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पढ़ेगा भारत तभी तो बढ़ेगा भारत।

🇮🇳 पढ़ेगा भारत तभी तो बढ़ेगा भारत 🇮🇳

"रे चंदन!!"
सुबह सुबह अपने रोजमर्रा के काम पर जाते हुए चंदन और उसके आठ साल के बेटे वीरू को उनके गांव के सबसे अमीर जमींदार ने पीछे से आवाज देकर रोका, जो गांव के सरपंच के साथ खड़े हुए थे।
दोनों जब पीछे मुड़कर देखते हैं,तब उनके पास पहुंचकर कहता है।
" राम राम मालिक"
और अपने दोनों हाथों को जोड़ते हुए उनके सामने गर्दन झुका कर खड़ा हो जाता है।
"इतनी जल्दी में कित जावे ??"
" मालिक वो काम के लिए देरी हो रही थी इसलिए तनिक जल्दी में आपकी तरफ ध्यान ना गया मेरा।"
" रे कोई ना डर मत तू,काम भी तो हमारी कोठी में ही करना तन्ने, जे लेट भी होगया तो कौनसी आफत आजेगी ।"
" जी मालिक "
" सुन चंदन दो महीने बाद अपने गांव में मंत्री जी आवेंगे, उपर ते ऑर्डर आए से, के इब इंडिया के हर बच्चे ते पढ़ाना। इब यो तेरी जिम्मेवारी से तू यो बात कच्चे घेरे वाले सारे लोगों ने बतावेगा। आज तन्ना योही काम करना,कोठी पा कल ते आजिए,पगार ना काटता तेरी आज की घबराइए ना।"
" जी मालिक जैसा आप कहो"
अर कल ते वीरू ना भी काम पा ना लेकर आइए साथ,इसने भी ईस्कूल भेज दिए। क्यूं बेटा जवेगा ना पढ़न खातर??"
वीरू के सिर पर प्यार से अपना हाथ घुमाते हुए जमींदार कहता है।
" जी मालिक ज़रूर जाऊंगा, हम तो रोज चले जावें पर बाबा जी नहीं जाने देते, कहते पढ़ ने से कुछ ना होता,काम में हाथ बंटाया कर मेरे।"
" क्यूं रे चंदन यो छोरा सच बोल्या के??"
" मालिक आपको तो पता ही है,हमरा तो घर मुश्किल से चलता है इनकी पढ़ाई लिखाई कहां से कराऊं ,और मेरे साथ काम करे है तो थोड़ा बहुत मेरा भी सहारा होजे है घर की आमदनी में।"
" चंदन तू फ़िक्र ना कर, इब स्कूल में खर्चा ना होता,आठवीं तक सरकार ने पढ़ाई फ़्री कर रखी से , अर दोपहर का खाना देवें सो अलग।"
" अच्छा मालिक " चंदन का चेहरा ये सुनकर खुशी से खिल उठता है।
" और नहीं तो क्या, किताबें, ईस्कूल की वर्दी भी खुद ही देवें,बस तू तो सब कच्चे घेरे वालों ने बोल दिए के अपने बच्चों ना कल ते इस्कूल भेज दें।"
" जी मालिक , जब फ़्री में पढ़ाएंगे तो हम क्यूं नी पढ़ाएंगे अपने बच्चों ने।।
लेकिन मालिक गांव का सरकारी स्कूल तो नाम का ही रह रया है,ना मास्टर जी आते ,गांव के लोगों ने तो स्कूल को अपनी भेंसो का बाड़ा बना दिया है। और पीछे के हिस्से में तो पानी ही जमा रहता है हर टाइम।"
" तू उसकी चिंता ना कर ,वो सब सरपंच जी की जिम्मेवारी है वो आपे देख लेंगे,क्यूं सरपंच साहब??" सरपंच की तरफ देखकर उनकी हामी भरने का इंतजार करने लगता है, और सरपंच जी भी हां में गर्दन हिला देते हैं।
" चंदन इब तू बस अपना काम कर ,और अपनी छोरी ना भी बिठा दिए स्कूल में ,छोरिया ते तो महीने के पांच सौ रपये भी देवे है सरकार ।"
" क्या,पांच सौ रुपए , मालिक मैं अभी जाता हूं , कल से कच्चे घेरे का हर बच्चा स्कूल में जावेगा, अबकी बार सरकार बहुत नेक काम कर रही है ,भगवान उनका भला करे।
राम राम मालिक ,चलता हूं।"
" ठीक से चंदन"
चंदन तेज़ पांव से वीरू के साथ अपने घर की तरफ कदम मोड़ लेता है।
कहने को रामपुर हरियाणा का एक छोटा सा गांव था ,लेकिन हकीकत में दो हिस्से हो चुके थे उस छोटे से गांव के एक तरह अमीरों की हवेलियां चम चमाती थी। वहीं दूसरी ओर एक छोटा सा हिस्सा मज़दूर परिवारों के हिस्से सौंप दिया गया था जहां उनकी टूटे फूटे कच्चे मकानों की छत सालों की जेठ वाली कड़क धूप और सावन की बारिश को अपने ऊपर लेने से इतनी कमजोर पड़ गई थी, मानो चीख चीख कर कह रही हो कि अब ये गरीबी हमसे ओर बर्दाश्त नहीं होती , हमें भी पक्के मकान से मजबूती दिला दो।
