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डिवोर्स...

डिवोर्स

आर0 के0 लाल

वकील साहब को आज घर पर बुलाया गया था। उनके साथ, ड्राइंग रूम में मेरे मम्मी-पापा, भाई, चाचा एवं पड़ोस के एक अंकल सभी बैठे थे। सामने चाय नाश्ता रखा था। सब एकमत कह रहे थे कि सोनम बिटिया को उसके नरक जैसे ससुराल से जल्दी से जल्दी छुटकारा दिलाएं। तरह - तरह की चर्चा भी हो रही थी। कोई भारतीय परंपरा को दोषी बता रहा था तो कोई कानून व्यवस्था पर उंगली उठा रहा था। वहां ज्यादातर पुरुष थे फिर भी वे पुरुषों की मानसिकता को ही जिम्मेदार ठहरा रहे थे। कह रहे थे कि नारी की कमजोरी को इसके लिए दोषी नहीं माना जाना चाहिए। सब चिंता में डूबे हुए थे। मगर वकील साहब बहुत आश्वस्त नजर आ रहे थे। उन्हें अपने ऊपर बहुत ही कांफिडेंस था। बगल के कमरे से मैं सुन पा रही थी कि वकील साहब कह रहे थे कि बहुत से ऐसी धाराएं लगा दूंगा कि तुरंत ही बिटिया का तलाक हो जाएगा। बस उसे जैसा कहूं करना होगा। यौन उत्पीड़न, दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा, मारपीट आदि अनेक कारण मुकदमे में लिखे जा सकते हैं। उन्होंने समझाया कि घरेलू हिंसा पर रोकथाम के लिए 2006 में महिला संरक्षण एक्ट भी बनाया गया है जिसके तहत उसके ससुराल वालों पर सख्त कार्रवाई हो सकती है। उन्होंने कहा कि आप सोनम को बुला दीजिए ताकि मैं उसे सब कुछ बहुत समझा दूं और वकालतनामा पर दस्तख़त करा लूं और उसका स्टेटमेंट लिखवा दूं। एक-दो दिन में ही मुकदमा दायर कर दूंगा। अंत में उन्होंने एक लंबी फीस की भी मांग की।

पापा ने मम्मी से कहा कि पचास साठ हजार में मुकदमा हो सकता है। किसी तरह से जुगाड़ करके फीस भर देंगे। मम्मी ने हां में हां मिलाई “मैं अपने गहने भी बेंच दूंगी मगर बिटिया को दुखी नहीं देखूंगी। आप कहीं से भी ले दे कर वकील साहब का फीस भर दें और कल ही मुकदमा दायर करवा दें।”

जब से ससुराल छोड़ कर के वापस अपने मायके आई हूं हमेशा अपने बिस्तर पर पड़े पड़े सोचती रहती हूं कि क्या करूं? क्यों मेरे साथ ऐसा हो गया? शायद मेरा भाग्य ही खराब है। मुझे अपनी सहेली नयना की याद आती है जिसका तलाक का केस अभी भी कोर्ट में चल रहा है और उसके परिवार वाले पिछले 4 साल से दौड़ते दौड़ते पागल से हो गए हैं। सारे घर की पूंजी चली गई है फिर भी मुकदमा है कि खत्म ही नहीं होता। ना तो उसके हसबैंड का घर बस रहा है और ना ही मेरी सहेली का। तनाव के कारण वह तो बीमार ही पड़ गई है और उसकी नौकरी भी छूट गई है। डरती हूं कि कहीं ऐसा मेरे साथ भी न हो, यही सोचती रहती हूं।

आकाश से मैंने शादी अपनी मर्जी से की थी। बी0 टेक0 करने के बाद मेरी नौकरी उसी कंपनी में लग गई थी जिसमें आकाश भी इंजीनियर था। साथ साथ काम करते कब हमें प्यार हो गया पता ही नहीं चला। मैं आकाश के घर भी जाती थी और वहां सब से मिलती-जुलती थी मुझे बहुत भला लगता था। लगता था कि यही मेरी सही मंजिल है।जाति से हम अलग थे, मगर आकाश के मम्मी पापा ने कभी भी कोई एतराज नहीं जताया और शादी की बात पर सहर्ष तैयार हो गए। कहा कि बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी है। इसके विपरीत मेरे मम्मी पापा नहीं चाहते थे कि मैं किसी दूसरे बिरादरी के लड़के से शादी करूं। मगर हम दोनों ने तो साथ मरने जीने की कसमें खा ली थी। कैसे ना उसे निभाते। किसी तरह मम्मी पापा को समझा कर के उनसे शादी कर लिया था। कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक चला मगर फिर हमारे बीच की खाई बढ़ने लगी और हमेशा कहासुनी लड़ाई झगड़ा होने लगा। अंत में आज हम तलाक के कगार पर पहुंच गए हैं।

