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बयान से परे

[बंगाल के सुप्रसिद्ध लेखक श्री गौतम सान्याल  जी का अभिमत इस कहानी  के विषय में ये है कि --'विश्व में 'एनीमल इंस्टिंक्ट ' की कहानियाँ सिर्फ़ १५-२० हैं।' शायद ये कहानी आपका उतना  मनोरंजन न करे लेकिन आपने भी 'एनीमल इंस्टिंक्ट ' को कभी न कभी महसूस किया  ही  होगा। ]

किसी भी गृहणी की फ़ितरत है बाज़ार लिस्ट में दस चीज़ें लिखकर ले जायेगी, ख़रीदती जायेगी पंद्रहबीस. घर एक ख़ुशनुमा ख़्वाब होता है. कुछ भी ख़रीद लाओ. लगता है अभी ख़रीदा क्या है ? आज बाज़ार में रशिता भी पता नहीं क्या क्या ख़रीदती चली गई है. काइनेटिक पर कैरी बेग्स लटकाए घर की तरफ लौट रही है. बच्चे जब स्कूल में हों तो यही समय होता है कि वह ख़रीददारी कर ले या बैंक  का काम कर ले. 

तभी उसे सामने सड़क पर तूफ़ान की तरह तेज़ी से,ऊपर तक सामान से लदा ट्रक जोर  ज़ोर  से होर्न बजाता आता दिखाई देता है. वह अपनी काइनेटिक सड़क के बिलकुल बांयी तरफ़ कर  लेती है. उसे लगता  है ट्रक की स्पीड और तेज़-----और तेज़ ---और तेज़ होती जा रही है. यदि उसने अपना वाहन कच्ची सड़क पर नहीं उतार लिया होता तो बार बार स्क्रीन पर देखा द्रश्य साकार हो जाता -------हवा में उछल गई रशिता और उसकी काइनेटिक और सडक पर बिखर गए आलू, प्याज़,  भिन्डी --  ---धूल में पड़ा मैदा ,सूजी व बेसन. उफ़ ! ज़ोर से धडकते दिल के कारण उसने काइनेटिक रोक दी. एक झटके से रुकने के कारण कुछ कैरी बेग्स सड़क पर गिर गए. कुछ लोगों ने भी अपने वाहन रोक दिए थे. ,पैदल चलते लोग रुक गए,''मैडम! आप ठीक तो हैं ?''

दूसरा बोला,''मै सामने से आ रहा था और देख रहा था यदि आपने एक सेकण्ड भी सड़क से अपनी  गाड़ी नहीं उतारी होती तो -------. ''

''ट्रक वाले तो अंधे होते हैं अन्धाधुन्ध  ट्रक भगाते हैं जैसे ये सड़क के राजा हैं. ''

''मुझे तो ऐसा लग रहा था उस ड्राइवर ने जान बूझकर  ट्रक को बांयीं तरफ किया था. कहीं वह आपको ट्रक से कुचल कर  मारना  तो नहीं चाहता था ? ''

 

वह  अपने टल गए एक्सीडेंट की कल्पना में धूल में उठे गुबार की धुंध में अटकी हुई थी,सकते की हालत मेंथी.

रशिता को लगा उसका दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा है फिर भी वह लापरवाह सी बोली , ''ओ ! नो !मुझे कोई क्यों मारना चाहेगा ?  ''कहकर उसने अपने बैग उठाये ,कुछ लोग उसकी मदद करने लगे. उसने अपनी घबराहट छिपाने के लिए बोतल सेपानी निकाल कर पिया और सबको धन्यवाद देकर चल द्दी ,''थेंक्स फॉर योर मॉरल सपोर्ट. 

वह इतना घबरा गई थी कि सीधे मेरे घर  आ गई,उस दिन तो उसने कुछ नहीं बताया था किन्तु छ; सात महीने बाद उसने जो अपनी आप बीती सुनाई उससे मैं फिलौसफ़र हुई जा रहीं हूँ. नेट के इस युग में हम सब बहुत कुछ जानने का दम्भ भरते हैं ,दुनियां के दूसरे छोर से संपर्क रखने का दंभ भरते है लेकिन कितना कुछ होता है जो हमारी समझ से परे होता है ---हम ठगे से सोचते रह जातें हैं

कि ये कोई संयोग था या ---------या हमारे बड़ों की आशीष दुआएसामने ढाल बन गए थे. लेकिन सभी लोगों को उनका आशीर्वाद मिलता ही है,सभी अच्छे बुरे कर्म करते ही हैं तो फिर ---- तो फिर ----ऊपर वाला स्वयम ही नहीं चाहता था कि हमें अपने पास बुलाये.  उसे हमसे दुनियां में और भी काम करवाने हैं.  मैं जब भी वो बातें सोचतीं हूँ उलझती चली जाती हूँ ----इस पृथ्वी,इसकी ज़मीन,इसके पहाड़ों का,नदियों का --इसमें रहने वाले प्राणियों का एक सुनिश्चित जीवन काल होता है उसे कौन सुनिश्चित करता है,?इस माथापच्ची,में पड़ना बेकार है. असल बात तो ये है कि एक जीवनकाल होता है सबके हिस्से का ---छोटे मोटे  मकानों व प्राचीन इमारतों शब्द  का भी. आपको मकानों व प्राचीन इमारतों शब्द से  छोटे बड़े भग्नावेश याद आ रहे होंगे, विशाल गुम्बद याद आ रहे होंगे, अर्द्धान्द्रकार दरवाज़े, पत्थर की जाली वाली खिड़कियाँ ,विशाल दालानों वाली सीलन भरी गंध. इनके बीच में गहन सन्नाटे  में  खड़े हो जाओ तोइनकी दीवारों पर लगी काली ,हरी काई समय के ढेर में छिपी कहानियां फुसफुसाती प्रतीत होती है

 ----इन इमारतों में पसरा सन्नाटा दहशतज़दा खौफ़ मन में पैदा करता है ----ऐसे ही -----हाँ ---ऐसे ही हम भी समय की परतों में दब जायेंगे. जो हर समय 'मैं 'हमें परेशान किया रहता है ----चैन से नहीं बैठने देता ---कहीं नहीं होगा ----वह कहाँ चला जाता है --ये मथाचप्पी  करना बेकार है.  कितना कुछ होता है जो हमारी समझ से परे होता है ,हम ठगे से सोचते रह जातें हैं  कि ये सब संयोग था या ---------या कहीं कोई है जो हमारे सिर की  बला दूसरे जीवों पर डाल रहा है -------तो ---तो या जीवनकाल निश्चित करने वाला अभी मूड में नहीं है  कि हमें वापिस प्रथ्वी से बुला ले. मौत के वार तो हमारी तर फ़  चल चुके हैं जिन्हें रोकना किसी के बस की बात नहीं है. किन्ही को तो उन्हें झेलना होगा. रशिता के जीवन की इस सत्य घटना से आप क्या निर्णय लेंगे,ये आप पर है. 

