नहीं रह सकी तुम सिर्फ मेरे लिए r k lal द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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नहीं रह सकी तुम सिर्फ मेरे लिए


नहीं रह सकी तुम सिर्फ मेरे लिए

आर 0 के 0 लाल


मम्मी! तुमको क्या यह बात हजार बार बतानी पड़ेगी या लिख कर दूँ कि इस तरह का खाना मैं नहीं खा सकता। रोज-रोज एक ही नाश्ता तुम बनाती हो, वही अंकुरित मूंग और दलिया। आज मैं कुछ खा नहीं रहा हूं ऐसे ही ऑफिस जा रहा हूं। तुम घर के दूसरे लोगों के हिसाब से रसोईं बनाओ और उन्हें खिलाओ। मैं तो यह सब नहीं खाने वाला। सुमित ने सुबह ऑफिस जाते हुये

हंगामा माचाया।

उसकी मम्मी पूजा ने बड़े प्यार से उसे समझाने की कोशिश की, “अरे बेटा सुनो तो! क्यों नाराज होकर जा रहा है। तेरा टिफिन भी बना कर रख दिया है। उसमें पनीर की सब्जी और पराठा है। आज नाश्ता करके तो जाओ, कल जो कहोगे मैं बना दूंगी। सुबह-सुबह गुस्सा नहीं करते”। लेकिन सुमित कहता रहा कि मां मैं तुम्हारी बकवास नहीं सुनने वाला। तुम हमेशा अपनी मर्जी का ही करना चाहती हो । तुम रहने दो , मैं ऑफिस में होटल से नाश्ता मंगा लूंगा। यह कह कर वह बिना टिफिन लिए घर से निकल गया और पूजा उदास उसे देखती रह गयी।

पूजा ने अपने पति अरुण को आवाज लगाई कि वह जाकर उसे टिफिन दे आए, मगर अरुण ने बिगड़ते हुये कह दिया, “तुम्हें बहुत चिंता करने की जरूरत नहीं, है। जाने दो , वह कोई बच्चा नहीं रह गया है, पचीस साल का हो गया है। शादी हो

गयी होती तो उसके भी बच्चे होते। कब तक हम लोग बच्चों की सेवा करते रहेंगे। देखते हैं कि कब तक वह बाहर से खाना मंगा कर खाता रहेगा”। पूजा ने आज सोचा था कि बालों में रंग लगाएगी क्योंकि कई दिनों से अरुण टोक रहा था , मगर सुमित की चिंता में उससे कुछ नहीं हुआ ।

अरुण दिन भर पूजा को परेशान देखता रहा। उसने शाम को अपने दोनों बेटों को बुलाकर समझाने की नियत से कहा, “ “तुम लोग अब अपनी व्यवस्था स्वयं कर लो क्योंकि तुम सभी हमेशा पूजा को कुछ न कुछ उल्टा सीधा बोलते रहते हो जो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता। क्या तुम समझ सकते हो कि खाना बनाना कितना कठिन कार्य है? खाना बनाना तो छोड़ो खाना क्या बनाना है यह भी सोचना कितना मुश्किल होता है। घर में सभी की अलग अलग पसंद का किस प्रकार ध्यान रखा जाये यह सोचने में ही तुम्हारी मम्मी का दिमाग खराब हो जाता होगा। सुमित ने तो बड़ी आसानी से कह दिया कि रिपीटेड खाना नहीं खा सकता लेकिन सोचो तुम्हारी मम्मी तुम लोगों के कितने नखरे सहती है। चाहे सर्दी हो या गर्मी सुबह उठते ही वह रसोई में लग जाती है और तुम सभी मुंह ढ़क कर देर तक सोते रहते हो। अगर पूजा बीमार भी हो जाए तो भी खाना बनाती है क्योंकि उसे तसल्ली होती है कि उसके बच्चों ने कुछ खा लिया। वह हमेशा दुआ करती है कि बच्चे खुश रहें। अपने लिए कभी कुछ नहीं चाहती और तुम लोगों को देखकर ही अकारण ही खुश रहती है । तुम्हें पता है कि तुम्हारे व्यवहार से उसे कितना दुख पहुंचता होगा । हम जानते हैं कि कल तुम जब अपनी गृहस्थी अलग बना लोगे तो हम लोगों को पूछोगे भी नहीं । केवल सोशल मीडिया पर हाय, हॅप्पी बर्थडे या ज्यादा से ज्यादा आयी लव यू लिख कर अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री समझ लोगे फिर भी कितना कष्ट उठा कर हम लोग तुम जैसे नालायक औलादों को पाल रहें

