बिछड़ना praveen singh द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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बिछड़ना

मै सोच रहा हूँ, कुछ गुजरी हुई बातों को जो संग में गुजरी थी, उन हसीं रातों को
तुम कहते थे कि तेरी हर बात में मैं होता हूँ आलम अब ये है की हर रात में मैं रोता हूँ

तुमसे जो बिछड़ा हु, तो मैं कितना टुटा हूँ तुमको नज़र न आऊँगा, इतने टुकड़ों में बिखरा हूँ
लोगो में हस्ते हुए, मैं जिंदगी गुजार रहा हूँ कैसे बतलाऊ मै, कितना दर्द छुपा रहा हूँ

ये दुनिआ ऐसी हैं, हर बात का मजाक बनता है बस इस वजह से मैं, बेवजह मुस्कुरा रहा हूँ
कोई जो पूछे मुझसे की, तेरा मेरा रिश्ता क्या है कह देता हु कुछ खास नहीं, बस जरा अपना सा है

हर पहर जो तेरा नाम लिया करता था, कुछ नहीं बस अपनी जिंदगी को जीने का एक एहसास दिया करता था
तेरी खुशिओ के खातिर मैं कुछ भी कर सकता था वजह नहीं थी तुम,
सच है की बस अपने दिल को आराम दिया करता था

जब भी शाम ढलती हैं, दिल बेचैन हो जाता है तेरे संग गुज़रे हर एक लम्हा याद आता है
काश तुम्हे बतला सकता मै, तुमसे कितना प्यार है
तुम खुश हो अपनी दुनिआ में, बेसुध मेरे दिल का हाल है

तुम एक बार तो कहती, मैं इंतजार भी कर लेता
तेरे लौट आने का मैं, ऐतबार भी कर लेता शिकवा न है कोई, न ही शिकायत है कोई तुम हक़ से बेवफाई करते मैं उसे प्यार समझ लेता

यूँ टुकड़ो-२ में अब जीना अच्छा नहीं लगता है, तुम कह कर तो देखते मैं अपने जिंदगी यूँ ही तबाह कर लेता
इससे ज्यादा वफ़ा की मिसाल और क्या होगी, तेरे हर झूठ को मैं खुदा की बात समझ कर ऐतबार कर लेता

तुमसे बिछड़ कर मै अब रह नहीं पाता हूँ,
दर्द दिलो के अब कह नहीं पाता हूँ
दिन तो कैसे भी करके कट ही जाते हैं,
रातों की तन्हाई मैं अब सह नहीं पाता हूँ

क्यों जी रहा हूँ मैं, समझ नहीं आता है,
कैसे बताऊं कि तू कितना याद आता है,

सारी दुनिया को जीतने का हौसला रखने वाला मैं,
आज खुद क दिल से हार जाता हूँ

खुद में रोता हूँ मैं, खुद से बाते करता हूँ, वो बिछडा जबसे, किसी को तबसे अपना ना कह सके बस इसी वजह से मैं तनहा रहता हूँ

अपने गम के संग मैं खुश रहता हूँ,
आजकल खुशिओ से मिले एक जमाना हुआ,
उसको क्या अपनी नजरो में पहचान करो मैं,"प्रवीण"
जिसके लिए अपना ही चेहरा अनजाना हुआ

पल- पल तड़प रहा है दिल,
तेरा नाम लिए धड़क रहा है दिल, कल तक मेरी परवाह करता था मेरा दिल,
आज तेरे बारे में सोच कर उदास है मेरा दिल

आँख आँसुओं से भर रहा है,
मेरा दिल टुकड़ों में बिखर रहा है, "प्रवीण" तू क्यों है उदास उसके बिन जो बिछड़ कर तुमसे,
अपने आज में निखर रहा है

तुमसे जो बिछड़ा हूँ मैं,
मौसमो का रंग बदल गया है
जो हवाये देती थी मोहब्बत का एहसास,
उसके चलने का ढंग बदल गया है

रातो की तनहाई बहुत रुलाती रहती है,
दिन के हर पल में तेरी याद सताती रहती है
तेरे जाने के बाद, मेरा कोई अपना न होगा जी तो रहे है बेवजह मगर अब कोई सपना न होगा

बिछड़े जो एक दूसरे से तो जिंदगी में दूरियां बन गयी एक दूसरे के बिना जीना हमारी मजबूरिया बन गयी
कौन कहता है की तुम मुझसे प्यार नहीं करते,
करते तो हो मगर इज़हार नहीं करते

हम अपना दर्द बयां करते है शायरियो में
तुम समझते तो हो मगर वह-वह नहीं करते

कौन कहता है, हर जख्म दिखाई देता है
होते है कुछ जख्म ऐसे भी जो न दिखाई देते है,

बहुत होता है दर्द उसमे,
आंसू और खामोशी उस जख्म की गवाही देते है

तुम खुश हो या हो उदास मेरे बिन,
अपने दिल से मेरा यही सवाल रहता है,
मैं तो टुकड़ो में जी रहा हूँ आजकल तुम बिन,
मेरे बिन तुम्हारा क्या हाल रहता है