रशिता ने जो कहानी सुनाई थी उससे मेरी तो परिभाषाएं ही बदल गईं थीं. ये ईंट गारे के बने घर  सिर्फ़ ढांचा होते हैं. इनमें रहने वाला परिवार,उनके बीच का प्यार मनुहार. उनके लड़ाई झगड़े  इसे घर बनाते  हैं. मैं ऐसा ही समझती थी. लेकिन इस ईंट गारे के ढाँचे की भी एक आत्मा होती है जो इसमें रहने वालों को प्यार करने लगती है. इसमें रहने वाले नन्हे जीव जंतु इनमें रहने वाले प्राणियों को प्यार करने लगते हैं. इसमें रहने वाले चूहे इसके अनाज के दानों पर  पलते हैं. बाहर के कुत्ते बिल्लियों से या उनके रिश्तेदारों से इस घर का रोटी का व बचे खाने का  रिश्ता होता है. तभी जब बिल्ली किसी घर के आस पास रोती है तो लोग डर जातें हैं. की वहां अनिष्ट होने वाला है. मेरी अम्मा यानि दादी दालान में रोती बिल्ली को डंडा लेकर भगाने चल देतीं थीं,''अरे आग लगी !कहीं और जाकर रो. ''

रशिता  और अपने अनुभव से अब तो बिल्ली  के रोने से अनिष्ट होने का डर सर उठाने लगता है।  तब पापा की  तबियत बहुत खराब थी,फेफड़ों में कोई इंफेक्शन था । उनका डायरिया रुकने का नाम नहीं ले रहा था। भाई के फोन से में भागते सी घर पहुँची थी। जिस घर में कोई भयानक  बीमार हो उस घर की हवा भी सहमी सी लगती है ,घुटी घुटी सांस लेती। उस पर बार बार बिजली गुल हो जाती थी और  रात में एक काली बिल्ली कम्पाउंड में आकर तड़प कर रोने लगती थी,''आ-----आ--उ ---उ --आ ---आ --उ –ऊ---. ऊ --- ऊ '' जैसे वह मौत का रुदन कर रही है।  भाभी ने डंडा लेकर उसे कम्पाउंड से भगाया था। वह तीन दिन लगातार पास के घर की दीवार फलाँगकर आती रही,रोती  रही,''''आ-----आ--उ ---उ --आ ---आ --उ --ऊ. ---- ऊ --- ऊ ' भाभी ने उसे भगाकर डंडा स्टोर में रक्खा ही था कि  मम्मी का रुदन आरम्भ हो गया था,सारा घर जैसे रो उठा था -पापा नहीं रहे।

रशिता  पापा की मृत्यु के बाद जब मिलने आई तो मैंने उसे लॉन में जाड़ों  की कुनकुनी धुप में उसे लॉन में चाय का प्याला पकड़ाते हुए ये सारे अनुभव बताये थे व कहा था,''पता नहीं कैसे ये परिभाषा गड़  ली गई है की इंसान सृष्टि का सबसे अक्लमंद जीव है  पर उसे अपनी  मौत का पूर्वानुमान नहीं होता। छोटे छोटे जीव उसे संकेत देते हैं। ''

रशिता  भी दार्शनिक हो गई थी,''हाँ,आदमी जंगल में हो तो उसे पता नहीं चलेगा कि  शेर यानि उसकी मौत कुछ किलोमीटर पर है। उसके आस पास के जानवरों में एक हड़कंप मच जाता है जो शेर से छिपने सुरक्षित स्थानों की तरफ भागने लगते हैं। ''

मैं  और भी संजीदा हो गई थी,''मुझे अपनी मित्र रेनू ने फोन किया था। वह बात भी तुझे बताना चाह रही थी। ''

'' क्या '?''

मैंने कप को मेज़ पर रखते हुए कहा,''रेनू व उसके पति शरद जी पूना से भोपाल जाने वाले थे। ट्रेन का समय हो रहा था। सामान  पैक था। बस रसोई में बनी सब्ज़ी,पूरी पैक करनी बाकी थीं।अचानक सारे घर में ढेरों कॉकरोच निकल आये।  ''

''कॉकरोच तो कभी एक साथ निकल ही आते हैं। ''

''वो बात नहीं है। तूने' ममी रिटर्न्स 'देखी है ?'

'''हाँ,मुझे तो मिस्त्र  के पिऱेमिड्स व ममी वैसे ही बहुत  फ़ेसिनेट करते हैं। ''

''तो जैसे उस फिल्म में जगह जगह से कीड़े निकल कर   छा जाते हैं बस वैसे ही उनके सारे घर में कॉकरोच की इतनी भरमार हो गई कि फर्श पर  पैर रखना मुश्किल होने लगा। पूरी  पर सब्ज़ी में कॉकरोच ही कॉकरोच ही भर गए. ज़रा कल्पना कर पूरी व सब्ज़ी जैसी चीज़ पर रेंगते हुए कॉकरोच ! तो सोच कोई कैसे घर को छोड़ कर जा सकता है ?शरद एव रेनू  ने रिज़र्वेशन केंसिल करवाया। दूसरे दिन पेस्ट कंट्रोल करने वालों को बुलवाया। ''

''तो इस घटना में अनोखी बात क्या है ?''

