बागी आत्मा अच्छा उपन्यास -हरिमोहन शर्मा ramgopal bhavuk द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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बागी आत्मा अच्छा उपन्यास -हरिमोहन शर्मा


एक संघर्ष कथा: बागी आत्मा

हरिमोहन शर्मा

बरिष्ठ पत्रिकार


उपन्यासकार रामगोपाल भावुक द्वारा रचित बागी आत्मा नामक उपन्यास एक संघर्ष कथा है।

समाज के उन कथित ठेकेदारों के खिलाफ जो सामाजिक व्यवस्थओं और मर्यादाओं को अपने पैसे के दम पर अपने अनुरूप बदलने का षड़यंत्र कर निरीह एवं निर्दोष लोगों को उसमें तिल तिल कर मरने के लिये छोड़ देते हैं। उस कुचक्र में फंस कर तमाम लोग गुमनामी की मौत को अपना लेते हैं लेकिन दूसरी ओर कुछ ऐसे मौलिक व्यक्तित्व भी होते हैं जो मरने से पहले संघर्ष का रास्ता अपनाकर न्याय के लिये संघर्ष करते हैं।

बागी आत्मा का कथानक भी एक ऐसे ही नौजवान की संघर्ष गाथा है जिसका पूरा परिवार एक जमीदार के कुचक्र में फंस कर बर्बाद हो जाता है और स्वयं अपनी कल्पनाओं की दुनियाँ से उठकर बीहणों में हर पल मौत से टकराने को तैयार रहता है। ष्शोषण व अन्याय के खिलाप अकेला ही संघर्ष कर एक नये समाज की संरचना का बीड़ा उठाता है। उपन्यासकार ने अपने नायक के माध्यम से इस समाज में बुराई की जड़ बुरे आदमी को समाप्त करने का प्रयास बुराई के माध्यम से ही किया। उपन्यासकार ने उपन्यास के माध्यम से यह बात कहने का प्रयास भी किया है कि सही बात को मनवाने के लिये भी शक्ति चाहिए अन्यथा बिना शक्ति के अच्छी और सही बात भी निरर्थक होती है। जब आदमी संहर्ष के लिए उठ खड़ा होता है तभी वह अपने ऊपर आये संकट को हल कर पाता है।

उपन्यासकार ने यह तथ्य भी पाठकों के समक्ष रखा है कि संस्कारों से बिगड़ा मनुष्य भले ही न सुधरे लेकिन परिस्थितियों वश गलत रास्ते पर चलने वाले मनुष्य को पुनः सही मार्ग पर थोड़े़ से प्रयास से लाया जा सकता है। कथा नायक माधव भी बुराई को मिटाने के लिये परिस्थिति वश अपराध के अंधेरे रास्ते की ओर बढ़ता तो अवश्य है, साथ ही उसके रास्तों से निकलने का प्रयास भी किये रहता है। कथा की नायिका व माधव की प्रेमिका के जरा से प्रयास पर वह अपने अपराधों का पायश्चित करना चाहता है। यही नहीं उसकी अंतरात्मा भी उसे कचोटती है।

उपन्यासकार ने इस कथा के माध्यम से ग्रामीण अंचलों की एक महत्वपूर्ण समस्या को सरल एवं सटीक शब्दों में कागज पर इस तरह उतारा है मानों वह चश्मदीद गवाह रहा हो। कथा में तथाकथित सफेदपोसों तथा सामाजिक नियमों का पालन कराने वाले पुलिस तंत्र पर करारा चांटा मारा है, जों पैसे के लिये न्याय का गला घोंटकर अन्याय को जन्म देता है। सारे नियम कानून पुलिस के लिये खिलौने हैं। जिस तरह चाहा वैसा ही उसका उपयोग किया।

उपन्यास के माध्यम से डाकू समस्या के पीछे छिपे मूल तथ्यों को उजागर करने तथा इस समस्या को जन्म देने वालों को बेनकाव किया गया है, लेकिन कहीं कहीं कथाकार अपने

नायक को एक उपदेशक के रूप में दिखाने का लोभ संवरण नहीं कर सका है। बागी आत्मा डाकू समस्या पर एक अच्छा एवं पठनीय उपन्यास है।

पुस्तक- बागी आत्मा

लेखक- रामगोपाल भावुक 00000

प्रकाशक- प्रमोद प्रकाशन दिल्ली

पृष्ठ-114

मूल्य-बीस रु0। प्रकाशन वर्ष-1983 ई0