे थे । ठंड अपने पूरे यौवन पर थी । सड़कें सुनसान थीं । गहरा कुहरा पड़ने के कारण अब ट्रक भी नहीं चल रहे थे । पुलिस के वह सिपाही जो रात में गश्त करते थे उनका भी कहीं पता नहीं था । कदाचित वह भी कहीं दबके पड़े थे – मगर ऐसे में भी एक मोटर साइकल सड़क पर दौड़ रही थी ।
एक आदमी चला रहा था और दो आदमी पीछे बैठे हुए थे । गति काफ़ी सुस्त थी । तेज हो भी नहीं सकती थी इसलिये कि एक तो गहरा कुहरा पड़ रहा था और दूसरे मोटर साइकल की हेड लाइट बुझी हुई थी । पीछे बैठने वाले दोनों आदमियों में से एक के हाथ में टार्च थी जिसे वह कभी कभी जला लेता था और एक क्षण के लिये सड़क पर मंद सा प्रकाश फैल जाता था ।
फिर मोटर साइकल उस सड़क पर मुड़ गई जिस पर जेल की इमारत थी ।
“प्रोग्राम क्या है ?” – पीछे बैठने वाले दोनों में से एक ने पूछा ।
“जेल की चारदीवारी के पास बम रखना है ।” – अगली सीट वाले ने कहा ।
“लाभ ?”
“कुछ न कुछ तो होगा ही ।”
फिर खामोशी छा गई और मोटर साइकल आगे बढ़ती रही ।
जेल की चारदीवारी से थोड़े फांसले पर सड़क ही पर मोटर साइकल रुक गई और तीनों नीचे उतर पड़े । मोटर साइकल चलाने वाले ने अपने दोनों साथियों में से एक को बम थमा दिया ।
“न जाने क्यों आज मुझे डर लग रहा है ।” – बम लेने वाले ने कहा ।
“आश्चर्य की बात है ।” – दूसरे ने कहा – “जब तुमको डर लग रहा है तो फिर हम लोगों की क्या दशा होगी ।”
“मैं तो भागने वालों में से हूं ।” – बम वाले ने फीकी हंसी के साथ कहा ।
“हां – मगर आज दीवार से सौ गज की दूरी पर ज़मीन खोद कर वह बम तुम्हें गाड़ना है फिर उसके बाद भागना है और अगर तुम बम फेंक पर भाग आये तो सब चौपट हो जायेगा । एक आदमी को इस मोटर साइकल की रक्षा करनी है और एक आदमी को ख़ुद तुम्हारी रक्षा करनी है । चौथा कोई नहीं है, फिर तुम्हारे साथ कौन जायेगा ? मगर आखिर तुम हिचकिचा रहे हो ?”
“मैं हिचकिचा तो नहीं रहा हूं ।” उस आदमी ने कहा । फिर धीरे धीरे दीवार की ओर बढ़ने लगा । ऐसा लग रहा था जैसे धरती उसके पैर पकड़ती जा रही हो ।
अन्त में वह उस स्थान तक पहुंच ही गया जहां उसे जमीन खोदकर बम गाड़ना था । वह इस काम में निपुण भी समझा जाता था ।
खुला हुआ स्थान और इसने कड़ाके की सर्दी ! अगर उसने हाथों पर आइन्टमेंट न लगा लिया होता तो शायद हाथ काम नहीं कर सकते थे ।
गढ्ढ़ा खोदकर उसने बम रखा और मिट्टी बराबर कर दी । मगर अभी उसका कार्य समाप्त नहीं हुआ था । अभी उसे उस तार के दूसरे सिरे को दीवार तक पहुँचाना था जिसका एक सिरा बम से अटैच्ड था ।
वह तार को पकड़े हुए धीरे धीरे जेल की दीवार की ओर बढ़ने लगा । मगर उसी समय उसे मोटर साइकल के स्टार्ट होने की आवाज सुनाई दी ।
“अरे ! क्या वह दोनों मुझे छोड़कर जा रहे हैं ?” – वह बडबडाया और फिर तार फेंक पर सड़क की ओर भागना ही चाहता था कि ज़ोरदार धमाका हुआ और उसके शरीर के परखच्चे उड़ गये ।
इतना भयानक धमाका था कि भागती हुई मोटर साइकल एक क्षण के लिये झटका खा गई थी ।
“हमारे इस प्रकार भाग आने से वह बहुत नाराज़ होगा ।” – मोटर साइकल चलाने वाले ने कहा ।
“वह अब हम लोगों में वापस ही नहीं आयेगा तो नाराज क्या होगा ।” – पिछली सीट पर बैठने वाले ने कहा ।
“मैं समझा नहीं ।”
“क्या तुम ऊँघ रहे हो ?”