मैं सोचती हूं कि गलती कहां हुई? कुछ मेरी गलतियां थी तो आकाश भी गलत था । जब भी मैं उससे कोई भी शिकायत करती या अपने सास-ससुर या ससुराल के लोगों के बारे में कुछ कहती तो आकाश हमेशा चुप हो जाता था । कभी कभी उन्हीं का पक्ष लेता था । धीरे धीरे हम लोगों के बीच काफी कहा सुनी होने लगी। जब बर्दाश्त नहीं हो सका तो एक दिन मैं अपनी मां के पास अा गई और आकाश को फोन कर दिया कि हमारा रिश्ता खत्म।

मैंने अपनी सहेली “हिमानी” को फोन पर सब कुछ बताया। उसने सारी बातें ध्यान से सुनी और कहा, “ तुम तो बहुत समझदार हो। एक दिन तुमने हमें समझाया था और हमारा परिवार बचाया था, फिर तुम यह क्या करने जा रही हो?” उसने समझाया,- “तुम्हारा पति है तो क्या हुआ। वह अपना अलग व्यक्तित्व तो रख ही सकता है। तुम्हारा कितना ख्याल भी तो रखता है। हो सकता है कि तुम्हें उससे कोई शिकायत हो। थोड़ा व्यावहारिक बनो, भावुक मत बनो। वैसे तो पति पत्नी का रिश्ता प्रेम से भरा हुआ होता है पर कभी-कभी घर में लड़ाइयां और तनाव बढ़ जाता है और मामला तलाक तक पहुंच जाता है, इस प्रकार एक पवित्र रिश्ता टूटने की स्थिति में आ जाता है। उससे बचने के लिए दोनों लोगों को भरपूर प्रयास करना चाहिए जिससे फिर से गृहस्थी में सामंजस्य स्थापित हो सके।”

हिमानी ने मुझे हिम्मत दिया और बताया कि पश्चिम की मान्यताओं ने हमारे जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। पहले पति पत्नी से परिवार आपस में जुड़े रहते थे पर आज वे दोनों खुद ही एक नहीं रह पाते फिर परिवार को एक साथ क्या रखेंगे। कई विचारशील कहे जाने वाले व्यक्ति कहते हुए सुने जाते हैं कि पति पत्नी के बीच मनमुटाव बने रहने की तुलना में कहीं अच्छा है कि संबंध विच्छेद कर लिया जाए। मगर सोचो क्या तलाक ही समस्या का हल है? क्या पति पत्नी तलाक के बाद अधिक सुखी रहते हैं? क्या उनका परिवार बहुत अच्छा होता है? सोचने की जरूरत है अन्यथा जल्दी में उठाया गया कदम जीवन भर तनाव दे सकता है । एक बार तलाक हो जाने पर लोग समझते हैं कि उनके परिवार वाले भी दोषी हैं। बच्चों पर भी इसकी खराब प्रतिक्रिया होती है, जब भी उन्हें पता चलता है तो उनको एक असहनीय आघात लगता है। तलाक से आर्थिक दबाव भी पड़ता है । मुकदमा बहुत दिनों तक चलता है इसलिए उस पर अलग से ख़र्च होता है, तो क्यों ना फिर से एक बार समझौता करने की सोचा जाए ।” ऐसा मेरी सहेली ने मुझे चेताया।

