व्यंग्य लेख - कैसे कैसे टार्च बेचने वाले! ramgopal bhavuk द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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व्यंग्य लेख - कैसे कैसे टार्च बेचने वाले!

व्यंग्य लेख

कैसे कैसे टार्च बेचने वाले!

रामगोपाल भावुक


हमारे देश में पुस्तैनी धन्धा सिखाने की परम्परा रही है। पिता अपने पुत्र को विरासत में पाये धन्धे को ही सिखाना चाहता है। यह बात हमारे जहन में इस तरह घर कर गई है कि इसके अलावा हम कुछ सोच ही नहीं पाते। राजा अपने पुत्र को राजा बनाना चाहता है। सेठ अपने वंशजों को बचपन से ही दुकानदारी से जोड़ लेता है। किसान अपने बेटे को अच्छी तरह खेती करना सिखाता है। हम देख रहे है सभी इसी तरह अपने-अपने वंशजों को अपने पेशे की ट्रेनिंग देते हैं।

मित्रों, इसी तरह यदि कोई नेता अपने पुत्र को नेता बना रहा है तो इसमें आपको कोई ऐतराज नहीं होना चाहिये। हमारे इस महान देश की परम्परा के अनुसार यदि प्रधान मंत्री अपने बेटे को प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री अपने बेटे को मुख्यमंत्री और मंत्री अपने बेटे को मंत्री बनाने में लगें, तो आपको बुरा नहीं मानना चाहिये। हमारी परम्परा की लकीरों को कोई ध्वस्त करना चाहे तो हमें उसका पुरजोर विरोध करना चाहिये ।

हम परम्परा वादी हैं हमें अपनी परम्पराओं का सम्मान करना ही चाहिये। हमारा यही धर्म है। यही हमारा परम् कर्तव्य भी है। इसमें बुरा मानने की बात नहीं है। इसमें यदि कुछ जागरुक नेता परम्परा को तोड़ने का प्रयास करैं तो हमें अपने धर्म से विचलित नहीं होना है। न इनके पुरखे नेता थे जिनसे ये कुछ सीख कर आगे बढ़ते। अरे! इन्हें इतनी अकल कहाँ से आ गई। अकल के ठेकेदार तो परम्परावादी लोग ही हैं। उन्हें यह अवसर मिलना तय है।

मित्रो, आप तो भाग्यवादी हैं, जिसके भाग्य में जो लिखा है वह उसे मिलकर ही रहेगा। इसलिये आप तो इसे प्रकृति का खेल मान कर चुपचाप देखते रहें। ये महान लोग जो करैं, उसे अपनी किस्मत का फैसला मानकर स्वीकार करते चले जायें।

आप तो दृष्टा भाव रखकर, चुपचाप सब कुछ इस तरह देखते रहें कि सब कुछ सिनेमा की तरह झूठा घटित हो रहा है। यह संसार ही झूठ है। इसमें आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है। सुखी रहना है तो दृष्टा भाव परिपक्व बनाये रखें।

समझ नहीं आता योगी बाबा इस दृष्टा भाव की व्याख्या इस तरह क्यों नहीं करते। उन्हें देश की राजनीति से क्या लेना देना। वे तो बाबा हैं बस योग सिखायें। अरे! बाबा जोगियों को राजनीति से दूर रहना चाहिये। राजनीति तो राजा-महाराजओं के लिये है, बाबा जोगियों के लिये नहीं। समझ नहीं आता योगी बाबा इन सिद्धान्तों से विमुख क्यों हो रहे हैं।