इस जगह को अलग से नाम दिया गया था कच्चा घेरा। लेकिन यहां रहने वाले अपनी जिंदगी से बहुत खुश थे , सब छोटी सी खुशी भी मिलबांट कर दोगुनी कर लेते ,दीवाली पर मंहगी लाइट्स, और मिठाई तो नहीं होती थी लेकिन थोड़े से दिए और घर के बने मीठे से भी वो जिंदगी से अपने लिए कुछ हसीन पल चुरा ही लेते थे। उन सबको देखकर लगता था कि सच में खुशियां सिक्कों की नहीं बल्कि दिलों की मोहताज होती हैं।
अगर किसी एक ने कुछ कह दिया तो सब उसकी बात मान लेते। हर काम करने के लिए साथ खड़े हो जाना, मुसीबत में पीछे ढाल बनकर और खुशी में संग परिवार बनकर खड़े रहते थे सब। बस यूं कहो कि कच्चे घेरे वाले रिश्ते बड़े पक्के बनाते थे।
चंदन कच्चे घेरे में पहुंचते ही उस बरगद के पेड़ के पास खड़ा होकर सबको आवाज लगाता है ,जहां वो सब हर छोटी बड़ी बात पर इकट्ठे हो जाते थे। आवाज सुनते ही लगभग हर कोई अपना काम छोड़ पेड़ के पास अा जाते हैं। उनमें से एक व्यक्ति बोलता है..
" क्या हुआ भाई चंदन सब ठीक तो है?? "
" भाई चंदन इतनी सुबह सुबह क्यूं सबको बुला लिया अचानक ??" उसके पास खड़ा दूसरा व्यक्ति बोलता है।
" भाई कोई परेशानी की बात ना है, मन्ने तो बस एक खुशखबरी देनी थी सब को।"
" ऐसी के बात होगी भाई , जल्दी बता फेर"
" भाई फुलू बीच में गांव के सरपंच अर भीम जमींदार जी मिले थे,उन्होंने बताया कि इब माहरे बच्चे स्कूल में पढ़ सकें,वो भी फ़्री में।"
" भाई वो सब तो ठीक है चंदन लेकिन अगर ये सब स्कूल में जाएंगे तो मजदूरी करने कौन जाएगा??"
" देख भाई कमाना तो सारी उम्र ही है , हमें जो मौका ना मिल्या वो आज माह्हरे बच्चों ते मिल रया। जो ये पढ़ लिख़ गए और बड़े अफसर बन गए तो हम गरीबों का भी भविष्य बन जेगा ,फिर हमारे बच्चों ने , हम सब की तरह दो बखत की रोटी वास्ते ठोकरें नी खानी पड़ेगी।
ओर तो ओर छोरियों को पढ़ाने के तो महीने के पांच सौ रुपए भी मिलेंगे,तो इनकी मजदूरी तो वहां ते ही पूरी होजेगी।
भाई आगे आप सबकी मर्जी , मैं तो अपने जय ,वीरू और मेरी भोली लाड्डो ने कल से स्कूल भेजूंगा।"
" चंदन आज तक हम सब कभी अलग चले हैं एक दूसरे ते, अगर जय,वीरू जाएंगे स्कूल तो हर बच्चा कल से स्कूल जाएगा।"
" हां , हां मै भी मेरे मुन्नू को स्कूल में दाखिल कराऊंगी कल से।" धीरे धीरे वहां खड़ा हर व्यक्ति हां में शामिल हो जाता है।
कहते कहते वो अब अंत में अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार हो जातें हैं। हर घर में एक अलग ही खुशी की लहर दौड़ रही थी,पहली बार कच्चे घेरे के बच्चे पढ़ने जो जा रहे थे।
अगली सुबह सब बच्चों को फिर से जल्दी उठाया जाता है ,फ़र्क सिर्फ इतना था आज उनको काम नहीं ज्ञान मन्दिर जाने के लिए उठाया गया था। सब तैयार होकर निकल जाते है गांव के बीचों बीच बने छोटे से सरकारी स्कूल की तरफ।उस स्कूल में वो पहले भी कभी कभार गए तो थे लेकिन पढ़ने नहीं ,या तो गांव की किसी जमींदार की भैंसों का काम करने के लिए,या फिर शाम को मजदूरी से आने के बाद अपने दोस्तों के साथ कुछ देर के लिए गिल्ली डंडा खेलने के लिए।
आज जब वो सब स्कूल के अंदर पहुंचे ,तब वो स्कूल अब पहले जैसा तो बिल्कुल भी नहीं रहा था।