इन बातों ने मुझे झकझोर दिया। मै अपनी गलतियों के बारे में सोचने लगी कि मेरे दिमाग में ऐसा कहां से आया। मुझे याद आया कि शादी से पहले मम्मी ने कहा था कि तुम खूबसूरत हो, अच्छा खासा पैसा कमाती हो, पढ़ी लिखी हो इसीलिए आकाश के घर वाले तुमसे शादी करने के लिए तैयार हो गए हैं। मम्मी ने मुझे आगाह किया था कि वह सब लोग मेरा सारा पैसा खा जाएंगे इसलिए हमें बहुत सावधान रहना होगा। जब से शादी तय हुई थी तब से लेकर के शादी वाले दिन तक मुझे तरह तरह की नसीहतें मेरी मम्मी देती थीं। उन्हें लगता था कि मैं बच्ची हूं । मैं जवाब देती कि मम्मी ऐसा नहीं है, तुम गलत सोचती हो आकाश के घर वाले बहुत अच्छे हैं और मुझे बहुत ही प्यार से रखेंगे। कभी मेरी बुआ आ जाती तो मुझे बताती थी किस तरह से मुझे अपने ससुराल वालों से बचकर रहना पड़ेगा। वे बताती रहतीं कि यदि ससुराल वाले मुझे प्रताड़ित करें तो उस स्थिति में क्या क्या सावधानी बरतनी चाहिए । इतना ही नहीं, जिस दिन मेरी विदाई हो रही थी मेरी मम्मी और बुआ मुझे एक अलग कमरे में ले गई और मुझे मिले गहनों की एक सूची देते हुए कहा- “ यह सब गहने तुम्हारी सासू जी के पास हैं। इन गहनों को जितनी जल्दी हो सके ले लेना। नहीं तो वह तुम्हें नहीं देंगी और उसे तुम्हारी कुंवारी ननद की शादी में दे देंगी।” साथ ही बताया कि तुम्हारे ससुर ने बहुत ज्यादा गहने तुम्हें दिए हैं उन्हें भी किसी को ना लेने देना। इसी प्रकार दहेज के सभी सामानों की सूची मुझे दी और उन पर निगाह रखने के लिए नसीहत भी दी। शायद मुझे समझाया गया था कि ससुराल वाले तुम्हारे अपने नहीं है इसलिए अपनी सुरक्षा स्वयं करना । उनकी बातों को बहुत ज्यादा अहमियत मत देना और उनकी सेवा में भी समय देने की जरूरत नहीं है । परिणाम स्वरूप मेरे मन में आने लगा कि शायद ससुराल पराया ही होता है। आज मुझे लगता है कि संभवत ये बातें ही हमारे आपसी संबंधों में दुराग्रह की शुरुवात का कारण बनी। मैं कुछ बोल तो नहीं पाती हूं लेकिन आज मुझे एहसास हुआ कि काफी कुछ दोष मेरे घर वालों का भी है।

आकाश की मम्मी हमेशा समझाती थी कि बहू की कुछ आदतें घर परिवार में सुख समृद्धि लाती हैं। वह पत्नी के रूप में जहां हर कदम पर अपने पति का साथ देती है और उसे जीवन का सही मार्ग दिखाती है वहीं बेटी के रूप लक्ष्मी के समान होती है। वे चाहती थीं कि मै सुबह जलदी उठूं, सबके साथ नाश्ता करूं, थोड़ा पूजा पाठ करूं, तरीके से घर चलाऊं। मुझे ये बातें ठीक तो लगती थी मगर मेरे मन में भरी अन्यथा बातों से मुझे लगता था कि मुझे जानबूझकर परेशान किया जा रहा है। उस दिन तो लड़ाई ही हो गई थी जब मेरी सास ने कहा था कि बेटा, बहुत बार तुम्हें सिखाया है मगर तुम्हें समझ में ही नहीं आता। हमेशा झाड़ू को पैर से ठोकर मार कर किनारे करती हो, झूठे बर्तन को हमेशा गैस पर रख कर के चली जाती हो बेशिन में नहीं डालती। न जाने क्यों मैं है चिल्लाने लगी थी जब कि ये बातें सही थीं।

आकाश के साथ डिजाइनर का कार्य करने वाली “जान्हवी” को लेकर भी कई दफे हमारे झगड़े हुए थे। आकाश कहा करते थे कि ज्यादा शक करना या हर पल जासूसी करना उचित नहीं है। रोजाना इस बात को लेकर मुझे तंग करोगी तो रिश्ते में खटास आना स्वाभाविक ही है।

मुझे याद आया कि एक बार इसी तरह की घटना मेरी एक सहेली के साथ हो गई थी तो मैंने उसे समझाया था कि आपकी खुद की लाइफ में आपका पति से झगड़ा हो जाए या किसी बात को लेकर अनबन हो जाए तो आप उन्हें हमेशा के लिए छोड़ थोड़ी देंगी बल्कि यदि घर में कोई समस्या है तो भी उसका समाधान निकालने की जरूरत है न कि वहां से भागने की । अपने केस में न जाने मेरी यह समझ कहां चली गई थी।