हैं”

यह सुन कर सुमित भड़क गया और हाथ नचाते हुये बोला, ““पापा ! अब तो लगता है कि आप भी सठिया गए हैं । तभी तो इस तरह बहकी- बहकी बातें करने लगे हैं। आज तक आप ने हमारे लिए किया ही क्या है? हमारी नौकरी लगवाने में भी

आपने कोई आर्थिक मदद नहीं की। अपने प्रयास से ही मैं सब कर रहा हूँ । आप कोई नया काम नहीं कर रहे हैं, सभी माँ –बाप अपने बच्चों को पालते हैं। हमें लगता है कि आप हमारी शादी में भी अच्छा खासा दहेज लेने की सोच रहे हैं तभी तो आपने मेरी प्रेमिका किरण को रिजेक्ट कर दिया। मैं तो सोचता हूँ कि किरण के घर पर ही चला जाऊँ, क्योंकि हम आप लोगों पर बोझ हो गए हैं ।किरण के मम्मी पापा तो हमें अपनाने को तैयार हैं”।

सुमित के छोटे भाई अमित ने भी हाँ में हाँ मिलाई, “भैया सही कह रहे हैं, आप लोग हमारी चिंता न करें । आप जल्दी रिटायर होने वाले हैं उस समय आपको जो कुछ मिलेगा हम दोनों को दे दीजिएगा । हम दोनों किसी तरह अपना काम चलालेंगे”। यह कह कर दोनों भाई मुंह चिढ़ाते हुये अपने अपने कमरों में चले गए। अरुण हतप्रत सब सुनता रहा। उसका मुंह खुला का खुला रह गया। उसे इस तरह के जवाब की कल्पना ही नहीं थी । उसके पैरों के नीचे से तो जमीन ही सरक गयी थी। पूजा भी रसोई से सब सुन रही थी मगर उसने चुप रहना ही उचित समझा।

रात को अरुण ने दुखी मन से पूजा से पूछा, ““लोग बच्चे क्यों पैदा करते हैं”? पूजा ने कहा कि छोड़ो, आखिर बच्चे अपने ही तो हैं, उनकी बातों का क्या बुरा मानना?

अरुण ने कहा, “कितना कुछ हम इनके लिए करते हैं फिर भी कोई हमसे खुश नहीं रहता”। कहते हुये अरुण की आँखें भर आयीं। उसने आगे बात बढाई कि कितने होनहार हैं हमारे बच्चे इसका पता आज चल गया। उनकी बातों से हमारी आंखे खुल जानी चाहिए। इनसे तुम कोई उम्मीद न करो। इन नालायकों से तो अच्छी हमारी बेटी है, जो अपनी ससुराल में भी हमारे लिए चिंतित रहती है और हमेशा हमारे लिए कुछ न कुछ करने को तैयार रहती है।

फिर पूजा का हाथ अपने हाथों में लेकर अरुण बोला, “इन बच्चों के लिए हमारी मजेदार लाइफ भी खत्म हो जा रही है। “मुझे बखूबी याद है जब हम मिले थे और पति पत्नी बन कर दो से एक हुये थे तो हमारा जीवन कितना रोमांचक बन गया था। एक दूसरे के बिना हमारा दिल नहीं लगता था । एक पल भी बिछड़ कर कहीं चैन नहीं पड़ता था । तुम्हारा जीना- मरना मेरे लिए था क्योंकि तुम सिर्फ मेरे लिए थी । जब तक मैं तुम्हारा चेहरा नहीं देख लेता तब तक मेरी सुबह नहीं होती थी और जब