''अनोखी बात तो ये थी वो जिस ट्रेन से जाने वाले थे उस ट्रेन का आगे  जाकर एक्सीडेंट हो गया। बहुत से लोग मरे व बुरी तरह घायल हुए। ''

रशिता उछाल पडी,''ओ माई  गॉड ---उन घर के कॉकरोच ने बचाया उनका जीवन। ''

क्या घर भी कुछ महसूस करता है ?यदि घर  वालों पर मुसीबत हो तो वह भी सहम जाता है ? उसका भी गला डर से रुंध जाता है. जैसे कोई डर से सहमकर रुंधे गले से कमरे के एक कोने में सिकुड़कर बैठा कांपता रहता है वैसा ही तो रशिता धवल  को अपना

घर लगा था जब वे धवल की ममेरी बहिन की शादी में जाकर एक सप्ताह बाद लौटे थे. उन्हें घर में कदम रखते ही लगा था की वह किसी सन्नाटे भरी सुनसान हवेली में आ गएँ हों वर्ना तो हर बार लौटने पर घर प्यारा सा इंतज़ार करता लगता है. उस दिन घर की हर धड़कन जकड़ी हुई थी जैसे कभी अपना गला जकड़ जाता है. घर के  ड्राइंग रूम में बड़े बड़े जाले लगे थे. शाम के अँधेरे में घर भाँय ---भांय ---कर रहा था . घबराकर रशिता ने लाईट जला दी थी. ऐसा लगा जैसे घर का डर कम हुआ. 

उसकी नज़र दीवान पर बैठे दो नन्हे चूहों पर पड़ी थी. वे चूहे भी अपनी नन्ही गर्दन उठाकर उन्हें अपनी चुनमुनी आँखों से देखने लगे थे कि उनके घर में ये अजनबी कौन घुस आयें हैं किन्तु तुरंत ही उन पर अपना चूहापन सवार हो गया वे डरकर दीवान से कूद कर दूसरे कमरे में भाग गए थे. दीवान पर उनकी   विष्ठा का ढेर लगा था. धवल अचरज कर उठे,''मैं जाने से पहले सारी  खिड़कियाँ,दरवाज़े बंद कर गया था. यहाँ तक कि घर के सभी आउटलेट्स पर ईंट रख गया  था फिर चूहे कहाँ से आ गए. ?''

''दीवान पर,कमरे में इनकी कितनी शिट भरी हुई है. ''

''वो सोफे के नीचे देखो ढेर लगा है. ''धवल झुकते हुए बोले

''सारा घर ऐसा हो गया है जैसे महीनों  बंद पड़ा रहा है. ''रशिता दूसरे कमरे में से स्टोर में जाकर  अपने दुपट्टे से नाक ढकते हुए चिल्लाई ,'' यहाँ कितनी बदबू आ रही है ------ देखो ---देखो दो चूहे मरे पड़े हैं. ''

स्टोर में दो तीन डिब्बे फर्श पर गिरे पड़े थे ----अरहर की दाल ---काबुली चने. धवल अभी वहां पहुंचे ही थे कि छत पर किसी भारी पत्थर के''धम्म'' से  गिरने की आवाज़ सुनाई दी. धवल क्रोधित हो उठे,''देखो गुंडे हमारी छत पर पत्थर फेंककर हमें डरा रहें हैं. सालों ! को अभी देखता हूँ. ''वह छत की तरफ दौड़े. 

रशिता ने उनकी बांह पकड़ ली,''तुम ऊपर नहीं जाओगे. क्या पता और पत्थर मारकर तुम्हें घायल कर दें. ''

धवल ने जबरन अपनी बांह छुड़ाने की कोशिश की,''तुम मुझे छोड़ दो. ऐसे कब तक डरतें रहेंगे. ?''

'     'मैं तुम्हें अपनी कसम दे रहीं हूँ,रुक जाओ. क्रिमिनल्स हमें ये जाताना चाहते हैं कि हम वापिस लौट चुके हैं उन्हें पता लग गया है  दैट्स   इट. ''

धवल अपना हाथ छुड़ाकर लेंडलाइन की तरफ झपटे  क्योंकि ट्रेन में ही उसके मोबाइल का चार्ज ख़त्म हो गया था.  दो तीन बार नंबर डाइल करने के बाद झुंझला उठ,''इसे भी आज ही डेड होना था. मैं इन्स्पेक्टर भल्ला को फोन करना चाह रहा था. ''

''देखो धवल !हम पहले भी तय कर चुके हैं भल्ला या किसी पुलिसवाले से कोई शिकायत नहीं करेंगे. ''

धवल उसकी अनसुनी करके रशिता के मोबाइल पर भल्ला का नंबर डाइल करने लगा था. उसने तीन चार बार कोशिश की लेकिन नेटवर्क नहीं मिला. वह आश्चर्य कर उठा,''थोड़ी देर पहले  ऑटो में तुमने मामीजी को बताया था कि  हम लोग पहुँच गए हैं. ''

''हाँ ---- ''वह मोबाइल धवल के हाथ में से लेकर देखने लगी,''इसमें तो चार्ज भी पूरा है. ''

उसने भी दो तीन अलग अलग नंबर डाइल करने की कोशिश की लेकिन उत्तर कहीं नहीं था,उसने साँय साँय करते घर को देखा -अपराधियों की नुकीली नज़र के बीच अकेले पड़ गए घर के  रेशे रेशे में डर बिंध गया है,जहाँ चूहे भी शेर बने घूम रहें हैं.  उनकी बद इच्छाओं से घर सहम गया है,ख़ौफ़  खा रहा है,यहाँ तक कि इस घर में  मोबाइल का गला भी डर के  कारण खुल नहीं रहा. . कहतें हैं कि घर में चूहों की अधिकता उस घर की बर्बादी की निशानी होती है -ऊँह!   कहकर उसने सर झटक दिया था,रशिता भी जाने क्या क्या सोचने लगी थी. ये तो अच्छा हुआ कि बच्चों को धवल के भाई साहब घर ले गए थे  क्योंकि कल  इतवार है  वे उनके  बच्चों के साथ रह लेंगे. 

अचानक घर के पीछे के कम्पाउंड की कुंडी खडकी. रशिता बोली,''चलो अच्छा है मिठ्ठी आ गई है. ''

वे लोग रास्ते में ही उसके घर बोल आये थे कि वे शादी से लौट आये है. मिठ्ठी ने आते ही नमस्ते की फिर पूछने लगी,''बेन का कैसा शादी  बना ?''

''बहुत बढ़िया शादी हो गई. आजकल तो संगीत संध्या में दूल्हा दुल्हिन दोनों ही डांस करते हैं. ''

'' ऐसा क्या ?''

