ये उन दिनों की बात है - 14 Misha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये उन दिनों की बात है - 14

अब जब भी मम्मी को दादी के घर कुछ भिजवाना या मंगवाना होता तो मैं या तो मना कर देती या कोई ना कोई बहाना बना लेती | फिर नैना ही जाती उनके घर |

एक दिन मम्मी ने दादी के घर से दाल की मंगोड़ी ले आने के लिए नैना को भेजा | दादी पापड़, अचार, सोया बड़ी, नमकीन, शक्करपारे और भी बहुत सी चीजें बना लेती थी और काफी सारी बना लेती थी जिसे सब लोगों में बाँट देती थी |

नैना चली गई | जब वापस आई तब उसके हाथ में दो चॉकलेट्स थी |

देख, दादी ने मुझे क्या दिया |

क्या ?

विदेशी चॉकलेट!!!!

उन्होंने कहा, एक तू खा लेना और एक दिव्या को दे देना | जैसे ही मैं उसका रैपर हटाकर खाने वाली ही थी तभी नैना ने कहा, वो सागर भैया तो मना कर रहे थे कि सबको देने की ज़रूरत ही क्या है, चॉकलेट्स खत्म हो जाएँगी ना |

बस फिर क्या था!!! मुझे गुस्सा आ गया |

मैंने वापस उसको रैपर में रखते हुए कहा, ले तू ही खा ले | मेरी इच्छा नहीं है |

ठीक है, मत खा | मैं ही खा लेती हूँ और अगले पल ही चॉकलेट उसके मुँह में थी |

जब भी कभी हम भोपाल जाते तो ट्रेन से ही जाते थे | ट्रेन का सफर.....मुझे और नैना हम दोनों को बहुत ही पसंद था | क्योंकि हमारे सारे रिश्तेदार वही रहते थे | दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची, बुआ-फूफा मामा-मामी | रास्ते भर खाते पीते जाना, कॉमिक्स पढ़ना, रास्ते में जाते हुए पेड़ गिनना, और हम दोनों बहनों का........ये तेरे पेड़ और ये मेरे पेड़.......ऐसे कहते हुए झगड़ना, मुसाफिरों से बातें करना, उनके साथ खाना शेयर करना इत्यादि | सच में बहुत ही आनंद आता था, जिसको शब्दों में बयां करना बहुत मुश्किल है | बस एक ही कमी खलती थी कि काश कामिनी भी मेरे साथ होती |

पापा छत पर लगी कुर्सी पर बैठकर अखबार पढ़ रहे थे | गानों की आवाज कानों में सुनाई देने लगी | क्योंकि सर्दियों के मौसम में लोग अधिकतर छत पर बैठकर धुप सेंका करते थे इसलिए रेडियो भी साथ में ही रखा करते थे ताकि गानों का आनंद ले सकें और कोई रेडियो प्रोग्राम छूट ना जाये | जैसे गीतमाला की छाँव में, भूले बिसरे गीत, मनचाहे गीत, चित्रलोक, जयमाला इत्यादि | क्रिकेट कमेंट्री भी तब रेडियो पर ही सुनी जाती थी जिसका अपना अलग ही आनंद था | लोग रेडियो पर ही समाचार सुना करते थे |

कोई गिटार बजा रहा है, मैंने नैना से कहा |

अरे......वो सागर भैया बजा रहे हैं | पता है तुझे वो काफी अच्छा गिटार बजाते हैं |

नहीं!!!! मुझे कैसे पता होगा और वैसे भी मुझे जानना भी नहीं |

और थोड़ी ही देर बाद सागर मुझे दिखाई दे गया | उसने भी मेरी तरफ देखा | फिर मैंने होंठ बिचकाकर मुँह फेर लिया |

दसवीं के इम्तिहान हो चुके थे | पेपर तो ठीक-ठाक हो गए थे | बस रिजल्ट आना बाकी था |

और इधर कोमल दीदी की शादी भी नजदीक आ चुकी थी | मम्मी को पहले ही बता दिया था कि इस बार पार्लर जाकर हेयरस्टाइल करवानी है | मम्मी ने भी हामी भर दी थी |