तक तुम मुझसे न मिल लो तुम्हारी रात नहीं होती थी। मगर यह सब केवल कुछ ही दिन चल पाया था कि अचानक पता चला कि हमारे बीच कोई नया मेहमान आने वाला है जिसकी खुशी में हम गाना गाने लगे थे, “जीवन की बगिया महकेगी.... हम कुछ और बंधेंगे ..., थोड़ा हमारा थोड़ा तुम्हारा, आयेगा फिर से बचपन हमारा.....”। हमें क्या पता कि दो से तीन होते ही हमारे बीच दूरी कम होने के बजाय बढ़ जाएगी । हमारे बीच लेटकर जब नया मेहमान लात मारता तो बड़ा अच्छा लगता पर उन लातों की चोट अब महसूस हो रही है। हमारे तीन हुये तो हम दोनों एक दरिया के दो पाट हो गए जो कभी नहीं मिल सकते। इस प्रकार हम आधे रह

कर दूर- दूर रहने लग गए और हमारी सारी प्राथमिकताएं बच्चों को ही मिलने लगी। उनके लालन पालन की चिंता में तुम्हारे चेहरे की

सुंदरता न जाने कहाँ गायब हो गयी। तुम्हें न तो अपनी चिंता है और न मेरे ख़यालों की परवाह है । मैंने तो कई बार तुम्हें समझाने की कोशिश की थी मगर तुम कहाँ सुनने वाली? बच्चों के पैदा होने से पहले ही तुम्हें उसकी फिक्र होने लगी थी फिर जैसे-जैसे वे बड़े होते गए, उनके लिए अच्छे-से-अच्छा करने में तुमने अपनी सेहत बिगाड़ ली । अभी पचास साल में ही बूढ़ी लगती हो । सुबह से ही पूरे घर की तीमारदारी, चूल्हा- चौका ,सफाई आदि में ऐसे लगी रहती हो कि तुम्हें अपने खाने पीने की भी सुध नहीं रहती, सूख कर कांटा

हो गयी हो। आखिर ये बच्चे तुम्हें क्या दे देंगे” ?

पूजा ने कहा कि बच्चों से हमें क्या अपेक्षा करना? यह तो हमारा फर्ज है।

अरुण ने उत्तर दिया, “किंतु समय के साथ ही हमारा वह सपना बिखर गया जिसमें हमने तुम्हारा “चाँद सा चेहरा”, “झील सी आँखें”, “सुराहीदार गर्दन”, और ऐसे ही न जाने कितने प्रतिकों की कल्पना की थी। तुम अपनी सहेलियों में सबसे सुंदर थी तभी तो मैंने तुम्हें पसंद किया था। देखो जरा किचन की गर्मी और पसीना से तुम्हारे चेहरे पर झुर्रिया, तुम्हारे हाथों पर जलने कटने के निशान आ गए हैं और धीरे-धीरे तुम्हारे बाल में चांदी चमकने लगी है, दांत भी खराब हो गए हैं तो चश्मा भी लग गया है । तुम आज भी वही कर रही हो जो कल कर रही थी। इन नालायकों को क्या पता कि तुमने इतने सालों से सिर्फ खाना ही नहीं बनाया है बल्कि

तुमने एक घर बनाया है , साथ ही तुमने इन बच्चों को बनाया है”।

अरुण ने आह भरते हुये कहा कि अब तो तुम सिर्फ मेरी नहीं रह गयी हो । पहले जब भी मैं दुखी होता था तो तुम मेरा दुख बांट दिया करती थी, मुझे अपनी गोद में सुलाती थी और मेरे सिर के बालों को सहलाती थी जिससे मैं सब भूल जाता था। सुबह उठकर चाय बनाकर देना, “आप पर यह शर्ट अच्छी लगेगी” कहकर शर्ट निकालना आदि बातें कहाँ चली गईं ? आज मैं तुम्हें अकेले लेकर फिल्म देखने के लिए टाकीज़ नहीं जा सकता, खाने के लिए अकेले होटल नहीं जा सकता, क्योंकि तुम बिना अपने बच्चों के कहीं जा ही नहीं सकती। शॉपिंग भी करोगी तो अपने लिए नहीं बल्कि अपने बच्चों के लिए। मेरे लिये भी तुम्हारे बजट में पैसे नहीं