मिठ्ठी रशिता कि दी हुई मिठाई खाकर घर की सफाई करते हुए बड़ बड़ाने लगी,''चूहा लोग कितना बोम धाम किया है ---जइसा खंडहर में करता है. ''

रशिता उसकी बात सुनकर चौंक उठी कैसे उसे बता दे कि इस घर को खंडहर करने की कुछ लोग साजिश रच रहें हैं. कैसे बात दे जिस घर पर,उसके रहने वालों पर खूंखार अपराधियों की नज़र होती है तो उन्हें उनके मन पर एक अनजान खौफ़नाक भय  की जकड़न हर समय महसूस होती रहती है. पल पल वे चौंक जातें हैं. अपनों के अनिष्ट की आशंका उन्हें बेधड़क सोने नहीं देती. आतंकवादी तो अचानक बम्ब फोड़ते हैं लेकिन अपराधियों की कमीनी हरकतों के नुकीले खंजरों के  नीचे तिल तिल कर डरना,संभालना. आने वाले पलों के लिए थरथराना कि अगले पल क्या हो जाये. ये डर हफ्ते का नहीं महीनों का हो ----तो वही समझ सकता है जिस पर कभी अपराधियों की काली छाया पड़ी हो. 

मिठ्ठी स्टोर में जाकर चिल्लाई,''ओ आंटी ! देखो चूहा लोग कितना लेट्रीन किया है. ओ माँ! इदर दो चूहा लोग मरेला पड़ा है ''

स्टोर  को साफ़ करती फिर वह बदबदाई,''अथवाड़े [आठ दिन में ] में कोई घर में इतना चूहा आ सकता है ?''

उसने मरे हुए चूहों को पुरानी झाड़ू से एक गत्ते पर लिया और बाहर आकर तेज़ आवाज़ में बोली,''आंटी !आपका घर तो भुतहा खंडहर लग रहा है ---आपके घर तो कैसी मौत मंडरा रही है ?'

''चुप कर क्या बक रही है ?''पहले से डरी रशिता इतने जोर से चीखी कि धवल भी बाहर निकल आये,''क्या हुआ ?''

''साबजी !  मैंने तो बस इतना ---------. ''

''चुप कर मिठ्ठी !. ''रशिता का शरीर थर थर काँप रहा था. धवल उसे लेकर बेडरूम में आ गये. उसे पलग पर बिठाते हुए बोले. ,''क्यों इतनी पेनिक हो रही हो. ''?

दरअसल मैं रशिता के डर की इतनी बातें बता गईं हूँ लेकिन यह अभी तक बताया नहीं कि वे अपराधी कौन थे ?रशिता के घर की लेन पर जब मुड़तें हैं तो वही नुक्कड़ वाले घर में रहने वाले लोग इनके जानी दुश्मन बन गए थे. ना देश को अपने बम्ब से दहला देने वाले आतंकवादी -----नहीं,छत्तीसगढ़ के नक्सली ----------नहीं. असम के उग्रवादी ----- मुरैना, भिंड

के बीहड़ों से डाकुओं का लगभग सफाया हो चूका है मुरैना में किसी ने कहा कि डाकू अब शहरों में बस गये हैं. तो इन्हीं के आस पास के अपराधी जो गलियों,कोलोनियों में. . मुहोल्लों में सफ़ेदपोश का  चोगा पहने मिल जायेंगे. जी हाँ,आप भी पहचान गए होंगे ड्रग या अपनी स्त्रियों की जिस्मफ़रोशी का व्यापार करने वाले. नुक्कड़ वाले घर की संदिग्ध गतिविधियाँ धवल की नज़र में आ गईं  थीं. वह अनदेखा करके चुप बैठने वालों मे से नहीं था इसलिए उसने अपने मित्र इन्स्पेक्टर भल्ला से इनकी शिकायत कर दी थी.  भल्ला ने अपने उच्च अधिकारीयों तक खबर पहुँच दी थी. 

धवल को तब ये बात पता नहीं थी कि पुलिस थाने एक छलनी की तरह होते हैं  वहां से बात छन छन कर बाहर निकलती है और उन्हीं तक जा पहुंचती है जिनके खिलाफ़  वह की गई थी. भल्ला को तो वह बरसों से जानता था  इसलिए ये हरकत उसकी नहीं हो सकती थी. मतलब जो अपराधियों की शिकायत करे पुलिस वालों की मेहरबानियों से वही इनका दुश्मन बने. 

धवल जब  ऑफ़िस निकलते या वापिस आते तो कोई न कि उनका पीछा करता होता. रशिता को भी घर के काम से बाहर जाना ही होता था. उसे हमेशा लगता कि उसका पीछा किया जा रहा है. पीछा  कहना तो ठीक नहीं होगा क्योंकि वह तो छिप छिप कर  किया जाता है. रशिता पीछा  करने वाला काली शर्ट पर रंगीन मफलर बांधे होता या गहरे चेक की शर्ट पर काला गॉगल्स लगाए होता. उसे जान बुझकर जताया जाता कि उस पर नज़र रक्खी जा रही है. ट्रक से उसे मारने की घटना से धवल  ने तुरंत ही एक वकील के पास एक सीलबंद पत्र रखवा दिया था जिसमें नुक्कड़ वाले परिवार के नाम थे जिससे यदि इन्हें कुछ हो जाये तो पुलिस  इन लोगों को पकड़ सके. इस बात को भल्ला के माध्यम से पुलिस थाने में भी फैला दिया था,

वे लोग इन्हें डराने से बाज़ नहीं आते थे. कभी वह बाज़ार में लारी से फल खरीद रही  होती तो उनका गुर्गा जानबूझ  कर अपनी बाइक रोकता उसे घूरता हुआ अपनी सिगरेट सुलगाता.   जब वह दोपहिया स्टार्ट करती तो वह बाइक उसके पीछे आ रही होती. 

रशिता अपने भावहीन चेहरे से यह दिखाने का प्रयास करती कि वह डर नहीं रही. इंसान के अवचेतन की ग्रंथि पर आस पास का वातावरण असर डालता ही है. बस ऐसे ही उसका मस्तिष्क एक भय से जकड़ता रहता था. घर पर भी वह कुछ डरी,चौकन्नी रहती थी. उसकी ऊर्जा बेहद कम हो गई थी घर के मामूली कामों को भी वह जबरन शरीर को घसीटते हुए पूरा करती थी. सडक पर अब भी कभी कभी कोई कार या दोपहिया जान बूझकर इतने पास से निकालता जैसे कह रहा हो सड़क पर तो आये दिन एक्सीडेंट होते रहतें हैं. 