पिछले कुछ दिनों से ना जाने क्यों, मेरा व्यवहार बदल सा गया था। बुआ की बातें याद आते ही हर बार यही लगता था कि जैसे मेरे साथ कोई बड़ा अत्याचार हो रहा है। छोटी-छोटी बातों पर मैं तनाव में आ जाती थी। आकाश से लड़ाई तो होती ही थी दूसरों को भी भला बुरा कह देती थी। हालांकि घर वाले इन बातों को नजरअंदाज करते थे मगर कभी-कभी तो कुछ ना कुछ छींटा कसी हो ही जाती थी। आकाश अक्सर कहता कि दूसरे को जितना इज्जत दोगी बदले में उतनी इज्जत तुम्हें मिलेगी। पर मैंने यह नहीं समझा और लोगों से अपमान जनक तरीके से बात करने की आदत ही डाल ली। खासकर कि अपने घर के लोगों को अपना दुश्मन बना लिया और ऊपर से नाटक भी करती थी। लेकिन अगर मै अपने व्यवहार को सुधार लेती तो सभी से विनम्रता और प्यार से बात होतो। दूसरे के ओपिनियन की रिस्पेक्ट करना भी जरूरी होता है। ताली हमेशा दो हाथ से ही बजती हैं यह बात आज दिमाग में आ रही थी।

आकाश की तरफ देखती हूं तो मुझे लगता है कि वास्तव में आकाश में कुछ ज्यादा ही अहंकार है। अगर गलती से भी कोई उसे ठेस पहुंचा दे तो वह उसका बदला लेने की सोचता है। ऐसे पुरुष अपनी पत्नी से प्यार तो करते हैं लेकिन अपने अहंकार के आगे उनकी भावनाओं की कद्र नहीं करते । कभी सोचती थी कि हर महिला की एक ख्वाहिश होती है कि उसका पति उससे बेहद प्यार करे। हमेशा पलकों पर बिठा के रखे। झूठे वादे करना अथवा बेमतलब की बहस करना कोई नहीं चाहता। आकाश की ये आदत ही मेरी परेशानी का कारण थीं। अच्छी बात यह थी कि मेरा पति मुझसे कोई बात नहीं छुपाता था और जो भी मन में आया, कह जाता था। उसे बदलने का मुझमें शायद धैर्य नहीं रहा। कुछ ज्यादा ही बोल गई थी और घर छोड़ कर के यहां चली आई। मम्मी से बोली,”आप सच कह रही थी ससुराल के सभी लोग मेरे पीछे पड़े रहते हैं। मेरी जान ही ले लेंगे। इसलिए मैं वहां नहीं जाऊंगी। आप लोग मेरा तलाक ही करा दीजिए।”

रात भर जाग कर सोचने लगी कि यह जो कुछ भी उसके अंतर्मन में चल रहा है क्या वह ठीक है ? क्या है यह सब ? जो कुछ हो रहा है क्या गलत है और आकाश से क्या गलती हुई । वह तो हर बात का ख्याल रखता है। कभी कोई चीज की कमी नहीं होने देता। अब उसे काम ही इतना है कि वह घर की तरफ ध्यान कम दे पाता तो इसका मतलब यह थोड़ी है कि तलाक ले लिया जाए। मैंने पाया कि अगर मैं पूर्वाग्रह से पीड़ित ना होती तो अपनी वैवाहिक जीवन को सजाने की कोशिश करती। एक दूसरे पर कमेंट करना भी उचित नहीं था। मुझे लगा कि तलाक का मुकदमा करना समस्या का हल नहीं है और फिर निश्चय किया कि मैं फिर से अपनी जिंदगी की शुरुआत करूंगी जिसमें किसी की कोई राय नहीं होगी। केवल मेरे और आकाश के बीच सामंजस्य की बातें होंगी। मैंने अपने अहम तथा पूर्वाग्रह बातों को डाइवोर्स देने की सोची ना कि आकाश को। सोचते सोचते पता नहीं कब नींद आ गई।

सुबह उठते ही में बिना किसी को बताए अपने ससुराल चली गई और वहां जाकर बिना कुछ बात किए सामान्य रूप से रहने लगी। मेरे अंदर एक सुगढ़ नारी के संस्कार तो थे ही, मैं उनका कठोरता से पालन करने का प्रयास करने लगी। कुछ दिनों में आकाश ने मेरे में बदलाव देखा और उन्हें भी प्रतिज्ञा की कि आगे से किसी तरह की शिकायत नहीं होगी। धीरे धीरे पुरानी बातें सभी लोग भूल गए।अब हम बेकार में किसी से बात ही नहीं करते। आज मैं खुश हूं । अपने बच्चों को जब मैं अपनी कहानी सुनाती हो तो वह मुस्कुराते हैं और मैं भी हंस देती हूं।

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