बाबा गुरू एक टार्च बेचने वाले के रूप में हमारे सामने आये। उनका दर्शन ,उनका नाचना- कूदना जनता- जनार्दन को बहुत भाता था। वे जिसे पसन्द कर लेते उस पर तीन पर अपनी टार्च से प्रकाश डालते। उनके सेवक इस इसारे को अच्छी तरह समझ जाते, बाबा उसका कल्याण करने पर उतारू हो गये हैं। अब वे उसका कल्याण करके ही मानेंगे। उसे उनके भक्त उनकी साधना कुटी में भेज देते। उसे पूरी तरह समझाते कि तुम्हारा कल्याण बाबा की सेवा में ही है। यदि अपना कल्याण चाहते हो तो चुपचाप उनकी बातें शिरोधार्य कर लो। इस तरह वे अपनी टार्च बेचने का धन्धा पूरी सफलता के साथ करते रहे। धीरे धीरे इतना बडा तंत्र खड़ा होगया कि बड़े बड़े राज नेता उनके परम भक्त होगये। आज देश में ऐसे ही अनेक टार्च बेचने वाले फलफूल रहे हैं।

कुछ लोग आतंकवाद का बिरोध करने वाली मलाला की छविे इस बहादुर लड़की में देख रहे हैं। इसने भी एक इस तरह के धार्मिक आतंक का डटकर विरोध किया है, तभी इस तंत्र कों तोड़ने में कुछ कदम बढ़ पाये हैं। कुछ भी हो ऐसी लड़कियों को कौन मलाला की तरह सम्मानित करने की बात नहीं करेगा!

आज आपके बाबा गुरू जेल की हवा खा रहे है। कुछ ही दिनों में वे बाहर निकलेंगे। उस समय आप उन्हें निर्दोष मानकर उनकी आरती उतारने तैयार रहना। उस समय बिरोधियों को खूब जमकर गालियाँ देना। वे तभी मानेंगे।

आज प्रचार वाद का युग है । प्रचार से भैया रद्दी से रद्दी चीज मंहगे दामों में बेंची जा सकती है। प्रचार के धोके में आकर लोग बड़े बड़े अपराधियों को संसद में भेजने में सफल रहे है। जिसका परिणाम आज हम सब भोग रहे हैं। भगवान भला करै उन न्यायाधीशों का जिन्होंने दागियों को संसद से बेदखल कर दिया।

इस समय मुझे याद आ रही है जब बाबा गुरू जेल से उस सजीले मंच पर आकर विराजेंगे। उनके भक्त जयकारे के नारों से आकाश को हिला देगे। बाबा उन्हें सम्बोधित कर कहेंगे-‘ मेरे प्यारे भक्तों आप लोग सच में सच्चे गुरुभक्त हो। जो ऐसे संकट के समय में आपने अपने गुरु को नहीं छोड़ा। अब मै आप सब के बीच सरकार द्वारा प्रदत्त बनोवास भोगकर बापस आगया हूँ, अब मैं आपके सारे दुःख दूर कर दूँगा।

मैं समझ रहा हूँ आज मेरी इस सभा में वही लोग रह गये हैं ,जो सच में अपने गुरु से सच्चा प्यार करते हैंे। गुरू संसार में रह कर संसारी भी बन जाता है। इसका अर्थ यह नहीं कि वह अस्तित्व विहीन होगया। गुरु से कुछ पा सकते हैं तो अपनी श्रद्धा और भक्ति मात्र से ही।

गुरु के कभी अबगुणों पर विचार नहीं करना चाहिये। ऐसा करना महापाप है। यदि कोई आपके गुरु की बुराई करता है तो उसे आप को सुनना ही नहीं चाहिये। ऐसे स्थल से हट जाना चाहिये। गुरु के चरण कमलों का दिनरात गुणगान करते रहना चाहिये। इसी में आपका हित छिपा है। बिरोधी जो कहें, कहते रहें। देखना एक न एक दिन वे हमारी बुराइयाँ करते करते थक जायेंगे और उन्हें चुप रह जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं सूझेगा।

आप तो भले लोग हैं। गुरु के एक एक शब्द का अक्षरशः पालन करते चले जाना चाहिये। सम्पूर्ण निष्ठा के साथ आप आगे बढे फिर भी साधना में लाभ न हो तो मुझ से कहें। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी-अपनी समस्यायें हैं। उन्हें गुरु से एकान्त में परामर्श करलें, आप निश्चय ही मुक्त हो जायेगे। मैं यह ड़ंके की चोट से कह सकता हूँ। हरि ओम हरि ओम हरि ओम। हरि हरि ओम।