वह धवल के शाम को घर  आने पर पूरा ब्योरा देती व कहती,''अब हमें घर बदल लेना चाहिए. ''

''हम क्यों डर कर भागें ?कहीं नई जगह किराये का मकान लेंगे तो कोई  पहचान का नहीं होगा. यहाँ तो किसी को सहायता  के लिए पुकारे तो दस लोग आ खड़े होंगे. ''

''ये बात भी ठीक है,वैसे मैं इन पीछा करने वालों के सामने अपना आत्म विशवास नहीं छोड़ती. ''

''गुड,कभी न कभी अँधेरे के बादल छटेंगे. ''

ऊपर से वे कितने ही निडर बन रहे हों. रात को जोर की आवाज़ होती 'रिफ्लेक्स एक्शन' की तरह उनका हाथ पास में सोते हुए निकिता व निलय के ऊपर चला जाता. इस स्पर्श से उनकी पलकों की झालर लहकती लेकिन इन मासूमों की नींद इन्हें घेरे रहती. एक रात किसी आवाज़ को सुनकर रशिता की नींद खुल गई थी. उसने आँख खोलकर देखा कि बाहर वाली खिड़की पर कोई दाढ़ी वाला खड़ा,''शी-----शी ====शी. ''कर रहा था. 

उसने चीखने की कोशिश की लेकिन उसकी जीभ तालू से चिपक गई थी. उसने पास सोये धवल को हिलाकर जगाया. वे उछल कर बैठ गए,''कौन है ----कौन है. ''

उनके उठते ही वह आदमी भाग गया. बड़ी मुश्किल से अटकते गले से रशिता ने ये बात बताई. तब से घर के बाहर वाली खिड़कियाँ बंद रक्खे जाने लगीं थीं. तबसे लगने लगा था कि रात होते ही घर और डरने लगता है. किसी अँधेरे कमरे में जाओ तो लगता  है कि वह अपने कोने में बैठा सिकुड़ रहा है. जैसे ही रोशनी करो वह नन्हे बच्चे की तरह उसके क़दमों में निडर हो उठता है,  घर के पौधों  की पत्तियां सिहर सिहर कर हवा में डोलती सी लगतीं हैं. कभी घर भारी भरकम पर्दों के पीछे अपना डर छिपाता सा लगता  है. अपने अन्दर आती तेज़ धूप को भी यह मरियल, सहमी सी रोशनी में तब्दील करता प्रतीत होता है. 

 

हाँ,तो उस दिन जब वे शादी से लौटे थे तो रशिता को  कम्पाउंड में से एक पिल्ले की 'कूँ' 'कूँ  की आवाज़ सुनाई दी,वह कमरे से बाहर

 

गई,''मिठ्ठी  !देखना कोई पिल्ला घुस आया है. ''

मिठ्ठी अपने दुपट्टे से अपने हाथ पोंछते हुए बोली थी,''आंटी !मैं तुमको बताना भूल गई थी. वो जो कुत्ती पेट से थी. ''

''कौन सी ?''

''वही भूरी सफ़ेद --वही जिसे आप रोटी डालतीं थीं. एक दिन मैं आपके कम्पाउंड की सफाई कर रही थी तो वही दर्द से तडड़पती गेट से अन्दर घुस आई थी. यहाँ चबूतरे पर तड़ --पती रही. बच्चा लोग व औरतों की भीड़ इकठ्ठी हो गई थी. मैंने उसे  पानी पिलाया व बाजू वाली आंटी ने रोटी खिलाई. उसने एक के बाद एक चार पिल्लों को जन्म  दिया. मेरी आँखों के सामने तीन तो वैसेच मर गए. थोड़ी देर बाद वह कुत्ती भी मर----. ''मिठ्ठी दुपट्टे में मुहं छिपा सिसकने लगी. ,''मैं वैसे थोड़े कह रहीं हूँ  कि आपके  घर मौत मंडरा रही है उसका एक बच्चा बचा है मैं उसे रोटी डालकर,दूध पिलाकर पाल रहीं हूँ. ''

''तू  फ़ालतू की बकवास मत कर,जाकर उस पपी को यहाँ  ले आ. ''

''किसको ?''

''कुत्ती के बच्चे को. ''

''कुछ कहो तो आपको बुरा लगता है. वो तो आपने सही किया कि मुझे आप पीछे के गेट की चाबी दे गईं थीं नहीं तो यहाँ लाशों की बदबू के मारे खड़ा रहना बोत मुश्किल था. मैंने वो कुत्तों की लाशें जमादार को बुलाकर फिंकवा दीं व गाड़ी  लेकर आ गया था. मैंने  उससे कह दिया है आंटी आयेंगी तब इनाम देंगी,. हर दिन मुझे लगता रहता है ये पिल्ला बचेगा या नहीं  क्योंकि आपके घर मौत ----------------''

रशिता उसकी बात  से चिढ़  गई,''तू बक बक मत कर,मैं जमादार को

इनाम दे दूंगी. जल्दी से उस पपी को ला. ''

रशिता की जोर की आवाज़ से धवल बाहर निकल आये थे,''क्या हुआ ?''

''साबजी !मैंने तो इतना ही कहा --------. ''

''तू चुप कर. ''उसने उन्हें संक्षिप्त में कुत्ती के बच्चों की बात बताई. 

मिठ्ठी चुप होकर कम्पाउंड से पपी लेकर आ गई. फर्श पर वह कूँ ---कूँ --कूँ करने लगा. उसकी आँखे भी ठीक से नहीं खुल रहीं थीं. धवल उसे गोदी में लेकर बोले,''इसने हमारे घर जन्म लिया है,मौत को हराया है. इसे हम पाल लेंगे. ''

वे एक लाल रंग की प्लास्टिक की कटोरी में दूध ले आये. उस कटोरी व उसे उन्होंने ज़मीन पर रख दिया था. वह 'कूँ',' कूँ करता दूध पीने लगा. बीच बीच में अपनी अधमुदी आँखों से आभार से उन्हें देख लेता था. प्रसन्न होता नवजीवन ---पोषित होता हुआ नवजीवन कितना मधुर लगता है ----इशिता अभी सोच ही रही थी कि उसका मोबाइल बज उठा ,साथ ही वह भी चहक उठी,''देखो नेटवर्क काम करने लगा. ''उधर से निकिता पूछ रही थी,''मॉम !क्या चल रहा है ?''