बचते। इतना करने के बाद भी बच्चे हमें तिरष्कृत करने लगे हैं इसलिए हमें बदल जाना चाहिए”। अरुण ने पूजा को समझाना चाहा।

पूजा ने बड़ी सरलता से अरुण के बालों को सहलाते हुये बोली, “यही तो अंतर हैं मेरे और तुम में। तुम एक नर हो और मैं एक नारी हूं। नर में बड़ा आ और बड़ी ई दोनों मात्राएं लगाने पर ही नारी बनती है। ये मात्राएं बहुत अहम हैं जो हम नारियों को सर्वदा भिन्न बनाती हैं, जिससे हम जीवन में बहुत कुछ करने में समर्थ हो जाती हैं। स्त्री एक तरफ़ जहां बहुत सरल है, वहीं बहुत जटिल भी है। एक नर की अपेक्षा एक नारी पूरे जीवन में कई रूपों में कई बार जन्म लेती है। वह उन सभी निर्मित रूपों को अपने में संजोए भी रहती है। एक आदर्श नारी वह होती है जो सबकी बात सुनती है। नारी एक दृढ़ता है, जिसका विश्वास कोई डिगा नहीं

सकता, तभी वह बहन, पत्नी, मां सभी के दायित्व को भली भांति निभा पाती है। अपने मां-बाप के आंचल में पली-बढ़ी एक फूल सी बच्ची फेरे लेते ही एक परिपक्व सोच वाली गृहणी बन जाती है । उसे अचानक दूसरे घर जाकर तमाम बातें एडजस्ट करनी पड़ती हैं ।

ससुराल में उसे कहीं प्यार मिलता है तो कहीं दुत्कार जिसका उसे पहले से पता नहीं होता है। शादी के बाद उसे दो परिवारों की जिम्मेदारी एवं संबंध निभाना पड़ता है, जहां पति की अपेक्षाएं, सास ससुर, देवर देवरानी और ननद आदि के आदेशों को उसे निभाना पड़ता है। जब वह एक माँ बनती है तो फिर उसका नया जन्म होता है जिससे उसकी मानसिक सोच पूर्णत: बदल जाती है। अब

उसकी उड़ान अपने को छोड़कर बच्चों की सुखद कल्पना की ओर घूम जाती है । उसकी अपनी इच्छाएं क्षीण होने लगती हैं। अपने बच्चों में ही उसका जीवन दिखाई पड़ता है। ऐसे में पति से विरक्ति होना स्वभाविक है परंतु वह उसे भी नहीं छोड़ पाती। अक्सर इसी खींचतान में उसे बहुत कंप्रोमाइज करना आ जाता है और उसकी सब कुछ सहने की आदत पड़ जाती है। इतना ही नहीं वह अपने बच्चों का लालन- पालन के पश्चात अपने पोते पोतियों और नाती नातियों को भी संभालने की लालसा रखती है। एक के बाद दूसरा ख्वाब,मगर उससे कुछ छूटता नहीं। ऐसे में कोई तिरस्कार भी करता है तो उसे यह बात बहुत छोटी प्रतीत होती है। आज बच्चों का बदलता व्यवहार बदलते समाज की देन है बच्चे-पैरेंट्स के बीच भी मान-मर्यादा के मायने बदल गए हैं। बच्चे पैरेंट्स की सुनते नहीं।

इसके लिए हम परेशान नहीं होती। वे चाहे जो करें या कहें कभी स्वयं की गलती मान कर ,तो कभी उनकी गलती को अनदेखा कर हम सब सह लेते हैं । आत्मविश्वास और सहनशीलता हम महिलाओं के दिव्य गुण होते हैं । रही सिर्फ तुम्हारी होने की बात, तो सबसे पहले मैं तुम्हारी ही हूँ। चिंता मत करो ,जब हम अपने बच्चो के कर्तव्यों से निवृत होंगे तो हमारे पास बहुत समय होगा। हां यदि तुम भी

अन्यथा व्यवहार करोगे तो हमें बहुत कष्ट होगा” ।

अरुण ने कहा, “नारी तुम धन्य हो”। उसने पूजा की सोच की प्रशंसा की और हर तरह से उसे हमेशा संबल देने का भरोसा जताया।

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