“जी नहीं तो ?”
“क्या तुमने धमाके की आवाज नहीं सुनी थी ? क्या उस ज़ोरदार धमाके के कारण यह मोटर साइकल एक क्षण के लिये झटका नहीं खा गई थी ?”
“यह सब कुछ हुआ था मगर इससे हमारे उस साथी का क्या संबंध ?”
पिछली सीट वाला हंस पड़ा । फिर बोला ।
“सुनो और समझो ! उसने जमीन खोदकर उसमें बम रखा, फिर वहां की मिट्टी बराबर की । उसके बाद बम से अटैच्ड तार का दूसरा सिरा दीवार तक पहुँचाने के लिये तार हाथ में लेकर दीवार की ओर बढ़ा और फिर जैसे ही तार को झटका लगा वह बम फट गया । अब तुम ही बताओ कि क्या वह ज़िन्दा बचा होगा ?”
“ओह ! तो आपने जान बुझकर...।”
“हां । इस प्रकार मैंने उसे मार डाला ।” – पिछली सीट वाले ने बात काटकर कहा ।
“मगर क्यों ?”
“इसलिये कि मैं उसे ज़िन्दा नहीं रखना चाहता था ।”
“मगर वह तो आपका वफ़ादार साथी था ।” – ड्राइवर ने कहा ।
“इससे मुझे इन्कार नहीं और उसके मरने का मुझे भी दुख है, मगर विवशता थी ।”
“कैसी विवशता ?”
“वह मेरे लिये फांसी का फंदा बन गया था । सबको उसी की तलाश थी । क्या तुम जानते हो कि विनोद लंदन क्यों गया है ?”
“जी नहीं ।”
“वह इसी को तलाश करने के लिये लंदन गया है । वह लंदन में चार दिन रहने के बाद आज ही तो वापस आया था ।”
एक क्षण के लिये दोनों ही चुप हो गये । पीछे बैठने वाले ने सिगार निकालकर लाइटर से उसे सुलगाया फिर बोला ।
“अब मैं मुतमइन हूं । पहले ख़तरा था ।”
“किस बात का ख़तरा ?”
“इसलिये कि वह जानता था कि सारी दौलत कहां है और वीना कहां है ।” – उसने सिगार का कश लेने के बाद कहा – “और यह बात तो तुम भी जानते होगे कि अधिक जानने वाला खतरनाक हो जाता है । मैंने हमेशा के लिये उस खतरे को अपने सिर से टाल दिया और एक लाभ यह भी हुआ की अब मेरे साथियों में से कोई सिर न उठा सकेगा ।”
ड्राइवर ने हैंडल पर पूरी शक्ति से अपने हाथ जमा दिये । उसे ऐसा लगने लगा था जैसे वह खतरनाक आदमी ठिकाने पर पहुंचने से पहले ही किसी न किसी तरीके से उसे भी मार डालेगा और पिछली सीट वाला अपनी धुन में कहता जा रहा था ।
“कल से हमारे जीवन का नया अध्याय खुलेगा । आज की रात हमने अपने सारे शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली है ।”
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कल की रात धमाकों की रात थी ।
यही बात जब इन्स्पेक्टर जगदीश ने अमर सिंह से कही तो अमर सिंह ने कहा ।
“हाँ रिपोर्ट तो यही है कि हर तरफ़ बम फटे । जेल की पिछली दीवार के पास – कर्नल विनोद साहब की कोठी के पिछले भाग की और – लेबर कालोनी में और नगर के तीन बड़े पूँजी पतियों की कोठियों के सामने ।”
“चचा आसिफ़ कहाँ है ?” – जगदीश ने पूछा ।
“मैंने सवेरे ही उन्हें तलाश किया था मगर न वह अपने घर पर मिले और न कुछ उनके बारे में पता चल सका ।”
जगदीश कुछ न कुछ कह कर विचारों में गर्त हो गया फिर एक दम से चौंक कर बोला ।
“क्या कल रात कोई लाश भी मिली थी ?”