''बस सफ़ाई चल रही है. ''

''आंटी ! गेट बंद कर लेना मैं चलती हूँ. ''

खौफ़ दिखाता ये गन्दा घर,इसके रहस्यमयी जाले ---- डर से  घर का रुंधा गला जैसे सब धुल पूंछ गए थे . धवल ने पपी का बरामदे में गत्तों से घर बना दिया था. पपी महाराज भरे पेट से,अपनी काली आँखें बंद किये अपनी अलमस्त टाँगे  फैलाकर नन्हे मुंह को ज़मीन पर रखकर सो गए थे. 

रात भर रशिता पलंग पर करवटें बदलती रही. लगता था मिठ्ठी उसके कान के पास चीख रही है,''तुम्हारे घर पर -----.  '         सुबह उठकर आइना देखा तो उसका चेहर थका हुआ हो रहा था,आँखे लाल पड़ी हुईं थीं. शादी में जाने की सारी खुशी व मस्ती काफूर हो गई थी , वह पाँव घसीटती हुई किचेन की तरफ बदी बेड टी पीकर शायद आँखे खुलें. . वहां जाकर देखा प्लेटफ़ॉर्म  पर,उस पर रखे दो तीन बर्तन पर,गेस पर चूहों की ' शिट' का ढेर लगा था. एक जुगुप्सा से उसका मन भर गया ,उलटी सी लगने लगी लेकिन कोई चारा नहीं था. उसने अपने मुंह पर स्टोल कसकर बाँधा और एक झाड़ू से उन्हें एक अखबार पर इकठ्ठा करके कम्पाउंड में रक्खे डस्टबिन में फेंक आई.  पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ है सिर्फ सात दिन में उनका घर चूहों का अड्डा बन गया हो. ,अभी वह सोच ही रही थी कि फ़ोन की घंटी बज उठी. उसने  लपक कर फ़ोन  उठाया. 

उधर खामोशी साँय साँय कर रही थी. 

''हेलो !हेलो !''वह ज़ोर से बोली. उधर की ख़ामोशी और गहरी हो गई. कुछ  देर में फ़ोन धमकी देता सा जोर से पटक दिया गया. 

उस कॉल  से रशिता के शरीर में हलकी थरथराहट भर गई जैसी कि हर ब्लेंक कॉल से भर  जाती है. उसने बेडरूम में झांक कर देखा धवल अपने दोनों हाथ छाती पर रक्खे घोड़े बेचकर सोये हुए थे। वह रसोई में चाय बनाने चली गई।

क्या गलती थी धवल की ?उस दिन वे रात के दो बजे एयरपोर्ट से अपने टूर के बाद घर लौट रहे थे जैसे ही  उस नुक्कड़ वाले घर के पास टेक्सी आई उन्होंने देखा उस घर के सामने एक काली कार के सामने दो  आदमी खड़े हुए हैं. एक आदमी कार में से एक काला बैग  निकाल रहा है. जैसे ही इनकी टेक्सी पास आई उस  बैग में से चार पांच पोलीथिन के छोटे छोटे पाउच गिर गए जिसमें सफ़ेद पाउडर भरा हुआ था. खड़े  हुए आदमियों में से एक ठिगना आदमी गुर्राया '',एक काम भी तुम ठीक से नहीं कर सकते ?''

टैक्सी के पास से गुजरने के कारण वे तीनों  टैक्सी में आँखें गड़ाकर देखने लगे. टेक्सी में अँधेरा होने के कारण उन्हें उनका चेहरा स्पष्ट नहीं दिखाई दिया. आगे घर आने पर धवल ने कहा ,''यहाँ रोक दीजिये. ''

टैक्सी ड्राइवर की कांपती सी आवाज़ आई. ''साब !अपने घर पर अभी मत उतरिये,यहाँ तो ड्रग का बहुत बड़ा लफड़ा  लग रहा है. आपको पहचान लिया तो कल ही खलास कर देंगे. ''

धवल  की आवाज़ हलके से काँप गई,''तो मैं क्या करूँ ?''कोलोनी के सारे घर नींद की आगोश में थे,सन्नाटा छाया हुआ था. सिर्फ  बंगलो के पेड़ों व स्ट्रीट लाइटों के आलावा कोई नहीं जग रहा था. सड़कें भी लम्बी पड़ी सो रहीं थीं. 

ड्राइवर तेज़ी से  टैक्सी भगाता कोलोनी से बाहर आ गया था. अपनी ट टैक्सी को पंद्रह बीस मिनट मुख्य सड़क पर दौड़ता रहा ''साब !कहतें हैं आजकल' साइकोट्रोपिक ड्रग्स 'का बोलबाला हो रहा है. यदि कोई इन्हें खाए तो पहचान में भी नहीं आता कि इसने ड्रग ली हुई है. . उसका व्यवहार नॉर्मल होता है. अगर उसके किसी वीक पॉइंट को छेड़ दो तो वह आपे से बाहर हो जाता है. कभी कभी तो वह मर्डर भी कर सकता है. यदि अधिक मात्रा में कोई ड्रग खिला दे तो पालतू की तरह उसकी बात मानने लगता है. ''

''हाँ,मैंने भी एक अखबार  में  इनके बारे में एक डॉक्टर  का आर्टिकल पढ़ा  था. ''

उसने  फिर वापिस धवल के घर की तरफ    टैक्सी मोड़ ली और घर से थोड़ी दूर पर उसे उसने छोड़ दिया,''साब !आप यहाँ से पैदल चले जाएँ अब वह कार नहीं दिखाई दे रही है और इस बात को आप बिलकुल भूल जांए कि आपने कुछ देखा था. ''

रशिता को अब लग रहा है  टैक्सी ड्राइवर्स जो रात के अँधेरे में  टैक्सी चलाते हुए रास्तों पर

देखतें हैं वह सुबह होते ही भूल जातें हैं वर्ना सडकों पर उनकी लाशें बिछी हुई मिलतीं. धवल कैसे चुप बैठ पाते ?ये उनकी फितरत ही नहीं थी. वे लोग अब ड्रग के व्यापार से जुड़ी  हर छोटी बड़ी खबर अखबार में ध्यान से पड़ने लगें थे व कल्पना करते कि नुक्कड़ वाले घर के लोगों से कौन कौन जुडा होगा ?---पान वाले -------लारी वाले ---कॉल गर्ल्स व छोटे मोटे धंधे वालियां , उन के दलाल -----शहर में फैले ड्रग सप्लाई करने वाले एजेंट्स का जाल और उसमें फंस गए लोग. इस जाल को फैलाता,अपनी उँगलियों पर नाचता वह कौन होगा ---कोई आई,ए. एस. ----कोई बड़ा व्यापारी -------कोई आई पी. एस -----या कोई राजनेता. वह कौन होगा ?-----कौन होगा इनका सर परस्त जिसके आदेश पर रशिता व धवल को सड़क पर डराया जाता है. इनके घर की कभी बिजली,कभी पानी काटा जाता है. धवल को नगरपालिका को बार बार शिकायत करनी पड़ती है. किन किन हाथों में होगा इनकी मौत का  फ़रमान ?

