लघु-कथा--
परिणाम
आर.एन. सुनगरया,
प्रोजेक्ट फाईनल करते समय जिन स्तम्भों का निर्धारण किया था उसमें मुख्य एवं स्थाई स्तम्भ यही था। भले ही अन्य स्तम्भ ध्वस्त हो गये थे। मगर उसको तो अपना खून पसीना एक कर सारी यूनिट को अपने कन्धों के ऊपर स्थापित कर लेनी चाहिए थी।
मगर इसने अपने कर्मयोगदान का निर्धारण अपनी सुविधा अनुसार करके अपने-आप को एक ऋणात्मक ढर्रे में समेट लिया। किसी भी तरह की गणना आवक-जावक की करने की आवश्यकता मेहसूस नहीं की, जबकि उनके अवसरों पर इसका ध्यान विभिन्न तरीकों से दिलाया गया। परन्तु कभी भी गम्भीरता से नहीं लिया।
इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि मैं अकेला शुभचिन्तक बचा बाकी लोग सिर्फ समय पर पूर्ती के लिये ऑंखें दिखाकर दवाब बनाते रहे एवं मुफ्तखोरी के आदी हो गये। अब बचा सिर्फ एक व्यक्ति जिसे समय पर सारी व्यवस्था को बनाये रखने का जिम्मा निभाना पड़ा। उसने भी सोचा चलो आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो कभी तो, लोगों को एहसास होगा और गम्भीरता से सोचकर आगे आयेंगे व अपनी जिम्मेदारी निभाने की शुरूआत करेंगे। और मैंने जो सारी अलायें-बलायें अपने सर पर ले रखी हैं उनसे राहत मिलेगी तथा मेरे प्रति सबकी सहानभूति होगी, चलो अब तक ये सारी परिस्थितियों को खुद ही अपने ऊपर झेलता आ रहा है। शुरू से भागते-भागते थक गया होगा, अब तक बूढ़ा बैल कोल्हू का बैल बन चुका है। क्यों ना अब इसे मुक्त किया जाये। सम्पूर्ण कार्यकलाप अपने नियन्त्रण में लिया जाय।
ऐसा तो कुछ नहीं हुआ और उल्टे अपनी स्वछन्दता पर ऑंच आती देख सबके सब भड़क उठे और हर स्तर पर मेरी गलती या गलतियॉं निकालने में लग गये, जो उन्होंने बोल दिया; वही सत्य, वही प्रामाणिक उनकी हर बात अक्षरान्श स्वीकार करके चुप रहना ही नियति बन गया। अगर कहीं एक शब्द भी निकल गया तो फिर कोहराम, हंगामा, मच जायेगा। सबके सब चढ़ बैठेंगे।
चारों तरफ से गला दबा कर, बोल आगे बोलेगा-एक भी शब्द ऐसा लगने लगता है। जैसे बहुत ही भयानक तूफान। जलजले का दुष्परिणाम आने वाला है।
कान पकड़कर अपमान का जहर पीकर अन्दर ही अन्दर कुड़ते रहो, घुलते रहो, अपने आप पर झल्लाते रहो। अदृश्य ज्वाला में सिंकते रहो। सब कुछ संघर्ष के बाद भी परिणाम शून्य, शून्य.........
♥♥♥ इति ♥♥♥
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय-
समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं
स्वतंत्र लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
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