मित्रो, गुरुजी के कथन का अक्षरसः पालन करैं। तभी आप सच्चे शिष्य कहलाने के हकदार हैं।

आओं अब मैं आपको बाबा गुरू के पुत्र श्री के प्रवचन सुनाना चाहता हूँ। उनका कहना है, वे मेरे पिता ही नहीं गुरु भी हैं। मेरे मनमें उनके लिये कोई विकार नहीं आया। मात-पिता के मिलन से ही हमारा जन्म हुआ है। उस मिलन में आप विकार देखेंगे तो इस सृष्टी का रूप ही बदल जायेगा। संत लोगों का चरित्र अनुकरणीय नहीं बल्कि वह तो दृष्टा भाव से देखने के लिये होता है। जिसे हमने देखकर भी नहीं देखा। अरे! हमने उनके गुण नहीं देखे। उत्तराखण्ड की त्रासदी में बाबा के कामों का कोई मीडिया उल्लेख नहीं कर रही है। किसी ने उनके वारे में कुछ भी कह दिया, सरकार ने मान लिया। सरकार ही उन्हें खरीद कर कहलवा रही है। मीडिया की भी बाबा जी परवाह नहीं करते हैं। सो वे उनसे नाराज हो गये हैं। बाबा गुरू जी को किसी की चाटुकारता करना नहीं आता। इन लोगों को कुछ भी कहने का मौका मिल गया । सो जो उनके मन में आया कहते चले जा रहे हैं।, अपने अपने मीडिया को महान बताने के लिये सब नई नई वातंे गढ़ रहे हैं। इन मीडिया वालों को तिल का ताड बनाना खूब आता है।

बाबा गुरू जी जो एक चींटी को तो मार नहीं सकते, वे इतना बड़ा अपराध कैसे कर सकते है? कुछ दिन पहले बाबा गुरू ने कहा था मैं अपनी इच्छा से कुछ दिनों के लिये जेल जाना चाहता हूँ। ये जो कुछ घटित हो रहा है,सब बाबा गुरू की इच्छा से ही हो रहा है। उनकी इच्छा के विरूद्ध कहीं कुछ नहीे हो सकता। उन्हें आप लोगों के हित में यह लीला करना होगी इसलिये यह सब घटित हो रहा है। मैं देख रहा हूँ इस समय उनके सभी भक्त रो रहे हैं। उनकी लीला देखकर सुख-दुःख के भाव आना स्वाभाविक हैं। जब बाबा गुरू को अपनी लीला समेंटना होगीं तब सब समेट लेंगे। आप लोग तो अपनी श्रद्धा और भक्ति को अपने गुरु में दृढ़ बनाये रखना है। इसी में हम सब का हित छिपा है। बाबा इस समय हम सब की परीक्षा ले रहे हैं। हमें इस परीक्षा में खरा उतरना हैं। जब समय आयेगा तव दूध का दूध और पानी का पानी होगा। हरि ओम हरि ओम हरि ओम। हरि हरि ओम।

आजकल इन धर्मगुरुओं एवं नेताओं के लिये एक आदर्श आचार संहिता बनाने की बात उठ रही है।

गुरुः ब्रह्मा गुरुः विष्णु, गुरुः देवो महेश्वराः।

गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।

वे दिन रात इस महामन्त्र को अपने भक्तों को रटा रहे है। इन गुरुओं ने परब्रह्म परमात्मा को एक कोनें में बैठा दिया है। इसी में शिष्यों का कल्याण निहित कर दिया गया है। अच्छा है, इससे इनके ऊपर कोई अंकुश नहीं रह गया।

परब्रह्म परमात्मा से ऊपर अपने को कोई न समझे, आप यह आचार संहिता लाना चाहते है। किन्तु ऐसा करके युगों से पोषित आप हमारी महान परम्परा को ध्वस्त करने का प्रयास कर रहे है। अभी बस इतना ही।

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सम्पर्कसूत्र- कमलेश्वर कालोनी(डबरा) भवभूति नगर जिला ग्वालियर म0प्र0 475110

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