नुक्कड़ वाले उस मकान में दो वर्ष से रहने आये उस शालीन परिवार को देखकर कौन कह सकता है कि कि उनके असली धंधे क्या  है. वह आम  शरीफ़ों जैसा परिवार है. कालेज में प ढ़   रही एक बेटी व एक व्यवसाई बेटा. आये दिन उस घर में सत्यनारायण की कथा या भजन होते रहतें हैं. कभी वे लोग रशिता के  यहां प्रसाद भिजवा  देतें  थे. दुश्मनी से पहले   दो चार बार तो वे स्वय भी  पूजास्थल पर रूपये भेंट कर उनके घर प्रसाद लेने गए   . अपने हर अतिथि को वे बाहर गेट तक छोड़ने आतें हैं,कुछ झुककर नमस्ते करतें हैं. ऐसे सज्जन लोगों पर कोई शक कैसे करेगा ?

वकील के पास रक्खा गया ख़त वाली ट्रिक तो काम कर रही है. फिर भी वे इन्हें डराते रहतें   कि वे म्यान में शांत रक्खी हुई तलवार की तरह रहें लेकिन उनकी बर्बर भावनाओं की चपेट में कौन आ रहा है -------वो कुत्ती---ये चूहे उनके घर में घुसकर खंडहर जैसा माहौल बनाकर चेतावनी दे रहें हैं  कि ये  अपने घर को वे बचा लें ?खंडहर होने से रोकें. 

निकिता निलय लौटकर उस पपी का नाम 'चिंटू 'रख देते हैं. रशिता चाहे लाख चिल्लाये. ''इसे कमरे में मत आने दो. ''लेकिन दोनों सुनते ही नहीं हैं कमरों में चिंटू द्वारा कर दी गई गन्दगी स्वयं पोता लेकर साफ़ करतें  रहतें हैं लेकिन कहीं चूहों की 'शिट ' पड़ी दिखाई दे जाये तो कहर बरपा देतें हैं. ''ओ  शिट !आई हेट शिट. ''

चूहों की धमाचौकड़ी बदस्तूर जारी है. ग्लोब्लाइज़्द ज़माने के चूहे  पिंजड़े में भी नहीं फंसते. उसके कांटे में लगाईं रोटी को चट करके बिना फंसे भाग जातें हैं और जहाँ मर्ज़ी  हुई  शिट करते रहतें हैं. हर दिन रशिता उसका ढेर फेंकती है. मिठ्ठी के लिए फिर वही ढेर तैयार हो जाता है. वह झाड़ू  से इन्हें अखबार पर लेती बडड़बड़ाती है,''अब या तो आपके घर में चूहा लोग रहेगा या मैं. आंटी !सोच लो चूहा मारने की दवा लाकर सबको खलास कर दो. ''

कितना मुश्किल होता है किसी का जीवन लेना. उधर धवल गुस्सा होतें हैं,''यदि तुम चूहे मारने के लिए नहीं मानी तो अपने बच्चों को कुछ हो जायेगा. ज़रूर कोई गंभीर बीमारी होगी. तब रोती रहना. ''

विवाह के बाद ये सारे वर्ष यहीं निकले हैं कभी चूहों ने ऐसा बवंडर नहीं मचाया. चूहे घर को खंडहर की तरह इस्तमाल करके क्या संकेत दे रहें हैं. कहीं कुछ लोग हैं जो इस घर को खंडहर बनाने के लिए तुले हुए हैं. उन्हीं चूहों को मार डाला जाये ?बच्चों की सलामती की बात आते ही उसे निर्णय लेना पड़ता है. घर में चूहे मारने की दवा लाई जाती है . 

पहली रात दो तीन गोलियां किचेन के दरवाजे के पास,स्टोर में, कम्पाउंड के दरवाजे के पास,रखते समय मन बेहद बोझिल है. सुबह एक चूहा स्टोर के दरवाजे के पास फटी आँखों से मुंह खोले मरा पड़ा दिखाई देता है, एक कम्पाउंड की तरफ खुलने वाले दरवाजे के पास. रशिता को उसके' ग्रीनिश भूरे' मृत पड़ गए ढीले शरीर को गत्ते में एक लकड़ी से लेते समय आंसू निकल आतें हैं. नाक पर चुन्नी बंधी है फिर भी बदबू है कि नाक में घुसी जा रही है. 

फिर तो हर दिन का ये क्रम हो गया है  मृत पड़े चूहे को मारना,मुंह पर कुछ लपेट कर उन्हें फेंकना है. उस स्थान को साफ़ कर गंगाजल छिडकना,गायत्री मन्त्र पढ़ना. बच्चों के उठने से पहले नहा लेना. दिन भर अपने मिचलाते जी के साथ फिरना. चिंटू उधर बड़ा हो रहा है बाहर भाग कर कभी गायब हो जाता है. इधर उधर आवारा गर्दी करने के लिए. 

हर दिन चूहा फेंकती रशिता सोचती है कि शायद ये आखिरी दिन हो लेकिन चकराते सिर के साथ लगता है कि अनंत समय तक मृत     चूहे फेंकती रहेगी. बच्चे पूछते हैं,''मॉम !आप आजकल जल्दी क्यों नहा लेती हो ?

''एक पूजा चल रही है इसलिए. ''

''आप तो कहतीं थीं कि बिना नाश्ता किये मैं नहा नहीं सकती. ''

निलय समझाता ,'' बुद्धू ! पूजा के समय रूल्स चेंज हो जातें हैं. ''

तीसरे दिन ही धवल ने सुबह उठकर दरवाज़े से आवाज़ लगाईं थी,''रशिता. ''

उनकी घबराई आवाज़ से वह भागी भागी दरवाज़े तक गई थी,''क्या हुआ ?''

वहां धवल एक अखबार अपने हाथ में पकड़े  कह रहे थे ,''ये 'न्यूज़ डेली 'क्या  तुमने मंगाया था ?''