गन्दी हुई दीवारों को सफेदी की चमक के पीछे छिपा दिया गया था,जहां बड़ा बड़ा घास उगा होता था ,वहां आज साफ धरती वहां बिछे टाट के बीच में से आंख मिचौली खेल रही थी। आंगन में भेंसे नहीं बल्कि कुछ शिक्षक कुर्सियां बिछाए बैठे हुए थे जिनके आगे मेज पर कुछ रजिस्टर दिख रहे थे।
सब बच्चों को देखते ही उनमें से एक ने उन सबको अंदर आने का इशारा किया।वो सब डरते संभलते उनके पास पहुंचे । उन्होंने उन सबको वहां धरती पर बिछी टाट पर बैठने का इशारा किया। सब के वहां बैठ जाने के बाद सबके नाम पूछे गए और रजिस्टर में चढ़ा दिए गए।कुछ देर बाद उन सबको कॉपियां ,किताबें ,बैग बांटे गए। सब अपने घर के साधारण कपड़ों में ही बैठे थे। सबके हाथ में दो दो पैकेट नीली वर्दी के पकड़ाते हुए कल से स्कूल की वर्दी में आने की हिदायत दी गई।
पूरा दिन अ अनार से ,a for apple तक सब सिखाया गया। दोपहर को बहुत अच्छा खाना दिया गया।उन सब बच्चों ने तो आज तक बस मजदूरी का बोझ ही ढोया था ,फिर स्कूल का बस्ता तो उन सबको बहुत हलका महसूस हो रहा था। मानो किसी ने काम से छुट्टी देकर घूमने भेज दिया हो उन सबको। पढ़ना तो उनके लिए कोई खेल था जिसको वो बचपन से खेलना तो चाहते थे लेकिन बहुत महंगी होने की वजह से कभी खेल ही नहीं पाए थे। घर पर सब अपने बच्चों को स्कूल की वर्दी में देखकर बहुत खुश होते थे। दो महीने कब पंख लगा कर उड़ गए किसी को पता ही नहीं चला।सब बच्चें पढ़ना लिखना सब बहुत जल्दी सीख रहे थे,थोड़ा सीखने के बाद कुछ नया सीखने की लालसा उन सब में कूट कूट कर भरी हुई थी । आखिर वो दिन भी अा ही गया जब मंत्री जी को उनके गांव में आना था। उस दिन सब बच्चों को बहुत अच्छे से तैयार होकर आने की हिदायत दी गई थी। पूरा स्कूल सफाई कर ने का बाद शीशे सा चमका दिया गया था।
सरपंच और बड़े जमींदारों के लिए कुर्सियां ,मंत्री जी की कुर्सी के बगल में ही बिछाई गई थी।और कच्चे घेरे के लोगों के भी बैठने की व्यवस्था प्रांगण में की गई थी।
मंत्री जी जब वहां पहुंचे तो उनको फूलों का गुलदस्ता भेंट किया गया। फिर उनको कुर्सी पर बैठने का निवेदन किया गया।वहां की सब व्यवस्था देख कर मंत्री जी बहुत खुश हुए। उन्होंने बच्चों से कुछ सवाल जवाब भी किए। अंत में उन्हें कुछ शब्द बोलने के लिए आग्रह किया गया।वे शिक्षा की अहमियत ,पढ़े लिखे इंडिया का सपना और भी बहुत कुछ बोलते चले गए।अंत में उन्होंने जोर से एक नारा लगाया
"पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया"
और जाते जाते उन्होंने गांव में बच्चों कि पढ़ाई के लिए स्कूल को सरकार की तरफ से पचास लाख रुपए देने की घोषणा कर दी। सब के चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गई। सब अपनी अपनी जगह पर खड़े होकर तालियां बजाने लगे। पूरा स्कूल तालियों की आवाज से गूंज उठा।
मंत्री जी तो चले गए लेकिन हर किसी के दिल में अपने बच्चों के एक उज्वल भविष्य का सपना सजा गए थे।
सब बच्चें फिर से आम रूप से स्कूल जाने लगे थे। लेकिन कुछ दिन बाद स्कूल के कुछ शिक्षकों ने आना बन्द कर दिया। ये बात जब सरपंच जी को बताई गई तब उन्होंने ये कहकर उनको भेज दिया कि वो कुछ दिन के लिए छुट्टी पर गए हैं कुछ दिन बाद वापिस अा जाएं।
फिर धीरे धीरे सब शिक्षकों का आना बन्द हो गया। तब चंदन को सब कच्चे घेरे वालों ने मिलकर एक बार फिर सरपंच जी के पास जवाब मांगने के लिए भेजा गया। चंदन सरपंच की हवेली में जाता है। सरपंच हवेली के बाहर बने बगीचे में ही कुर्सी पर बैठा हुआ था।
" राम राम मालिक"
" कहो चंदन , कैसे आया तू ?"