“केवल एक – मगर उसे लाश नहीं कहा जा सकता ।”
“क्यों ?” जगदीश उसे घूरने लगा ।
“इसलिये कि घटना स्थल पर लाश नहीं वरन गोश्त के बिखरे हुये लोथड़े और हड्डियों के टूटे हुये टुकड़े पड़े मिले थे ।”
“ज़रा घडी तो देखना ।” – जगदीश ने कहा ।
“आठ बजने वाले है ।” अमर सिंह ने कहा ।
“क्यों न कैप्टन हमीद को फोन किया जाये । इस केस में बड़ी दिलचस्पी ले रहे है ।” – जगदीश ने कहा “और फिर कर्नल साहब की अनुपस्थिति में तो उनसे परामर्श लेना ही चाहिये ।”
उसी क्षण टेलीफोन की घन्टी बजी । जगदीश ने रिसीवर उठाया और बोला ।
“हेलो ।”
दूसरी और से एस. पी. की आवाज सुन कर वह चौकंना नज़र आने लगे ! एस. पी. कह रहा था ।
“रात जो नगर में और इधर उधर धमाके हुये है उनकी सूचना तुम्हें है ?”
“येस सर ।” - जगदीश ने कहा ।
“क्या येस सर ।” एस. पी. के स्वर में व्यंग भरी हुई कठोरता थी “दो तीन ऐसे स्थानों पर भी धमाके हुये है कि उनके सामने वाले मकानों का एक आदमी अवश्य ग़ायब है । यहाँ तक कि कर्नल विनूद की कोठी के पिछले भाग की ओर धमाका हुआ और कैप्टन हमीद घर पर मौजूद नहीं है । क्राईम रिपोर्टर रमेश के फ़्लैट के सामने धमाका हुआ और रमेश भी लापता है । लाल जी के यहाँ से उनकी लड़की सीमा ग़ायब है । इन्स्पेक्टर आसिफ़ का भी कहीं पता नहीं है – सुन रहे हो ?”
“येस सर !” - जगदीश ने कहा “हम लोग अभी यही बात कर रहे थे ।”
“बातें करने से कुछ नहीं हुआ करता – सवाल यह है कि तुमने अब तक क्या किया । नगर के छाए बड़े पूँजी पति ग़ायब है । एक पूँजी पति की लड़की ग़ायब है जिसका नाम सीमा है । आसिफ़ हमीद और रमेश ग़ायब है – इन्हें ज़मीन नहीं निगल गई है बल्कि इन सब का अपहरण हुआ है ।”
जगदीश का मुँह खुल गया । आवाज आती रही ।
“और जानते हो – यह सब किसने किया ?”
“जी – नहीं ।” जगदीश ने कहा ।
“रनधा ने ।” आवाज़ आई ।
जगदीश के हाथ से रिसीवर गिरते गिरते बचा । उसने दूसरे हाथ से माथे का पसीना पोंछते हुये कहा
।
“मम...मगर सर – रनधा तो जेल में था – क्या वह इस बार फिर जेल से फरार हो गया ।”
“नहीं ।”
“तो फिर सर.....।”
“रनधा जेल ही में था और आज चार बजे सवेरे उसे फाँसी भी हो गई ।”
“कुछ समझ में नहीं आ रहा है सर ।” – जगदीश ने बड़बडाने के से भाव फिर ऊँची आवाज में बोला ”यह कैसे मालूम हुआ सर कि यह सारी हरकतें रनधा ही की थी ?”
“लाल जी की कोठी पर फांसी का निशान मिला है । रमेश के फ्लैट पर भी यही निशान मिला है । कर्नल विनोद की कोठी में भी फांसी का निशान मिला है और यह तो तुम जानते ही हो कि फांसी का निशान रनधा का विशिष्ट निशान है ।”
“ही हां ।”
“इतना ही नहीं, अभी कुछ ही क्षण पहले ख़ुद रनधा ने मुझसे फोन पर बात की है ।”
“फांसी के बाद ?”
“हां, फांसी के बाद !” – एस.पी. की आवाज आई – “रनधा कह रहा था कि वह फांसी के बाद और शक्तिशाली हो गया है और अब वह पुलिस से बदला लेगा ।”
“सर ।” – जगदीश ने माथा पोंछते हुए कहा – “मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है । बहरहाल आप जो आज्ञा दें ।”
“ठहरो, मैं आ रहा हूं ।”
अमर सिंह ने जल्दी से जगदीश के हाथ से रिसीवर झपट लिया और माउथपीस में बोला ।
“सर ! मैं अमर सिंह बोल रहा हूं । मैं कुछ कहना चाहता हूं ।”
“हां, कहो ?”
“रनधा की लाश क्या हुई सर ?”
“पोस्टमार्टम के बाद उसके दो रिश्तेदारों के हवाले कर दी गई ।”
“वह रिश्तेदार कौन थे और लाश लेकर कहां गये ?” – अमर सिंह ने पूछा ।