एक ही पार्लर था हमारे मोहल्ले में कुसुम आंटी का |

कुसुम आंटी का पार्लर काफी बड़ा और खूबसूरत था | आइब्रो, वैक्सिंग, मेकअप और हेयरकट करने में उन्हें महारत हासिल थी | हमारे मोहल्ले के साथ-साथ दूसरे मोहल्ले की औरतें और लड़कियाँ भी इनके पास ही आती थी | जैसा मेकअप या हेयरस्टाइल बताओ, वैसा ही करके देती थी वो | कहीं कोई कमी नहीं | जिसका जैसा चेहरा-मोहरा उसी हिसाब से उसका मेकअप करना, हेयरस्टाइल सेट करना, इन्हें बखूबी आता था | तभी तो अक्सर इनके यहाँ भीड़ रहती थी |

चूँकि पार्लर में भीड़ काफी थी तो आदतानुसार मैं एक मैगज़ीन जो पार्लर की मेज पर रखी थी उसके पन्ने पलटने लगी | उसमें एक हेयरस्टाइल थी जो मुझे बहुत पसंद आई थी |

आंटी ये वाली हेयरस्टाइल कर देना, मैंने मैगज़ीन दिखाते हुए कहा |

ठीक है बेटा पर इसके 10 रुपए ज़्यादा लगेंगे |

कोई बात नहीं आप कर देना | दरअसल इसकी सहेली की बहन की शादी है | पहले ही कह दिया था इसने मुझसे कि इस बार नई हेयरस्टाइल करवानी है, मम्मी आइब्रो बनवाते हुए बोली |

कब की है शादी? आंटी ने पूछा |

बस तीन दिन बाद ही है, मम्मी ने बताया |

कहीं आप....कोमल की शादी की तो बात नहीं कर रही !

हाँ......हाँ......कोमल ही की शादी है |

अरे!! कोमल को मैं ही तैयार कर रही हूँ |

अच्छा!!!

हाँ और क्या!!!

पर उसकी मम्मी ना.....बहुत किच किच करती है | ऐसे मेकअप करना, वैसे मेकअप करना | किसी सीखने वाली लड़की से मत करवा लेना | बीच-बीच में परेशान करती है |

बम्बई से आ रही है बारात और सुना है लड़का इंजीनियर है | भाग खुल गए छोरी के | मैंने कहा, आप घबराइए मत | मैं ही इसे तैयार करूँगी और ऐसा तैयार करूँगी कि इसके मियाँ जी देखते ही रह जायेंगे |

हा....हा.....हा....हा.....हा………………..आंटी और मम्मी दोनों ही एकसाथ हँस पड़ी |

फिर दोनों अपने ज़माने की बातें करने लगी |

अपने ज़माने में ये सब कहाँ था | उबटन ही लगाते थे और यहाँ जयपुर में तो घूंघट का चलन है | शादी के दिन मैं तो घूंघट में थी | कोई मेकअप नहीं सिर्फ क्रीम लगाई चेहरे पर | मुझे तो याद भी नहीं, कोमल आंटी याद करते हुए बोली |

भोपाल में घूंघट का चलन तो नहीं है, पर हाँ....पार्लर तो हम भी कभी नहीं गए, अब मम्मी कैसे पीछे रहती अपनी शादी को याद करते हुए उन्होंने बताया |

आ......बेटा और उन्होंने मुझे बुलाया | पहली बार मैं पार्लर की गद्दीदार कुर्सी पर बैठ रही थी | काफी अच्छा लग रहा था | मन में लड्डू फूट रहे थे |

अरे वाह.....तुम्हारे बाल तो काफी लम्बे, मुलायम, घने और खूबसूरत है, आंटी ने मेरे बाल खोलते ही तारीफ की |

मेरे बाल काफी लम्बे, घने और खूबसूरत थे | सब मेरे बालों की तारीफ़ करते थे | टीचर से लेकर..........स्कूल की लड़कियों और रिश्तेदारों से लेकर...........पड़ोस की आंटियाँ तक.....सब मेरे बालों की तारीफ करती थी | उन्हें मजबूत और घने रखने के लिए टिप्स भी दिया करती थी, जैसे मुल्तानी मिटटी का पेस्ट, दही, शहद, नींबू, तेल की मालिश आदि-आदि | इसलिए मैं अपने बालों को कटवाने की सोच भी नहीं सकती थी | बस मम्मी ट्रिमिंग कर देती थी | चूँकि मेरे बाल काफी लम्बे थे तो रात को ही मम्मी मेरे बालों में तेल की मालिश कर दिया करती थी | मालिश करते वक़्त हम टीवी देखा करते थे या फिर रेडियो चलाकर पुराने सदाबहार नग्में सुना करते थे |

आज ही मुल्तानी मिटटी का पेस्ट लगाया था, मम्मी ने बताया |

मम्मी बहुत देखभाल करती है |