ये उन दिनों की बात है - 12 Misha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये उन दिनों की बात है - 12

दिव्या, तूने व्रत तो रख लिया पर क्या तू भूखी रह पायेगी? मम्मी ने पूछा

क्यों, मम्मी? आप ऐसे क्यों कह रही हो? क्या मैं भूखी नहीं रह सकती?

क्योंकि 4 बजे बाद इस व्रत में कुछ भी नहीं खाते | 12 बजे बाद ही कुछ खा सकते है | तब तक तुझे भूखा ही रहना पड़ेगा और अभी तू बहुत छोटी है | तेरी उम्र ही क्या है व्रत करने की | सारी ज़िन्दगी पड़ी है, बाद में कर लेना, मम्मी ने समझाया |

मेरी सारी सहेलियां ये व्रत कर रही है और आप देखना मुझे बिलकुल भूख नहीं लगेगी |

दिन में मम्मी ने साबूदाना खिचड़ी बना दी थी |

शाम को सब सहेलियां तैयार होकर मेरे घर आ गयी थी | मैंने कलियों वाला सूट पहन रखा था | निशा और सोनिया ने स्कर्ट-टॉप, कामिनी ने भी घेर वाला सूट और मानसी ने फ्रॉक पहनी थी | फिर हम सब मिलकर गोविन्द देव जी मंदिर गए |

हम सब बच्चे मंदिर की बगीची में खेलने में व्यस्त हो गए और मम्मी और सब आंटियाँ मंदिर के परिसर में बैठ गई भजन करने |

कृष्ण-लीला शुरू होते ही हम सब मंदिर में प्रवेश कर गए और उसमें कृष्ण भगवान के जनम से लेकर कंस के वध तक सब लीलाएं दर्शायी गई |

फिर भजन कीर्तन हुए |

गोविंददेव जी मंदिर के परिसर का वातावरण, ये दर्शाता है मानो हम सब वृन्दावन में हो | पूरा जयपुर भक्ति में सराबोर रहता है | इसलिए जयपुर को दुसरा वृंदावन भी कहते हैं |

प्रसाद बँटने लगा | हम सभी कतार में खड़े हो गए | हलवे का प्रसाद था | उसमें मेवे डले हुए थे और घी भी काफी था | जैसे ही मैं प्रसाद लेके आगे बढ़ी पीछे से हल्का-सा धक्का मुझे लगा और मेरे हाथ से दोना गिरते गिरते बचा |

संभल के, किसी ने कहा |

ये आवाज़ मुझे कुछ जानी पहचानी सी लगी, पर तब तक मैं आगे बढ़ चुकी थी | चूँकि मैंने पीछे मुड़कर देखना चाहा लेकिन भीड़ इतनी थी कि कुछ देख ही नहीं पाई |

पापा जोधपुर से केर-सांगरी की सब्जी लेकर आये थे |

मम्मी ने सब्जी बहुत टेस्टी बनाई थी | उन्होंने मुझे दादा-दादी के घर सब्जी लेकर भेजा | क्योंकि उन्हें केर सांगरी की सब्जी बहुत पसंद है |

मैं उनके घर पहुंची |

दरवाज़ा रामू काका ने खोला जो उनके यहाँ नौकर है | उनको सब रामू काका ही बोलते हैं |

मम्मी ने केर सांगरी की सब्जी बनाई थी वोही देने आई हूँ, मैंने टिफिन देते हुए कहा |

अंदर रख दो बिटिया | अभी हम जरा जल्दी में है, बाजार जाना है |

ठीक है, मैंने कहा और अंदर आ गई |

मैंने टेबल पर टिफ़िन रख दिया | जैसे ही जाने के लिए मुड़ी तभी मेरी नज़र एक मैगज़ीन पर गई और क्योंकि मैगज़ीन पढ़ने का शौक तो था ही तो आदतानुसार मैगज़ीन उठाकर पन्ने पलटने लगी |

पर ये क्या............

हे भगवान!!! कौन पढ़ता होगा ऐसी मैगज़ीन? अपने मुँह पर हाथ रखा हुआ था मैंने |

और मन बहुत खिन्न हो गया था मेरा | बहुत ही घटिया तस्वीरें थी उस मैगज़ीन में | आखिर देखा ही क्यों मैंने इसे? खुद पर ही गुस्सा आ रहा था मुझे |

कौन हो तुम? और यहाँ क्या कर रही हो? एक कड़कती सी आवाज़ मेरे कानो में गूँजी और तुरंत ही मैगज़ीन टेबल पर रख दी |

जैसे ही मैं उस आवाज की तरफ घूमी |

तुम!!!!! हम दोनों के मुँह से यही निकला | वही था जो उस दिन मुझसे टकराया था |

तुम यहाँ क्या कर रहे हो?

एक तो मेरा ही घर और मुझ से ही क्वेश्चन किया जा रहा है |

ओह! तो ये तुम्हारा घर है | अच्छा तो ये है बम्बई वाला, दादा दादी का पोता |

एनी प्रॉब्लम ?

बाय द वे!! तुम यहाँ क्या कर रही हो? उसने ऐसे पूछा जैसे मैं चोरी करने आई हूँ यहाँ |

मुझे भी कोई शौक नहीं है, वो तो मेरी मम्मी ने केर सांगरी की सब्जी बनाई थी वोही देने आई थी, मुझे गुस्सा आ गया था | ये कहकर मुड़कर मैं जाने लगी और जब मैंने पीछे पलट कर देखा......उसने मैगज़ीन उठा ली थी |

ओह!! अब समझी, तो ये महाशय ये वाहियात मैगज़ीन पढ़ रहे थे | मेरी भी उस दिन मत ही मारी गई थी जो इसको अपलक निहारे जा रही थी | छिः इतने सुन्दर चेहरे वाले का दिल इतना काला भी हो सकता है, ये तो मैंने सोचा ही नहीं था |

और मम्मी, मम्मी जो तारीफों के पुल बांधे जा रही थी.........ये लड़का उस तारीफ के लायक तो बिलकुल भी नहीं है |

तभी अचानक मेरे मन में ख्याल आया और चेहरे पर एक विजयी मुस्कान तैर गई | क्यों ना मैं दादी को इस मैगज़ीन के बारे में बता दूँ | फिर इन महाशय की ऐसी डाँट पड़ेगी की पूछो मत | यह सोचकर खिल उठा था मेरा मन |