" वो मालिक ,वो स्कूल में कोई भी मास्टर जी ना अा रहा ,बच्चों की बहुत दिन से पढ़ाई ना हुई।"
" फिर मैं के करूं??"
" मालिक आप एक बार मास्टर जी ने बोल देते की स्कूल जल्दी अा जाते। इब तो सब मास्टर की छुट्टी ने बहुत दिन हो गए।"
" चंदन मेरे एक ही काम ना है,और भी बहुत जिम्मेवारी होवे है मेरी। आजेंगे मास्टर जी जब आने होंगे।"
"मालिक बहुत दिन हो गए, बच्चें पढ़ नहीं पा रये हैं।"
" नहीं पढ़ रहे तो मत पढ़न दे ,पढ़कर कौनसा कलेक्टर बन जेंगे । अर अगर अपने बच्चों ते पढ़ाना ही है तो भेज दे बड़े स्कूल में।"
" पर मालिक आपने तो बताया था कि फ़्री में पढ़ाया जाएगा अब,और मंत्री जी भी तो पैसे दे गए थे बच्चों की पढ़ाई के लिए।"
"कौनसे पैसों की बात करे है तू चंदन ,इतने दिन ते जो तेरे बीखारी बच्चों को कपड़े खाना दिया है वो फ़्री में नी आया। सारे वहीं खर्च हो गए। और तू भी ध्यान से सुन मेरी बात ने ,आगे ते अपने बच्चों ना घर ही रखिए,स्कूल में इब कोई मास्टर नी आता। वो तो मंत्री जी के लिए सब ताम झाम करना पड़ा था। तुम सब चार दिन की चांदनी में अपने घर के दिए की रोशनी ना भुलया करो।" सरपंच लगभग गुस्से से चिल्लाते हुए कहता है।
"पर मालिक पढ़ेगा भारत तभी तो बढ़ेगा भारत का क्या हुआ??।।"
" भारत नहीं इंडिया पढ़ेगा चंदन ,तुम अपने काम पर ध्यान दिया करों।"
" मालिक इंडिया हो या भारत बात तो एक ही है।"
" एक ना है गरीबों का भारत है अमीरों का इंडिया ,गरीबों ना अंग्रेजी मीडियम में अपने बच्चों को पढ़ाने की औकात ना है। तुम जैसे भिखारी हिंदी में भारत लिखना ही सीख जाएं तो अपनी खुस्किस्मती समझना।
तो "पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया " भारत नहीं बढ़ेगा, भारत इंडिया को बढ़ने में बस मजदूरी ही करेगा।"

इन शब्दों ने ही चंदन को हकीकत से वाक़िफ करा दिया था।उसको खुद के अंदर ही कुछ टूटता सा महसूस हुआ, मानो किसी ने आसमान से धरती पर ला पटका हो। अगली सुबह फिर से वीरू उठा लेकिन अब मजदूरी की मज़बूरी ने उसके कंधो पर से उसके सपनों के बस्ते को बहुत दूर दे पछाड़ा था।
जो रुपया मंत्री जी की तरफ से आया वो बस कुछ तानाशाही सरपंचों की जेब में समा कर रह गया। स्कूल फिर से एक इमारत बनकर रह गया।
ऐसे ही बहुत से चंदन जैसे भारतीय आज भी इंतजार में है। कि कोई सरकार आए जो कहे ...
" पढ़ेगा भारत तभी तो बढ़ेगा भारत।"
वो ये शब्द सिर्फ भाषण तक सीमित ना रखकर,एक ऐसे भारत का निर्माण भी करे जहां पढ़ाई भीम जैसे जमींदारों और सरपंचों की मोहताज ना रहे।
जय हिन्द।

jagGu parjapati✍️☺️( स्वरचित)


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