''नहीं तो. ''

''तो इसे कौन डाल गया. है ?''

कोई ख़ास बात ?''

''नहीं तो. ''कहकर वे पेपर  फ़ोल्ड करके जाने लगे. 

''धवल मुझे देखने तो दो. ''कहकर उसने वहअखबार उनसे छीन लिया और खोलकर पड़ने लगी. पहले प्रष्ट पर ही एक हेडलाइन थी -'अ ड्रग माफ़िया मर्डर्ड अ इनोसेंट सिविलियन '. . 

''य--य--य---. 'उसका खून जम गया था. इससे पहले वह कुछ पूछती कि बच्चे अपना बैग  लेकर उछलते कूदते आ गए. ,''पापा !मॉम 1बाय !''

धवल घबराते हुए बच्चों से बोले','' मैं कार निकाल रहा हूँ. आज मैं तुम्हें स्कूल छोड़ने जाउंगा. ''

''हुर्रे ---हुर्रे. बच्चे खुशी से चिल्लाये. 

रशिता बीच में बोल उठी,'इनकी आदतें मत बिगाड़ो. ''

''मॉम इज़  फ़ीलिंग जैलस हा !हा ! ''

धवल के लौट आने के बाद रशिता ने उससे कहा, था,''हमने जब सोच लिया है कि यहाँ रहना है तो हम क्यों दिखाएँ की  हम इनके  अखबार बम्ब से डर गए हैं. मौत तो उपरवाले के हाथ से लिखी है. इन गुंडों के हाथ से नहीं. मुझे आज बाज़ार का कोई काम नहीं था फिर भी मैं आज बाहर निकलूँगी. ''

धवल भी इसकी बात से सीटी बजाते डर को झटक नाश्ते के लिए डाइनिंग टेबल पर आ बैठे थे. वह     स्टोर में सेंट स्प्रे करके चाय बनाने लगी थी सोचते हुए कब तक इन चूहों को मारना चलता रहेगा. 

शाम को बर्तन साफ़ करने आई मिठ्ठी रोती कलपती आती है. ,''हाय !मार डाला -------. हाय !मार डाला. ''

उसकी इस आवाज़ से रशिता चिढ़  गई,''क्या हर दिन नया नाटक करती रहती है ?''

''आपको नाटक लग रहा है ?मैंने विसको बच्चे की तरह पाला था ---रोटी खिलाई,दूध पिलाया. दो दिन तो अपने घर सीने से लगाकर रक्खा था. '

''क्या हुआ बताएगी भी ?

''मैं आपके घर काम करने आ रही थी. मुझे  देखकर चिंटू उछलता कूदता मेरे पीछू आने लगा जैसे ही मैं तुम्हारे गेट के पास आई उसे उस झबरे काले कुत्ते ने अपने जबड़ों से झिंझोड़कर मार डाला ठीक आपके गेट के सामने. मैं न कहती थी कि आपके घर मौत -------. ''

''चुप कर. जल्दी बर्तन साफ़ कर और चलती बन. ''वह कहकर तो आ गई लेकिन हवा में डोलते परदे,खिड़की से झांकती पेड़ों की पत्तियां ,छतों के झुक आये कोने वही शब्द फुसफुसाते प्रतीत हो रहे थे.  और वह रोज़ चूहों को मौत भेंट कर रही थी. जी मिचलाए या घबराए उन्हें अखबार पर रखकर बाहर डस्टबिन में डाल रही थी. सिर में घुसी बदबू के कारण,चकराते दिमाग के कारण खाने के नाम पर निवाले निगल भर रही थी. 

ये सिलसिला करीब नौ दस दिन चला था. उसे लगा था यदि ये सिलसिला दो चार दिन और चलता तो दिमाग में घर कर गई बदबू से उसका सिर टुकड़े टुकड़े हो जाता या वह हमेशा के लिए बेहोश हो जाती,

 

मैं  सोचती रह जाती हूँ कि  कैसे -----क्या हुआ ----किसकी सूचना पर हुआ --नुक्कड़ वाले घर पर छापा पड़ा --शहर के और हिस्सों में भी छापे पड़ते चले गए. यहाँ  तक सीबी आई क्राइम ब्रांच  उस पुलिस कमिश्नर तक भी जा पहुँची जो इन कठपुतलियों को अपनी उंगली पर नचा कर बैंक  का अपना अकाउंट भर रहा था. 

धवल रशिता के सर पर से मौत का बोझ हट गया था,वे खुलकर मुस्कराने लगे. थे धवल ने  निर्णय ले लिया था अब इस घर में नहीं रहेंगे ----तो क्या चूहे इस घर को खंडहर बनाकर चेतावनी दे रहे थे कि इसमें नहीं रहो ?या वे समझ गए थे कि इसमें रहने वाले इसमें अब और नहीं रह पाएंगे ?लेकिन एक सप्ताह के अन्दर वह हुआ क्या था ---जो उनकी सेना घर में घुसकर कुछ कहना चाह रही थी. ? कुत्ती    ने भी अपनी प्रसव वेदना में मरने के लिए उन्हीं का घर क्यों चुना ?

नए  घर में आने के एक महीने बाद रशिता की शादी की सालगिरह है. रशिता सोचती है कबर्ड में से अपनी वह अंगूठी पहने जिसे धवल ने सुहागरात को उसे दी थी. ये बात और है कि तीन वर्ष पहले इसके सफ़ेद,लाल नग निकल जाने के बाद इसे बदल कर एक भारी मोटे  जोड़ वाली अंगूठी ले ली थी। डिनर पर जाने के लिए सब तैयार हो रहें हैं. निकिता चार पांच फ्रॉक देखने के बाद,नखरे करने के बाद सी ग्रीन फ्रॉक पहनने को तैयार होती है.  रशिता ने भी नया सलवार सूट पहना है. वह अंगूठी निकालने के लिए कबर्ड का सेफ़ खोलती है. सारे डब्बों के बीच चमक रही है सुनहरी डिब्बी. उस यातना भरे समय  से गुजरकर धवल के साथ का मोल और बढ़  गया है. वह भावुक होकर वह सुनहरी डिब्बी खोलती है. उसे खोलकर क्षितिज के उस पार तक हैरान हो जाती है -----अंगूठी का मोटा मज़बूत जोड़ एक तरफ़ से टूट चुका है. 

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श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ

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